काम ही पुजा है ....
जो व्यक्ति ईश्वर को सीधे ना पहुंच कर अपने काम को पुजता है, वह भी ईश्वरीय शक्ति को प्राप्त कर लेता है।गीता में श्रीकृष्ण ने साफ कहा है कि कर्म ही पूजा है। तुम कर्म करते चले जाओ फल देना मेरा काम है। जो कर्म को भगवान मानकर पूजा करता है उसके प्रति निष्ठा रखता है उसे में प्राप्त हो जाता हूं। यह भी अध्यात्म का दूसरा रास्ता है।
ऐसे व्यक्ति ईमानदारी से अपना कार्य करने से ही सच्चा सुख प्राप्त कर लेता है, पर इस क्रम में अपने इंद्रियों को ही सुख पहुचाने की या अन्य कोई स्वार्थ भावना निहित नहीं होनी चाहिए। सच्चा कर्मी आस्तिक होता है। उसके मार्ग में ईमानदारी होती हैं
पूजा करें या काम उसे निष्ठा से करता है ,वह व्यक्ति सत्यवादी सदाचारी बन जाता है। यह एक साधारण सी बात है आप किसी व्यक्ति को अगर कोई काम छोड़ने के लिए कह रहे हो तो उसे तब तक नहीं छोड़ेगा जब तक उसका मन काम छोड़ने के लिए नहीं कहेगा । इसलिए मन को संक्लपवान और शुद्ध बनाना जरूरी है।
इच्छा मत करो जब कर्म करोगे तो फल तो अवश्य ही मिलेगा ही लेकिन यदि पहले ही इच्छा कर लेंगे और वह मनोअनुकूल ना हुआ तो दुख होगा।
इसलिए गीता में भगवान कृष्ण निष्काम कर्म पर बल देते हैं। निस्वार्थ कर्म ही फलदाई होता है।
कर्म योगी को सदैव कर्मरत रहने से उसे आनंद मिलता है इससे समाज में कर्म के प्रति जागरूकता आती है।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में निस्वार्थ कर्म पर बहुत बल दिया है कर्म से व्यक्ति और समाज दोनों का भला होता है।
सवधर्माचरण करने वाले योगी की शरीर यात्रा तो चलती ही रहती है, उधोगरत रहने से उसका शरीर निरोगी व स्वस्थ रहता है। उसके काम में लगे रहने से लोग उसका अनुकरण कर कर्मशील बनते हैं। इसके कारण कर्मशील मानव समाज का निर्माण करने वाला होता है।
तकदीर में जो सुख लिखा है वह मिलेगा ही लेकिन कर्म करना बंद कर दोगे तो वह सुख भी नहीं मिलेगा।
महाराज भरत परम भगत थे। वह कोमल चित महात्मा थे, एक दिन उन्होंने देखा कि एक मृगशावक नदी के प्रवाह में बहता जा रहा है उसके मन में जीव के प्रति दया आई उन्होंने एक शावक को निकाला और अपने आश्रम में रखकर उसका पालन-पोषण करने लगे। पहले जहां उनका समय भगवत चिंतन में व्यतीत होता था वह शावक के देखरेख में बितने लगा।
भरत महाराज का जब अंत समय आया तब उनके मन में मृगशावक की ही चिंता बनी रही जिसका परिणाम यह हुआ कि उनका जन्म मृग के रूप में हुआ।
जीवं अन्त समय जिसका ध्यान करता है उसी रूप में उसका जन्म होता है। जिस समय तुम जो काम करते हो उसमें अपनी पूरी चेतना लगाओ, बल लगाऔ , टूटे हुए दिल से काम ना करो, लापरवाही से काम ना करो, पलायनलवादी हो कर काम करो, थके हुए मन से काम ना करो, हर काम को पूजा समझ कर करो ।
संत कबीर जी कहते हैं- अपना कर्म जो जो करूं सो पूजा अर्थात जो भी काम करता है वह मेरी पूजा है।
कबीर जी कभी मंदिर नहीं गए, कभी मस्जिद नहीं गए, कपड़ा ही बुनते रहे इसी को अपनी पूजा कहते थे। लोग कहते थे कि आप कपड़ा क्यों बुनते हो वह कहते थे कि यह मेरी पूजा है।
काम ही पूजा है और जिसके लिए मैं यह करम कर रहा है वह इससे प्रसन्न होता है क्योंकि उसको कर्म ही पूजा लगता है। तो कबीर जी बाज़ार में कपड़ा बेचने जाते थे तो ग्राहक मिलते थे ,तो वह ग्राहक को भी राम ही समझते थे और कहते राम इसे संभाल कर रखना मैंने बहुत प्यार से बुना है। राम मै डुबकर बूना है।
मैंने एक एक धागे मैं मेरी प्रार्थना है और ग्राहक उनके कपड़ों को हंसी खुशी खरीद लेते थे।
कबीर कपड़ा भी बुनते तो अपने राम में डूबकर कयोंकि परमात्मा
स्वरूप ही हो जाते थे।
यदि कर्मफल अनित्य है, और दुख का कारण है तो क्या मनुष्य कर्म करना ही छोड़ दें। यह संभव दिखाई नहीं देता क्योंकि बिना काम किए मनुष्य एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता। यह एक विचित्र परसिथ्ती है जिसमें ना तो कर्म को त्याग किया जा सकता है और ना ही हुई उसे प्राप्त फलों से नित्य सुख प्राप्त किया जा सकता है।
अनित्य फल कर्म के महासागर में मनुष्य के पतन का कारण और उसकी प्रगति में अवरोधक है। कर्म का अनित्य फल कर्म के महासमुद्र में व्यक्ति के पतन का कारण होकर उसके लक्ष्य प्राप्ति में अवरोधक होता है।
मनुष्य किसी भी प्रकार का कोई भी काम कोई न कोई फल प्राप्त करने के लिए करता है तथा फल प्राप्ति के बाद उसका उसका उपयोग करके सुखी बनना चाहता है।
इतना ही नहीं वह सुखी नित्य हो ऐसी अपेक्षा रखता है, किंतु किसी भी प्रकार का क्रम चाहे वह लौकिक, धार्मिक या वैदिक हो सबका फल अवश्य ही मिलेगा। फिर वह फल लौकिक हो या स्वर्ग इत्यादि के समान अलौकिक हो
इसलिए गीता में कर्म प्रधान पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण बताया गया है।
अपने काम को पूजा की तरह मानकर करो आप एक दिन अपने काम में जरूर सफल होंगे इसमें किसी भी प्रकार का कोई शंका नहीं है।
अंत में यही संदेश देना चाहती हूं च कि अगर आप अपने काम में सफल होना चाहते हैं तो काम को पूजा मानकर दिन हो या रात आगे पीछे ना देखकर काम करते रहिए उसके लिए नियम को टूटने मत दीजिए।यही सफलता का असली रहस्य है।
यह संदेश बहुत समय पहले भगवान श्री कृष्ण ने गीता में हमें ही दिया था कि काम ही पूजा है और सफलता का यही असली मंत्र है। बिना काम करे ना तो कोई आज तक सफल हुआ है और ना ही होगा यह बहुत ही कड़वी सच्चाई है।
Last alfaaz ----
अगर आपको मेरा यह motivational topic अच्छा लगा हो तो प्लीज इसे अपने चाहने वाले और दोस्तों को जरूर शेयर करें। शेयर करने में किसी प्रकार की कंजूसी ना करें, हो सकता है किसी एक विचार को पढ़कर किसी का जीवन बदल सकता है। किसी को काम करने की प्रेरणा मिल सकती हैं, इसलिए जितना हो सके शेयर जरूर करें।
प्लीज मुझे फॉलो करें और सब्सक्राइब करें और मैसेज बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं कि आपको कौन सा topic सबसे अच्छा लगा है.।
धन्यवाद
0 टिप्पणियाँ