vash movie review| वश हिन्दी फिल्म रिव्यू || अतृप्त आत्माओं की वासनाओं का वश फिल्म रिव्यू ||

 

वश हिन्द फिल्म रिव्यू  ( cash movie review in hindi)
यदि आप भी हॉरर फिल्म देखना पसंद करते हैं तो वश एक बहुत ही बेहतर फिल्म है। इस प्रकार इस फिल्म में एक परिवार काले जादू और बुरी आत्माओं के कारण बहुत ही पूरी तरह फंस जाते हैं। इस पूरी इस पूरी फिल्म में यह परिवार अपने परिवार की किस तरह से सुरक्षा कर सकता है इन बुरी आत्माओं से, तो अगर आप इस तरह की फिल्मों में इंटरेस्ट रखते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें क्योंकि इस फिल्म की कहानी काफी ही मनोरंजक बताई जा रही है।
वश मूवी story-

हिमाचल प्रदेश  के एक कस्बे में  परागपुर में एक के बाद एक खुन हो रहे हैं. कौन मार रहा है इन्हें? क्यों मार रहा है? क्या कुछ साफ हो पाएगी स्थिति  इन सब सवालों के  यह फिल्म 'वश' फिल्म आपको भी तकनीकी तथा अन्य कारणों से वश में करती जाती है।


इस फिल्म कुछ  घटनाएं अपनी कहानी खुद लिखती हैं और कई बार ये कहानियां इतनी रोमांचक, इतनी असमान्य होती हैं कि उन पर तब तक यकीन नहीं होता। जब तक इंसान उन्हें अपनी आँखों से ना देख ले। कभी-कभी हमारा ऐसी शक्तियों से अनूभव  होता है जो खुद की समझ मे नही  आती हैं। मुझे खुद ऐसा लगता है अगर सृष्टि  को चलाने वाला कोई भगवान है तो फिर बुरी शक्तियां जरूर होती है  पर फिर भी इंसान अपनी हिम्मत और समझ से  जीत हासिल कर लेता है।
 
शक्तियां इस संसार में सकारात्मक और नकारात्मक सदा से रही हैं। हम इंसानों पर जब भी नकारात्मक शक्तियां हावी होने लगती हैं तब अधिकांशत अध्यात्म की ओर चलते हैं. यदि वे भूत-प्रेत और वासनाओं से भरी हों तब हम सकारात्मक यानी ईश्वर की शरण में जाते हैं।
 इंसान अपनी शक्ति और बुद्धि के बल पर इन शक्तियों से जरूर भर सकता है जिस प्रकार इंसान अपनी बीमारियों को दवाइयां लेकर ठीक कर सकता है उसी प्रकार इन शक्तियों के लिए भी जादू, टोने, उपाय करके इंसान की समस्या से बाहर आ सकता है। 

इस फिल्म का सार भी यही है. हिमाचल के एक गांव परागपुर में एक के बाद एक मर्डर हो रहे हैं. कौन मार रहा है इन्हें? क्यों मार रहा है? यह आपको पूरी फिल्म देख कर ही समझ आ सकता है 

वश फिल्म की कहानी-
हर कहानी की तरह फिल्म में भी मर्डर की वजह है. एक प्रेमी जोड़ा वहां शादी के बाद अपने घर में रह रहा है. बीवी को रात में अक्सर कुछ अज्ञात  चीजें दिखाई और अपने साथ होती हुई महसूस होती है. पति इन्हें उसका भ्रम बताता है कयोंकि वह एक पत्रकार है जिसने इन भूतों की सच्ची घटनाओं पर किताब भी लिखी है।गांव में एक बाबा है जो भूत प्रेत भगाने का दावा करता है। 

इधर फिल्म के नायक-नायिका रक्षित और आंचल अपनी बढ़िया प्रेम भरी जिंदगी जी रहे हैं।  इनके बीच कोई तीसरा व्यक्ति आ गया है जो आंचल को हर कीमत पर अपनी दुनिया का हिस्सा नहीं बनाना चाहता।
 कौन है वह ? और उसके इरादे क्या हैं? ऐसे ही कुछ रहस्यों को दर्शकों के लिए काफी देर तक सस्पेंस  रखा गया है। जिसमें ये अतृप्त आत्मा जो आम इंसानों की तरह वासनाओं से भरी है वो चाहती क्या है?
 यह आपको फिल्म देखने पर पता चलता है.

फिल्म की कहानी के लेखक, एडिटर, डायरेक्टर और डायलॉग लिखने वाले 'जगमीत समुंद्री' अच्छे खासे समय  के बाद फ़िल्में बनाते रहे हैं।
 लेकिन इस बार उन्होंने दर्शकों को डराने तथा मंनोरंजन करने के कई मनोरंजन  इस फिल्म में रखे हैं। बतौर निर्देशक यह उनकी बढ़िया फिल्म कही जा सकती है। फिल्म   सारी टीम ने सबने अच्छा काम करवाया है। 
कैमरे के कई उम्दा शॉट्स, गाने, मेकअप, बैक ग्राउंड स्कोर जैसी तकनीकी चीजें भी निर्देशक ने जरूरत के हिसाब से बनाई हैं। लेकिन बावजूद इसके दो चार सीन से ज्यादा इसमें उन्होंने डराने वाले शॉर्ट्स नहीं रखे. कायदे से एक दो फिल्म को छोड़ भूतिया फिल्में हिंदी पट्टी में कोई बना ही नहीं पाया है. निर्देशक को चाहिए था कि यहां वे इसका  फायदा उठा सकते थे कयोंकि  'तुम्बाड' जैसी फिल्म के जैसे सीन इस फिल्म में भी बनाए जा सकते थे। जब तक पर्दे पर भय का माहौल निर्माता, निर्देशक बनाने में पूरी तरह कामयाब ना हों समझ लेना चाहिए कि यह वन टाइम वॉच ही है फिल्म है। 

फिल्म में आंचल बनी 'गंगा ममगाई'  जो इस फिल्म की निर्माता भी है।
 अभिनय को बहुत अचछे से निभाती हैं। लेकिन इंटरवल के बाद और खास करके बाथटब में नहाने वाले सीन और घर में देर रात में हुक्के को देखने के बाद के सीन बहुत  अच्छे रहे। वहीं रक्षित बने विवेक जेटली भी ठीक ठाक लगे। जगन्नाथ शास्त्री बने ऋतुराज सिंह हमेशा की तरह अपने  अभिनय छाप छोड़ देते हैं। कई फिल्मों और धारावाहिकों में नजर आ चुके ऋतुराज यहां भी प्रभावित करते है। 

बहराम सिंह बने विशाल सुदर्शनवर ने सबसे बढ़िया काम किया है. वे इस फिल्म को मजबूती बनायें  रखते हैं. जिस तरह का कैरेक्टर उन्हें मिला उसे उन्होंने भरपूर उसे जीने और निभाने में शिद्दत दिखाई है.।
पूजा बनी कावेरी प्रियम पत्रकार के रूप में तथा लुक वाइज बहुत ही सुन्दर लगती हैं। अनुराग बने हार्दिक ठक्कर को भी आप कई फिल्मों तथा सीरीज में देख चुके हैं। 

हार्दिक तथा विशाल सुदर्शनवर और ऋतुराज सिंह इस फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी रहे. प्रीति कोचड़, राजवीर सूर्यवंशी, गुरिंदर मकणा, प्रोमिता वनिक, अपने किरदारों को बस आगे बढ़ाते नजर आए जितना उन्हें मिला उसे उन्होंने ठीक से निभाने की मिली जुली कोशिश की है।
डाक्टर  मनोचिकित्सक के रूप में निर्देशक खुद (जगमीत समुंद्री) अभिनय की बारीकियों को जानते हुए भी शिद्दत से उन्हें निभा  नहीं सके हालांकि परदे पर अच्छे जरूर लगते हैं, किंतु उनमें अभिनय की वह प्यास नजर नही आती, जो एक कलाकार में दिखनी चाहिए। 

साउंड टीम सौमित देशमुख ने फिल्म को मजबूती प्रदान करने वाली साउंड का निर्माण किया है.। 
इस फिल्म में गानों की कोई कमी नहीं है. यही वजह है कि बीच-बीच में गाने आपका पूरा मंनोरंजन करते हैं।देसी मुंडे, जां नशीं, वो तुम्हीं हो, वश आदि गाने में 'जां नशीं' मोहम्मद इरफ़ान की आवाज में, 'वो तुम्हीं हो' पलक मुछाल की आवाज में, वश गाना 'शाल्मली खोलगड़े' की आवाज में तथा 'देसी मुंडे' पावनी पांडे की आवाज में लुभाते हैं. देसी मुंडे गाने की यूं आवश्कता भी फिल्म में नजर नही आती। 

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और इसके वी एफ एक्स प्यारे हैं। साथ ही एडिटिंग के मामले में यह फिल्म कमाल है किंतु इसकी लंबाई कुछ कम करके इसमें और ज्यादा विकृत रूप, चेहरे-मोहरे दिखाते हुए भय पैदा किया जाता तो यकीनन यह फिल्म लम्बे समय के बाद पर्दे पर भय और रोमांच दिखाने में कामयाब होती. लेकिन फिलहाल के लिए जिन्होंने काफी समय से हारर  फिल्में ना देखी हों और ऐसी कहानि को देखना चाहते हों तो यह इस हफ्ते
 21 जुलाई को सिनेमाघरों में इसे वन टाइम वॉच कर अपना मंनोरंजन कर सकते हैं।
अगर आपको भी इस प्रकार की फिल्में देखना पसंद है और आपको डर नहीं लगता हो तो और इस तरह की तलाश में हैं तो यह फिल्म देखने लायक है। एक बार सिनेमाघरों तक जाएं और इस फिल्म को देखकर बुरी शक्तियों के बारें में अनूभव जरूर करें। 

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