भगवान का स्नान और पाद्य समर्पण
भगवान स्नान करके पधारे हैं और वस्त्र धारण किए हुए हैं। वे यज्ञोपवीत से सुशोभित हैं। सबसे पहले, हम पाद्य (चरण धोने का जल) लेकर उनके श्रीचरणों को धोते हैं। यह प्रक्रिया करते हुए हम मंत्र उच्चारण करते हैं—
"ॐ पादयोः पाद्यं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
अर्घ्य और आचमन समर्पण
इसके बाद चंदन और सुगंधित जल से भरे प्याले से भगवान को अर्घ्य समर्पित करते हैं। भगवान दोनों हाथों से अर्घ्य ग्रहण करते हैं। इस समय हम मंत्र बोलते हैं—
"ॐ हस्तयोरर्घ्यम् समर्पयामि नारायणाय नमः।"
फिर भगवान को आचमन करवाते हैं और यह मंत्र बोलते हैं—
"ॐ आचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
तिलक, आभूषण और पुष्प समर्पण
इसके बाद चंदन, केसर और कुंकुम मिश्रित द्रव्य से भगवान के मस्तक पर तिलक लगाते हैं—
"ॐ गन्धं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
इसके पश्चात मोती (मुक्ताफल) भगवान के मस्तक पर समर्पित करते हैं—
"ॐ मुक्ताफलं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
फिर सुगंधित पुष्पों और तुलसीदल से भगवान की पूजा करते हैं—
"ॐ पत्रं पुष्पं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
भगवान को सुंदर माला पहनाते हुए मंत्र बोलते हैं—
"ॐ माल्यं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
धूप, दीप और नैवेद्य समर्पण
धूप प्रज्वलित करके भगवान को समर्पित करते हैं और मंत्र उच्चारण करते हैं—
"ॐ धूपमाघ्रापयामि नारायणाय नमः।"
फिर गोघृत का दीपक लेकर भगवान को दिखाते हैं—
"ॐ दीपं दर्शयामि नारायणाय नमः।"
इसके पश्चात भगवान के लिए 56 प्रकार के भोग, 36 प्रकार के फल और 36 प्रकार के व्यंजन अर्पित करते हैं। भोग समर्पित करते समय मंत्र उच्चारण करते हैं—
"ॐ ऋतुफलं समर्पयामि नैवेद्यं निवेदयामि नारायणाय नमः।"
आचमन और ताम्बूल समर्पण
भोग के बाद भगवान को पुनः आचमन करवाते हैं—
"ॐ पुनराचमनीयं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
इसके बाद सुगंधित पान (ताम्बूल) भगवान को अर्पित करते हैं—
"ॐ पूगीफलं च ताम्बूलं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
दक्षिणा, आरती और पुष्पांजलि समर्पण
भगवान को कुबेर द्वारा प्रदत्त रत्न और दक्षिणा अर्पित करते हैं—
"ॐ दक्षिणाद्रव्यं समर्पयामि नारायणाय नमः।"
इसके बाद कपूर की आरती उतारते हैं और भगवान की महिमा का गुणगान करते हैं।
भगवान को पुष्पांजलि अर्पण करने के बाद हम खड़े होते हैं, भगवान भी खड़े होते हैं।
इसके बाद चार बार परिक्रमा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं और स्तुति करते हैं—
"त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
सर्वं मम देव देव।।"
Lastalfaz-
इस प्रकार यह सब समाग्री भाव के द्वारा ही भगवान को समर्पित करनी हैं। इसी को हम शास्त्रों में मानस पूजा करते हैं यानी मन के द्वारा भगवान को सब कुछ समर्पित कर देना।
अंत में, ध्यान में भगवान की कृपा का अनुभव करते हुए उनकी शरण में समर्पित हो जाते हैं।
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