निर्जला एकादशी का व्रत कैसे करें | एकादशी के दिन दान क्या करें |

Tittle- एकादशी का व्रत कैसे करे-हिन्दू धर्म में 24 एकादश‍ियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है। तब 24 एकादश‍ियों में दो एकादशी और भी जुड़ जाती हैं। इस रह कुल 26 एकादशी हो जाती हैं।ऐसे तो सभी एकादशी महत्‍वपूर्ण होती हैं। लेकिन न‍िर्जला एकादशी का अधिक महत्व है जो दान और पुणे के लिए विशेष फल दायी मानी जाती हैं इस दिन दान करने से हमारे पितर हमें आशीर्वाद देते हैं। ऐसा माना जाता है है क‍ि इस एकादशी का व्रत करने से सभी 24 एकादश‍ियों का फल म‍िल जाता है। यह ज्‍येष्‍ठ मास की शुक्‍ल पक्ष की एकादशी त‍िथि को पड़ती है। इस  दिन व्रत करने वाले को एकादशी में पानी पीना पूर्ण रूप वर्जित है। यही वजह है क‍ि इसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक शास्‍त्रों में इसे भीमसेन एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस बार यह एकादशी 2 जून मंगलवार को है। 

आइए जानते हैं क्‍यों कहते हैं इसे भीमसेन एकादशी और क्‍या है व्रत की व‍िध‍ि, शुभ मुहूर्त-महत्‍व-

न‍िर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त और व‍िध‍ि- 

निर्जला एकादशी 1 जून को दोपहर 2 बजकर 57 मिनट से आरंभ होकर 2 जून को 12 बजकर 04 मिनट पर समाप्त हो रही है। इसलिए व्रती इस दिन भगवान श्रीविष्णु की पूजा दोपहर 12 बजकर 4 मिनट तक कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार व्रत करने वाले को गंगा दशहरा के दिन से ही तामसी भोजन का त्याग कर देना चाहिए। साथ ही लहसुन और प्याज के बिना भोजन ग्रहण करना चाहिए। रात में भूमि पर शोये करें। अगले दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सबसे पहले श्री हरि का स्मरण करें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत होकर स्‍नान के पानी में थोडा सा गंगाजल डालकर स्‍नान करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें। फिर पीला वस्त्र पहनें। इसके बाद सूर्य देव को जल दें।


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निर्जला एकादशी की पूजा कैसे करें-

सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा पीले फल, फुल अक्षत, दूर्वा और चंदन से पूजा करें। फिर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करें। इसके बाद निर्जला एकादशी की कथा करके आरती करें। 

इस दिन निर्जला व्रत रखने का विधान है।  द्वादशी के दिन शुद्ध होकर व्रत पारण मुहूर्त के समय व्रत खोलें। सबसे पहले भगवान विष्णुजी को भोग लगाएं। भोग में कुछ  पिले रगं मीठा जरूर शामिल करें। इसके बाद सबसे पहले भगवान का प्रसाद सबको बांट दें। ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर स्‍वयं प्रसाद ग्रहण करें। ध्यान रहे, व्रत खोलने के बाद ही आपको जल का सेवन करना है।  


भीमसेन एकादशी क्यो कहते है-

 एक कथा के अनुसार जब महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- महर्षि आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में भुख’ नाम की अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा।

महर्षि ने भीम को समझाते हुए कहा की समस्या का निदान करते हुए और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता। सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है।

 आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगै।

 निर्जला एकादशी का महत्‍व- 

वेदव्‍यास के इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस  निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

 शास्त्रो के अनुसार  इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा दान करता है। उसे जीवन में कभी भी क‍िसी बात की कमी नहीं होती। हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। और साथ में अपने पितरो के लिये पखां दान करने का विशेष महत्व बताया गया है। आप अपनी इच्छा के अनुसार हाथ से बना हुआ या फिर बिजली वाला पंखा भी दान कर सकते हो। जितना  हो सके आप जरूरतमंदों को मीठा जल और कुछ खाने का समान दान अवश्य करें जैसी आपकी श्रद्धा हो। निर्जला एकादशी पर दान का विशेष महत्व बताया गया है इस लोग अक्सर लोग मीठे जल का दान करते हैं। निर्जला एकादशी जयेष्ठ महीने में साल में एक बार आती है। इस दिन मीठे जल पिलाने का विशेष महत्व है जो लोग इस दिन व्रत करते हैं वह जल का ग्रहण नहीं करते।






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