Tittle- शिव की पुजा कैसे करें-
शिव भगवान को सभी देवताओं में सबसे भोला माना जाता है और उनको भोले नाम से पुकारा भी जाता है ।अगर आप और कुछ विशेष पूजा नहीं कर सकते तो शिव भगवान् से आशीर्वाद लेने के लिए एक लोटा जल अर्पित करके एक बिल्व पत्र चढ़ा दें यह भी बहुत उत्तम उपाय है ।
ऊँ नम: शिवाय मंत्र जाप करते रहने से प्राणी के सभी कष्ट दुर हो जाते है । हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने का बहुत अधिक महत्व बताया गया है । ऐसी मान्यता है कि अगर कोई वयक्ति शिवलिंग पर सिर्फ बिल्व पत्र चढ़ाता है तो भी उसे शिव कृपा और आशीर्वाद मिल सकता है, कयोंकि शिव भगवान् बहुत ही भोले नाथ है ।
सिर्फ जी शिव जी आशुतोष हैं वह अपने भक्तों पर बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं। यदि शिव का भक्त फुल और बेलपत्र की विधि का ध्यान रखें तो जल्दी ही उनकी कृपा का पात्र बन जाता है।
बेलपत्र कब नहीं तोड़ना चाहिए -
बेलपत्र को निश्चित कार में नहीं तोड़ना चाहिए चतुर्थी अष्टमी नवमी चतुर्दशी अमावस्या तिथियों को सक्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र को नहीं तोड़ना चाहिए निषिध समय में पहले दिन का रखा हुआ बेलपत्र चढ़ना चाहिए ,शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि यदि नया बेलपत्र ना मिल सके तो चढाये हुए बेलपत्र को भी धोकर बार-बार हम चढ़ा सकते हैं लेकिन एक बात का विशेष ध्यान रखकर बेलपत्र में कोई छेद और कीडे का खाया हुआ ना हो।
शिव के प्रिय फूल-
शास्त्रों में कुछ फूलों को चढ़ाने से मिलने वाले फल को बहुत अधिक महत्व बताया गया है जैसे 10 सुवर्णमाप के बराबर स्वर्ण दान का फल एक आक के फूल को चढ़ाने से मिल जाता है।
हजार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल और हजार कनेर के फूलों को चढाने की अपेक्षा एक बेलपत्र चढ़ाने से फल मिल जाता है ।हजार बेल पत्रों की अपेक्षा एक गुमा फुल हजार गुमा फुल के अपेक्षा एक अपामार्ग, हजार अपामार्ग से बढ़कर एक कुश का फूल और हजार कुश के फूलों से बढ़कर एक शमी का पता, हजार शमी के पत्तों से बढ़कर एक नीलकमल और हजार नील कमल से बढ़कर एक धतूरा , हजार धतूरो से बढ़कर एक शमी का फूल होता है। शास्त्रों में फूलों की जातियों में से निलकमल को सबसे बढ़कर बताया है।
इसके अलावा मौलसिरी के फूल को भी बहुत अधिक महत्व दिया जाता है ।
नागचंपा, चंपा ,नागकेसर ,बेला और बेलपत्र शिव को बहुत पयारे है।
फूलो को चढाते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि फूल का मुँह हमेशा ऊपर रहना चाहिए। दाहिने हाथ के अंगूठे की मदद से फूल शिवलिंग पर चढ़ाने चाहिए।
शिव पूजा में बिल्व पत्र क्यों चढ़ाते हैं....
इस परंपरा का महत्व समुद्र मंथन है। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो सबसे पहले हलाहल विष निकला था। इस विष को शिव जी अपने गले में धारण कर लिया था। विष के प्रभाव से समुद्र के शरीर में गर्मी बढ़ने लगी थी। उस समय सभी देवी-देवताओं ने शिव जी को बिल्व पत्र खिलाए थे। बिल्व पत्र विष का प्रभाव कम कर सकता है और शरीर की गर्मी को हरण कर लेता है। बिल्व पत्र की वजह से शिव जी शीतलता मिली थी। तभी से शिव जी बिल्व पत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।
बिल्व वृक्ष के पेड़ में देवी-देवताओं का वास
शिव पुराण के अनुसार बिल्व पत्र के बिना शिव पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। बिल्व के पेड़ को शिवद्रुम कहा जाता है। बिल्व पत्र किसी भी माह, किसी भी पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी तिथि, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति और सोमवार को न तोड़ना निषेध माना गया है । दोपहर के बाद भी बिल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। अगर इन तिथियों बिल्व पत्र की आवश्यकता हो तो एक दिन पहले ही ये इसके पत्र तोड़कर रख लेने चाहिए। जैसे सोमवार को जरूरत हो तो रविवार को ही बिल्व पत्र तोड़कर रख लेना चाहिए।
बेलपत्र को हम धोकर चढ़ा सकते है-
इस परंपरा का महत्व समुद्र मंथन है। जब देवता और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो सबसे पहले हलाहल विष निकला था। इस विष को शिव जी अपने गले में धारण कर लिया था। विष के प्रभाव से समुद्र के शरीर में गर्मी बढ़ने लगी थी। उस समय सभी देवी-देवताओं ने शिव जी को बिल्व पत्र खिलाए थे। बिल्व पत्र विष का प्रभाव कम कर सकता है और शरीर की गर्मी को हरण कर लेता है। बिल्व पत्र की वजह से शिव जी शीतलता मिली थी। तभी से शिव जी बिल्व पत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।
बिल्व वृक्ष के पेड़ में देवी-देवताओं का वास
शिव पुराण के अनुसार बिल्व पत्र के बिना शिव पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। बिल्व के पेड़ को शिवद्रुम कहा जाता है। बिल्व पत्र किसी भी माह, किसी भी पक्ष की चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी तिथि, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति और सोमवार को न तोड़ना निषेध माना गया है । दोपहर के बाद भी बिल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। अगर इन तिथियों बिल्व पत्र की आवश्यकता हो तो एक दिन पहले ही ये इसके पत्र तोड़कर रख लेने चाहिए। जैसे सोमवार को जरूरत हो तो रविवार को ही बिल्व पत्र तोड़कर रख लेना चाहिए।
बेलपत्र को हम धोकर चढ़ा सकते है-
शिवलिंग पर चढ़ाया गया बिल्व पत्र बासी नहीं माना जाता है। शिवलिंग पर चढ़े हुए बिल्व पत्र को धोकर फिर से पूजा में चढ़ाया जा सकता है। नए बिल्व पत्र न मिलने पर ऐसा कई दिनों तक किया जा सकता है। बेल पत्र को बासी नही माना जाता।
बेलपत्र कैसा होना चाहिए- बेल पत्र के तीनो पत्ते त्रिनेत्रस्वरूप् भगवान शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं। अगर आप शिवलिंग पूजा में बेलपत्र चढ़ाती हैं तो इससे भगवान शिव खुश होंगे और आपकी मनोकामना जल्दी पूरी करेंगे।’ सबसे पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि बेलपत्र कैसा होना चाहिए और कैसे शिव पर चढाये।
1.ध्यान रहे कि एक बेलपत्र में 3 पत्तियां होनी चाहिए। 3 पत्तियों को 1 ही पत्र माना जाता है।
2. इस बात का भी ध्यान रखें कि बेल की पत्तियां कटी फटी न हों। बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए। ऐसा पत्तियों को खंडित माना गया है। हालाकि 3 पत्तियां आपस में मिल पाना मुश्किल होता है। मगर, यह मिल जाती हैं।
3. बेल की पत्तियां जिस तरफ से चिकनी होती हैं आपको उसी तरफ से शिवलिंग पर चढ़ानी चाहिए। यानी कि उलटा रखा जाता है शिवलिंग पर बेलपत्र को।
4. यह बात बहुत कम लोगों पता होगी मगर, एक ही बेलपत्र को आप पानी से धो कर बार-बार चढ़ा सकती हैं।
5.कभी भी शिवलिंग पर बिना जल के बेलपत्र न चढ़ाएं।
6. बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं। ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं।
बिल्वपत्र चढ़ाने का मंत्र-
"त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥''
अर्थ- तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पापों का संहार करने वाले हे! शिवजी मैं आपको त्रिदल बिल्वपत्र अर्पित करता हूं।
बेलपत्र चढाने का फल-
इसका सबसे बड़ा लाभ होता है कि भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं और सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।
वहीं बेलपत्र चढ़ाने से सुख के साथ घर में वैभव और धन भी आता है। यानि आपको कभी भी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ता।
अगर आप पुण्य कमाना चाहती हैं तो आपको बेल के पत्तियों में ॐ नम: शिवाय
केवल भगवान भोलेनाथ ही नहीं आप भोलेनाथ के प्रिय क्रबेर जी पर तृतीया को बेलपत्र चढ़ा कर उनकी पूजा करेंगी तो पीढि़यों तक आपके घर में धन की कभी कमी नहीं होगी।
ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल चढ़ाने से भगवान शंकर का मस्तिष्क ठंडा रहता है और वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं ।
ऊँ मन्त्र के चमत्कार --
ऊँ मन्त्र के चमत्कार और जप कैसे करें।
आज के इस लेख में आपको ओम नाम का जाप और उसकी विधि विधान के बारे में बता रही है।
ओम शब्द भगवान शिव का रूप है और शिव ही ओम है ।जिसने भी ओम नाम का जाप किया उसका उसकी नैया पार हुई ।
ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा गया है ओम से बड़ा ना कोई ना कोई मंतर है ना कोई जप है। यह पुरे ब्रह्मांड का सार है।
ऊँ मन्त्र का पुरा विस्तार -
ओम नाम पुरी तरह से एक मूल मंत्र है,जो हमारी ध्वनियों से बना है, यह ब्रह्मा सृष्टि को उत्पन्न करने वाला ,
उ= शब्द विष्णु भगवान पालन करने वाला और म, रुद्र शंकर- सहांर करने वाला।
ॐ साक्षात ब्रह्मा माना गया है। यह ब्रह्मा का सर्वश्रेष्ठ रूप है। समस्त वैदिक धर्म में ओम को प्रभु के उतम से मान्यता प्राप्त है।
बौद्ध धर्म में, जैन धर्म में, शांत संप्रदाय में भी उनकी मान्यता है। सब संप्रदाय मंत्रों में भी ओम का प्रथम उच्चारण विहित है।
ओम नाम का जाप दुखो का विनाश करता है।
ओम हिंदू धर्म में पूजनीय है, इस ओम को सर्वशक्तिमान मानते हुए ओम को विधिवत उच्चारण करने मात्र से प्राणों की उज्जवल भविष्य में होने लगती है।
ओम का ध्यान लगाने से मन को शांत, मन को केंद्रित करने के लिए बहुत उपयोगी और सर्वशक्तिमान उपाय हैं और ॐ के हजारों अर्थ हैं।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण का वचन है जो भगवत वाक्य है, वह प्रमाण है, सत्य है, यह भगवान श्री कृष्ण का कथन है, कि जो पुरूष ॐ के इस अक्षर का ब्रह्मा का उच्चारण करते हुए मुझे स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है वह परम गति को प्राप्त होता है।
ओम शब्द ही सब कुछ है प्रणब ही है, अपर ब्रह्मा है, और प्रणव ही पर ब्रह्मा है। यह अपूर्वानंद और सत्य अर्थात इससे पहले पीछे और कुछ भी नहीं है।और इसका बिना कोई कार्य भी संभव नहीं है,।
यह नित्य प्रणव सबका आदि मध्य और अंत है। प्रणब का ऐसा जानकर फिर उसी को प्राप्त हो जाता है।
प्रणव ही सबके हृदय में स्थित ईश्वर समझे सर्वव्यापी ओंकार को जान लेने पर धीर पुरूष शोक करता। जिसने मात्राहीन और अनंन्त मात्राओ वाले दैत शुन्य कल्याण स्वरूप उसे वही प्राप्त हो जाती है। ओमितींद सवर्म ॐ ही बस यही ब्रह्मा है।और यही सब कुछ है इससे ऊपर पूरे ब्रह्मांड मे कुछ नही है।
ॐ तत्सर्वं के संपूर्ण वाणी का पता है ,वह सब कुछ जानता है। ओमकार को जानने वाला जिस वस्तु की ईच्छा करता है उसे वही प्राप्त हो जाती है।
हम सबके लिए यही ब्रह्म है। इसका मानसिक जाप शांति, रोमांचकारी, आनंद और मानसिक अवस्था उत्कृष्ट विचार बहुत जल्द देता है। आप इसे करे देखें ध्यान आसन में बैठकर तीन बार लंबी सांस नाक से खींचकर मन इंद्रियों को किसी प्रकार के विचारों से हटा दीजिए रीड की हड्डी को सीधा करके बैठ जाएं,और दोनों भृकटियो के मध्य आज्ञा चक्र पर केंद्रित करके ओम का जप आराम कीजिए।
कोशिश करें शुरू मे 5 मिनट से शुरू करके एक से 2 घंटे तक जाप करते रहने की कोशिश कीजिए ।जो अदृश्य शक्ति आपको इससे प्राप्त होगी ।उसकी कोई लेख में भी नहीं लिख सकता।
मन दो प्रकार से चिंतन करता हैं जब हम ध्यान या जप या पूजा करते हैं। पहला मन हमारे पास होता है और दो दूसरा मन ही अलग विषय में अंदर तक दौड़ लगाना शुरू कर देता है। वह बिना बात के ही भागता रहता है। अब उस भागते हुए मन को रोकिए उसे दूसरे को दोनों मनों को पूर्ण रूप से ओम का जाप में लगा दीजिए।
आप अपने दोनों मनो को एक साथ इकट्ठा नहीं कर सकते तो पहले मन को ओम नाम के मानसिक जाप में पूर्ण ध्यान सहित लगा दीजिए, और दूसरे मन से यह सोचना शुरु कर दें कि एक विशाल पर्वत है जिस की चोटियां बहुत सुंदर जैसी बर्फ से ढकी हुई है, वहां पर एक सुंदर मन लुभवाना मंदिर भी बना हुआ है। उस मंदिर तक पहुंचने के लिए बहुत सीढियां बनी हुई है। और प्रत्येक ओम नाम के मानसिक जाप के साथ एक-एक सीढ़ी कर रहा हूं, मंदिर तक पहुंचने वाला हूं।
ऊँ मंतर क्या है-
ऊँ एक तारक मंत्र है। ॐ का प्रथम अक्षर अकार है, और दूसरा उकार है ,तीसरा अक्षर मैकार है, चौथा अक्षर अर्धमात्रा है, पांचवा अक्षर अनुस्वा है ,और छठा अक्षर नाद है। यह तारक मंत्र भगवान शिव काशी धाम में मरने वालों के कान में गुप्त रूप से फुकते हैं, जिससे कि मनुष्य सदद्मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।
ऊँ मन्त्र के चमत्कार और विधि विधान-
ओम नाम के मंत्र को करने के लिए किसी भी प्रकार के आडम्बर करने की जरूरत नहीं है। जब आपका मन करे तब इस मंत्र को आप मन ही मन जाप करते रहे बस केवल ध्यान रखें कि समय एक ही निश्चित रखें।
जिसने भी ओम नाम का जाप तन मन, धन और विधि विधान से किया उसने स्वयं भगवान शिव के दर्शन किए हैं ।
इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है ओम शिव का ही रूप है। और शिव ही ऊँ है यहीं सत्य है।
हम सबके लिए मन को टीकाना इतना आसान नहीं होता है। जिस प्रकार से हम छोटे बच्चे को स्कूल में छोड़ देते हैं और उसको पता होता कि बस सकुल में ही कैद रहना है, इसी प्रकार हमें अपने मन को मंत्र जाप करो तो उसके लिए मन को छोटे बच्चे की तरह ही जबरदस्ती ध्यान और पूजा में लगाना पड़ता है। और जब मन लग जाता है तो सब कुछ बहुत आसानी से मिल जाता है ।
जिस व्यक्ति ने उनकी साधना कर ली उसे किसी और के पास जाने की जरूरत नहीं है ।ओम सर्वशकितमान,सर्वश्रेष्ठ और सबसे बड़ा महा मंत्र दिव्य मन्त्र है।
भगवान् शिव और ऊँ मन्त्र के लाभ-
भगवान शिव देवताओं में एक ऐसी देव है जो केवल एक जल
के लोटे से भी खुश हो जाते हैं । ओम नाम का मंतर उनका असली सार है ।
इसलिए किसी और टोटकों में पडने की बजाय सीधे भगवान् शिव की पूजा पाठ के ओम नाम मंत्र जाप करें। और फिर देखना आपकी दुनिया मे ही बदल जायेगी
ऊँ का उल्लेख-
इस मंत्र का उल्लेख हमारे ग्रंथों में अनादि काल से होता आया है । ओम मंत्र महा कल्याणकारी मंत्र के रूप में समस्त मंत्रों में पहला स्थान पर आता है। यह करोड़ों मंत्रों को प्रकट करने वाले और वेद और वेदों को प्रकट करने वाली मां गायत्री भी ओम से ही प्रकट हुई है।
संपूर्ण ब्रह्मांड के सभी सौर मंडलों का संपूर्ण सृष्टि का बिंदु एवं नाद युक्त स्वर ओम साक्षात निर्गुण निराकार ब्रह्मा जी का ही अक्षर रूपी साकार रूप है।
भगवान् शिव और उनकी महिमा-
सभी देवताओं में भगवान शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं जो देवाधिदेव महादेव कहलाते हैं उन्हें आभूषण राज मुक्त और सिहासन नहीं चाहिए। कीमती मूर्ति यह भव्य मंदिर नहीं चाहिये। वो तो भोले भंडारी हैं यह हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव सिर्फ मानसिक पूजा करने से भी खुश हो जाया करते हैं ।वे वर दायक हैं संपूर्ण विश्व के स्वामी हैं, विश्वरूप ,सनातन ,ब्रह्मा सभी देवताओं के पालक और ईश्वर हैं ।वह सर्वश्रेष्ठ हैं।
सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा भी शिव की आराधना करते हैं। सभी प्रकार से सुख समृद्धि उन्हीं की देन है।
भगवान राम ने भी लंका पर विजय पाने के लिए शिव की पूजा सबसे पहले की थी।
भगवान शिव को खुश करने के लिए भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अनेक उपाय और सतुति हैं जिसमें से एक शिव स्तुति रुद्राष्टक भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए उनके दर्शन पाने के लिए एकदम सरल स्तुति है। भगवान शिव को यह 8 वस्तुएं बेहद पसंद हैं जिनको वह अपने साथ हमेशा रखते हैं कभी नहीं छोड़ते भसम, भुजंग,
हलाहल, जहर ,गंगा, चंद्र, रून्डमाला, त्रिशूल और राम नाम का जाप।
शिव की आराधना करने वाले को प्रत्येक सोमवार का व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से शिव पार्वती जी का
आशीर्वाद और सौभाग्य की रक्षा कवच और सुख अवश्य मिलता है।
शिवलिंग कया है-
क्या आप जानते हैं शालिग्राम और शिवलिंग के हाथ पैर क्यों नहीं होते क्योंकि यह ईश्वर के प्रतीक चिन्ह चार प्रकार से प्रकट होते हैं
1. स्वयंभू विग्रह :अपने आप प्रकट होने वाले ईश्वर कृत पदार्थ स्वयंभू विग्रह कहलाते हैं , जैसे सूर्य, चंद्र ,अग्नि ,पृथ्वी दिव्य नदिया इत्यादि ।
2.निर्गुण निराकार विग्रह: प्रकृति प्रदत निर्गुण निराकार विग्रह भगवान के निराकार निर्लेष निरंजन रूप के प्रतिनिधि माने जाते हैं। जैसे शालिग्राम शिवलिंग, शक्तिपीठ, मिट्टी पिंड, रुद्राक्ष, सुपारी विरचत गणेश
इत्यादि ।
3.सगुण साकार विग्रह: शंख ,चक्र ,चतुर्भुज विष्णु ,पंचमुख शिव अष्टभुजा दुर्गा,लक्षासिंदूर वंदन गणपति,जटाजूट, गंगाघट , भालचंद्र शंकर इत्यादि।
4.अवतार विग्रह: धनुषधारी राम , वंशी विभूषित कृष्ण ,नरसिंह रूप विष्णु, इत्यादि।
इन सब मे शिवलिंग सारी प्रतिमाएं निर्गुण निराकार का ही प्रतीक है ,इसलिए हाथ पांव आदि अंगों के अस्तित्व का प्रशन् ही निर्मल है ।
शालिग्राम ही समस्त ब्रह्मांडभूत नारायण (विष्ण )का प्रतीक है । कहने का भाव यह है कि शिव ही गोलाकार यानी पृथ्वी और ब्रह्मांड का जो पूरा दृश्य हमें दिखाई देता है वह शालिग्राम ही है।
* द्वादश ज्योतिर्लिंग भारत में कहां कहां पर पुरी जानकारी-
हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान शिव से जुड़े 12 विशेष ज्योतिर्लिंगों की साधना-आराधना का बहुत अधिक।महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिवजी जहां-जहां स्वयं प्रगट हुए, उन्हीं 12 स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को पवित्र ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है। इन 12 ज्योतिर्लिंगों केवल सिर्फ दर्शन करने पर शिव भक्त को विशेष फल की प्राप्ति होती है बल्कि इनका महज प्रतिदिन नाम लेने मात्र से जीवन के सभी दु:ख दूर हो जाते हैं। इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा सभी तरह के लौकिक और परलौकिक सब प्रकार के सुख देने वाली है।
आइए जानते हैं विस्तार से यह प्रमुख ज्योतिर्लिंग भारत देश में कहां कहां पर स्थित है।
आइए जानते हैं विस्तार से यह प्रमुख ज्योतिर्लिंग भारत देश में कहां कहां पर स्थित है।
पूरे देश में ये बारह ज्योतिलिंग विद्यमान है । हिन्दू धर्म में एकता के बंधन में जनता को तक धर्म के बन्धन है । शिव पुराण के अनुसार ये जयोतीलिगं निम्न है-
हिन्द धर्म में एकता के बंधन मे लोगों को बांधने की शक्ति
है ।
भक्तगण धर्म के कारण ही देश के एक कोने से दूसरे में बंध जाते है और अनेकता में एकता का दर्शन करते है।
शिव पुराण के अनुसार ये ज्योतिलिंग निम्न है-
( 1 ) सोमनाथ- गुजरात में राज्य में सागरतीर पर सिथत है।
( 2 ) मल्लिकार्जुन- तामिलनाडू में कृष्णा पर नदी तीर श्री शैल पर्वत के ऊपर है ।
( 3 ) महाकालेश्वर मध्य प्रदेश में उज्जैन नगर के शिप्रानदी के तीर पर है।
( 4 ) ओंकारेश्वर मध्यप्रदेश में उज्जैन खण्डवा रेलपथ में ओंकारेश्वर रोड नाम के स्टेशन से 11 कि.मी. की दूरी पर है।
( 5 ) केदारनाथ उत्तर प्रदेश में मन्दाकिनी के तट पर हिमालय मे है।
( 6 ) मीमशंकर महाराष्ट्र में पूना के उत्तर भीमानदी के डाकिनी शिखर पर है।
( 7 ) विश्वनाथ उत्तर प्रदेश के गंगातीर पर काशी नगर में है।
( 8 ) त्रयम्बकेश्वर महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक नगर गोदावरी के ब्रह्मगिरी पर्वत पर है।
( 9 ) वैद्यनाथ बिहार राज्य में जसीडीह कलकत्ता रेलपथ के स्टेशन के कुछ दूरी पर है।
( 10 ) नागेश्वर गुजरात प्रान्त के द्वारकाधाम से 14 मील दूरी पर दारूकन में है।
( 11 ) रामेश्वरम् तमिलनाडू प्रान्त में रामनाथ जिला के सागर तट पर है ।
( 12 ) घुश्मेश्वर- ऑन्ध्र प्रान्त के दौलताबाद स्टेशन के 13 मील की दूरी पर है।
यह सभी ज्योतिर्लिंग बहुत ही महत्वपूर्ण और साक्षात शिव का रूप माने जाते हैं जिन लो इनके दर्शन कर लेने से हर मनोकामना पूर्ण होती है क्योंकि यह भगवान का साक्षात रूप हैं।
Last alfaaz-
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