जीवन में शिक्षा का महत्व | पढाई कैसे करें | बच्चों को शिक्षा का ज्ञान कैसे दे | importance of education |

* शिक्षा का महत्व-
 इंसान के लिए शिक्षा एक ऐसा धन है जिसको कोई और आपसे छीन नहीं सकता ।इसे ग्रहण करने का भी कोई समय नहीं है। वैसे तो बच्चे को 3 साल का होने के बाद ही स्कूल भेजना शुरू कर देते हैं पर कहीं बार ऐसे उदाहरण भी देखने को मिल गए हैं दुनिया में जो किसी कारणवश अपनी  शिक्षा छोड़ दी है ,किसी मजबूरी में या फिर आर्थिक तंगी के कारण और फिर बुढ़ापे मे आकर कुछ लोगो के उदाहरण पढ़ाई करने के देखे हैं। इसलिए इसकी कोई उम्र या सीमा नहीं है इसको आप कितना ग्रहण करना है और किस उम्र में करना है।

शिक्षा सबसे बड़ा धन है -
 यदि मनुष्य को लड़का या लड़की को जन्म के बाद उसे किसी भी प्रकार की शिक्षा , पढ़ाई , उपदेश नहीं दिया जाये तो उस बालक में और एक पशु में कोई फर्क नहीं रहेगा। शिक्षा , पढाई , से ही बुद्धि का जन्म होता है जिसको जैसी शिक्षा दी जायेगी उसे जो सिखाया , लिखाया , पढ़ाया जायेगा वैसा ही वह बन जायेगा शिक्षा से ही आत्मज्ञान और आत्मबल की जागृति होती है। बिना शिक्षा के मनुष्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा भी नहीं कर पाऐगा । आजकल की शिक्षा प्रणाली हमारे बालको को पश्चिमी सभ्यता की ओर ले जा रही है ,जो बहुत खराब है । हमारा धर्म , हमारी संस्कृति ,हमारी नष्ट कर रही है। हमें सावधान होकर सोचना चाहिए बालको को ऊंची शिक्षा अनिवार्य है। मगर साथ साथ हमारी संस्कृति हमारे धर्म की सम्पुर्ण जानकारी उस पर पूर्ण आस्था हमारे बालकों की होनी ही चाहिए । पश्चिमी सभ्यता में 100 प्रतिशत अशान्ति भरी पड़ी है। वहां के मनुष्य जीवन की तुलना एक मशीन से कि जा सकती है । वहां के मनुष्य सिर्फ अपने लिये सोचते है उनको दया , धर्म , कर्तव्य , स्नेह , भक्ति , सेवा का ज्ञान ही नहीं होता ।।वे तो अपने चारों तरफ के अशान्त वातावरण में जी रहे है और इसके कारण ही हमारे देश के साधु - संत - महात्मा , के प्रति उनका आर्कषण बढ़ रहा है और  उनके दर्शन करने उनकी बाणी सुनने वे हमारे देश में आ रहे हैं और शाति की खोज कर रहे हैं ।
 स्वामी जी ने कहा कि अज्ञानता के कारण ही मानव दुखी होता है। विद्या से अविद्या का नाश हो जाता है और व्यक्ति संस्कारवान बनता है । विद्या विनय प्रदान करती है , जिस प्रकार फल लगने से वृक्ष झुकता है उसी प्रकार मानव में  शिक्षा मानवता आती है स्वाध्याय परम निधि है
विद्या धन को एक ऐसा धन है जिसको जितना ज्यादा खर्च करोगे वह उतना ही बढ़ता जाता है। विद्या का धन ना तो कोई भाई बाँट सकता ना ही कोई चुरा सकता है ,और ना ही कोई राजा छीन सकता है। भगवान प्रभु राम अवतार भी विद्या अध्ययन करने के लिए अपने तीनों भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के साथ गुरु जी के आश्रम में सवा 5 साल की उम्र में चले गए थे और 7 वर्षों तक विद्या अध्ययन पूर्ण करने के बाद 12 साल की उम्र में अपने माता पिता के पास वापिस  लौट आए थे। राम कठिन तपस्या करने के बाद वह अपनी विद्या के कारण ही सबसे श्रेष्ठ थे। अगर उनको जंगलों में भी रहना उनके लिए कोई मुश्किल नही था। तब भी वह राम ही थे उनका सादा जीवन और वाणी और उनका नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है।

 इसलिए अपने बच्चों को कोई और सुख सुविधा चाहे कम दे दो लेकिन पढ़ाई का दहेज अवश्य दो ,क्योंकि इसे कोई छीन नहीं सकता यह किसी भी समय काम आ सकती है। पढ़ाई वह धन है जिसकी कोई उम्र नहीं है कब खर्च करनी है और कब नहीं। इसको आप किसी भी उम्र में खर्च कर सकते हो यह एक ऐसा धन है जिसे कोई  भाई व बहन बंटवारा नहीं करवा सकता।





मनुष्य जीवन का लक्ष्य-
एक ही है यह दृढ निश्चय कर लो । यह लक्ष्य है- भगवान् की उपलब्धिा विषयचिन्तन , अशुभचिन्तनको त्याग करके यथासाधय भगवच्चिन्तन का अभ्यास करो और  भगवान् जो कुछ दें , उसी को आनन्द के साथ ग्रहण करने का अभ्यास करो भगवान् की कृपा में विश्वास करो।
 थोड़ी - थोड़ी देर में भगवान् से प्रार्थना करना कि ' हे नाथ !  मैं आपको भुलूँ नहीं, भगवान् में मन लगाना- ऐसा मानना कि मेरे मन में जो कुछ आता है , वह भगवान् का ही रूप है और मेरा मन जहाँ भी जाता है , भगवान् में ही जाता है ।थोड़ी थोड़ी देर में रात में सोने से पहले एवं प्रातः जगने के बाद बाहर  भीतर से चुप,  शान्त होना प्रत्येक प्राणी में अपने इष्टदेव के दर्शन करना ही भगवान के सच्चे भक्त  बन सकते हो हर इंसान या दुनिया के किसी भी प्रकार के प्राणी में आपको भगवान नजर आने चाहिए तभी आपको भगवान की प्राप्ति आसानी से होएगी।
कभी  किसी को भी बुरा न समझना , किसी का भी बुरा न चाहना और किसी का भी बुरा न करना ।जिस वस्तु  व्यक्ति में कोई विशेषता ,महत्ता दीखे ,उसे उस वस्तु व्यक्ति की मानकर भगवान् की ही मानना यह असली भक्ति का रहस्य है।

जीवन मे सच्चे आनंद प्राप्ति के उपाय -'
आप सच्चे मन से प्रभु नारायण के दास बन जाओ ,तो प्रभु भी आपके दास बन जाएंगे और जीवन भर  आनंद ही आनंद रहेगा। अतिथि सत्कार ,अहसाय, दीन दुखी, अपंग अभावग्रस्त, व्यक्तियों की यथाशक्ति सेवा सहायता करना सबसे उत्तम और भगवान प्राप्ति का पहला रास्ता है।
 गलत व्यवहार से किसी का दिल नहीं दुखाना और सेवा करके भूल जायो । प्रत्येक दिन निस्वार्थ सेवा करते रहो ।  प्रतिदिन गीताजी के कम से कम पच्चीस श्लोक का अर्थ सहित पाठ करना ।प्रतिदिन रामायण ,भागवत आदि सद्ग्रन्थों का कम से कम आधा घण्टा पाठ करना यह सभी जीव  और ग्रंथ सभी नारायण प्रभु के हैं सभी जीवों पर कृपा करो तो नारायण प्रभु भी प्रसन्न होकर तुम्हारे उपर अवश्य ही कृपा करेंगे और उनकी कृपा दृष्टी मिल जाए तो आनन्द ही आनन्द है।सत्कर्म , संयम , और मितभाषी ये तीनों गुण एक साधारण मनुष्य को भी पुज्यनीय बना देते हैं , हमें सभी को कोशिश जरूर करनी चाहिए- आनन्द ही आनन्द मिलेगा ।
 वर्तमान को सुधारने से भूत और भविष्य दोनों सुधर जाते हैं अतः वर्तमान को सुधार लें तो आनन्द ही आनन्द । दिमाग के विचारों को खाली मत रखो ।खाली दिमाग में तुरंत शैतान घुस जाता है , मन को अपने नियंत्रण में रखो नारायण प्रभु में मन लगाओं , ध्यान लगाओ , ऐसा ध्यान कि उसमे न सुख हो न दुख हो सिर्फ प्रभु के दर्शन ही दर्शन हों फिर तो आनन्द ही आनन्द है । यह मनुष्य का शरीर अच्छाई व बुराईयों का जोड़ है , अच्छाई व बुराई तो जीवन भर चलती ही रहेगी ।अच्छाई या बुराई भी तो मन की एक सोच है ।अच्छाई  या बुराई से अपने मन का सम्बन्ध तोड़ सको तो तोड लो फिर बचेगा सिर्फ सच्चा आनन्द ही आनन्द । यही सब साधन ही भगवान् के दर्शन करवा सकते हैं 
 भगवान सिर्फ भाव के भूखे हैं उसे हमारी धन दौलत नहीं चाहिए ,अगर चाहिए तो हमारा भाव अच्छा होना चाहिए। अगर भाव अच्छा हो गया तो समझो काम हो गया ।यही सच्चाई है भगवान को प्राप्त करने के लिए।

आज के इस टॉपिक में शिक्षा का महत्व और भगवान प्राप्ति का सरल विधि  विधान किस प्रकार अपने जीवन को ऊँचा उठाएं और अपने जीवन के लक्ष्य मे हमेशा भगवान्   को हर वक़्त याद रखो।

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