भारत देश में बहुत सारे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे हैं और उनके बहुत सारे रहस्य और चमत्कारिक कहानियां हैं ।आज के इस टॉपिक में मैं आपके साथ 2,3 ऐसे अद्भुत रहस्य शेयर करने जा रही हूं जो मेरे अपने आंखों देखे हैं, जहां पर मैं खुद दर्शन करने गई और मेरी आंखें फटी रह गई थी।अगर आपको भी कभी मौका मिले तो आप जरूर इनके दर्शन करने जाये और रहस्यों को देखे। यह रहस्य इंसान की समझ से परे हैं। दुनिया में बहुत सारे अद्भुत रहस्य हैं सर यह तीनों रहस्य मेरी अपनी आंखों देखे हैं।
भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है
महाप्रभु का महा रहस्य
सोने की झाड़ू से होती है सफाई......
महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया
हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता...
मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...
ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है...
मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ???
कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...
आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है...
भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी
आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता।
* झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है
दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा
इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
कमाख्या सिद्पीठ आसाम की अद्भुत रहस्य .....
51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। वल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहतै है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। मंदिर से कई अन्य रौचक बातें जुड़ी है, आइए जनते हैं ।
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जोकी आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है।
51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। वल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहतै है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। मंदिर से कई अन्य रौचक बातें जुड़ी है, आइए जनते हैं ।
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जोकी आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है।
यहां वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
यहां लगता है अम्बुवाची मेला
हर साल यहां अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है। आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो गरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
3.मनिकरण गुरूद्वारा का चमत्कार------
यहां लगता है अम्बुवाची मेला
हर साल यहां अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है। आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो गरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
3.मनिकरण गुरूद्वारा का चमत्कार------
मनाली में एक धार्मिक जगह ऐसी है जहां एक अद्भुत चमत्कार देखने को मिलता है। एक ओर पार्वती नदी में बहता बर्फ जैसा ठंडा पानी, तो दूसरी ओर उसके किनारे खौलता हुआ गर्म पानी, इतना गर्म कि कुछ मिनट में खाना पक जाए। हिंदू धर्म कीअवधारणा के अनुसार मणिकर्ण को पुराण में सबसे उत्तम और कुलांत पीठ में स्थित श्रेष्ठ तीर्थराज माना गया है। बताया जाता है कि एक बार भगवान शिव और माता पार्वती संसार भ्रमण करते हुए इस स्थान पर पहुंचे। इस स्थान का अनुपम सौंदर्य और प्रकृति की मनोहारी शोभा देखकर शिव-पार्वती यहां रुक गए और हजारों वर्षों तक यहां तप और निवास किया। एक बार जलक्रीड़ा करते समय माता पार्वती के कान के आभूषण की मणि कहीं गिर कर गुम हो गई। भगवान शंकर के आदेश पर गणों ने मणि को सर्वत्र ढूंढा, परंतु मणि कहीं न मिली।
इस पर भगवान शंकर क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपना दिव्य नेत्र खोला। भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से नयना माता प्रकट हुइर्ं, इसलिए मणिकर्ण को नयना माता की जन्मस्थली भी माना जाता है। सभी देवी-देवता भयभीत हो गए और ब्रह्मांड कांप उठा। शेषनाग जी ने जोर का फुफकार छोड़ी, जिससे उबलते हुए गर्म जल की धारा फूट पड़ी। इस धारा में सहस्रों अन्य मणियों सहित माता पार्वती के कान के आभूषण की मणि भी निकल आई और भगवान शंकर का क्रोध शांत हो गया। इस कारण इसका नाम मणिकर्ण पड़ गया। मणिकर्ण में 86 से 96 डिग्री तापमान के गर्म पानी के उठते फब्बारे हर किसी का मन मोह लेते हैं। ऐसे ही गर्म फव्वारे के पास भगवान शिव का एक बहुत ही भव्य मंदिर स्थापित है, जिसमे भगवान शंकर जी एक बड़े शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं और उनके मंदिर के ठीक सामने एक पीतल के नंदी की बड़ी सी मूर्ति भी है। इसके अलावा यहां राम मंदिर भी है। गुरु नानकदेव जी भी 1574 विक्रमी संवत् को मणिकर्ण आए थे। उनके साथ भाई बाला और मरदाना भी थे। सिख धर्म की प्रमुख आस्था का प्रतीक एक भव्य गुरुद्वारा यहां शिवमंदिर के बगल में ही स्थापित है। जिसे मणिकर्ण साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरुद्वारा और राम मंदिर में समयानुसार हमेशा लंगर आयोजन रहता है और लंगर का खाना उबलते गर्म मे बनता है यह मेरा अपना आखों देखा वर्णन है।
Last alfaaz:---------
अगर आपको यह है लेख अच्छा लगे तो आप अपने चाहने वाले और भ्रमण करने वालों को जरूर शेयर करें क्योंकि कई बार हम कुछ रहस्य से अनजान होते हैं ,शायद कोई पढ़ कर घूमने जाने का मन बना ले इसलिए शेयर करने में बिल्कुल भी कंजूसी ना करें जितना हो सके उतना शेयर करें।
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