समस्या का समाधान कैसे करें || मैं कौन हूँ इस बात में छिपा है हर समस्या का समाधान || meditation benefit in hindi |

Tittle- समस्याओं का समाधान करने के लिए खुद को जानो , मैं कौन हूँ?
यदि आप अपना कल्याण चाहते हैं तो अपने इंद्रियों को वश में करने के लिए मन पर नियंत्रण करना सबसे जरूरी है, और मन को वश में करना बड़ा ही कठिन काम है। इसके लिए एक सीधा और पक्का सा उपाय है कि मन को प्रभु नारायण में पूरी तरह लगा दो। चाह और लालसा के कारण ही मन में कुछ जिज्ञासा से उत्पन्न होती हैं। हमारी जीभ को चटपटा और खट्टा मीठा खाने की लालसा, नाक को अच्छी सुगंध सुधने  कि चाह व कानों  को मीठे वचन सुनने की चाह और हमारे  नेत्रों को सुंदर सुंदर दृश्य देखने के अभिलाष ,शरीर को बढ़िया से बढ़िया वस्त्र पहनने के ऐशो आराम करने की चाहना, प्रत्येक इंद्रियो को अपनी अलग अलग जाना सिर्फ मन के कारण हैं और यह चाहाना इंद्रियों को  सिर्फ मन के कारण है।
 यह तुम जितनी पूरी करोगे उतनी ही ज्यादा यह चाह बढ़ती जाएगी, पूरी तो कभी होगी ही नहीं और चाह, लालसा पुरी ना होने पर दुख, ईर्ष्या,  जलन व देवेश की भावना बदला लेने की भावना पैदा होगी अर्थात दुख ही इन सबका  एकमात्र कारण हैं।
 मन को वश में करना और प्रभु मे लगाना ऐसा कर सको तो फिर शांति  और आनंद ही  रहेगा। प्रभु तक पहुंचने का रास्ता सबसे आसान हो जाएगा।  और चाह और लालसा को खत्म कर भगवान् के दास  बन जाओगे और फिर  समझो तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। 



 
यह जन्म और अगला जन्म भी सफल हो जाएगा कई बार टीवी पर जो बातें हम देख लेते हैं हमारे दिमाग में समृति पट पर अंकित हो जाती हैं। अच्छी हो या बुरी अच्छी बातें अच्छे संस्कार की बातें ही देखने सुनने जन्म के संस्कारों का भी प्रभाव रहता है। अच्छा हो या बुरा जो भी हो इस जन्म में हम जो कार्य कर रहे हैं जिन संस्कार में हम जी रहे हैं उन सभी संस्कारों का प्रभाव हमारे इसी जन्म में अगले जन्म में भी अवश्य पड़ेगा। 
अतः अच्छे  ही संस्कार करें, अच्छे वातावरण में रहे, बच्चों के अच्छे संस्कार दे व प्रभु नारायण को समरण, उसमें भक्ति, उसकी सेवा, दीन दुखियों  की सेवा,  संतसग ,कीर्तन, भजन, पुजा पाठ,हवन आदि से अच्छे संस्कार पैदा होते हैं।
 दान हमेशा दोनों हाथों से सच्चे मन से देना चाहिए ज्यादा से ज्यादा दान देना चाहिए जो दान देता है वह कभी भी घाटे में नहीं रहता घाटे में लेने वाला ही रहेगा। दान देने से मन शांत होता है,व दान देने वाले का कल्याण भी होगा और पाप भी कटेंगे। मन पर नियंत्रण,मन को को शांत रखने के लिए शुद्ध सात्विक भोजन, मछली, अंडा,न खाए।  मानव के पास जीभ एक ऐसा यन्त्र है चाहे तो आदर दिलवा सकती और चाहे पिटवा सकती हैं। 
महाभारत एक इसका जीता जागता उदाहरण है। 
द्रौपदी ने केवल इतना ही कहा था कि अंधे के पुत्र अंधे ही होते हैं जिसकी वजह से भयंकर परिणाम महाभारत के रूप में सामने आया। उस कारण  भारत ने जो प्रगति की थी वह सब नष्ट भ्रष्ट हो गई। इसीलिए मन का संतुलन बनाए रखना जीवन की सबसे बड़ी उपयोगिता है।

स्वयं को ( मैं ) पहचानो :--
 स्वयं को देखने के लिए जगत को देखना बंद करना पड़ेगा,  अर्थात आत्मचिंतन से भिन्न सभी चेस्टाए जगत को देखना है। अतः बाहर का पट बंद कर अंदर के पट खोलें अंदर के नेत्र खोलने पर मनुष्य को वह धन मिलता है, जिसे पाने के बाद कुछ और पाना शेष नहीं रह जाता। जिसे चोर भी चुरा नहीं सकते, डाकू भी छीन नहीं सकते और अपने सगे संबंधी भी बाँट  नहीं सकते। 
 अपितु  जो एक बार मिलने के पश्चात कभी अलग नहीं होता। यदि आप आहार-विहार को शुद्ध करके अपने चित्तवृत्ति को बाहरी प्रपंचो से मोड़कर अंतर्मुख करना आरंभ करें तो शीघ्र आपको अंदर अपने अंदर ही वह धन, आनंद मिलेगा जो कभी समाप्त होने वाला नहीं है। तन जब तक श्मशान में नहीं पहुंचेगा तब तक तन को चैन नहीं और मन जब तक भगवान से नहीं मिलेगा तब तक मन में चैन नहीं। 

कहने का भाव यह है कि सिर्फ भौतिक तत्वों का कार्य है इसलिए जब तक यह भौतिक तत्वों में नहीं मिलेगा तब तक इस की यात्रा चालू रहेगी और मन भगवान का अंश है इसलिए जब तक भगवान से नहीं मिलेगा तब तक इसे भी शांति नहीं मिलेगी। आत्मबोध मानसिक रोगों की अचूक एव स्थायी औषधि है। साधक को चाहिए कि जगत के मिथयात्व तथा आत्मा के स्वरूप और उसकी अमरता,  अजरता के विषय में सदैव चिंतन करें। ऐसा करने से जगत का मिथ्यात्व तथा आत्मा के नित्यता, मुकतता का बोध सुदृढ होता हो जाता है, और यही आतमनिष्ठा है।
 सबसे पहले अपने आप को देखो मैं क्या हूं .. ?
किन गुण धर्म वाला हूं, किंतु देखो ओढनी उतार कर अर्थात शरीर की वास्तविकता को जानने के लिए वस्त्र आभूषण हटाकर देखना जाना चाहिए। वैसे ही नाम ,रूप ,जाति, संबंध, पद तथा देह  इंद्रिय अंत: करण आदि का आवरण उतारकर स्वयं को देखना जानना बहुत जरूरी है।  इन सब को उतारने का अर्थात अलग करने से केवल एक मात्र अपने आप ही शेष रह जाएगा। बस यही स्वयं को देखना है। स्वयं को जानना स्वयं को पाना भगवान महावीर ने कहा जीवन और यदि कुछ मूल्यवान है तो वह स्वयं को मूल्य है। स्वयं के मूल्य से बढ़कर दुनिया में कोई और मूल्यवान हो ही नहीं सकता। जो उसे पा लेता है वह सब कुछ पा लेता है, और जो उसे खो देता है वह सब कुछ खो दे देता है। मालामाल होने की कसौटी है स्वयं को पा लेना और कंगाल होने की कसौटी है स्वयं को खो देना। यदि किसी ने स्वयं को खोकर जगत के सारे ऐश्वर्या पा लिए  है तो समझना उसने बड़ा महंगा सौदा किया है।  वह हीरे मोती देकर कंकड़ पत्थर ले आया।
 श्री कृष्ण भगवान जी भी यही कह रहे हैं ,तुम देह को मैं  मानना छोड़ दो तब मैं तुम्हारे समक्ष प्रकट हो जाऊंगा। 
किंतु जब तुम स्वयं को मैं मानोगे, देह में मानोगे तो मैं अंतर्ध्यान हो जाता हूं। मैं तब रहता हूं जब तुम नहीं रहते हो जब तुम रहते हो तब मैं नहीं रहता। प्रत्येक व्यक्ति कृष्ण तत्व है, लेकिन वह देखो मैं मानता है ।
इसलिए सब बेकार में पड़ जाता है। यदि आत्मा को मैं माने तो आप ही का नाम कृष्ण है। वास्तविक में मैं को पहचान लो वह तो अनंत ब्रह्मांड में व्याप्त हैं, कभी बिगड़ नहीं सकता। हम भी यदि कार्य करते समय स्वयं को करता ना माने, भोग भोगते हुए भी स्वयं को नित्य, शुद्ध व मुक्त माने तो जो निराकार परमात्मा श्री कृष्ण के अंत:करण में प्रकट हुआ वह सब लोग हमारे अंत करण में भी प्रकट हो सकता है। अपने व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए प्रत्येक के लिए आवश्यक है कि वह आत्म लोकन कर अपनी क्षमताओं तक अपनी कमियों का सही रूप से मूल्यांकन करें। 
वास्तव में आत्मअवलोकन एक बड़ी शक्ति है। जिससे मनुष्य अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है ।जिस व्यक्ति को स्वयं पर विश्वास नहीं होता है, वह निसंदेह उसमें आत्मविश्वास की कमी होती है। आत्मविश्वास की कमी मनुष्य के कार्य करने की इच्छा और क्षमता दोनों को प्रभावित करती है। स्वयं की कार्यक्षमता और उसमें  स्वयं  मे विश्वास ही आपको काम करने के लिए प्रेरित करता है। यही सफलता की कुंजी है। 

अपने व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए सबसे पहले आपको अपने क्षमता पर विश्वास करना होगा। धैर्य संयम तथा सकारात्मक सोच से अगर आप अपनी कमजोरियों को पहचान कर उन्हें दूर करने का प्रयास करेंगे तो निसंदेह सफलता प्राप्त की जा सकती है। इसमें कोई भी शक की गुंजाइश नहीं है ।असफलताओं के बावजूद अपनी पिछली गलतियों को पहचान कर उन्हें दूर करने का बार-बार प्रयास करें सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। आप जितना कठोर प्रयास करेंगे उतने ही अधिक भाग्यशाली होंगे। अपनी असफलताओं का दोष दूसरों के सिर पर मत मढे यह बहुत से लोगों की आदत होती है। इससे भी अधिक कुछ लोग भाग्य की असफलता का दोषी करार देते हैं। ऐसे में व्यक्ति अपनी कमजोरियों और गलतियों का विश्लेषण ना करके उन्हें और अधिक बनने में सहायता करते हैं। हमारे अंदर एक महान शक्ति हैं। जिसे हम पहचान नहीं सकते। जिस दिन हमने अपने अंदर की शक्ति को पहचान लिया और अपने ऊपर विश्वास कर लिया उस दिन हमने अपने आप पर विजय पा ली और भगवान को प्राप्त कर लिया। यदि आप 33 करोड़ देवी देवताओं पर विश्वास कर सकते हो तो  फिर अपने ऊपर क्यों नहीं ?

*समस्या का समाधान हमारी समस्या के अन्दर ही छुपा हुआ है - 
हमारे आसपस ऐसे बहुत सारे उदाहरण होते हैं मगर हमारा ध्यान उनकी ओर जाता ही नहीं क्योंकि हम वही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं ।मनुष्य के जीवन में कई तरह की समस्याएं आती हैं और समाधान भी उस  समस्या में ही छुपा होता है, लेकिन समस्या की तरफ ध्यान हमेशा रहता है पर समाधान मे नही। समस्या का मूल में ही उसका समाधान छिपा होता है। अगर मनुष्य समाधान कहीं और खोजते हैं और समस्या कहीं और होती है तो इस दुनिया में जिस मनुष्य ने अपनी समस्याओं को उचित समाधान खोजने का प्रयत्न किया है उसने अपनी  समस्या पर सफलता पाई है, और जिसने समाधान कहीं और ढूंढने का प्रयत्न किया उसने हमेशा असफलता ही पाई है। इसलिए इस दुनिया में वही व्यक्ति कई दशकों तक परेशानी में रहता है जिसने समस्या का उचित जगह पर समाधान खोजने का प्रयास ही नहीं किया  होता है। 

सहनशील बने - अगर आपके पास किसी भी प्रकार की समस्या आए तो उस समय धैर्य जरूर बनाए रखें क्योंकि समस्या हमेशा डर पैदा करती हैं। वह अकेले नहीं अकेले नहींं आती वह हमेशा समाधान केे कंधे पर सवार होकर आती है। चाहे हजारों दरवाजे बदं हो जाय , लेेकि परमात्मा कहीं न कहीं कोई खिड़की जरूर खुुुली छोड़ देेता है। इसलिए समस्या आने पर सब्र और समय का इंतजार जरूर करना चाहिए। इसलिए जिंदगी को जियो और समय को बदलने को जल्दबाजी में बदलने की कोशिश मत करों।  जैसा  वक्त चल रहा है, उसे चलने दो । कुछ बातें हमेंं परमात्मा परमात्मा पर छोड़ देनी चाहिए, क्योंकि बहुत सारी समस्याएं तो समय आने पर खुद ही ठीक हो जाती हैं । जैसे कोई भी फल का पेड़ लगाने से एकदम फल नहीं आता फल आने  में सालो लग जाते है।
 एक औरत की सच्ची कहानी 
यह एक ऐसी औरत की सच्ची कहानी है  जिसका  पति बहुत ज्यादा शराब पीता था।  उसके पास और किसी भी प्रकार की  कोई कमी नहीं थी।  अगर घर में कमी थी तो  शान्ति की ।
 पति की शराब पीने की बुरी आदत ने उसकी मानसिक शांति भंग कर रखी थी। इस आदत की वजह से वह बहुत तंग थी और उसने कई बार मरने की कोशिश की पर वह मर नहीं सकी। 
पहले  छोटी उम्र में उसको ज्ञान और भगवान के बारे में ज्यादा समझ नहीं थी और एक दिन ऐसा आया जब वह किसी धर्म स्थान पर पहुंच गई  और उसने सात दिन तक  ज्ञान के महत्व को  समझा और जाना कि मैं कौन हूं ? 
 फिर जाकर समझ में आया कि मेरी जिंदगी में समस्या क्यों आई है , तो किसी ने उसको बहुत अच्छी तरह समझाया कि अगर आपके पति शराब नहीं पीते तो शायद आप कभी भगवान को  खुद को नहीं जान पाती।  अगर आपकी जिंदगी में ये तकलीफ आई है,तो आप भगवान को खुद को जान पाई है, और वह इस बात के लिए अपने पति को ही सबसे ज्यादा धन्यवाद देती है अब , कि अगर आप शराबी नहीं होते तो शायद मैं धर्म के रास्ते पर कभी नहीं चलती।
 इसलिए समझने की कोशिश करो कि समस्या के अंदर ही किसी बात के लिए कोई राज छुपा हुआ है।
शायद उस औरत को शराबी पति की वजह से भगवान के दर्शन और खुद को जानने का मौका मिलना था।
मानसिक रूप से बलवान रहे- 
किसी भी मुसीबत आने पर हमेशा खुश रहो अपनेेेे चेहरे पर मुस्कान पर बरकरार रखो क्योंकि आपकी  मुस्कुराते हुए  देखकर समस्या खुद ही भाग जाती है। जब आप मानसिक और शारीरिक दोनों ही तरह सेेे खुश रहेंगे तो आपके आसपास का वातावरण सकारात्मक हो जाएगा। ऐसा होने पर आप किसी भी समस्या का आसानी से
सामना  कर सकतेे हो।  सकारात्मक सोच इनसान को महान बना देती है।  हमारे ऋषि मुनि अपने सकारात्मक विचारों के कारण झोपड़ी में भी खुश रहते थे और अपने सकारात्मक विचारों के कारण आज उन्हें महान संतों  के नाम से जाना जाता है ।
गुरु नानक और संत कबीर जैसे संत कोई महलों में नहीं रहते थे सिर्फ उनके पास एक शक्ति थी जो थी पॉजिटिव सोच और खुद को उन्होंने जान लिया था।
 हमारा भगवान पर विश्वास कि ऐसा भाव है जो पत्थर को भी भगवान बना देता है।
 इसलिए हमेशा विश्वास के साथ डटे रहे और किसी भी तरह के मुश्किलों से डरे नहीं बल्कि उनका खुलकर सामना करें ।मेहनत का फल मिलने में देर हो सकती है पर अंधेर नहीं ।वह मिलता जरूर है जब सही समय आता है।
 अपनी शक्ति और खुद को पहचानो। 
जिस इंसान ने ज्ञान के मार्ग पर चलकर खुद को पहचान लिया और भगवान का अर्थ क्या है उसको जान लिया, फिर उसको किसी भी प्रकार की समस्या या बीमारी हिला नहीं सकती। वह जो चाहे पा सकता है और हर हाल में खुश रह सकता है। इस विधि को जानने के बाद आप चाहो तो भगवान को पा सकते हैं और उस के साक्षात दर्शन करके उसे बातें भी कर सकते हैं ।यह संत महात्माओं का अनुभव किया हुआ प्रयोग है। बस जरूरत है अपने अंदर के ज्ञान को जगाने की वह हमारे भीतर ही है, बाहर नहीं। भगवान को और खुद को जानने के लिए किसी मंदिर मस्जिद में जाने की जरूरत नहीं है ।अगर जरूरत है खुद के अंदर झांकने की खुद के अंदर झांककर और अपनी समस्याओं का हल खुद करो।
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