Tittle- सुखी रहने के लिए कया करें-
सुख इंसान के दो प्रकार के होते हैं भौतिक सुख और आध्यात्मिक सुख। सुख मन कि वह भावना है, जिससे आपका मन आनंदित होता है ।यह सुख भी हर इंसान के लिए अपनी परिभाषा स्वयं निर्धारित करता है। मूल रूप से सुख दो प्रकार के होते हैं संसारिक सुख और आध्यात्मिक सुख जब आप भौतिक वस्तुओं से प्यार करते हैं और उन्हें इस्तेमाल करते हैं तो आपको बहुत आनंद मिलता है। यही भौतिक सुख होता है।
अगर आपके पास टीवी, फ्रिज, एसी ,कार, तमाम सब प्रकार की सुख सुविधाएं हैं तो आपका घर में इनके लाभ होता हैं ,आराम मिलता है, किसी से लगाव रखते हैं, मोह रखते हैं तो उसका साथ भी आपको आनंद देता है।
यह संसार एक सुख हुआ है, इसे हम संसारिक सुख कहते हैं।
जब आप इन भौतिक सुखों से ऊपर उठकर ईश्वर का ध्यान करते हैं तो उस साधना के दौरान जो आपको नई अनुभूतियां होती हैं, जो शक्तियां प्राप्त होती हैं, उसे आध्यात्मिक सुख कहा जाता है ।
आध्यात्मिक सुख पाना क्षणभर का खेल नहीं है। वह तो वर्षों की तपस्या और गुरुजनों के आशीर्वाद और सद्दमार्ग पर चलने से ही मिल सकता है ,लेकिन यह इतना कठिन भी नहीं कि कोई यह सुख प्राप्त ना कर सके।
आध्यात्मिक सुख ईश्वर चिंतन मनन और साधना का मेल है।
जब आप अपने इंद्रियों को सुख पहुंचाने का उपक्रम छोड़कर ईश्वरीय भक्ति करते हैं तो उसका ध्यान करते तो आपका मन ईश्वर के द्वार तक ले जाता है। इस द्वार तक लाने तक का मार्ग भी अद्भुत और सबसे जयादा रोमांचक है ।आपको ईश्वर शक्ति की किरणें छूने लगती हैं ।
हमारे शरीर के भीतर आत्मा जागृत हो जाती है ,उसमें सोई हुई शक्ति भी जागती है, इस प्रकार का अनुभव पाकर इंसान भौतिक सुखों से ऊपर उठ जाता है। इसे हम आध्यात्मिक सुख कहते हैं।
इंसान ईश्वरीय शक्ति को छू लेने से संसार के सभी भौतिक सुख गोण हो जाते हैं। इंसान ईश्वरीय शक्ति को मान लेता है, जान लेता है, और अच्छे बुरे का ज्ञान पा लेता है।
अध्यात्म से जुड़े व्यक्ति हर इच्छा से मुक्त हो जाता है।
भौतिक सुख सुविधाएं सुख तो देती हैं, किंतु शांति नहीं दे सकती।
जब तक जीव को यह ज्ञान नहीं होता कि वह परमात्मा का ही अंश है तब तक वह पीड़ित रहता है। मोह भी हमारे दुख का कारण है। प्रत्येक मनुष्य के अंदर आनंद स्वरूप नारायण परमात्मा प्रभु बैठा हुआ है। उसको ढूंढना पड़ता है। अपनी आध्यात्मिक शक्ति से एक बार आप उस अनंत स्वरूप का दर्शन कर लें साक्षातकार अगर हो जाए तो फिर कोई भी इच्छा की कामना बाकी नहीं रह सकती।
मगर उनको ढूंढना एकदम आसान नहीं है, जैसे दूध में छिपा हुआ घी विद्यमान रहता है उसको रगड़ कर प्राप्त किया जा सकता है। उसी प्रकार मनुष्य के अंदर भी भगवान छिपा हुआ है, पर उसको ढूंढना अपने मन को नियंत्रण करना पड़ता है, तब जाकर आध्यात्मिक सुख प्राप्त कर सकते हैं ।
मनुष्य के अंदर भीषण तृष्णा, लोभ, लालच अनेक प्रकार की बीमारियां भरी पड़ी हैं। उन्हीं के कारण मनुष्य अशांत दुखी व्याकुल टेंशन में रहता है, और यह तृष्णा ऐसी है कि सारी पृथ्वी को जीत लेने पर भी शांत नहीं होती और बढ़ती ही जाती हैं। इच्छा एक ऐसी बिमारी है जो कभी भी खत्म नहीं हो सकती।
संतोष मिलने से सब सुख प्राप्त हो जाते हैं ।संतोष की प्राप्ति से प्रभु की कृपा एकदम आसान है।
हम चाहे तो आध्यात्मिक सुख अपने आसपास ढूंढ सकते हैं सुख पाने के लिए बीहड़, जंगल और पहाड़ की गुफाओं में जाने की जरूरत नहीं होती, न ही भगवा वस्त्र धारण की। सिर्फ संतुलन आचारण और मन को नियंत्रित करके सुख के केंद्र की ओर ले जाता है।
आध्यात्मिक सुख आपको भटके हुए को भी गलत रास्ते पर चलने से बचाता है ,उसे सही दिशा बताता है।
आध्यात्मिक सुख आपको भटके हुए को भी गलत रास्ते पर चलने से बचाता है ,उसे सही दिशा बताता है।
इस राह पर चलने से कभी भी नुकसान नहीं होगा। इस रास्ते पर चलने से भला ही भला होगा।
ये सोच कर ही आपको मानसिक सुख प्राप्त हो जायेगा अगर आप की सुझाव या मार्गदर्शन से कोई एक इन्सान भी इस राह पर चल पड़ता है।
अगर आप जानबूझकर भी अपने आप को गलत मार्ग पर जाने से नहीं रोक सकते तो आपको मानसिक कष्ट झेलना पड़ेगा।
यही छोटे-छोटे अनजान सुख हैं जो परोपकारी और संतुलन जीवन अचार से हासिल होते हैं। मानव शरीर के लिए सुख टॉनिक है लेकिन दुख उस घुन की तरह है जो हमारे शरीर को भीतर से खोखला कर देता है । कुछ लोग यह देखकर ही दुखी हो जाते हैं कि सामने वाला सुखी क्यों हैं ? उसके पास गाड़ी व घर क्यों है ? अच्छे कपड़े क्यों हैं ?
आपको अपने ऐसे विचारों की दिशा बदलनी होगी। सच्चा सुख तभी होगा जब हम कोई ऐसा काम करें जिससे हमारे आसपास के लोग भी सुख का अनुभव करें। अगर किसी के बिगड़ते काम को संवार दें तो हमारा मन भी खुश होगा और जिसका काम सँवर जाएगा वह भी खुश होगा।
यही सच्चा सुख है, जरूरत है हमें अपने विचारों और इरादों में थोड़े से बदलाव की।
सुख हमारे आस-पास ही हैं। जरूरत होती है, मन की आंखों से उन्हें खोज निकालने की अध्यात्म ज्ञान से आत्मा को पहचानने की आसानी हो जाती है। आत्मा को परमात्मा प्रभु नारायण से जोड़ सकता है। अध्यात्म ज्ञान को जीवन में सर्वोपरि स्थान दे देना चाहिए। अध्यात्म ज्ञान से सुख शांति मिलती है और जल्दी ही प्रभु के दर्शन भी संभव है।
अध्यात्म ज्ञान धरती को भी मां समझता है, नदी और पहाड़ों को भी सजीव समझता है। विज्ञान जीव को तत्व समझता हैं और अध्यात्म तत्व को भी चैतन्य मानता है।
इसीलिए कहा गया है कि भौतिक सुख से ज्यादा बढ़कर अध्यात्म सुख सबसे बड़ा सुख है।
जिस इंसान ने आध्यात्मिक सुख की पहचान कर ली उसको किसी और वस्तु की इच्छा नहीं होती।
भगवान बुद्ध अपने महल छोड़कर अधिकतम सुख की ओर निकल पड़े थे उसके महलों में किसी भी प्रकार का कोई कमी नहीं थी, फिर भी उसको आत्मा और परमात्मा को जानना सबसे बड़ा सुख लगता था।
इसलिए कहा गया है संसार के सारे सुख एक तरफ और अध्यात्मिक सुख सबसे बडा सुख है।
* सच्चा सुख क्या है...?
भगवान बुध्द के दर्शन करने तथा उनके प्रवचन सुनने वालों का तांता लगा रहता था । एक भक्त ने संत से पूछा सच्चा सुख क्या है...? बुद्ध ने उत्तर दिया, संदेह नहीं कि मानव के जीवन मे उतार चढ़ाव आते रहते हैं, कभी सुख तो कभी दुख कभी जीवन में आदर सत्कार मिलता है तो कभी अपमान भी झेलना पड़ता है। जो वयक्ति विपरीत स्थितियों में भी मन का संतुलन बनाए रखता है, वह सदैव सुखी रहता है भगवान ने आगे समझाते हुए कहा कि हर अवस्था में अपने मन का संतुलन बनाए रखना घोर कष्टों में भी मुस्कराने की आदत बनाए रखना ही सुख की सबसे बडी कुंजी है। अपने आप को संयम रखने वाला दुख में भी सुख का अनुभव करता है।
राजा सिकन्दर की छोटी सी कहानी ----
सिकन्दर ने आधी दुनिया जीत ली थी , पर जब मरा तब 3 इच्छाएँ थी
1. जिन हकीमों ने मेरा इलाज किया वे मेरे जनाजे को कंधा देंगे ताकि दुनिया को पता चले रोग का इलाज करने वाले हकीम भी मौत को रोक नहीं सकते
2. जनाजे की राह में सारी दौलत बिछा दी जाये जो मैने जिंदगी भर इकठ्ठी की थी ताकि लोगों को पता चले ,जब मौत आती है तब ये किसी काम नहीं आती
3. जब मेरा जनाजा निकले तब मेरे दोनों हाथ बाहार निकाल देना
ताकि सबको पता चले , इन्सान दुनिया में खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है।
1. जिन हकीमों ने मेरा इलाज किया वे मेरे जनाजे को कंधा देंगे ताकि दुनिया को पता चले रोग का इलाज करने वाले हकीम भी मौत को रोक नहीं सकते
2. जनाजे की राह में सारी दौलत बिछा दी जाये जो मैने जिंदगी भर इकठ्ठी की थी ताकि लोगों को पता चले ,जब मौत आती है तब ये किसी काम नहीं आती
3. जब मेरा जनाजा निकले तब मेरे दोनों हाथ बाहार निकाल देना
ताकि सबको पता चले , इन्सान दुनिया में खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है।
अगर दुनिया में धन दौलत से सुख होता तो शायद इतिहास का कोई भी राजा दुखी ना रहता है इसलिए इस बात को अच्छी तरह समझ ले यह संसार मोह माया का जाल है। असली धन तो इंसान का संतोष ही है, जिस इंसान ने संतोष कर लिया उसने सब कुछ पा लिया फिर उसको किसी और चीज की इच्छा नहीं रहती
Last alfaaz:------
हमारा इतिहास गवाह है, संत महात्मा अपनी झोपड़ी में भी सबसे ज्यादा सुखी थे जैसे गुरु नानक जी, संत कबीर और महात्मा बुद्ध जैसे संत झोपड़ी होते हुए भी सबसे ज्यादा सुखी थे, और महलों में रहने वाले राजा बहुत ज्यादा धन दौलत होते हुए भी अंत में दुखी होकर ही मरे हैं। इसलिए अपनी लालसा को कंट्रोल करो और आध्यात्मिक सुख की ओर बढ़े। यही ही सच्चा सुख है।
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