Tittle- वट पूर्णिमा के व्रत और पुजा का महत्व- हर साल वट पूर्णिमा साल में दो बार आती है। एक बार जेष्ठ मास की अमावस को और कुछ जगह पर जेष्ठ मास की पूर्णिमा को वट पूर्णिमा सावित्री का व्रत रखा जाता है।
व्रत का महत्व-
हमारे हिंदू धर्म में वट पूर्णिमा का व्रत रखने का विशेष महत्व है। इस साल वट पूर्णिमा का व्रत 14 जून 2022 दिन मंगलवार को रखा जाएगा । इस दिन सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं, और ऐसा माना जाता है, इस व्रत को रखने वाली महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। आपकी जानकारी के लिए आपको यह बता दें कि साल में यह व्रत दो बार किया जाता है।वट सावित्री व्रत एक बार जेष्ठ् की अमावस को और एक बार जेष्ठ मास की पूर्णिमा को। यह त्यौहार उत्तर भारत की कुछ जगह पर बहुत ही प्रसिद्ध है
जैसे -पंजाब, हरियाणा, दिल्ली उत्तर प्रदेश ,और उड़ीसा आदि में, वहीं महाराष्ट्र और गुजरात में भी इस पूर्णिमा का बहुत ही महत्व है।
वट पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त-
वट सावित्री व्रत की पूर्णिमा की तिथि 13 जून 2022 को दोपहर 1:42 से शुरू होकर वट सावित्री व्रत की पूर्णिमा की तिथि समापन 14 जून 2022 सुबह 9:40 तक रहेगी।
वट सावित्री व्रत की पूर्णिमा का दिन शुभ योग 14 june 2022 सुबह 9: 40 से 15 जुन से 5 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
व्रत की महिमा-
हमारे धर्म के अनुसार सावित्री माँ ने अपने पति के प्राण यमराज से यह व्रत करके ही बचाए थे। उसे इस व्रत के कारण पुत्र प्राप्ति और सास ससुर का राजकाज सब वापस मिलने का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ था।
इसीलिए सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी आयु और कामना और संतान प्राप्ति के लिए है यह व्रत करती हैं, और इस व्रत ऐसी महिमा मानी गई है, इस व्रत की वज़ह से माता सावित्री ने अपने मरे हुए पति के प्राण यमराज से वापस ले लिए थे। तभी से इस वर्ष को बहुत ही महत्व माना गया है।
व्रत की पूजन सामग्री-
चावल ,हल्दी, अगरबत्ती, लाल पीले रंग का कलावा, सोलह सिंगार, तांबे का लुटिया पानी के लिए, पूजा के लिए सिंदूर और लाल रंग के वस्त्र, पूजा में बिछाने के लिए आसन, पांच प्रकार के फल, बरगद का पेड़ और पकवान, बांस की लकड़ी से बना हुआ पंखा यानी बिजना।
व्रत के लिए पूजा विधि -
इस व्रत को करने के लिए सबसे पहले नहा ले और फिर पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात प्रकार के अनाज रखे जाते हैं। जिसे कपड़े से ढक दिया जाता है। और दूसरी बांस की टोकरी में माता सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है, और वट वृक्ष पर महिलाएं जल चढ़ाकर तिलक अक्षत और फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके चारों तरफ साथ चक्कर लगाती हैं। चने और गुड़ का प्रसाद भी बांटा जाता है ,और इसके बाद सभी महिलाएं बैठकर कथा सुनती हैं। ऐसा करने से हमारे धर्म शास्त्रों में माना जाता है, महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अपनी संतान के लिए पूरे साल के सुख समृद्धि की कामना भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लेती हैं।
पूर्णिमा पर दान क्या करें-
इस दिन दूध में जल मिलाकर थोड़ी सी चीनी, चावल, सफेद फूल यह सब कुछ जल में मिला कर भगवान चंद्रमा को जल का अर्घ दे । ऐसा करने से हर तरह का चंद्र दोष दूर हो जाता है।
इस दिन माता लक्ष्मी की पूरे विधि विधान के साथ पूजा करनी चाहिए। उनके भोग में खीर का भोग जरूर लगाएं। अगर हो सके तो छोटी कन्याओं को खीर का प्रसाद जरूर दें । ऐसा करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और मां खुश होकर आपको आशीर्वाद देगी।
इस पूर्णिमा पर श्वेत चीजों का दान करने का विशेष महत्व माना गया है। जैसे सफेद कपड़े, दही, चावल, मोती, सफेद फूल और चांदी आदि के सिक्के अगर आपकी समर्था है तो, ऐसी चीजों का दान करके आप भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हो।
जेष्ठ पूर्णिमा पर बहुत सारे लोग अपने घर में भगवान सत्यनारायण की पूजा भी करवाते हैं। जिसकी वजह से आप धन संपत्ति वैभव की प्राप्ति होती है।
इस दिन चंद्रमा से जुड़ी वस्तुओं का दान करने से आपका चंद्रमा मजबूत होगा और घर में सुख शांति और समृद्धि प्राप्त होगी।
जेष्ठ पूर्णिमा पर पूर्णिमा पर क्या ना करें-
अगर आपने इस पूर्णिमा का व्रत रखा है तो भूल कर भी किसी की निंदा चुगली ना करें।
इस व्रत को रखने के बाद शाम को चंद्रमा देखकर ही भोजन ग्रहण किया जाता है, और भोजन मीठा ही खाएं इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता। व्रत वाले दिन में सोना निषेध माना जाता है इसलिए दिन में ना सोए।
Disclaimer-
यहां दी गई हर तरह की धार्मिक जानकारी हमारे धर्म शास्त्रों और लोक मान्यता पर आधारित है इसका किसी भी प्रकार का वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसे सामान्य जन सूची में ध्यान रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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