Tittle-देव पूजन की पुरी जानकारी व पूजन सम्बन्धी जानने योग्य कुछ आवश्यक बातें -
हर धर्म के लोग पूजा करते हैं और धर्म के अनुसार ही पूजा का विधि विधान बताया गया है। आज हम आपको हिंदू धर्म के अनुसार पूजा करने के कुछ ऐसे तरीके बताने जा रहे हैं, जिनको अपनाकर आप भी पूजा का पूरा लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार पूजा करने से भगवान हमें आशीर्वाद देते हैं और हमारी मनोकामना पूरी करते हैं ।
* प्रतिदिन पुजा करने के लिए कुछ जरूरी बातें-
हम सबको देवपूजा अवश्य करनी चाहिये। यदि वेद मन्त्र अभ्यास्त न हो, तो आगमोक्त मंत्रर से और यदि यह भी सम्भव हो तो नाम मन्त्र से जल, चन्दन आदि चढ़ाकर पूजा करनी चाहिये। कल्याण चाहने वाले गृहस्थ को एक मूर्ति की ही पूजा न करे , किन्तु अनेक देवमूर्ति की पूजा करें , इससे कामना पूरी होती है । गंगा जी में, शालिग्रामशिला तथा शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आह्वान का और विसर्जन के किया जा सकता है ।
पुजा के लिए फूल तोड़ने का मन्त्र-
प्रातःकाल स्नानादि कामों के बाद देव पूजा का विधान है । एतदर्थ स्नान के बाद तुलसी , बिल्वपत्र और फूल तोड़ने चाहिये । तोड़ने से पहले हाथ पैर धोकर आचमन कर ले। पूरब की ओर मुँहकर हाथ जोड़कर मन्त्र बोलें मा नु शोकं कुरुष्य एवं स्थानत्यागं च मा कुरु। देवतापूजनार्थाय प्रार्थयामि वनस्पते ।।
पहला फूल तोड़ते समय ॐ वरुणाय नमः , दूसरा फूल तोड़ते समय ॐ पृथवीयै: नमः बोलें और तीसरा फूल तोड़ते समय पृथिव्यै नमः ' बोलें ।
तुलसीदल चयन कैसे करें -
स्कन्दपुराण का वचन है कि जो हाय पूजार्थ तुलसी चुनते हैं, वे धन्य है- तुलसी ये विचिनवन्ति धन्यास्ते करपल्लवा:।।
तुलसी का एक एक पत्ता न तोड़कर पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिये। तुलसी की मज्जरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है । मज्जरी तोड़ते समय उसमें पतियों का रहना भी आवश्यक माना गया है । निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर पूज्यमाव से पौधे को हिलाये बिना तुलसी के अग्रभाग को तोड़े ।इससे पूजा का फल लाख गुना बढ़ जाता है ।
* तुलसीदल तोड़ने के मन्त्र-
तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया चिनोमि केशवस्यार्थ् वरदा भव शोभने ।। त्वद गसम्भवै: पत्रेः पूजयामि यथा हरिम् तथा कुरु पवित्रगन्ति कलौ मलविनाशिनि ।।
तुलसीदल चयन करते समय वैधृति और व्यतीपात- इन दो योगों में , मंगल , शुक्र और रवि इन तीन वारों में , द्वादशी अमावास्या एवं पूर्णिमा, इन तीन तिथियों में संक्रान्ति और जननाशौच तथा मरणाशौच में तुलसीदल तोड़ना मना है । संक्रान्ति , अमावास्या , द्वादशी , रात्रि और दोनों संध्यायों में भी तुलसीदल न तोड़े , किन्तु तुलसी के बिना भगवान् की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती । इसलिए
निषिद्ध समय तुलसी वृक्ष से अपने आप गिरी हुई पत्तियों से पूजा करें। शालिग्राम की पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी तोड़ी जा सकती है ,पर बिना स्नान करे या जूते पहन कर कभी भी तुलसी ना तोड़े।
बिल्वपत्र तोड़ने का मंत्र-
अमृतोद्भव ! श्रीवृक्ष ! महादेवप्रियः सदा । गृहणामि | तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात् ।।
बिल्वपत्र तोड़ने का निषिद्ध काल चतुर्थी , अष्टमी , नवमी , चतुर्दशी और अमावास्या तिथियों को , संक्रान्ति के समय और सोमवार को बिल्वपत्र न तोड़ें । किंतु बिल्वपत्र शंकरजी को बहुत प्रिय है , अतः निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिये । शास्त्र ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि नया बिल्यपत्र न मिल सके तो चढ़ाये हुए बिल्वपत्र को ही धोकर बार - बार चढ़ाते रहें ।
*बासी जल व फूल को निषेध माना जाता है -
जो फूल , पत्ते और जल बासी हो गये हों , उन्हें देवताओं पर न चढ़ाये । किन्तु तुलसीदल और गंगाजल बासी नहीं होते पर तीर्थों का जल भी बासी नहीं होता । वस्त्र यज्ञोपवीत और आभूषण में भी निर्माल्य का दोष नहीं आता । माली के घर में रखे हुए फूलों में बासी दोष नहीं आता । दौना , तुलसी की ही तरह एक पौधा होता है जो भगवान् विष्णु को यह बहुत प्रिय है । स्कन्दपुराण में आया है कि दौना की माला भगवान् की इतनी प्रिय है की
इसे सूख जाने पर भी स्वीकार कर लेते हैं। मणि , रत्न , सुवर्ण , वस्त्र आदि से बनायें गये फुल बासी नहीं होते । इन् सबको धोकर चढ़ाना चाहिये ।
* किन फुलो को दूषित माना जाता है-
भगवान् पर चढ़ाया हुआ फूल निर्माल्य माना जाता है । सुंधा हुआ या फिर अंग से लगाया हुआ फूल भी इस कोटी में आता है, इन्हें भगवान पर नहीं चढ़ाया जाता, पर भँवरे के सूंघा हुआ फूल कभी भी दूषित नहीं माना जाता। जो फूल अपवित्र बर्तन में रख दिया गया हो और अपवित्र स्थान में उत्पन्न हो, आग से झुलस गया हो, या फिर कीड़ों से खाया हुआ हो और सुन्दर न हो
जिसकी पंखुडियाँ खिली न हो , अर्थात जो पृथ्वी पर गिरा हुआ हो पूर्ण रूप से खिला हुआ ना हो जिसमें बदबू या फिर गंध ना आती हो। नीलकंठ या उधर गंद वाला ऐसे फूलों को भगवान को नहीं चढ़ाना चाहिए।
जो फूल बायें हाथ से , या पहनने वाले अधोवस्त्र , आक या अरेन्ड के पत्ते में रखकर लाये गये हों , ऐसे फूल भगवान् को नही चढाये जाते । कलियों को चढ़ाना मना है , किंतु यह निषेध कमल पर लागू नहीं है । फूल को जल में डुबाकर धोना मना है । केवल जल से इसका प्रोक्षण कर लेना चाहिये ।
फूल , फल और पत्ते जैसे उगते हैं , वैसे ही इन्हें चढ़ाना चाहिये । उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपर की ओर होता है , अतः चढ़ाते समय इनका मुख ऊपर की ओर ही रखना चाहिये । इनका मुख नीचे की और न करें।
दुब एवं तुलसीदल को अपनी ओर रखे और बेलपत्र को नीचे मुकर चढना चाहिए।
दाहिने हाथ के करतल को उतान कर मध्यमा , अनामिका और अंगूठे की सहायता से फूल चढ़ाना चाहिये।
उतारने की विधि-
चढे हुए फूल को अँगूठे और तर्जनी की सहायता से उतारे।
पूजा में बासी जल का निषेध माना गया है।
*पुजा में कया चढाये और कया न चढाये -
1.धर्म के अनुसार गंगाजल या तीर्थजल में बासी का दोष नहीं होता। गंगा वारि न दष्यति '
2. शंख का पृष्ठभाग शुद्ध नहीं माना गया है । इसलिये शंख को जल में न डुबाये, आचमनी से उसमें जल भरे।
3. कहीं - कहीं महालक्ष्मीको अक्षत के स्थान पर हल्दी या धनिया तथा भोग में गुड़ का भोग भी लगाया जाता है ।
4. शालीग्राम बाणलिंग , ज्योतिर्लिंग , लिंग तथा नर्मदेश्वरलिंग इनकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं कि जाती । अतः इनका और प्राण प्रतिष्टित मूर्ति , अग्नि तथा जल का आवाहन एवं विसर्जन करना मना है । इन सबका ध्यान करके ही पूजा की जाती है , और पुष्पांजलि दी जाती है ।
5. मांगलिक कार्यों में कुमकुम ( रोली ) से तिलक लगाकर कार्य करें मिट्टी या श्वेत चंदन के तिलक न करें ।
6.देवी - देवताओं के नैवेद्य ( प्रसाद ) पान . ऋतुफल देवी देवताओं के माथे पर न चढ़ायें। यह सब प्रेम श्रद्धा विश्वास के साथ सामने चढ़ायें और दुर्वा - पान - पुष्प - चावल - दक्षिणा धोकर चढ़ाये ।
7. भोजन ( प्रसाद ) के बाद हस्त , मुख शुद्धि के लिये जल समर्पण करें डंडी - शिरा - अग्रभागयुक्त और सडा दागी पान देवी देवताओं को न चढ़ायें। पान का अग्रभाग डंडी तोडकर के शिरा निकाल के अच्छा धूला पान सुपारी लौंग इलायची आदि से युक्त पान सप्रेम भेंट करें।
8. देवता और पित्रेश्वरों को अच्छी से अच्छी पूर्ण श्रद्धा से चीजें भेंट करें श्रद्धाहीन गन्दी व सड़ी हुई चीजे वे स्वीकार नहीं करते। ऐसा करने से उल्टा नुकसान हो सकता है ।
9. देवी - देवताओं की आरती विषम् 1-3-5-7-9-11-21 बत्तीयों से करें व आरती कपुर से भी की जाती है । आरती समबतियों से न करे । आरती चरणों की 4 बार , हृदय की 2 बार, मुख की 1 बार, सर्वाग की 7 बार, इस तरह 14 बार भगवान् की आरती उतारें । आरती करते समय झालर, घंटा , ताली आदि बजाकर करें। फिर शंख जल से , शुद्ध वस्त्र से , फिर शंखोदक भक्तों पर छीटों से आरती से पूजा की कमी त्रुटियां पूर्ण हो जाती है ।
अतः देवी - देवपूजा के बाद आरती , पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा क्षमा प्रार्थना, साष्टांग प्रणाम अवश्य करें ।
10. देवी - देवताओं को प्रणाम सात - पांच या तीन बार प्रणाम करें । अथवा भक्त अपनी इच्छा से एक बार भी प्रणाम कर सकता है ।
11. देवताओं को एक हाथ से प्रणाम , एक परिक्रमा , और अनुचित समय दर्शन करने से पूर्व जन्म के पुण्य क्षीण हो जाते हैं ।
12. भगवती दुर्गा की एक बार , सूर्य प्रतिमा की सात बार , गणेशजी की तीन बार , भगवान विष्णु की चार बार और शंकरजी की आधी प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।
13. पूजन के अन्त में दक्षिणा भी अवश्य चढ़ानी चाहिये।
14. नित्य की पूजन में गुड - चीनी व - मिश्री का प्रसाद अवश्य भेंट करें का करें ।
15. स्नान के बिना देव , पितृ कर्म न करे। जो मनुष्य बिना जुते पहने और हाथ पैर धो कर प्रभु को भोजन सबसे पहले अर्पित कर बाद में खुद भोजन करता है वह मनुष्य लंबी आयु होता है।
16. नमक - व्यंजन - घी - तेल - चटनी ये सब दुसरो के हाथ से दी हुई न खाएं या फिर चम्मच के साथ देवे।
17. बायें हाथ से कोई चीज न देवें न हाथ में लेवें , बायें हाथ से देवी - देवताओं पर कोई चीज न चढ़ायें।
18. तिलक, जनेऊ, आचमन और भोजन यह चार काम बैठकर करें खड़े होकर करने से शुद्रबत हो जाते है।
19. स्नान ,संध्या ,तर्पण , हवन देवपूजन, व्रत, यज्ञ कार्य बिना खाये ( उपवास रखकर ) करे ।
20.सभी जाती के स्त्री - पुरूषों को देव पूजन व्रत, मन्त्र ,जाप, नित्य करने चाहिये। यह सब नहीं करने से देव कूपित होकर सब तरफ से हानि करते हैं । इसलिए दोनों ( स्त्री - पुरूषों ) को जो देवी देवता प्रिय हो उसी को अपना इष्ट देवता बनाना चाहिये ,क्योंकि इष्ठ देव से ही सब सिद्धियां मिलती है.
21. घर में देवी - देवताओं की मूर्तियां दो शिवलिंग , दो शालीग्राम , दो द्वारिकाचक्र , दो सूर्य , तीन दुर्गाजी , तीन गणेश , शंख , खंडित , अग्निदग्धमूर्ति , मत्स्य , कुर्मादि देवताओं की प्रतिमायें न रखे और इनकी घर में पूजन न करें। ऐसा करने से घर में संकट की प्राप्ति होती है ।
एक - एक प्रतिमायें रखें और उनका पूजन करें ।
22. स्त्रीयां शालिग्राम जी का स्पर्श न करे ।
23. देव पूजन व्रत या मांगलिक कार्य में शंख की पूजा करके , शंख बजाना शुभ होता है । शंख में सर्व तीर्थों का वास हैं । देवपूजा के साथ शंख की भी अक्षत व चंदन पुष्प से पूजन करें ।
24. औरतों को शंख नहीं बजाना चाहिये कयोंकि ऐसा करने से लक्ष्मी नष्ट होती है ।
25. हाथ मे घुले हुये अक्षत - पुष्प लेकर देवी - देवताओं का ध्यान आवाहन, पुष्पासन देवे। देवी देवों को पूजन में अक्षत धोकर चढ़ावे पूजा में कोई चीज की कमी हो तो अक्षत भेंट कर दें।
26. देवी देवताओं की पूजन में शुद्ध ताजा व गंगा जल ,मिश्रित जल पूजन स्नान में काम ले व बासी जल - फूलों से पूजन न करें ।
27.बिल्वपत्र - कून्द , कन्हार , लाल - सफेद कमल , पुष्प , दाब , तुलसी , आंवले के पते , गंगाजल बासी नहीं होते ।
28. बिल्वपत्र 3 दिन, कमल 5 दिन , तुलसी , डाब , गंगाजल , कभी भी बासी नहीं होते ।
देवी देवताओं के वस्त्र - विष्णु के पीले रंग का रेशमी वस्त्र,
गणेश व सूर्य - शक्ति ( देवी ) के लाल रंग का, शिव के सफेद रंग का, ब्रह्मा के गेरवा रंग का वस्त्र होना चाहिए ।
29. पूजा में किसी भी देव मूर्ति को अंगूठे से न मले , और विल्वपत्र के अलावा फूल पते उल्टे न चढ़ाये ।
30. कुशा दुर्वा के अग्र भाग से देवताओं पर जल न छिड़कें ।
31. विष्णु की पुजा चावल और धतुरा से, गणेश की तुलसी से,
दुर्गा की आक से , पदारपुष्प से शिव की,व सूर्य की विल्वपत्र से पूजन न करें ।
32. शिव को बेलपत्र अतिप्रिय है , विष्णु को तुलसी , गणेश को दुर्वा , कृष्णा को तुलसी , दुर्गा को अनेक प्रकार के पुष्प ,
सूर्य को लाल कनेर के पुष्प प्रिय होते हैं , अतः उनकी उसी पुष्प से सवालक्ष , सवाराहस या 108 या 108 से पूजन करने से शास्त्रों के अनुसार महान फल मिलता है।
33. कनिष्टा अंगुली को छोड़ कर देवी देवताओं को चंदन लगावे , पित्रेश्वरों को केवल तर्जनी से गोपी चंदन चढ़ावे चकले से चंदन न चढ़ावे और ताँबे के पात्र मे रखकर चंदन लेकर न चढ़ावे।
34. पूजा में नित्य , नेवैद्य ( मीठा प्रसाद ) और दक्षिणा अवश्य चढ़ाए ।
35. शिवलिंग के छुई हुई दक्षिणा फल एवं नैवेद्य साधु को छोड़कर और कोई ग्रहण करें तो दोष का भागीदार होता है ।
36. देवी - देवताओं के दाहिने तरफ घी का दीपक रखें । तेल का हो तो बांये तरफ रखें ।
37. दीपक को बुझाने से लक्ष्मी जी रूष्ट हो जाती है । अपने आप पूजा के बीच में ही बुझ जाये तो , पुरानी बत्ती निकाल कर नयी बत्ती डाल कर पुनः जला दें , घी और दीपक बदलने की दरकार नहीं है ।
38. शहर , गांव , स्थान , मकान , सभी जगह एक शक्ति , " स्थान - देवता " का निवास होता है । कोई भी पूजा शुरू करने से पहले ग्राम - देवता , कुल देवता और स्थान देवता तीनों की पूजा कर लेनी चाहिये । उनको प्रसन्न करने से वे साधक की विघ्नों से रक्षा करते हैं ।
39. नवरात्र आदि में स्थापित कलश को कई दिनों तक सुरक्षित रखना पड़ता है , ऐसे अवसरों पर शुद्ध मिट्टी बिछा दी जाती है और उस पर जौ बो दिया जाता है । नवरात्र में इन उगे हुए जौ को देवताओं पर चढ़ाया जाता है ।
40. इन उगे हुए जवाहरों में सफेद रंग का एक भी जौ उग जाता है तो वह बहुत शुभ माना जाता है और वह लक्ष्मी का वरदान होता है , अगर ऐसा जौ पैदा हो जाये तो उसे सुरक्षित अपनी तिजोरी में लाल कपड़े में लपेटकर रखना चाहिये ।
41. भगवान शंकर जी की पूजा में बेलपत्र , कमल का फूल , धतुरे का फूल, भांग, जलधारा ( दुध + जल अवश्य चढ़ायें ।
* पूजा का स्थान कैसा हो-
घर के एकान्त में मकान के पूर्व या श्रेष्ठ माना जाता है , साफ - स्वच्छ हवादार कमरे के पूर्व या उत्तर के कोने में स्वच्छ आसन पर पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करके बैठ जाएं, और अपने इष्ट देव की मूर्ति जमीन से कुछ इंच ऊपर ऊंचे स्थान पर प्रेम और श्रद्धा सहित आसन बिछाकर रखें। पूजा का उत्तर का कोना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
* पुजा के लिए आसन कैसा हो-
पुजा के लिए आसन या कपड़े सफेद , पीला या लाल रगं का होना चाहिए। पुजा करते समय चांदी , तांबा या मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर रखे। घी का दीपक बायें हाथ की और पूर्व या उत्तर की तरफ भगवान् की फोटो रखे। देव दर्शन धूप की मीठी - मीठी सुगन्धों वाली जलायें, भोग में , नेवैध ,फल , मिठाई , अपनी श्रद्धा अनुसार बढ़िया से बढ़िया और प्रत्येक चीज प्रभु को बढ़िया से बढ़ियां और सुन्दर से सुन्दर भेंट करें । प्रभु - पूजा स्थान के पास किसी भी प्रकार की झूठ , झूठी वस्तुएँ या खाना - पीना न करे । पूजा स्थान से जूता - चप्पल दूर रखें । हाथ - पैर धोकर मुख धोकर आचमन करके , संकल्प करके पूजा आरम्भ करें । नहाने के बाद स्वच्छ धुले हुऐ कपड़े पहन कर पूजा करें। पूजा के कपड़े पहनने के अलग रखें उन्हें पहनकर भोजन , खान - पान न करें । पूजा के समय पूरा ध्यान पूजा में ही रखें , उस समय घरेलू बात व्यापारिक बाते कानों में , मन में विचारों में न आने दें । पूजा करने के लिए जहां पर गौशाला हो या फिर नदी के तट पर पुजा करने से 100 गुणा ज्यादा फल मिलेगा ।
*देव पूजन के लिये विशेष सामग्रियां-
शंख , घण्टा , पन्चपात्र , आचमनी , अर्धपात्र , जलकलश , आसन , दीपपात्र , धूपपात्र , रोली , मोली , चन्दन , घी , चीनी , कच्चा दूध , दही , यज्ञोपवित , चावल , काजल , गेहूँ , श्वेत एवं लाल वस्त्र , शहद , सिंदूर , अबीर गुलाल , धूप , सुपारी , सफेद तिल , सप्तधान्य , सप्तमृतिका , पन्चरत्न , पीली सरसों , कपूर , केसर , इत्र , लौंग , इलायची , नारियल , पान , कलश , फल - फूल , दूर्वा , दक्षिणा एवं प्रसाद , चौकी , पाटा , आसन , बर्तन, नित्य हवन सामग्री ताम्रकुण्ड अथवा वेदी , घृत , तिल, घी , चीनी , मेवा , सुगंधित द्रव्य, कुशा , चन्दन आदि।
* लक्ष्मी माात की पूजन सामग्री -
केसर , चंदन , लाल चन्दन , रोली , मौली , पान सुपारी , पुष्प , अगरबती , दीपक , ऋतु फल , जनेऊ , कपूर , इत्र , सिन्दुर , लौंग , इलायची , गुड़ , प्रसाद , चावल , चीनी , दूध - दही , शहद , घी , रुई , माचिस , कलश , नारियल , आम की डाली , पंचमेवा , दूर्वा , गेहूँ , पूड़ी, पीली सरसों , लालवस्त्र एक गज , सफेदवस्त्र एक गज , रेशमीवस्त्र पावगज , कमल गटा , छड़ - छडिला , गोटा , हल्दी धनिया , बेलपत्र , कमल - पुष्प , तुलसी , पुष्पमाला, अबीर , सौभाग्य द्रव्य , वस्त्र , पंचरत्न आदि।
* शिव पूजन की सामग्री -
केसर , चन्दन , लाल चन्दन , रौली , मोली , पान , सुपारी , पुष्प , अगरबत्ती , दीपक , ऋतु - फल , जनेऊ , कपूर , अत्तर , सिन्दुर , लौंग , इलायची , गुड़ , प्रसाद , चावल , चीनी , दूध - दही शहद , घी , रूई बाती ,दूर्वा , पीली सरसों , बिलपत्र , पुष्प , पंचमेवा , तुलसी , पुष्पमाला , आक , धतुरा के पत्ते , फूल , भांग , शमी पत्र चाँदी के वरक , गंगाजल , इखरस , दुर्वा , अखण्डफल, सफेद वस्त्र , गणेश मुर्ति, . कार्तिक और माँ पार्वती का चित्र और वस्त्र।
*पूजा की तैयारी कैैसे करें -
बैठने के पूर्व पूजा की आवश्यक तैयारी कर ले , और ताजे जल को कपड़े से छानकर कलश में भरे। आचमनी से शंख में भी जल डालकर पीठपर रख ले और शंख को जल में डुबाना मना है । इसी तरह शंख को पृथ्वीपर रखना भी मना है । शंख में चन्दन और फूल छोड़ दें । कलश के जल को भी सुवासित करने के लिये कपूर और केसर के साथ चन्दन घिसकर मिला दे या पवित्र इत्र डाल दें । अक्षत को केसर या रोली से हल्का रंग कर थाली में रख ले ।
*पूजा सामग्री के रखने का तरीका-
पूजन की वस्तुको कहां रखना चाहिये , इस बात का निर्देश शास्त्रों मे भी दिया गया है । बायीं और जल से भरा हुआ जलपात्र , घटा और धूपदानी तेल का दीपक, दायी और धृतिका दीपक और सुवासित जल से भरा शखं रखे। सामने केसर और कपूर के साथ घीसा हुआ गाढ़ा चन्दन रखे। भगवान के आगे चौकोर जल का घेरा डालकर नैवेध की वस्तुएं उस स्थान पर रखें।
पूजा में आसन कैसा होना चाहिए -
पूजा के समय बैठने के आसन कई प्रकार के बताये गये है । वृत्तियों को एकाग्र करते समय शरीर के अन्दर बहुत ही आनंदित होता है। उससे एक प्रकार की विद्युत शक्ति आविर्भूत होती है जो शरीर और मन को स्वस्थ बनाती है । यदि शरीर और पृथ्वी के बीच कोई आसन न रखा जाये तो वह विद्युत शक्ति पृथ्वी के आकर्षण से खिंच जायेगी और इससे शरीर एवं मन दोनों के ही स्वास्थ्य क्षय की आशंका रहेगी । माता पृथ्वी से प्रार्थना करके आसन पर बैठना चाहिए । पीठ की रीढ़ सीधी रखें तथा शरीर और गर्दन भी सम स्थिति में रखनी चाहिए ।
पूजा - पाठ में आसन बिछाने का एक वैज्ञानिक तथ्य यह है कि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण सभी पार्थिव पदार्थों को अपनी ओर आकर्षित करता है यानी खींच लेता है । हमारे पुरातन शास्त्रों में ऋषियों ने पूजा - पाठ के समय गाय के गोबर से भूमि को लीपकर फिर उस पर अनेक प्रकार के आसन जो जिस कार्य को प्रभावित करते हैं बिछाते थे । काले मृग का चर्म हर प्रकार के पुण्य का दाता है । इसमें ऐसी विद्युत पाई जाती है कि उसके संपर्क से कार्मेद्रियां शांत रहती हैं . और आयुर्वेद का कथन है कि मृग चर्म पर बैठने से बवासीर , भगंदर , कोष्ठबद्धता के रोग नहीं होते । यदि होते हैं तो समाप्त होना प्रारम्भ हो जाते हैं । यह सात्विक विद्युत से पूर्ण होता है । व्याघ्र चर्म ( सिंह - चर्म ) राजस विद्युत से पूर्ण रहता है । इस पर बैठने से पराक्रम की वृद्धि होती है । पुरातन युग के राजा - महाराज इस पर बैठते थे । यह भी सच है कि इस आसन से व्यक्ति में उत्पन्न नपुंसकता , भीरूपन आदि समाप्त होती है । व्याघ्र के आसन के पास कोई विषेला कीड़ा , बिच्छ , सर्प आदि नहीं आते, इससे यह सुरक्षा प्रदान करता है। इसी कारण इस पर बैठकर पूजा - ध्यान करने पर किसी प्रकार की बाधा नहीं हो पाती। कामना सिद्धि के लिए विशेष रूप से लाल रगं के कंबल का प्रयोग किया जाता है । कुशा के आसन पर मंत्र सिद्धि के प्रयोग किए जाते हैं । बिना आसन के कोई भी मंत्र सिद्ध नहीं होते और कोई साधना सफल नहीं होती है। पीला आसन लक्ष्मी प्राप्ति, यश प्राप्ति के लिये, शवेत आसन मन की शाांति व पितरों को प्रसन्न करने के लिये उत्तम होता है । आसन शुद्ध ऊन का सिल्क का उत्तम रहता है ।
शिखा (चोटी ) रखने का महत्व-
शिखा ( चोटी ) धोती , जनेऊ , अति जरूरी है-
शिखा रखने से आत्मशक्ति प्रबल बनी रहती है , नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है , मनुष्य बलिष्ठ , तेजस्वी और दीर्घायु होता है । शिक्षा से बहुत फायदे है । शिखा रखने से देवता भी मनुष्य की रक्षा करते हैं । शिखा रखने से मनुष्य लौकिक , पारलौकिक , प्राणायाम , योग , यौगिक , आदि क्रियाओं में जल्दी और ज्यादा फल प्राप्ति करेगा । हिन्दू धर्म के साथ शिखा का अटूट सम्बन्ध है शिखा काट देने धर्मच्युत हो जाता है ।
चोटी रखने से मनुष्य धार्मिक , सात्विक और संयमी पूर्ण सफल बनता है । शिखा रखने से मनुष्य को सद्बुद्धि , सुविचार आदि की भी प्राप्ति होती है । शिखा हिन्दुत्व की निशानी है । शिखा हिन्दुओं का प्रधान चिन्ह है।
शिखा ( चोटी ) के बिना देवपूजन तप , व्रत , पूजा - पाठ , हवन , दान - पूर्ण्य तथा श्राद्ध तर्पण आदि सब शुभ कर्म कार्य निष्फल हो जाते है ।
शिखा के साथ साथ जनेऊ भी धारण करना चाहिए ।
*पुजा में चंदन तिलक का महत्व -
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक और प्रकृति प्रेमी सभी चंदन के गुणों से भलीभांति परिचित होंगे । प्रातः माथे पर गुणकारी चंदन का तिलक लगाने से न केवल दिनभर में ठंडक व शांति का अनुभव होता है । मोतियाबिन्द रोग में तो चंदन का टीका विशेष रूप से प्रभावकारी है। शरीर के खासतौर पर नाभी पर चंदन का लेप लगाने से मानसिक तनाव , दमा, नर्वस सिस्टम आदि जैसे रोगों पर अपना विशेष प्रभाव दिखाता है ।
* चन्दन तिलक विधि-
जो तिलक नहीं करता है , उसके यज्ञ , दान , जप , स्वाध्याय और पितृ कर्म आदि के लिए हुए शुभ कर्म सब व्यर्थ होते हैं । मांगलिक उत्सव , विवाह , पूजन आदि में तिलक लगाया जाता है । ललाट पर तिलक अनामिका एवं अँगूठे से लगाया जाता है । तिलक लगाने वाला अपनी मंगल भावनाओं को प्रवाहित करता है । यौगिक दृष्टि से ललाट में जहाँ तिलक लगाया जाता है , वह स्थान आत्मा के निवास सथान माना जाता है। जो तिलक से स्पर्श होने से अदृष्ट शक्ति ग्रहण कर तजोमय हो जाता है। भगवान को चंदन का तिलक लगाने के लिए किसी तांबे के बर्तन में चकली से रगड़ पर चंदन का तिलक रखकर देवताओं को तिलक लगाना चाहिए सिर्फ चकली से चंदन लगाने से दोष लगता है, इसलिए भगवान को तिलक लगाते समय चंदन को चकली पर घिसकर बर्तन में इकट्ठा करके लगाना चाहिए।
*आचमन विधि का महत्व-
जैसे मार्जन के द्वारा बाह्य शरीर पर प्रभाव डाला जाता है , वैसे ही आचमन के द्वारा अन्तः शरीर पर प्रभाव डाला जाता है । आचमन से मानसिक उत्तेजना शान्त हो जाती है । आचमन का विशेष उपयोग मन की शुद्धि के लिए ही है । संकल्प के लिए जिस तांबे या चादी के चम्मच मे जल ग्रहण किया जाता है , उसे आचमनी कहते हैं , और जिस पात्र में शुद्ध जल रखते है उसे पंचपात्र कहते हैं । तीन बार आचमन करने की क्रिया धर्म ग्रंथों द्वारा निर्दिष्ट है। तीन बार आचमन करने से कायिक , मानसिक और वाचिक त्रिविध पापों की निवृति होकर व्यक्ति को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है । आचमन करने से शरीर की शुद्धि हो जाती है ।
अतः पूजा शुरू करने से पहले और बाद में छींक आ जाने पर पूजा के बीच में उठ जाने पर आचमन करना अति आवश्यक है। आचमन पवित्र जल से करे- आचमन करने से भीतरी शुद्धि हो जाती है । जूठे मुख से कोई भी पूजा - पाठ , दान - धर्म करने से पहले सर्व प्रथम शरीर एवं मुखशुद्धि हेतु , अपने आराध्य देव के सन्मुख बैठकर पवित्र जल से 3 बार माधवायनमः केशवायनमः नारायणायनमः का उच्चारण करते हुए 3 बार आचमन करें और अन्त में गोविन्दायनमः कहकर हस्त प्रक्षालम् ( हाथ को घो लेवें ) आचमन दाहिने हाथ में छोटी चम्मच ( आचमनी ) में जल लेकर करे । आचमन करते समय मन में यह भावना करे कि शुद्ध जल से आचमन 3 बार करके मैं शुद्ध होकर धर्म - कर्म कार्य कर रहा हूँ । मुझे मेरे द्वारा की गई पूजा की सारे सुफल की प्राप्ति मुझे अवश्य होए।
इस प्रकार भगवान की पूजा करने की यह सारी विधि विधान आज मैंने आपको इस लेख में बता दी है। अगर यह पूरी विधि भी न कर सको तो सिर्फ मन के द्वारा ही पूजा करना भी सबसे बड़ी पूजा मानी जाती है। जिसे हम मानस पूजा कहते हैं और पूजा के अंत में भगवान की आरती जरूर करें।
Disclaimer- यहां पर बताई गई पूजा के बारे में सारा विधि विधान हमारे शास्त्रों द्वारा बताया गया है। इसमें हमारी तरफ से कोई भी खुद की राय नहीं है, यह सारी विधि धर्म ग्रंथों के अनुसार लिखी गई है। औम शान्ति।
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