भगवान् की भक्ति कैसे करें |भगवान प्राप्ति के सरल उपाय | भगवान् को कैसे खुश करें |

Tittle- भगवदप्राप्ति के सरल उपाय-
हम सब अपनी जिंदगी में  भगवान को पाना चाहते हैं और अपनी समस्या का समाधान भी चाहते हैं ,पर इसके लिए इंसान के अंदर कुछ ऐसे दैविक गुण  होने चाहिए। जिनको अपनाकर हम भगवान को पा सकते हैं।  हमारे विचार और संस्कार अच्छे  होने चाहिए । जो हमारे चरित्र का दुसरो को अच्छा सन्देश दे।
 हम सबके अंदर एक महान शक्ति हैं। जो हमारी बुराई और अच्छाई दोनों देख रहा है, इसलिए जो भी कर्म करें हमेशा सोच समझ कर करें,  क्योंकि हम लोगों से तो झूठ बोल सकते हैं पर भगवान से नहीं। वह हमारे कर्म हर समय देख रहा है , क्योंकि दुनिया का इंटरनेट बंद हो सकता है पर उसका नहीं।
अगर हमारे अंदर धरती पर इंसान और जीवो के प्रति दया भाव है यह भी एक तरह से भगवान को पाने का रास्ता है।
 आज ही जानते हैं विस्तार से कि अपने जीवन में किन बातों को हम अपनाएं ताकि हमें भगवत प्राप्ति के सुगम साधन प्राप्त हो जाए।
भगवान को पाने के लिए कई रास्ते हैं। एक है भक्ति मार्ग, दूसरा है सेवा भाव । अब यह सब मनुष्य  के ऊपर निर्भर करता है कि आप कौन सा मार्ग चुनते हैं, पर यह जरूर है कि भगवान् को पाने के लिए भाव और श्रद्धा का होना बहुत जरूरी है।

भगवत्प्राप्ति का सुगम साधन-

किसी को बुरा न समझना किसी का बुरा न चाहना और किसी का बुरा न करना यह भगवत्प्राप्ति का सुगम साधन है। इस विषय में ये  सब बातें  आज विचार करने योग्य है।

1. भलाई करने से धन का शक्ति का समय का खर्चा होता है , पर बुराई न करने से कुछ भी खर्चा नहीं होता । इसलिए  किसी को बुरा न समझने से , बुरा न चाहने से और बुरा न करने से वासुदेवः सर्वम ( सब कुछ भगवान् ही है ) का अनुभव सुगमता से हो जाता है और मानव जीवन सफल हो जाता है ।

2.  निश्चित समय पर चलने वाली गाड़ी के लिये भी पहले से सावधानी रखी जाती है , फिर जिस मौत रुपी गाड़ी का कोई समय निश्चित नहीं ; उसके लिये तो हर दम सावधानी रखनी चाहिये ।  लेकिन फिर भी इंसान अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए दोनों हाथों से कमाकर जोड़ने पर लगा रहता है। जब कि पता है यहां से लेकर कुछ भी नहीं जाना है, इसलिए जितना भी हो सके कुछ धन लोगों की सेवा के लिए जरूर दान दें, क्योंकि अपने हाथों से किया हुआ दान हमारे साथ अवश्य जाएगा।

3. काल की अग्नि में सब कुछ निरन्तर जल रहा है , फिर किसका भरोसा करें ? किसकी इच्छा करें ? सोचो , अपना कौन है ? अगर अभी मौत आ भी जाय तो क्या कोई हमारी सहायता कर सकता है कया ?

4. जब कोई भी  बालक जन्म लेता है , वह बड़ा होगा कि नहीं , पढ़ेगा कि नहीं , उसका विवाह होगा कि नहीं , उसके बच्चे होंगे कि नहीं , उसके पास धन होगा कि सत्संग , सेवा , भजन -
नहीं देखते पर वह नहीं , वह सुखी रहेगा कि नहीं , इस सब बातों में सन्देह है ,पर वह मरेगा कि नहीं इसमें कोई सन्देह नहीं है ।

5. आप भगवान् को आपको निरन्तर देख रहा है । आप उसे कुछ नहीं देते , पर वह हजार हाथों से आपको दे रहा है । फिर भी आपको सन्तोष नहीं , तो दोष किसका है ?

6. भगवान मेरे है , इस बात को दृढ़ता से पकड़ के रखो । भगवान हमेशा मेरे साथ है , इस बात को दृढ़ता से पकड़ के रखो ।

7. जिसकी इनसान की कोई चाह ही नहीं है, वह सब प्रकार से सुखी है । चाह और इच्छाएँ ही मनुष्य को सुख से दूर रखती है ।

ब्राह्मणों से द्वेष कभी भी न करें । और मुसीबत के समय " धीरज " एक सच्चा मित्र है , और ऐसे समय में हे मेरे राम करो कल्याण नित्य हजार बार बोले ।

8. आर्तभाव में कमी रहने से भगवान की प्रार्थना सफल नहीं होती । भगवन में ज्यादा तल्लीन हो जाने से , भक्त  के कर्म भी दिव्य हो जाते हैं ।

9. अपने से बड़ों पर अगर क्रोध आ जाये तो उनके तो उनको कभी भी पलट कर जवाब मत दो ।ऐसे समय में अपने गुस्से पर काबू करो। अगर हो सके गुस्सा बहुत ज्यादा आ रहा हो तो ठंडा पानी पिये। थोड़ी देर बाद गुस्सा शांत हो जाएगा और आप अनुभव करेंगे परमात्मा का शुक्र है ,बाबा आपने मुझे उस समय कड़वे वचन बोलने से रोक लिया क्योंकि बोले हुए वचन वापस नहीं हो सकते। कुछ देर गुस्से को शांत करके अपने आप को संभाल ले और अपने बड़ों की आत्मा कभी मत दुखी न करें।

10. साधक का उपास्य देव एक ही होना चाहिये। धन के लिये ही पाप होता है इसलिए इसे  ज्यादा संचय करने की कोशिश मत करो,
क्योंकि अगर आप की औलाद को आपका जमा किया हुआ धन आसानी से मिल जाएगा, फिर वह कभी भी कुछ करने की नहीं सोचेगा। ऐसा करके आप अपने बच्चों को खुद अपाहिज बना दोगे और वह गलत रास्ते पर जाने के लिए मजबूर हो जाएगा। इतिहास गवाह है हमारा ऐसे उदाहरण देखने को हमें बहुत सारे मिल जाएंगे जब बड़े बड़े राजा धन कमा कर चले गए और बाद में उनकी औलाद बिगडैल  ही निकली।

11. जहाँ दुश्मन बलवान होता है , वहा शान्ति और प्रेम से काम लेना   चाहिए ।

12. आशाओं को छोड़ देने वाला सुख से सोता है और  कोई दुखः बाकी नहीं रहता पर यह भी सत्य  सुख के बाद दुःख और सुख के बाद सुख जरूर जरुर आयेगा ही ।

13. अच्छे हो या बुरे हमारे द्वारा किये हुये कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है ।

14. बिना  कर्म किये बिना किसी प्रकार  फल की प्राप्ति नहीं हो सकती है।

15. मन में किसी वस्तु की चाह रखना ही दरिद्रता है ।

16. मारने वाले के तो 1 या 2 हाथ ही होते है मगर बचाने वाले के हजारों हाथ है ।

17. जग के सामने मत रोओ , रोना है ही तो एकान्त में अपने प्रभु के सामने रो लेना।

18. हानि , लाभ , जीवन भरण , यश अपयश सब है विधि के हाथ में इसलिए सब भगवान के लिये अपनी मनचाही पर छोड़ देना ही भगवान की सही शरणागति है ।

19.  नित्य एक परोपकार अवश्य करो , जैसे कि , दीन दुखियों की सहायता, आवरा कुतो को खाना, पक्षियों के दाना पानी की जरूर अवस्था करो।

20.  प्रत्येक रात सोने से पहले प्राय अवश्य सोचे , कि मैं कौन हूँ ? संसार में क्यों आया हूँ  और संसार से साथ में क्या लेकर जाऊँगा ।

21. आप के मन में भय है तो उस भय का एकमात्र कारण यह है कि आपका भगवान पर विश्वास नहीं है इसलिए  भगवान पर पूर्ण विश्वास करो उसी के ऊपर सब छोड़ दो,भगवान हमारी सर्वत्र रक्षा अवश्य ही करेगा ।

22. भूतकाल की चिंता मत करो भविष्य की चिंता मत करो , वर्तमान की चिंता मत करो - कार्य करते रहो उसके फल की चिंता मत करो - सारी चिंताऐं अपने
प्रभु ( नारायण ) पर छोड़ दो,  तुम्हारा बुरा होगा ही नहीं तुम्हारा किसी भी प्रकार का अनिष्ट होगा ही नहीं विश्वास के साथ करके देख लो परख लो।

23.  जो व्यक्ति दीन , दुखी , पीडित और गरीबों की सच्ची सेवा , नित्य प्रति करता है . प्रभु उसे सारे सुख दे देता है। मन में ऐसी धारणा रखो, जाको राखे साईया , मार सके न कोय बाल न बाको कर सके जो जग बैरी होय ।।

 24. दूसरा कोई किसी के दुख सुख में कारण नहीं होता । मनुष्य पूर्वजन्म व इस जन्म में अपने किये हुए कर्मों के कारण ही सुख - दुख का भागी होता है अर्थात् मनुष्य के जन्म - जन्मान्तर के अर्जित शुभाशुभ कर्म ( पुण्य पाप ) ही सुख - दुखः के कारण है ।

25. जीवन में  सुख भी अस्थायी है दुख भी अस्थायी ही है,  अतः सुख के बाद दुख और दुखः के बाद सुख आना निश्चित है जो टल नहीं सकता तो उसके लिए दुखी होना बेवकुफी ही है ।

26.प्रातः कालीन स्वप्न प्रायः करके सत्य होते हैं ।

27.सद्व्यवहार ही सब प्रकार की शत्रुता , द्वेष और हिंसावृत्ति का अन्त कर सकता है ।

28. ईर्ष्या का काम है जलाना , लेकिन सबसे पहले वह उसी को जलाती है , जिसके हृदय में उसका जन्म होता है । इर्ष्यालु व्यक्ति उन चीजों से आनन्द नहीं उठा पाता , जो उसके पास मौजूद है , बल्कि उन वस्तुओं से दुखः उठाता है, जो दूसरों के पास है । इसीलिए आज का मनुष्य अपने दुख से उतना दुखी नहीं है , जितना वह पराये सुख से है ।

29. जहाँ धर्म है ,वहीं जय है , विजय है , शान्ति है , सन्मति है , और शिष्टाचार भी धर्म का एक अंग है।

30. अपने दुखों के लिये किसी को भी दोष नहीं देना चाहिये । दुख या सुख दुसरा कोई नहीं देता है , यह तो सभी जीवों को अपने अपने बुरे या अच्छे कर्मों का फल ही दुख या सुख के रूप में प्राप्त होता है और प्राप्त होता ही रहेगा ।

31. एकमात्र परम पिता शिव  भगवान को हम सच्चे मन से प्रार्थना करें तो वह हमारे दुखों को सुखों में तुरंत बदल सकता है ।

32. हमारे  विचारों से ही हमारे  जीवन का निर्माण और उत्थान या पतन होता है।

33. सांसारिक कार्यो के बन जाने पर या बिगड़ जाने पर हर्ष या शोक मत करो।

34. जो लोग माता - पिता की सेवा नहीं करते , उनके जीवन को धिक्कार है ।

35.   काम करते समय भी भगवान का नाम जप करते रहना चाहिए कयोंकि ऐसा करने से हमारे अंदर एक नई ऊर्जा और गंदे विचार खत्म होते हैं इसलिए जितना भी हो सके कर्म करते समय भगवान का जाप चलता ही रहना चाहिए।


36. बड़ी से बड़ी असफलता पर भी निराश नहीं होना चाहिये, क्योंकि भगवान कभी किसी के बुरे में नहीं होता हो सकता है उसने आपके लिए कुछ और अच्छा सोच रखा हो।

37.मृत्यु को एकदम नजदीक समझकर परोपकार करते रहो । मृत्यु को एकदम नजदीक समझकर किसी का भी कुछ  छीनो मत ।

38. मृत्यु को एकदम नजदीक समझकर किसी के भी मन को दुखाओं मत यह गुप्त धन है ।

39. अगर  लक्ष्मी आई साथ में अहंकार भी आ गया तो अहंकार आया तो लक्ष्मी जी गई ।

40.  शिखा ( चोटी ) रखने से सभी देवता उस मनुष्य की रक्षा करते हैं और शिखा रखने से मनुष्य की नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है ।

41.  भगवान से सांसारिक वस्तुएँ या सुख मत मांगो सिर्फ मुक्ति मांगो । भगवान नारायण का भजन , मनन करो क्योंकि इस
सार मे नारायण से अधिक श्रेष्ठ दूसरी कोई औषधि नहीं है ।

42. कोमल स्वभाव  और मधुर वाणी मनुष्य के लिए भारी पूंजी है ।

43. एक अच्छी धनलक्ष्मी उन्ही की सहायता करती है जिनका निर्णय विशाल होता है ।। अनेक शिक्षकों के बराबर है ।

44. नम्रता तमाम सद्गुणों की सुदृद्ध नीव है । और  माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है ।

45. बडे कुल में जन्म लेने से कोई बड़ा  नहीं बन जाता । बड़ा बनता है प्राणी ऊंचे कर्मों से और संतो की संगत से पापी का मन भी गंगा के सामान  पवित्र हो जाते है।

46.   जिस प्रकार चंदन के वृक्ष पर साँप  लिपटे रहते है पर उनमें चंदन के सुगंध नहीं आती, क्योंकि उनमें विष भरा होता है। इसी प्रकार गंदे विचारों वाले इंसान के अंदर भी कई बार संतों के साथ रहकर भी नहीं सुधरते क्योंकि उनके अंदर की मैल साफ नहीं होती।

47. भयंकर काल हम सबके अन्दर ही है इसे बिना सद्गुरु और सत्संग के बिना इस ज्ञान को हम खुद नहीं जान सकते। इसलिए इंसान का किसी सद्गुरु और सत्संग में जाना बहुत जरूरी होता है।  तभी हम अच्छे गुणों को धारण कर सकते हैं। जिस प्रकार अगर किसी बच्चे के मां-बाप स्कूल में टीचर हैं वह अपने बच्चों को खुद घर वो सारी शिक्षा नही दे सकते जो एक स्कूल से मिलती है। उन्हें भी अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए स्कूल में दाखिल करवाना ही पड़ता है।

48.यह संसार दुखों का भंडार है। सुख शांति तो केवल प्रभु के ध्यान भजन में ही मिल सकती हैं। ये इंसान तो मोह माया की गठरी पीठ पर बांधे खड़ा है और पता भी है कि काल सामने खड़ा है, लेकिन  फिर भी जीवन की झूठी कलपना पर चल रहा है। हम तो सोचते थे हमारे पास जमीन है, संपत्ति है यह सब सोचना व्यर्थ सिद्ध हुआ ,काल हमें पकड़ कर ले ही जाएगा इसमें किसी भी प्रकार का शक नहीं है, क्योंकि यह सारा संसार स्वार्थी है। दुख में सब प्रभु को ही याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। इस बात की गांठ बांध ले कि प्रभु के बिना और किसी से हमारा यहां पर स्थाई रिश्ता नहीं है। प्रभु से ही एक ऐसा है जिससे कभी हमारा रिश्ता खत्म नहीं हो सकता।

49. हमें दुनिया के साथ ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा हम दुनिया से अपने लिये कुछ नही  चाहते कठिनाई रूपी अंधेरों की खाई को पार करना ही जीवन है ।

50. अहंकार चोटी पर बैठे मनुष्य को भी गहराइयों में धकेल देता है । जिस प्रकार स्वर्ण की पहचान आग से होती है , उसी प्रकार मनुष्य भी विपत्तियों में ही पहचाना जाता है ।

51. अज्ञानता मिटने पर मन सांसारिक विषयों से विमुख होकर अंतर्मुखी हो जाता है पर सच्ची श्रद्धा और विश्वास होने पर ही सद्गुरु का दर्शन - मिलाप होता है।


52. स्नान और नित्यकर्म किये बिना जल के सिवा कुछ भी खाना - पीना न करें ।
एकान्त में श्री नारायण प्रभु के सिवा किसी का चिन्तन मत करो ; क्योंकि व्यर्थ चिन्तन से बहुत हानि ही है इसलिये  हमें श्री नारायण प्रभु ने जो भी दे रखा है , उसको प्रभु की अहेतु की दया प्रेम और कृपा समझकर हर समय प्रसन्न ही रहना चाहिये ।

53. सोते समय सांसारिक संकल्पों के प्रवाह को भुलाकर भगवान के नाम , रूप , गुण , प्रभाव , चरित्र , और उनकी असीमित ताकत का चिन्तन करते हुए सोना चाहिये , जिससे शान्ति की नींद आयेगी , प्रभु पर आस्था भी बढ़ती जायेगी।

54. भगवान् की प्राप्ति के सिवा मन में किसी भी बात की इच्छा नहीं रखनी चाहिये क्योंकि कोई भी इच्छा रहेगी तो उसके लिये पुनर्जन्म धारण करना पड़ेगा ही । अतः काम वासना , इच्छा , तृष्णा आदि का तयाग कर देना चाहिये।

  55. श्री भगवान के भोग लगाकर ही भोजन जब तक भोग न लगाया जाय , तब तक रसोई घर में पूर्ण शुद्धता रखें कोई भी वस्तु झूठी न होने दें ।

56. मनुष्य को कभी आलस्य  नहीं करना चाहिये, निकम्मा रहने वाले पर , गंदी  सोच विचार, बुराईयां और हर प्रकार की कमजोरियां कब्जा कर लेती है ।
इसलिए जब तक सांसे चले तो इंसान को अगर मन के द्वारा भक्ति ना हो तो तन के द्वारा जरूर सेवा करते रहना चाहिए। यह भी भक्ति का एक मार्ग ही है रास्ता है।

अगर आप किसी की सेवा नहीं कर सकते तो फिर आप अपने मन के द्वारा भगवान को ध्यान लगाकर प्राप्त कर सकते हैं।

आज इस लेख में मैंने आपको  भगवत प्राप्ति के सरल उपाय बताये है । जिनको आप अपना कर अपना जीवन सफल कर सकते हैं।
ओम शांति




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