रेकी चिकित्सा कैसे करें || रेकी कया है || रेकी करने के लाभ ||how to reiki healing ||

Title- रेकी चिकित्सा कया है और कैसे करते है।
सबसे पहले तो यह जानना बहुत जरूरी है कि रेकी चिकित्सा है क्या? यदि आप भी ऐसा कोई प्रकृतिक चिकित्सा के बारे में जानना चाहते हैं तो आइए जानते हैं विस्तार से रेकी चिकित्सा क्या है और कब कैसे शुरू हुई है।
 रेकी क्या है -
रेकी चिकित्सा के बारे में हमारे शास्त्रों में यह पाया गया इसका अर्थवेद में इसका प्रमाण पाए गए हैं। यह शिक्षा गुरु  के द्वारा शिष्य को मौखिक रूप में विद्यमान रही लिखित में यह विद्या ना होने से धीरे-धीरे लोप होती चली गई। बहुत साल पहले बुध ने भी यह विद्या अपने शिष्यों को सिखाई थी। कयोंकि उस समय  लोग जंगलों में रहते थे और किसी आयुर्वेदाचार्य का ना मिलने पर अपना इलाज खुद कर सकते थे भगवान बुध की कमल सूत्र नामक किताब में भी इसका  वर्णन पाया जाता है। 
यह शिक्षा पहले तिब्बत और चीन से होती हुई जापान तक पहुंची है।
 
रेकी की खोज किसने की-
 जापान में इसे  खोजने का काम जापान के एक  डॉक्टर मिकाओ ऊसई
ने किया था।  ऐसा माना जाता है की यह चिकित्सा अदृश्य ऊर्जा को जीवन ऊर्जा में कहा जाता है। वह जीवन के प्राण शक्ति होती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि हमारे आसपास की और उसे मस्तिष्क द्वारा ऊर्जा को ग्रहण किया जा सकता है। जिससे रेकी शब्द रे का अर्थ है वैश्विक अर्थात सर्वव्यापी विभिन्न लोगों द्वारा किए गए शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है इस विधि को अध्यात्मिक चेतना या अलौकिक का ज्ञान भी कहा जाता है और इस प्रकार से अपने इलाज हम इस चिकित्सा  द्वारा बहुत सारी बीमारियों को खुद कर सकते हैं। 

रेकी  चिकित्सा के लाभ-
रेकी  करने से हम अपनी मानसिक बीमारियों को ठीक कर सकते हैं, दमा, कैंसर, अल्सर, पथरी ,बाबासीर ,अनिद्रा मोटापा, आंखों के रोग, स्त्री रोग आदि बीमारियों को दूर करने में रेकी चिकित्सा बहुत ज्यादा समर्थ है।
 रेकी क्या है ? 
  स्पर्श - चिकित्सा ' बनाम ' रेकी - चिकित्सा पद्धति के प्रणेता डॉ ० मिकाओ उसुई है और उनका ' रेकी ' शब्द जापानी है रे ' का अर्थ है ' ईश्वरीय - सृष्टि ( ब्रह्माण्ड ) और ' की ' का अर्थ है ' प्राण ऊर्जा ' ( जीवनी शक्ति ) माना जाता है। 

 रेकी स्रोत कहाँ ? - डॉ ० उसुई द्वारा प्रस्तुत ' रेकी ' अर्थात् ' ऊर्जा प्रवाह का ज्ञान मानव को सृष्टि के आदि में ही हो चुका था । महापुरुषों ने चाहे हृदय की एकाग्रता स्वयं अनुभव किया या अन्य से प्राप्त किया है । यह उसी ज्ञान की पुनरावृत्ति । यह ज्ञान भारत से तिब्बत - चीन होते हुए जापान पहुंचा और डॉ ० उसुई  ने भारत - तिब्बत - यात्रा और बौद्ध धर्म के साथ इस ज्ञान की दीक्षा ली । जापान तक की यात्रा में इस ज्ञान का लेवल बदल जाना स्वाभाविक है , पर इसकी मूल आत्मा यही है । 
उपचार प्रक्रिया - कैसे करें-
रेकी - ऊर्जा स्थूल एवं गृहम शरीर का सशक्त माध्यम ' साधना - चक्र - प्रणाली ' और ' सस - स्त्रावी प्रणाली तारतम्य बैठाकर ( पुन : संतुलन स्थापित कर ) शरीर के चक्र स्थूल शरीर की स्पी ग्रन्थियों के समीप ही हैं । यथा - सूक्ष्म शरीर में सहस्त्रार - चक्र के समीप पीनियल ग्रन्थि स्थित है । यही ज्ञाता - शेयका - आत्मा - परमात्मा का एकाकार होता है । आत्म - ज्ञान , विवेक - शक्ति के केन्द्र आज्ञाचक्र के समीप आत्मसंचलित नाही - तन्त्र , रस - स्त्रावी पिट्यूटरी ग्रन्थि स्थित है , इसी प्रकार थाइराइट ग्रन्थि , थाइमस ग्रन्थि , एड्रीनल आदि ग्रन्थियां भी अनाहतचक्र , मणिपूरचक्र , स्वाधिष्ठानचक्र के समीप स्थित हैं । रेकी ऊर्जा - उपचार में इन ऊर्जा केन्द्रों और चक्रों के संतुलन से शरीर के भावतरंगों में वृद्धि होने से शरीर की सभी प्रणालियों में संतुलन आ जाता है 
  साधक प्राणायामद्वारा मस्तिष्क के स्नायु - जाल ( मस्तिष्क से रक्त को निकाल और हृदय में शुद्ध रक्त अधिकाधिक भरने पर ) तथा मनोविकारों ( काम - क्रोध , लोम - मोह , मद - मात्सर्य , ईर्ष्या - द्वेष और घृणा - शोकादि ) को दबाकर जहां मानसिक समता स्थापन में समर्थ होता है , वहीं शरीर के अन्य स्नायुओं , ग्रन्थि - समूहों और मांसपेशियों को समृद्ध सशक्त एवं पुष्ट बनाता है श्वास लेते हुए भावना करे कि शुद्ध वायु के साथ हमारा शरीर सुन्दर , सशक्त , स्वस्थ एवं निरोग हो रहा है और श्वास छोड़ते समय ऐसी ही भावना करे कि शरीर के दूषित मल - विकार आदि श्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं ।
 रेकी चिकित्सा श्वास क्रिया स्वभाविक होने पर मन की स्थिरता हेतु दिव्य ऊर्जा के स्थूल  स्वरूप चिंतन और स्वाद लेते समय भावना करेंगे सूर्या जैसा स्वर्ण में प्रकाश प्रकाश में स्थिर है सारा आकाश प्रकाशमान है।  सांस छोड़ते समय भावना करें कि यह सुनहरा प्रकाश पुंज घूमता हुआ हमारे सिर पर धीरे-धीरे आ रहा है गहरी सांस की गति के साथ वह बैंगनी प्रकाश छोड़ते हुए सहस्त्रार चक्र के भीतर प्रवेश कर रहा है
आकाश में स्थिर है ।
 सारा आकाश प्रकाशमान है । श्वास छोड़ते समय भावना करे कि वह सुनहरा प्रकाशपुंज ( सुदर्शनचक्र की भांति ) घूमता हुआ पर धीरे - धीरे आ रहा है । गहरे श्वास की गति के साथ यह सहस्त्रार चक्र के भीतर प्रवेश कर रहा हुए बैगंनी प्रकाशन श्वास के साथ वह हमारे गहरे पीतवर्ण स्वाधिष्ठान नीवर्ण , विशुद्ध में हरित नील ( फिरोजी ) आभा , अनाहत में हरितर्ण , मणिपूर में धीरे - धीरे आगे बढ़ता हुआ क्रमशः ज्ञान - चक्र तक आते हुए निवर्ण तथा मूलाधार में रक्तवर्णी आलोक फैलाकर जागरूक चेतना प्रेम और समृद्धि प्रदान कर रहा है । 
 
रेकी - आवाहन कैसे करें-
अपने दोनों हाथों को पुष्पाजतिल अर्पण की मुद्रा में पसारते हुए स्वयं का ( अथवा अन्यका ) उपचार करने से पूर्व रेकी शक्ति का निम्न प्रकार से आवाहन करे- ' हे ईश्वरीय रेकी - शक्ति मैं ( अपना नाम उच्चारण कर ) श्री ( रोगी का नाम लेकर ) का उपचार करना चाहता हूँ कृपया अपनी दिव्य शक्ति का मेरे शरीर में संचार करें । यह तीन बार कहना है । 
इसके पश्चात् मार्गदर्शक गुरुका आवाहन करे - समस्त जाने - अनजाने रेकी मार्गदर्शक गुरुजनों मैं ( नाम ) रेकी - उपचार करने हेतु आपका आवाहन कर रहा हूँ ।आप उपचार में सहयोग करने की कृपा करें । ऊर्जा चक्रों का चैतन्या करण हथेलियों -  के मध्य गहराई में एक इसके और अंगुलियों के ऊपरी छोरों के नन्हे चक्र है । इन पर ध्यान देते हुए बारी - बारी से पहले एक हाथ की अंगुलियों के चक्रों को दूसरे हाथ की हथेली के चक्र में पड़ी की सूईयों के चलने की दिशा में प्रत्येक को सात - सात बार फिर दूसरी हथेली की अंगुलियों को तथा दोनों हथेलियों के चक्रको परस्पर इक्कीस - इक्कीस बार घुमाते हुए छोड़कर सेवन करे  अब दोनों हथेली आमने - सामने दो फीट की दूरी पर रख धीरे - धीरे इन्हें पास लाने का प्रयास करे । अब दोनी हथेली आमने - सामने दो फीट की दूरी पर रख धीरे - धीरे इन्हें पास लाने का प्रयास करे । ध्यान चक्रों पर ही केन्द्रित रहे । यदि हथेलियों में हल्की - सी कम्पन - झनझनाहट कसाव या तनाव आदि की संवदेनशीलता का आभास हो तो समझ ले , चक्र चेतन हो गये हैं और आगे उपचार की ओर बढ़े , अन्यथा इन्हें जाग्रत करने हेतु पुनः उक्त क्रिया दोहराये ।
स्पर्श - ऊर्जा-
 उपचार की चौबीस स्थितियां चक्रों ( हथेलियों के घेतन होने पर अनुभव करे कि दिव्य ऊर्जा शरीर में प्रवाहित हो रही है । अब अपनी हथेलियों से निम्न स्थितियों में कम - से - कम तीन से पांच मिनट तक स्पर्श दे पीडित अंगों पर पंद्रह से तीस मिनट ( उदर और तलुओं का शरीर के विभिन्न अंगों से घनिष्ठ सम्बन्ध है ।
 इस  उपचार के अन्त में अतिरिक्त ऊर्जा - स्पर्श देने से ये निरोगी और सशक्त होंगे । उपचार तथा रोगी ( दोनों ) की श्वसन क्रिया की लय समान होने पर उसकी पीड़ा एवं आराम की दशा का अनुभव उपचारकर्ता को होने लगता है । हथेली की अंगुली परस्पर मिली रहे , सामान्य स्थिति में बायीं हथेली बायें अंगों में और दायी को दायें अंगों में निम्न स्थितियों में निर्देशानुसार शरीर को स्पर्श दे यक्ष एवं प्रजनन अंगो का स्पर्श वर्जित है । तीन इंच ऊपर से ऊर्जा स्पर्श दे । एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाते समय शरीर से ऊर्जा सम्पर्क न टूटे । पहले एक हाथ उठाकर वह जब दूसरी स्थिति पर पहुंच जाये तब दूसरा हाथ उठाये । 

स्पर्श - चिकित्सा की चौबीस स्थितियां इस प्रकार है- 
( 1 ) दोनों हथेलियां दोनों आंखों पर , ( 2 ) कानों पर ( 3 ) जबड़ों पर , ( 4 ) कनपटियों पर ( 5 ) मस्तिष्क पर ( पीछे ) दोनों एक साथ , ( 6 ) बायीं हथेली पांचवी स्थिति में ही दायें मस्तकपर , ( 7 ) बायीं हथेली गर्दन के पीछे दायीं आगे गले पर ( 8 ) बायी गले से नीचे वक्ष पर दायीं बायीं हथेली के नीचे , ( 9 ) बायीं नामि से ऊपर तथा दायीं नामियर , ( 10 ) बायीं दायीं हथेली के नीचे पेडू पर दायीं उसके नीचे , ( 11 ) फेफड़ों पर , ( 12 ) बायीं प्लीहा- हृदयपर , दायीं यकृत् पर , ( 13 ) बायीं छोटी आंत पर , दायीं बड़ी आंत पर , ( 14 ) दोनों हथेलियां नामि से नीचे मूत्राशय , डिम्बग्रन्थि ,  अण्डकोशपर , ( 15 ) दोनों कन्धों पर , ( 16 ) पीछे गुर्दों पर . ( 17 ) गुर्दों के नीचे पीठ पर , ( 18 ) रीढ़ के अन्तिम छोर पर दोनों साथ - साथ ( 19 ) बायी हथेली दायीं भुजा पर , दायीं हथेली बायीं भुजापर ( आलिंगन मुद्रा में ) . ( 20 ) जंघाओं पर घुटनों पर , ( 22 ) पिण्डलियों पर ( 23 ) नो पर और ( 24 ) तलुओ घरा 
( 10 ) तदनन्तर पीडित अभी - उदर और तलुओं पर अतिरिक्त स्पर्श देना है । तोदे , अन्यथा रेकी - उपचार पूरा हुआ । अब रेकी - मार्गदर्शक गुरुओं एवं रोगी का आभार व्यक्तकर सम्बन्ध तोड़ ले गया ( 11 ) हे दिव्य रेकी - शक्ति आपका एवं करने हेतु ( नाम ) आपका आभारी हूँ एवं श्री ( रोगी का नाम समस्त जाने - अनजाने मार्गदर्शक रेकी गुरुओं का इस अब आप सभी से मैं अपना सम्बन्ध विच्छेद करता हूँ . करता है , अपने उपचार का दायित्य मुझे सौंपा था , उसके लिये आभार व्यक्त करता हूँ । ( 12 ) इसके उपरान्त उपर्युक्त विधि से हाथ शुद्धकर शुद्ध पीये एवं रोगी को पिलाये ( 13 ) रेकी से कई अलौकिक दृश्य दिव्य आवाजें सुनाई देती है तथा पूर्व जन्मों कऊभी बोध होता है । ( 14 ) रेकी सीख कर हर व्यक्ति अपना इलाज भी कर सकता है तथा आध्यात्मिक विकास भी । ( 15 ) रेकी के सदुपयोग से जल स्वय नजर आते हैं । आत्मिक उन्नति होती है । दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है तथा आतंरिक ज्ञान भी बढ़ाता है । ईश्वरीय अश विकसित होता है । ( 16 ) रेकी इच्छा शक्ति में वृद्धि करती है तथा अन्दरूनी घुटन को खत्म करती है । रेकी से नकारात्मक भावनाएं क्रोध , राग , द्वेष , घृणा , गलत धारणाए धीरे - धीरे कम होती है तथा मनुष्य का स्वभाव मधुर , प्रेममय व दयालु बनता है नैतिक साहस , आत्म विश्वास , स्थिरता , आन्तरिक शान्ति भी रेकी से संभव है । रेकी से मनुष्य अपनी भावनाओं की पूरी तरह अभिव्यक्ति कर पाने में सक्षम हो जाता है । ( 17 ) बीमारियो का इलाज दिमागी तनाव को दूर करने के लिए रेकी सफल एवं सुरक्षित तरीका है । रेकी सेशूगर , रक्त चाप , हृदय रोग , डिप्रेशन , सिरदर्द , मिर्गी , सरवाइकल , पीठ दर्द , अस्थमा , गठिया , गुर्दे , माहवारी , कैंसर की प्रारम्भिक अवस्था आदि बीमारियों का बिना दवाई इलाज सम्भव है । ( 18 ) रेकी घरेलू एवं व्यावसासिक संबंधों में भी मधुरता लाती है । स्मरण शक्ति में वृद्धि करती है । व्यापारिक समस्याओं का भी समाधान रेकी के माध्यम से किया जा सकता है । अगर किसी मरीज का कोई डाक्टरी इलाज चल रहा तो रेकी पद्धति से इस इलाज को सफल व बेहतर बनाया जाता है । इलाज के नकारात्मक प्रभाव रेकी से खत्म किए जाते हैं । 

रेकी करने के लाभ-
रेकी हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा एक ऐसी प्रक्रिया बताई गई है जो एक विशेष प्रकार की ऊर्जा को व्यक्ति के शरीर में संचारित किया जाता है ।जो उसे ठीक होने की क्षमता को बढ़ा देती है इस ऊर्जा को हम हिंदी भाषा में प्राण भी कहा जाता है। यह जीवन शक्ति की उर्जा होती है और कुछ लोग मानते हैं कि यह हमारे चारों तरफ मौजूद है। यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके अनेक लाभ हैं, जैसे शरीर को शांत करना, शरीर के प्राकृतिक रूप से ठीक होने की क्षमता को मजबूत करना और शरीर में भावनात्मक मानसिक व आध्यात्मिक शक्ति को विकास करना आदि।
 यह भी माना जाता है कि रेकी प्रक्रिया व्यक्ति को गहराई से शांत करती हैं जो लोग अपनी परेशानियों से जूझ रहे हैं या तनाव बहुत ज्यादा झेल रहे हैं उनके लिए यह चिकित्सा  बहुत ज्यादा मदद करती है। रेकी हीलिंग से व्यक्ति का भावनात्मक तनाव कम हो जाता है और सेहत में भी सुधार होता हैं। जो लोग इस क्रिया को अपनाते हैं अक्सर खुद कहते हैं कि उन्हें तुरंत शांति मिल जाती है। शारीरिक व मानसिक कुछ ऐसी समस्या  हैं जिनका इस प्रक्रिया से इलाज संभव है और हम इसे करके लाभ उठा सकते हैं।
 अगर संभव हो तो रेकी चिकित्सा को किसी अनुभवी हाथों से करवाने में ज्यादा मददगार साबित होती है

स्पर्श चिकित्सा-
 इसी प्रकार हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा कई तरह की पृकृति चिकित्सा  को अपनाया गया है और उनसे बीमारियों को ठीक किया गया है हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा दी गई यह एक ऐसी अनमोल धरोहर है, जो हमें प्राचीन ग्रंथों में प्राकृतिक उपचार के लिए सूर्य चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा, अग्नि चिकित्सा ,जल चिकित्सा और वायु चिकित्सा का भी उल्लेख मिलता है।
 इसी प्रकार रेकी चिकित्सा है। इसको करके हम अपने शरीर को स्वस्थ और बहुत सारे लाभ उठा सकते हैं क्योंकि हमारे शरीर के चारों तरफ एक ऊर्जा का स्रोत बना हुआ है जिसे हम आध्यात्मिक औरा भी कहते हैं ध्यान और योग साधना से हम अपने अध्यात्मिक औरा को बढा सकते हैं और अपने बीमारियों को खुद घर बैठे ठीक कर सकते हैं।

Disclaimer-
आज हमने आपको रेकी चिकित्सा  के बारे में बताया है यह चिकित्सा हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा बताई गई है इसमें हमारा खुद का कोई योगदान नहीं है। 

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