मन की शांति के लिए क्या करें || शान्ति के लिए उपाय || तनाव को कम कैसे करे || meditation power |

Tittle- मन की शांति के लिए क्या करें 
मन की शांति के लिए प्राप्त करने के लिए क्या करें और क्या ना करें।
 आज हर कोई इसकी तलाश में है। जीवन की इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में इन्सान  हर समय तनाव और दुःखी रहता है, क्योंकि हम सब बहुत सारा धन दौलत कमा कर भी शांति से नहीं जी सकते । 
ऐसे में हमें क्या करना चाहिए ?
 क्योंकि शांति इंसान ऐसी जरूरत है जो हमें पैसों से नहीं मिल सकती ,बल्कि हमें खुद के अंदर पैदा करनी पड़ती है। तभी जाकर हमें शांति मिल सकती हैं।

 आज हम आपको कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं । जिनको अपनाकर आप भी अपने जीवन में शांति और तनाव के बिना रह सकते हैं। क्योंकि इंसान की इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती। इच्छाएं  एक मात्र ऐसी तृष्ण है जो पूरी नहीं होती। जिसके कारण इंसान भागदौड़ में लगा रहता है और अपने जीवन को शांति से नहीं जी सकता। 
*टेंशन को कैसे खत्म करे-
आज के समय में 100 में से 90 आदमी यह प्रश्न करते हैं कि मुझे हर समय टेनशन रहता है । मेरे मन को शान्ति कैसे मिले ? शान्ति प्राप्त करने के लिए हमने बहुत सारे उपाय भी किए मगर शान्ति नहीं मिली । 
मैं क्या करूं ? 
 मन को शान्ति मिलने का श्रद्धेय स्वामी रामसुखदासजी ने एक बहुत ही सीधा - साधा और छोटा सा मंत्र बतलाया है कि मन से चीजों, लोगों,  इच्छाओं और कोई क्या कहता है, यह सब निकाल दो। 
यह एक  शान्ति को पाने का सबसे उत्तम उपाय है।  जब तक मे हम चीजो को प्राप्त करने की इच्छा रखते है तब तक शान्ति मिल ही नहीं सकती। चाहे जितनी भी कोशिश कर लो।

जब तक  यह मेरी है , यह मेरी है . यह चीज खराब न हो जाये, तो ये तृष्णा  खत्म नही होती चाहे कोई भी उपाय कर लो पर फिर मन को शांति नही मिलती है। 
 मन से जब सारी चीजो , कामना, इच्छाएं  , चाहना ही निकाल दी  गई तो साथ - साथ अशान्ति का कारण चला गया और शान्ति मिल ही जायेगी  ।
* औम की साधना करें  -
 " ॐ " का पहले उच्च स्वर में थोड़ी देर , फिर मानसिक जप का शुरू कर दें मानसिक पुर्ण शान्ति अवश्य मिलेगी । 
ये फिर राम नाम का जप शुरू कर दें . सारा ध्यान राम में लगा दे , अभ्यास करते - करते मन को शान्ति अवश्य मिलेंगी। यह लोगों का अनुभव किया हुआ प्रयोग है। इसको करने के बाद ऐसा कोई भी नही है जो निराश  हुआ हो। जिसने भी राम नाम या  ओम शब्द को जपा हो और उसको शांति ना मिली हो, इसलिए अगर आपको भी शांति चाहिए तो इन दो शब्दों का उच्चारण करके देखिए आपके जीवन में शांति अवश्य ही आएगी।

 * इच्छाएं दुख का कारण-
मनुष्य चाहना करता रहता है और चाहना किसी कि भी कभी भी पुरी नही  होती और चाहना पूरी नहीं न होने पर मनुष्य का दुःखी होना भी स्वाभाविक  है। तो फिर सवाल यह उठता है कि  कि हम चाहना " क्यों करे ?

 चाहना करने का मतलब है देना, चाह को त्याग दें ,प्रभु ने जो भी हमें दिया है ज्यादा दिया है इसी में परमानंद मानें , उसी में मस्त रहना सीखें , कोई भी चाह न करें , तो शान्ति मन को अवश्य ही प्राप्त होगी ।

  हम यह भी सोचते हैं कि जो करोड़पति है , गाड़ी, बंगला, नौकर - चाकर, फैक्टरियां है ये सब बहुत  सुखी है।  उनके मन में शान्ति है।मगर यह सच नहीं है । उनके मन में बहुत ज्यादा अशान्ति है। ये लोग भी घोर अशान्त है। जो जितना ज्यादा धनी है उसके उतना ही ज्यादा अभाव है , वह ज्यादा गरीब है उसको सबसे ज्यादा अशान्ति है ।
 
जीवन की कडवी सच्चाई-
 सभी जानते हैं कि एक दिन सबने जाना है किसी को भी मालूम नहीं है कब जाना,मगर जाना अवश्य है,और यह 100 प्रतिशत सत्य है। हम एक छोटा सा तिल भी नही  ले जा सकेंगे तो फिर भी हमारी यह अन्तहीन चाह क्यों है ? किसके लिये है ? जीते जी आराम से खाने , पीने , पहनने की कोई कमी नहीं है , तो फिर इकट्ठा करने की घन में और धन जोड़ने की बेटों - पोतों के लिये एक झूठी चाहना कर करके हम क्यों अशान्ति को मोल ले रहे हैं , क्या हमें हमारे बेटे , पोतों पर विश्वास नहीं है कि वे अपने गुजारे के लिये कमा नहीं पायेंगे ?
 आंखें बन्द करके 15 मिनट सोचें आपको अपने आप सही जवाब मिल जायेगा कि हम भ्रमवश ही अपने आप ही शान्ति को खो रहे हैं । इसलिए  मन को शान्ति मिले।  इसका लिए साधारण सा उपाय है और वह भी आपके अपने हाथ में है अपनी इच्छाएं और मन को काबू में रख कर सब कुछ भगवान को समर्पण करे, जो कुछ भी हमें मिल रहा है उसमें संतुष्टि अपनाकर अपने मन की शांति की खोज करें। 
ऐसा करने से वह अवश्य मिलेगी। जब हम सब कुछ भगवान को समर्पित कर देंगे और जो भी समस्या आई है उसको यह सोच कर अपना लेंगे यह मेरे द्वारा की गई मेरे कर्मों के अनुसार ही मुझे मिल रही है,  क्योंकि कोई भी दुख हमारी जिंदगी में बिना वजह के नहीं आता। हमें जो कुछ भी दुख मिलते हैं उसके जिम्मेदार हम खुद होते हैं, कहीं ना कहीं हमने ऐसी कर्म किए होते हैं जिसकी वजह से वह दुख हमें प्राप्त होते हैं। जिस दिन आप इस बात को मान लेंगे फिर आपको कभी भी अशांति नहीं होगी । सिर्फ जिंदगी में शांति ही शांति होगी। इन बातों को एक बार अपना कर देखना आपको अवश्य ही शांति मिल जाएगी।

* माफी मांग लेने को शांति मिल जाती है:-
कई बार हम किसी बात को लेकर बहुत ही परेशान रहते तो ऐसे समय में हमें जिस भी व्यक्ति के साथ हमारी अनबन  है तो हमें माफी मांग लेनी चाहिए।  अपने मन की शांति के अति उत्तम है ।
दुनिया में ऐसे व्यक्ति को ढूंढना सचमुच बहुत ही कठिन है जिसने जीवन में कभी किसी भी प्रकार की कोई गलती ना की हो। अपनी गलती को मन से मान लेने में अक्सर लोग भी हिचकचाते हैं, कारण वह गलती स्वीकार करने का अर्थ स्वयं ही स्वयं के द्वारा अपमानित होना लगता है।
 कुछ अन्य लोग सवीकरना  तो दूर अपने गलत आचरण को भी सही सिद्ध करने में धन, पैसा ,ऐश्वर्या ,प्रतिष्ठा दांव पर लगाने में नहीं हिचकचाते। मगर इतना सब करने के बाद भी उन्हें वह सुख शांति शायद ही होती होगी जब अपनी भूल के लिए क्षमा के एक शब्द कह देने से होती है।
 तकलीफ को सहन करने के बाद ही किसी को महसूस होता है कि माफी मांगने से बढ़कर अधिक संतोष की कोई दूसरी बात नहीं हो सकती। हृदय से शांति मिलती है तब उसको सुख का आकाश कितना बड़ा हो जाता है यह तो कोई भुक्तभोगी ही जान समझ सकता है। माफी मांग लेने से टूटते हुए  सबंध फिर से केवल दूर ही नहीं जाते बल्कि पहले से ज्यादा और मधुर हो जाते हैं। हमें यह भी बात कभी भी अपने दिल में नहीं रखनी चाहिए कि भूल स्वीकार करने से हम छोटे या दिन नहीं हो जाएंगे या हमारे लिए अपमानजनक बात नहीं होगी। माफी तो वही मांग सकता है जो एवं महान हो, जिसका दिल समंदर की तरह विशाल हो। हमें ऐसा भी प्रतीत होता है कि सामने वाले की सरासर गलती थी उसे भी माफी मांगनी चाहिए। ऐसी परिस्थिति में समझदारी से फोन करके अथवा संदेश भेजकर और या फिर पत्र लिखकर अपनी बात पहुंचा देने से आपका रिश्तेदार या साथी समझदार और दूरदर्शी होगा तो अवश्य क्षमा याचना को स्वीकार कर लेगा ।
भूल पराया सभी से होती है किंतु भूल हो जाने प्रायश्चित  अवश्य किया जाना चाहिए। व्यक्ति की सबसे बड़ी गलती मानव मात्र के प्रति घृणा, जीवो के प्रति अत्याचार ,ईशवर  के प्रति अनास्था है। जो मानव जानकर भी प्रायश्चित  नहीं करता तो यही समझना चाहिए कि वह अपने और अपने परिवार को समाज को देश का अहित करता है और ऐसे में किसी को क्षमा करना, क्षमा देने से, सबसे जयादा  शांति मिलती है।  अगर आपसे कोई भी, किसी कारणवश गलती हुई हो या फिर कोई भूल हो जाए तो इसे स्वीकार करने और माफी मांगने से कभी भी संकोच ना करें, ऐसा करने से आपको अवश्य शांति ही शांति मिलेगी।

Last alfaaz- 
जीवन में जो कुछ भी कमाया, वह सब कुछ यहीं रह जाना है। साथ हमारे कुछ भी नहीं जाना है, इसलिए जितने दिन भी जिंदगी जी है उसको आराम से और तनाव रहित जीये, क्योंकि जीवन के सब सुख और दुख जीते जी हैं मरने के बाद केवल सुख ही सुख है। इसलिए जीते जी ना तो किसी का दिल दुखाए और ना ही अपने आपको दुखी करें।  जितना हो सके खुद भी खुश रहें और दूसरों को भी खुश रहने दे।
 स्वामी जी का यह नारा अवश्य फॉलो करें " जियो और जीने दो,,इसको मैं बेहद पसंद करती हूं। 
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Posted by kiran


 





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