रायसाहब अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानते थे कयोंकि उनके दोनो पुत्र आई.आई.टी. करने के बाद लगभग एक करोड़ रुपये का वेतन पर अमेरिका में नौकरी कर रहे थे। रायसाहब जब सेवा निवृत्त हुए तो उनकी इच्छा हुई कि उनका एक पुत्र भारत लौट आए और उनके साथ ही रहे परन्तु अमेरिका जाने के बाद कोई पुत्र भारत आने को तैयार नहीं हुआ, उल्टे उन्होंने रायसाहब को अमेरिका आकर बसने की सलाह दी। रायसाहब अपनी पत्नी राधा के साथ अमेरिका गये , परन्तु उनका मन वहाँ पर बिल्कुल नहीं लगा और वापिस भारत लौट आए।
दुर्भाग्य से रायसाहब की पत्नी को लकवा हो गया और पत्नी अपने पति की सेवा पर निर्भर हो गई। प्रात: नित्यकर्म से लेकर खिलाने–पिलाने, दवाई देने आदि का सम्पूर्ण कार्य रायसाहब के भरोसे पर था। पत्नी की जुबान भी लकवे के कारण चली गई थी। रायसाहब पूर्ण निष्ठा और स्नेह से पति धर्म का निर्वहन कर रहे थे।
एक रात्रि रायसाहब ने दवाई वगैरह देकर भावना को सुलाया और स्वयं भी पास लगे हुए पलंग पर सोने चले गए। रात्रि के लगभग दो बजे हार्ट अटैक से रायसाहब की मौत हो गई। पत्नी प्रात: 6 बजे जब जागी तो इन्तजार करने लगी कि पति आकर नित्य कर्म से निवृत्त होने मे उसकी मदद करेंगे। इन्तजार करते करते पत्नी को किसी अनिष्ट की आशंका हुई। चूँकि पत्नी स्वयं चलने में असमर्थ थी , उसने अपने आपको पलंग से नीचे गिराया और फिर घसीटते हुए अपने पति के पलंग के पास पहुँची। उसने पति को हिलाया–डुलाया पर कोई हलचल नहीं हुई। पत्नी समझ गई कि रायसाहब नहीं रहे। पत्नी की जुबान लकवे के कारण चली गई थी। अत: किसी को आवाज देकर बुलाना भी पत्नी के वश में नहीं था। घर पर और कोई सदस्य भी नहीं था। फोन बाहर ड्राइंग रूम मे लगा हुआ था। पत्नी ने पड़ोसी को सूचना देने के लिए घसीटते हुए फोन की तरफ बढ़ना शुरू किया। लगभग चार घण्टे की मशक्कत के बाद वह फोन तक पहुँची और उसने फोन के तार को खींचकर उसे नीचे गिराया। पड़ोसी के नंबर जैसे तैसे लगाये। पड़ौसी भला इंसान था, फोन पर कोई बोल नहीं रहा था, पर फोन आया था,
अत: वह समझ गया कि मामला गंभीर है। उसने आस–पड़ोस के लोगों को सूचना देकर इकट्ठा किया, दरवाजा तोड़कर सभी लोग घर में घुसे। उन्होने देखा -विश्वास साहब पलंग पर मृत पड़े थे और पत्नी राधिका टेलीफोन के पास मृत पड़ी थी। पहले पति और फिर पत्नि की मौत हुई। अर्थी दोनों का साथ–साथ निकली। पूरा मोहल्ला कंधा दे रहा था परन्तु दो कंधे मौजूद नहीं थे .
जिसकी माँ–बाप को उम्मीद थी। शायद वे कंधे करोड़ो रुपये की कमाई के भार के साथ बहुत सारी इच्छाओं से भरे हुए और पैसा कमाने के लिए पहले ही दबे हुए थे।
Moral of the story-----
लोग बाग लगाते हैं फल खाने के लिए और पेड़ लगाते छाया पाने के लिए इसी तरह इन्सान अपनी
औलाद को पालते हैं बुढापे में सुख और अंतिम समय में अपनी चिता को अग्नि देने के लिए
लेकिन बहुत ही कम भाग्यवान लोग है जो औलाद अपने अपने माँ - बाप का फर्ज निभा पाते हैं ।
बहुत सुन्दर कहा है किसी कवि ने....
"मत शिक्षा दो इन बच्चों को चांद- सितारे छूने की।
चांद- सितारे छूने वाले छूमंतर हो जाएंगे।
अगर दे सको, शिक्षा तो दो तुम इन्हें चरण छू लेने की,
जो मिट्टी से जुङे रहेंगे, रिश्ते वही निभाएंगे....और अन्त समय में आपके साथ रहेंगे ।
"मत शिक्षा दो इन बच्चों को चांद- सितारे छूने की।
चांद- सितारे छूने वाले छूमंतर हो जाएंगे।
अगर दे सको, शिक्षा तो दो तुम इन्हें चरण छू लेने की,
जो मिट्टी से जुङे रहेंगे, रिश्ते वही निभाएंगे....और अन्त समय में आपके साथ रहेंगे ।
Last alfaaz- ----
यह कहानी उन लोगों के लिए है एक संदेश है जिनके पास बच्चे होते हुए भी वो
बै औलाद लोगों की तरह जिंदगी जीते हैं । इस कहानी के द्वारा में हमें यह मैसेज मिलता है की धन दौलत चाहे कितना भी कमा लो पर अपने मां-बाप का सहारा अवश्य बनो, क्योंकि दुनिया में धन-दौलत आप कहीं भी और कभी भी कमा सकते हैं, पर आप धन से अपने मां-बाप को नहीं खरीद सकते हो।
धन्यवाद।
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