भगवान् से प्रार्थना कैसे करें || how to pray to God | पार्थना और धयान में अन्तर || धयान कैसे लगाये ||

Tittle -प्रार्थना और ध्यान कैसे करें और इन दोनों में अन्तर कया है- 
प्रार्थना और ध्यान दोनों ही आध्यात्मिक अभ्यासों हैं जो व्यक्ति को मानसिक शांति, आंतरिक संवेदना और आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति तक पहुंचाते हैं। हालांकि, इन दोनों के बीच थोड़ा ही अंतर होता है। 
आज हम इसके बारे में आपको जितना हो सके बताने की कोशिश करेंगे

प्रार्थना कया है : -
प्रार्थना भगवान, देवता, ईश्वर या उच्चतम वस्तु के प्रति आदर और श्रद्धा का अभिव्यक्ति है। यह एक संवेदनशील, भावनात्मक और आद्यात्मिक अभियान है जो व्यक्ति को ऊँचाईयों तक पहुंचने में सहायता करता है। प्रार्थना करने का उद्देश्य अपने मन, आत्मा और ब्रह्मा के साथ तालमेल बनाना होता है। इसके द्वारा व्यक्ति अपनी आशाओं, चिंताओं, आत्मसंयम और धर्म को साझा करता है और अन्यों के लिए करुणा और प्रेम की प्रकटि करता है। प्रार्थना शब्दों, मन्त्रों, भजन, उपासना, ध्यान और स्तोत्रों के माध्यम से की जा सकती है।
प्रार्थना किसी विशेष देवी या देवता के स्वरूप को सामने रखकर की जाती है। प्रार्थना करते समय हम अपने मन की बात जीभ के द्वारा और मंत्रों से भगवान तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं। ज्यादातर हम प्रार्थना करते समय अपने मन की बात भगवान को बोलते हैं और अपनी इच्छा पूरी करने के लिए उसके आगे नतमस्तक होते हैं।


ध्यान कया है-
ध्यान के दौरान, व्यक्ति एक विशेष ध्येय या वस्तु पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे कि दिपक, मंत्र, ईश्वर, या अपनी अंतर्दृष्टि आदि। यह एक अभ्यास है जिसमें व्यक्ति नियमित रूप से ध्यान करता है और ध्यान की तकनीकों का पालन करता है। ध्यान के द्वारा, मन की चंचलता और विचारों की अवांछना कम होती है और मन का स्थिरता, शांति और गहराई में पहुंच होती है। यह आंतरिक संवेदना, आत्मज्ञान और मौन ज्ञान की अनुभूति को संभव बनाता है। ध्यान विभिन्न आध्यात्मिक पथों,और ससथांऔ के द्वारा अलग-अलग तरीके से सिखाया जाता है क्योंकि सब का तरीका सिखाने का अलग होता है सबसे अहम बात है अपनी सांसो पर नियंत्रण करना। जिसको अपनी सांसो पर नियंत्रण करना आ गया उसको ध्यान लगाना बहुत आसानी से आ जाता है।


पार्थना करने के लिए सबसे सरल विधि-
पार्थना कैसे करें -
पार्थना करने के लिए आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:
• शांति और स्थिरता की स्थापना करें: पार्थना करने से पहले, अपने आस-पास के माहौल में शांति और स्थिरता की स्थापना करें। आप एक मन्दिर  या कमरे में बैठकर या किसी शांत स्थान पर बैठकर इसकी व्यापकता बढ़ा सकते हैं। 

• आवाहन करें:-
 पार्थना करने से पहले आप देवताओं, ईश्वर, या जिस भी ऊँचाई को आप प्रार्थना करना चाहते हैं, को आवाहन कर सकते हैं। इसके लिए आप मन में आवाहन करें या उच्चारण के माध्यम से यह कहें। आवाहन करते समय आप विश्वास और समर्पण के साथ भावनाओं का उच्चारण करें।

• पाठ करें:-
 आप अपनी पार्थना के दौरान मंत्र, श्लोक, या एक स्पष्ट मानसिक दृष्टि के साथ अपनी बातें कर सकते हैं। आप अपनी भावनाओं, इच्छाओं, और मांगों को स्पष्ट कर सकते हैं। ध्यान दें कि पाठ करते समय आपका मन और आत्मा पूर्णतः समर्पित होना चाहिए।
• आभार व्यक्त करें: पार्थना के बाद  भगवान् का धन्यवाद करे। 

धयान कैसे लगाये और कब लगाये-
 
• शांति और स्थिरता की स्थापना करें: ध्यान करने से पहले शांति और स्थिरता की स्थापना करें। आप किसी शांत स्थान पर बैठकर, ध्यान वाला गीत सुनकर, योग करके इसकी व्यापकता बढ़ा सकते हैं।

• श्वास को ध्यान करें: शांति और स्थिरता की स्थापना के बाद, अपने श्वास को ध्यान करें। अपने श्वास को गहराई से लें और उसे समय-समय पर संयमित करें। यह ध्यान करने में मदद करेगा।

मन को खाली करें:
 अपने मन को खाली करें और विचारों को स्थिर रखें। अगर आप विचारों का नियंत्रण करने में कठिनाई महसूस करते हैं, तो एक मंत्र जैसे "ओम" के उच्चारण से भी मदद मिल सकती है।

• ध्यान करें: ध्यान को शुरू करें और उसे नियंत्रित करें। आप श्वास को ध्यान देते हुए, विचारों को नजरअंदाज करते हुए, ध्यान फोकस कर सकते हैं। ध्यान करते समय, अपने मन को अन्य विचारों से दूर रखें। यदि आप फिर भी विचलित होते हो तो अपने मन को छोटे बच्चे की तरह कंट्रोल करने की विधि को जरूर अपनाएं यह बहुत कारगर साबित होती है। जिस प्रकार छोटा बच्चा पढ़ने के लिए आसानी से नहीं बैठता उसी प्रकार हमारा मन भी आसानी से कंट्रोल नहीं होता उसको वापिस अपने ध्यान पर लेकर आना पड़ता है।


पार्थना करने के लाभ-

मानसिक शांति: 
पार्थना करने से मन और आत्मा को शांति और स्थिरता मिलती है। यह मानसिक चंचलता को कम करने और मन को स्थिर करने में मदद करता है।

स्वस्थता लाभ: 
पार्थना करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह तनाव को कम करता है, मन की सुस्थिति में सुधार करता है, और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को दूर करने में मदद करता है।

• सकारात्मकता और आत्मविश्वास: पार्थना करने से आपकी सकारात्मकता बढ़ती है और आपका आत्मविश्वास मजबूत होता है। यह आपको संघर्षों के साथ सामर्थ्यपूर्ण रूप से सामना करने में मदद करता है।

• आध्यात्मिक विकास: पार्थना आपके आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करती है। यह आपको अपने अंतर्मन के साथ जुड़ने और ऊँचाईयों की ओर बढ़ने में मदद करती है।

पार्थना करते समय सावधानी बरताने की कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं:

• नियमितता: पार्थना को नियमित रूप से करना चाहिए।  
पार्थना करते समय कुछ सावधानियां आपकी मदद कर सकती हैं। यहां कुछ सामान्य सावधानियां दी गई हैं:

• ध्यान दें कि आपका मन और शरीर स्थिर रहें। एक शांत और शांतिपूर्वक वातावरण चुनें जहां आप पार्थना कर सकें।

• अपने शरीर की स्थिति का ध्यान रखें। ठीक से बैठें या खड़े हों और अपने शरीर को समर्पित करें।

• अपने मन को शांत करें और अन्य चिन्ताओं को दूर करें। यदि आपका मन विचरण करता है, तो स्नान, मन्त्र जाप, योग या मेडिटेशन करके शांति प्राप्त करें।

• पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पार्थना करें। इसका मतलब है कि आपको विश्वास होना चाहिए कि आपकी पार्थना सुनी जाएगी।

• आपकी पार्थना में अपनी आत्मा को व्यक्त करें। अपनी मनोकामनाएं, भ्रांतियाँ, दुःख, संताप या आपत्ति को भगवान के समक्ष रखें और अपने मन को उनकी इच्छा के अनुसार बदलें।

• अपनी पार्थना में दूसरों की सुख की मांग भी करें किसी के  दुख की कामना न करें । समाज के लोगों, परिवार के लोगों के लिए जो आपको हर काम में सहयोग देते हैं उसके लिए भगवान का धन्यवाद करें कि आपने मुझे ऐसी जगह पर जन्म दिया है जहां पर मुझे इतना अच्छा परिवार और दोस्त मिले हैं।



पार्थना के लिए  सामग्री -
पार्थना करने के लिए विशेष सामग्री  कया होनी चाहिए- 

• स्थिर और शांतिपूर्ण माहौल: ध्यान देने योग्य और शांतिपूर्ण एक मंदिर या धार्मिक स्थान चुनें जहां आप पार्थना करने के लिए बाध्य नहीं होंगे।

• पूजा सामग्री: आपकी पार्थना के लिए आपको पूजा सामग्री की आवश्यकता हो सकती है जैसे कि माला, दीपक, धूप, कपड़े, फूल आदि। आप अपनी आवश्यकतानुसार इन सामग्रियों को तैयार रख सकते हैं।

•  मन्तर या पाठ की पुस्तक: 
आपको एक पाठ की पुस्तक चाहिए जिसमें आपकी प्रार्थना या मंत्रों की सामग्री होती है। यदि आपको ऐसी पुस्तक नहीं है, तो आप इंटरनेट से उच्चारण या पाठ की सामग्री ढूंढ सकते हैं।

पुजा  का समय:------ 
एक निरंतर और नियमित समय चुनें जब आप पार्थना कर सकते हैं और शांति और ध्यान के लिए अपना समय निकाल सकते हैं।

• निश्चित संकल्प ले: 
पार्थना के पहले, अपने मन में संकल्प लें कि आप किसी विशेष मांग या उद्देश्य के लिए इस मंत्र जाप को कर रहे हैं यह जो पहले दिन आप पूजा शुरू करें तो सुन अपना नाम गोत्र और समय स्थान बताकर संकल्प जरूर ले ।

धयान लगाने के लाभ -
, पार्थना और ध्यान दोनों को एक साथ किया जा सकता है। इन दोनों का अभ्यास एक संयोगी प्रक्रिया हो सकता है जिससे आपको मानसिक शांति और आंतरिक संयम प्राप्त हो सकता है।
 प्रार्थना करना एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिसमें आप ईश्वर, देवता, या अपने आंतरिक दिव्यत्व की ओर भक्ति और संवाद करते हैं। इसमें आप भगवान की स्तुति, शुक्रिया, मांग, और संवाद कर सकते हैं। पार्थना मन को शुद्ध, स्थिर, और ईश्वरीय आंतरिकता के संपर्क में लाने में मदद करती है।

वहीं, ध्यान या मेडिटेशन एक मानसिक अभ्यास है जिसमें आप मन की चंचलता को शांत करके एकाग्रता और निर्मलता की स्थिति में पहुंचने का प्रयास करते हैं। यह आपको मन के विभिन्न विचारों और अनुभवों को पछन्द नहीं करने की अभ्यास करता है और आपको आंतरिक शांति, स्वस्थ मानसिकता, और उन्नति की स्थिति में ले जाता है।

ज्यादातर मेडिटेशन तकनीकों में, आप एक ध्येय या मंत्र का जप करके एकाग्रता  को बढाना सिखाया जाता है। 

 पुजा करने का सही समय -
पूजा करने का सही समय धार्मिक आदर्शों, परंपराओं और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। हालांकि, धर्म और संप्रदाय के अनुसार, कुछ प्राथमिक समय और अवसर निर्धारित किए जाते हैं। जब पूजा का आयोजन करना अधिक शुभ माना जाता है। नीचे दिए गए कुछ सामान्य अवधियां देश-विदेश में प्रचलित हैं:

• प्रातःकाल (सुबह): प्रातःकाल को पूजा करने के लिए एक शुभ समय माना जाता है। इस समय को सूर्योदय के आसपास जाना जाता है। बहुत सारे लोग सूर्योदय के करीब पूजा करते हैं, यहां तक कि कुछ मंदिर इस समय में खुलते हैं।

• मध्याह्न (दोपहर): मध्याह्न को भी पूजा करने के लिए अच्छा समय माना जाता है। इस समय को दिन के मध्य के लगभग 12 बजे के आसपास माना जाता है। यह समय की शक्ति का एक शुभ समय माना जाता है।

• सायंकाल (शाम): सायंकाल भी पूजा के लिए आदर्श समय माना जाता है। इस समय को सूर्यास्त के आसपास और सूर्यास्त के बाद के बाद पूजा की जा सकती है जान रहे शाम के पुजा  12:00 बजे से पहले पहले हो जाना चाहिए।  

धयान लगाने का समय- 
ध्यान लगाने का समय व्यक्तिगत प्राथमिकताओं और आदर्शों पर निर्भर करता है। ध्यान को नियमित और निर्धारित समय पर अभ्यास करना उपयुक्त होता है, ताकि आप उसे अपनी दैनिक जीवनशैली में स्थापित कर सकें। हालांकि, ध्यान करने का सबसे महत्वपूर्ण तत्व नियमितता है।

ध्यान का सबसे सुगम समय सुबह के समय होता है, जब मन ताजगी और शांति की अवस्था में होता है। सुबह के समय ध्यान करने से आपका दिन प्रारंभ शांत, स्थिर और सकारात्मक भावना के साथ शुरू होता है। इसके अलावा, शाम का समय भी ध्यान करने के लिए अच्छा होता है, जब दिनभर की थकान कम होती है और आप अपने मन को स्थिर और ध्यान में लाने में सक्षम होते हैं।

आप अपने व्यक्तिगत रुचि और समय के अनुसार ध्यान करने का समय चुन सकते हैं। कुछ लोग अपने दिन की शुरुआत और अंत में ध्यान करना पसंद करते हैं, जबकि अन्य लोग दिन के बीच के समय में छोटे ध्यान सत्र रखते हैं। 

ध्यान लगाने के लिए विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है-
 लेकिन कुछ उपकरण और माध्यम आपको ध्यान अभ्यास में सहायता कर सकते हैं। ये सामग्री आपके अभ्यास को सुगम और उपयोगी बना सकती हैं।

• आसन: एक सुगम और स्थिर आसन चुनें, जैसे कि पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन या सुखासन। ये आसन शारीरिक स्थिरता और मानसिक चंचलता को कम करने में मदद करते हैं।

• माला: जप माला या माला का उपयोग करके मंत्र या ध्यान धारणा के दौरान मन की एकाग्रता को बनाए रखें। माला के साथ जप करने से मन का विचार अविरत रहता है और ध्यान अभ्यास में सहायता मिलती है।

• ध्यान संगीत: संगीत ध्यान अभ्यास को आसान और प्रभावी बनाने में मदद कर सकता है। आप ध्यान के दौरान शांतिपूर्ण संगीत का उपयोग कर सकते हैं, जैसे कि आर्ट ऑफ़ लिविंग, इंस्ट्रुमेंटल ध्यान संगीत, या मंत्रों की रिचा ध्यान संगीत।

पार्थना और ध्यान दोनों ही आध्यात्मिक अभ्यास हैं, जिनसे हम अपने मन को शांत और स्थिर रखते हुए अपने जीवन के मुश्किल पहलुओं से निपटने की क्षमता प्राप्त कर सकते हैं।
ध्यान करने से मन की चंचलता कम होती है और वह स्थिर हो जाता है। यह शांति और स्वस्थ मन के लिए बहुत उपयोगी होता है। ध्यान के माध्यम से हम अपने जीवन के लक्ष्यों और महत्वपूर्ण फैसलों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जो हमारी जिंदगी में वास्तव में महत्वपूर्ण हैं।

अन्य तरह से, प्रार्थना एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिसे हम ईश्वर के साथ अपनी अनुभूतियों और भावनाओं को साझा करने के लिए करते हैं। इस अभ्यास से हम अपने आत्मा को संबोधित करते हैं और सभी जीवन के आधार पर ईश्वर से संबंधित संदेश प्राप्त करते हैं। प्रार्थना के माध्यम से हम अपनी अनुभूतियों, भावनाओं, आशाओं और इच्छाओं को साझा करते हैं और इन चीजों के लिए ईश्वर से शक्ति और सहायता माँगते हैं।

पार्थना और ध्यान का निष्कर्ष -
पार्थना और ध्यान दोनों ही मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास हैं जो हमें मानसिक शांति, स्थिरता और सुख की प्राप्ति में मदद करते हैं।

पार्थना (प्रार्थना) हमें ईश्वर के साथ संवाद करने का माध्यम प्रदान करती है। हम अपनी आशाओं, चिंताओं, धन्यवाद, और मन की बातें ईश्वर के सामर्थ्य, करुणा और सहायता के लिए प्रस्तुत करते हैं। इसके माध्यम से हम अपनी आत्मा को संबोधित करते हैं और अपने आप को समर्पित करके आंतरिक शांति प्राप्त करते हैं।

ध्यान हमें मानसिक स्थिरता और अवस्था में स्थान प्रदान करता है। इसके माध्यम से हम अपने मन को नियंत्रित करते हैं, चिंताओं और अवरोधक विचारों को दूर करते हैं और मन को एकाग्रता, स्थिरता और प्रसन्नता की अवस्था में ला सकते हैं। यह हमें अपने आंतरिक स्वरूप के साथ संवाद करने, शांति, स्वस्थ मनस्थिति और समृद्धि की प्राप्ति में सहायता करता है।

पार्थना और ध्यान द्वारा हम अपने आंतरिक स्वरूप की पहचान करते हैं, शांति और
स्थिरता को अनुभव कर सकते। 
 जब किसी व्यक्ति को पूरी तरह से ध्यान लगाने की विधि में सक्षम हो जाता है वह जीवन में किसी भी प्रकार की परिस्थिति आ जाए तो फिर उसको कोई भी परिस्थिति हिला नहीं सकती। वह अपनी हर परिस्थिति में खुद को मजबूत और संभाल सकता है।   प्रार्थना और ध्यान दोनों ही भगवान की ऐसी शक्तियां हैं जिनको अपनाकर हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।  जिंदगी पानी की तरह है जो निरंतर बढ़ती जा रही है तो हमें अगर कुछ सीखना है तो इसी जीवन में रहते हुए सीखना होगा वरना एक दिन जब यह हवा निकल जाएगी तो फिर सीखने के लिए हमारे पास समय नहीं बचेगा धन्यवाद।

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