शिव कौन है || शंकर भगवान कौन है || शिव और शंकर में अन्तर कया है || how to deference Shiva and shanker bhagwan ||

Tittle-शिव और शंकर में क्या अंतर है-  हमारे हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा हर मंदिर में की जाती है लोग इसे शिव और शंकर को दोनों को एक ही रूप  मानते हैं
शंकर और शिव दोनों ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण देवताओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, लेकिन उनमें कुछ अंतर है। इसे समझने के लिए हमें पहले इन दोनों शब्दों के अर्थ को समझना चाहिए:
 
शंकर भगवान कौन है और कैैसे है- 
• शंकर: "शंकर" एक अद्वैत वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त को प्रतिष्ठित करने वाले देवता के रूप में प्रस्तुत होते हैं। वे सृष्टि, स्थिति और संहार के लिए जाने जाते हैं और उन्हें ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वर भी कहा जाता है। शंकर द्वारा प्रतिष्ठित एक बहुत अधिक शक्तिशाली और निराकार सत्ता के रूप में प्रस्तुत किया जाता हैं।
•  शंकर को आदिदेव, निराकार ब्रह्मा, भगवान शिव और महादेव भी कहा जाता है।

शिव का सवरूप कया है-
•  "शिव" एक मुख्य हिंदू देवता हैं, जिन्हें प्रशस्त सनातन धर्म की त्रिमूर्ति में से एक माना जाता है। शिव को सृष्टि, स्थिति और संहार का संचालक माना जाता हैं। उन्हें ब्रह्मा और विष्णु के साथ त्रिदेव के रूप में भी जाना जाता हैं।

शिव, हिन्दू धर्म के मुख्य देवताओं में से एक हैं। उन्हें भोलेनाथ, महादेव, रुद्र और नीलकंठ भी कहा जाता है। शिव की विशेषताओं का वर्णन वेद, पुराण और अन्य प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में किया गया है।

शिव की विशेषताएं हैं-
महायोगी: शिव को महायोगी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ध्यान और ध्यान में रहने की अत्यंत कला को प्राप्त किया है। वे ध्यान और तपस्या के द्वारा अद्वैत ब्रह्मतत्त्व में एकीकृत हो जाते हैं।

• त्रिनेत्र: शिव को त्रिनेत्र (तीन आंखें) का धारण करने वाले देवता के रूप में जाना जाता है। यह त्रिनेत्र उनकी सर्वज्ञता और विश्वव्यापकता को प्रकट करता है।

• नंदी: शिव का वाहन नंदी, एक वृषभ (बैल) है। वह उनके प्रमुख भक्त माने जाते हैं और शिवलिंग के समीप उनकी पूजा की जाती है।

• अर्धनारीश्वर रूप: शिव का अर्धनारीश्वर रूप, जिसमें वे पुरुष और स्त्री के संयोग को प्रतिष्ठित करते है।


शिव की महिमा अनंत है -
भगवान शिव को हम कई नामों से पुकारते हैं. उनकी श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हैं. सोमवार के दिन भगवान शिव को समर्पित है और इस पूजा (Puja) करने से भोलेनाथ अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.

शिव और शंकर में अन्तर- 
बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें ये नहीं पता कि भगवान शिव और शंकर दोनों अलग-अलग हैं, वे उन्हें एक ही मानते हैं. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है शिव और शंकर दोनों ही अलग हैं. आज की इस रहस्य को हम जानेंगे कि दोनों में क्या अंतर है.

कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं. परन्तु सवरूप  में दोनों की आकृति अलग-अलग है. कई जगह तस्वीरों में शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है. भगवान शिव का नाम भगवान शंकर के साथ जोड़ा जाता है. इसलिए हम लोग शिव, शंकर, भोलेनाथ कह कर उन्हें पुकारते हैं. भगवान शंकर को ऊंचे पर्वत पर तपस्या में लीन बताया जाता है.
जबकि भगवान शिव ज्योति बिंदु के स्वरूप हैं और प्रकाश के द्वारा भी प्रदर्शित किया जाता है बहुत सारी तस्वीरों में शिव को सिर्फ एक बिंदु के रूप में दिखाया जाता है
शिव की पूजा ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है.

हिंदू धर्म के अनुसार में भगवान शिव के 3 प्रमुख कर्तव्य बताए गए हैं –

 सत युगी दुनिया की स्थापना करना,
दैवीय दुनिया की पालना करना और पतित दुनिया का विनाश करना,
यह तीनों काम  भगवान शिव तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शंकर (महेश) के द्वारा करवाते हैं. इसीलिए भगवान शिव को त्रिमूर्ति भी कहा जाता है.
भगवान शिव जन्म मरण के चक्र या बंधन से मुक्त हैं. वह निराकार है ना वह कभी जन्म लेता और ना कभी मरता वह सृष्टि का पालन या सहार करने के लिए शंकर को शंकर के रूप में अवतार लेते हैं ।

जबकि शंकर साकारी देवता हैं. भगवान शंकर को आदिदेव महादेव भी कहा जाता है. भगवान शिव, शंकर में प्रवेश करके महान से महान कार्य करवाते हैं. और इस सृष्टि की रचना पोषाहार सब कुछ वह देवताओं को शरीर लेकर फिर अपने कर्तव्यों को पूरा करते हैं ।

सृष्टि के कुछ ऐसे काम जिन्हें कोई देवी देवता, साधु संत, महात्मा नहीं कर सकते, इसके बाद  भगवान शिव सत्य ज्ञान देकर सत्ता चरण की धारणाओं को भगवान ब्रह्मा द्वारा पृथ्वी पर स्थापित करते हैं.
भगवान शिव एक निराकार ज्योति बिंदू स्वरूप हैं जबकि शंकर सा जबकि भगवान शंकर साकार रूप वाले देवता हैं जैसे और देवता को मंदिरों में दर्शाया जाता है।
उसी प्रकार शंकर भगवान भी भगवान शिव की पूजा करते हैं और उनकी मूर्तियों में भी उनको मां पार्वती और गणपति के साथ दिखाया जाता है।

शंकर की पुुजा-
शंकर को सदा तपस्वी मूर्त दिखाया जाता है और कई तस्वीरों में शिवलिंग का ध्यान करते हुए भी दिखाते हैं। शास्त्रों का ज्ञान ना होने के कारण बहुत से लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं। परंतु दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं।
शंकर की रचना करने वाले  शिव परमात्मा हैं और शंकर उनकी बनाई हुई  एक रचना हैं। शिव ब्रह्म लोक में परमधाम के निवासी हैं और शंकर सूक्ष्म लोक में रहने वाले एक देवता  हैं।
अगर मैं आपको आसान शब्दों में समझाना चाहूं तो जैसे बाप और बेटे का रिश्ता होता है। उसी तरह  शिव और शंकर हैं।
 वह है  तो एक ही पर उनका रूप दोनों की पावर अलग-अलग है। शिव का कभी जन्म नहीं होता और शंकर उनके द्वारा बनाई हुई एक रचना है।

शिव  ऐसी अदृश्य शक्ति है-
जो हम सबको दिखाई तो नहीं देती पर हम सबका पालनहार शिव ही है।
शंकर  भगवान मंदिरों में रहने वाले एक देवता हैं जिसके पास भी इंसान की मनोकामना पूरी करना है कि पूरी पावर है और उनको स्थूल और सूक्ष्म शरीर के रूप में पूजा भी जाता है। उनकी मूर्ति बनाई जाती है उनका रूप तैयार किया जाता है।

शिव की याद में शिवरात्रि मनाई जाती है
 ना कि शंकर रात्रि।
अतः शिव निराकार परमात्मा हैं और शंकर भगवान सूक्ष्म आकारी देवता है। शिवरात्रि का अर्थ है अंधकार को दूर करने वाला प्रकाश्य,  ज्योति स्वरूप शिव की याद में शिवरात्रि मनाई जाती है क्योंकि शिव ही एक ऐसी अदृश्य पावर है जो इस धरती का अंधकार और कलयुग को खत्म करते एक नई सृष्टि की रचना कर सकते हैं।


शंकर भगवान की विशेषता-

शंकर को ही देव आदि देव महादेव भी कहा जाता है। भगवान शिव,शंकर में प्रवेश करके वोमहान से महान कार्य करवाते हैंजो अन्य कोई देवी-देवता, साधु, संत, महात्मा नहीं कर पाते। यह सृष्टि चक्र का अंतिम समय है। जब स्वयं भगवान शिव परिवर्तन करवाने आते हैं और अपना कर्तव्य पूरा करके ही वापस परमधाम जाएंगे।
कुछ धर्म और सन्तो  ने मूल्यों की स्थापना तो की है लेकिन पूराने रिवाजों अंधविश्वासों, पतित परंपराओं को खत्म  नहीं कर पाए। यह वही कहावत की तरह जैसे किसी घड़े में विष के साथ अमृत भी मौजुद हो। इसलिए सृष्टि का परिवर्तन नहीं हो सका, किसी के भी द्वारा। भगवान शिव खुद आकर करते हैं जब धरती पर बहुत ज्यादा अंधकार बढ़ जाता है। तब भगवान् शिव शंकर के माध्यम से इस दुनिया  का विनाश करके फिर नई सृष्टि की रचना करते हैं

शिव करते हैं विनाश -
भगवान शिव अपने दूसरे रूप के  मूर्ति शंकर द्वारा विकारी पतित मनुष्यों की भ्रष्ट बुद्धि का विनाश करते हैं फिर बाढ़ में स्थूल रूप से भी पतित प्रकृति, विकारी दुनिया का विनाश करते हैं, जिससे पावन बनी आत्माएं पावन निर्विकारी प्रकृति, पवित्र वातावरण में रह सकें जहां कोई भी विकार, भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है।

इस प्रकार भगवान शिव यह सब लिला रच कर पुरानी अपवित्र  दुनिया को खत्म करके एक नई सृष्टि की रचना करते हैं।

हालांकि हमारे पुराणों में लिखा गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्मा ,विष्णु,  महेश और शिव तथा शंकर में भेद करेगा वह नरक का  भोगी बनेगा लेकिन हम यहां महादेव के रूप में भेद नहीं कर रहे हैं बल्कि भक्तों को शिव पुराण में लिखी गई बातों को बताने की कोशिश कर रहे हैं।

शंकर  का सवरूप-
शंकर देवता को मानवीय रूप माना गया है उनका रूप ब्रह्मांड में सबसे सुंदर भौतिक रूप बताया जाता है शंकर अपनी पत्नी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर रहते हैं उन्हें लंबे उलझे बालों के साथ प्रदर्शित किया जाता है जो उनके तपस्वी दिनों का प्रतीक है। उनके गले में एक सांप लिपटा हुआ है जो  शंकर के प्रभाव को प्रतिनिधित्व करता है। उसके साथ में रखा हुआ त्रिशूल तीनों लोकों पर अपने नियंत्रण करने का प्रतीक  है।  वह आम ज्यादातर शेर की खाल पहने हुए दिखाई देते हैं जो फिर उसकी तपस्या की याद दिलाता है ।भगवान शंकर के सिर से  गंगा को भी अपने सिर  से निकलती  हुई दिखाया जाता है।  भगवान शंकर ने दुनिया को बचाने के लिए जो जहर पिया था उसके कारण उनका गला नीले रंग का पड़ गया था।  लेकिन सबसे अलग है वह  उनकी तीसरी आंख जो ज्ञान अंर जागरूकता का प्रतीक की शंकर सहायक हैं । ना केवल संसार के बल्कि मानव आत्मा के सभी पापों को  को दूर करने वाले देवता हैं और इस धरती पर जो उनकी तन मन धन से पूजा करता है तो उनकी मनोकामना भी पूरी करते हैं। शंकर देवता को
 जल्दी खुश होने वाला देवता माना जाता है जो एक जल लोटा से खुश हो जाते हैं।

निष्कर्ष-
शिव परमपिता परमात्मा इस सृष्टि के रचयिता है और शंकर उनका मानव रूप है उन्हें के द्वारा बनाई हुई उन्हीं की रचना है। शिव का संबंध ब्रह्मलोक से है और शंकर का संबंध पृथवी लोक से है।
शिव  परम धाम में निवास करने वाले है। ब्रह्मलोक का अर्थ अनंत ब्रह्मांड है और  शंकर सूक्ष्म लोक यानी पृथ्वी पर रहने समस्त जीवों  के  देवता है। 
शिव की आराधना शिवलिंग से होती है और उनको कोई आकार नहीं है।, वह निराकार बिंदु स्वरूप हैं जो इस संसार को चलाने वाली एक ऐसी अदृश्य ऊर्जा है जिसकी कोई सीमा नहीं है वह असीमित है वह एक ऐसा प्रकाश है जिसकी कोई सीमा नहीं है। 

शंकर भगवान इस महान शक्ति का ही एक अंश है शिव पुराण के अनुसार शिव आदिशक्ति को मां कहकर पुकारते हैं और सदाशिव को पिता  कहते हैं ।
 ब्रह्मा विष्णु का जन्म आपसे हुआ मेरा भी जन्म आपसे हुआ इसलिए मैं आपकी संतान हूं इसी प्रकार पुराणों के अनुसार भगवान शंकर  की उत्पत्ति मां आदिशक्ति और सदा शिव से हुई है।

हमने पूरी कोशिश की है  शिव  और शंकर में  अंतर जानने की। 
अगर हम अब यह सब जानते हैं  शिव ही प्रकृति की हर चीज के निर्माता है और शंकर भी उन्हीं में से एक है ।
 शिव निराकार  सर्वव्यापी है शिव की कोई आकार नहीं है वह प्रकाश के रूप में पूरे ब्रह्मांड में शामिल हैं।
वह सबको समान रूप से ज्ञान प्रदान करते हैं। जैसे सुर्य सभी सभी को समान रूप से धूप देते हैं वह किसी के साथ भेदभाव नहीं करते कि किसको कम देनी है  या किसी को ज्यादा। इसी प्रकार भगवान शिव भी हैं। शिव के लिए  अच्छाई, बुराई; सत्य, असत्य , मित्र, शत्रु जैसी कोई चीज नहीं है वह सब कुछ शिव है। 

हमें इन दोनों की पूजा करते समय अपने अंदर तनिक भी संदेह नहीं लाएं यह दोनों अलग-अलग हैं क्योंकि हमारे सोचने या ना सोचने से भगवान को कोई फर्क नहीं पड़ता।
 क्योंकि मुझे खुद  ऐसा अनुभव होता है जिस प्रकार प्रकाश और बल्ब का रिश्ता है उसी प्रकार से शिव और शंकर भी एक ही उर्जा के रूप है। मेरे कहने का भाव यह है कि यह दोनों एक साथ जुड़े हुए हैं और इन दोनों का अपना अपना अस्तित्व है। 

आखिर में मैं यही कहना चाहूंगी कि शिव और शंकर के अंतर के बारे में बताना एक आम इंसान के  बस में नहीं है क्योंकि धरती पर कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो इसके बारे में पूर्ण रूप से लिख सकता हो । जितनी मुझे समझ थी मैंने  इस लेख के माध्यम से आपको यह जानकारी देने की कोशिश की अगर कहीं कोई आपकी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो इसके लिए मैं क्षमा चाहती हूं।
धन्यवाद। 

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