बच्चों को संस्कार वान कैसे बनायें | बच्चों को क्या न बतायें |

 बच्चों को संस्कारवान कैसे बनायें-बिना शिक्षा के मनुष्य पशु के समान माना जाता है। लड़का हो या लड़की जन्म के बाद उसे किसी भी प्रकार की शिक्षा, उपदेश अगर नहीं दिया जाए तो उस बालक में और एक पशुओं में कोई फर्क नहीं रहेगा। पढ़ाई से ही बुद्धि का जन्म होता है। जिसको जैसी शिक्षा दी जाएगी उसे जो भी सिखाया, दिखाया या पढ़ाया जाएगा वह वैसा ही बन जाएगा। शिक्षा से ही आतम ज्ञान और आत्म बल की जागृति होती है। बिना शिक्षा के मनुष्य अपने स्वास्थ्य की रक्षा भी नहीं कर सकता।

आजकल की शिक्षा प्रणाली हमारे बच्चों को पश्चिमी सभ्यता की ओर ले जा रही है जो बहुत ही खराब है। हमारा धर्म, हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता को नष्ट कर रही है। हमें सावधान होकर सोचना चाहिए कि बच्चों को ऊंची शिक्षा अनिवार्य है, मगर साथ-साथ हमारी संस्कृति और धर्म की संपूर्ण जानकारी होना और आस्था हमारे बालकों में जरूर होनी चाहिए।


 हमारी  संस्कृति और पश्चिमी सभ्यता में फर्क-

पश्चिमी सभ्यता में 100% अशांति भरी पड़ी है वहां के मनुष्य जीवन की तुलना एक मशीन से की जा सकती है। वहां सिर्फ अपने लिए सोचते हैं, उनको दया, धर्म कर्तव्य , भक्ति सेवा का ज्ञान नहीं होता ।वह अपने चारों तरफ से अशांत वातावरण में जी रहे है,  और यही  कारण आजकल विदेशी लोग हमारे देश में साधु, संत महात्मौ के प्रति उनका आकषर्ण बढ रहा है और उनका दर्शन करने के लिए, वचन सुनने के लिए वह हमारे देश में आ रहे हैं और वह शांति की खोज कर रहे हैं और जानना चाहते हैं कि भगवान  कौन है और कैसा दिखता है।

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शिक्षा का महत्व-

 शिक्षा का महत्व केवल पढ लिखकर किताबें पढ़ना नहीं होता ,बल्कि विद्या से अविद्या का नाश हो जाता है और व्यक्ति संस्कारवान बन जाता है। विद्या इनसान को सही  ज्ञान  प्रदान करती है जिस प्रकार फल पेड़ पर फल लगने से वृक्ष झुकता है उसी प्रकार मानव भी विद्या ग्रहण करने से मानवता आ जाती है । स्वाध्याय परम निधि है।

विद्या धन एक ऐसा धन है जितना करो उतना ही बढ़ता जाएगा । विद्या धन को ना तो कोई भाई बहन बंटवारा करवा  सकता है,ना ही कोई चोर चुरा सकता है और ना ही राजा छीन सकता है।

 भगवान प्रभु राम अवतार में विद्या अध्ययन के लिए अपने तीनों भाई लक्ष्मण ,भरत ,शत्रुघ्न के साथ गुरु जी के आश्रम में सवा 5 साल की उम्र में चले गए तो 7 वर्षों तक विद्या ग्रहण करके ही 12 साल की उम्र में अपने माता पिता के पास अयोध्या लौटे थे। जो उनके लिए एक बहुत ही कठिन तपस्या थी क्योंकि वह राज महल में पले बढ़े थे वहां पर बिल्कुल साधारण जीवन जीकर उन्होंने विद्या को ग्रहण किया थी।

 अपने बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा दें ताकि वह संस्कारवान और दयावान बने। अगर बच्चा अनपढ़ है तो वह किसी पशु से कम नहीं है। वैसे तो आजकल तरह से हर कोई अपने बच्चों को शिक्षा दे रहा है पर कुछ लोग फिर भी बच्चों को स्कुल नहीं भेजते और अपने साथ किसी काम पर लगा लेते हैं। ऐसा करने से आपका बच्चा शिक्षा से वंचित रह जाएगा। काम करने के लिए तो जिंदगी बहुत बड़ी है, इसलिए सबसे पहले अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का भरपूर प्रयास करें

जीवन का लक्ष्य-
 प्रत्येक मनुष्य का जीवन में कुछ ना कुछ लक्ष्य होना बहुत जरूरी है। अगर आपका या आपके बच्चे का भी नहीं है भी नहीं है तो अपने सबसे पहले लक्ष्य को तय करो जीवन का प्रधान लक्ष्य क्या  है कि आप बनना कया चाहते हो।  यह दृढ़ निश्चय कर लो कि मेरा रह लक्ष्य है। जिस काम में आपको बच्चा रूचि रखता हो। उसको लक्ष्य बनने दो उसके काम में जयादा  टोका टाकी ना करो। लक्ष्य तय होने से आपको  जीवन में सफलता के रास्ते पर चलने में कोई ज्यादा कठिनाई नहीं आएगा। एक दिन अवश्य ही आपका बच्चा सफल हो जाएगा बस उसको लक्ष्य का ज्ञान होना बहुत जरूरी है, इसलिए अपने बच्चों को इस प्रकार के शिक्षा दें ताकि वह अपने जीवन में अच्छी तरह सफल हो सके।

बच्चों के संस्कारवान कैसे  बनाये-

अपने बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए प्रतिदिन भगवान का धन्यवाद और अपने बड़ों के प्रति आदर, सत्कार और पैर छूने की शिक्षा अवश्य दें ,क्योंकि जैसा उनको आदत डालोगे  तो वैसे ही बनेंगे और बच्चों को संस्कार देने का पहला धर्म मां बाप का है स्कूल बाद में आता है। 
  बच्चों को भगवान को प्रतिदिन  याद करने  का अभ्यास करवाऔ और भगवान जो कुछ भी दे रहे उसी में आनंद के साथ ग्रहण करने की शिक्षा दो ।
 भगवान की कृपा में विश्वास करो और थोड़ी थोड़ी देर बाद भगवान से प्रार्थना करें कि हे प्रभु कि मैं आपको भूलूं नहीं और न ही मेरे बच्चे आपको भुले। है प्रभू  मुझे ऐसा आशीर्वाद दो मेरा आप में मन लग जाये ऐसा मानना कि मेरे मन में जो कुछ भी आता है वह भगवान का ही रूप है। मेरा मन जहां भी जाता है भगवान में ही जाए थोड़ी थोड़ी देर बाद रात में सोने से पहले और उठने के बाद सबसे पहले शांत होकर भगवान का धन्यवाद करें । 
किसी को बुरा ना समझना और किसी का बुरा ना करना यह एकमात्र आपकी इच्छा होनी चाहिए। इस प्रकार की शिक्षा अपने बच्चों को जरूर दें ताकि उनका भगवान के प्रति विश्वास बना रहे, क्योंकि यह जो संसार चल रहा है किसी अदृश्य शक्ति के बल पर ही चल रहा है और यह सिखाना अपने बच्चों को हमारा सबसे पहला धर्म है। अगर भगवान में विश्वास होगा तो फिर वह कोई बुरे कर्म करने से पहले एक बार जरूर सोचने पर मजबूर होगा कि बुरे काम करने पर भगवान सजा भी देता है। 
अपने बच्चों को किसी भी प्रकार का धार्मिक ग्रंथ पढ़ने का अभ्यास जरूर कराएं चाहे वह रामायण हो या गीता क्योंकि इस प्रकार के ग्रंथ पढ़ने से बच्चे के अंदर एक पोज्टीव ऊर्जा का प्रभाव पड़ता है। बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ दूसरों की सेवा भाव  करना सिखाए क्योंकि निस्वार्थ सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।

अपने बच्चों को सूर्योदय से पहले उठना सिखाओ और हाथ मुंह धो कर सोच आदि से निर्वित होकर कुछ समय  भगवान् को याद , ध्यान और प्रार्थना अवश्य करें।

अपने बच्चों को संध्या के समय कुछ देर खेलना, हंसना, साथ घूमना चाहिए।

समय का सदुपयोग करना सिखाये और व्यर्थ बकवास गप्पबाजी  करने से रोके ।  प्रतिदिन की दिनचर्या निश्चित करें तथा हर काम में समय पर पूरा करें।

अपने बच्चों के ऊपर हर समय संदेह ना करें बल्कि अपने बच्चों पर भरोसा करें कोई ऐसी बात ना करें जिससे बच्चों को लगे कि आप उन पर शक कर रहे हैं। आपका संदेह बच्चों में स्वतंत्र रूप से कार्य करने की इच्छा को खत्म कर देता और माता-पिता एवं अभिभावक आत्मविश्वास के साथ  बच्चों से बातचीत करें । आपके बच्चे  आपका कहना अवश्य  मानेंगे अगर आप उनको शक की निगाहों से देखेंगे तो आपके और बच्चों  के रिश्ते में बहुत बुरा असर पड़ता है और बच्चों को ऐसा लगता है कि मेरे मां-बाप मुझ पर विश्वास नहीं करते इसलिए इस प्रकार का कोई भी काम ना करें। 


बच्चों को सब कुछ ना बताएं-

कुछ लोगों की आदत होती है अपने बच्चों को सब कुछ बताने की बच्चों को अच्छा या बुरा का ज्ञान का बोध जरूर कराएं। पर हर बात बतानी तो इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ता है।

बच्चों के अच्छे विकास के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना बहुत जरूरी है, कयोंकि कुछ माता-पिता कभी-कभी अपनी ऊंची हैसियत का ढिडोरा बच्चों के आगे पिटने  लग जाते हैं यह गलती कभी ना करें।

 माता-पिता भी अपने शौक सीमित रखने का प्रयास करें जिससे अधिक अमीरी ना झलके।  अपने बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने में और उनके सहायक बने उन्हें जिम्मेदारियों का अहसास करवाते रहें। बच्चों को कुछ बातो का अभाव भी  करवाएं जिससे वे जिम्मेदार बन सके और दूसरों की मजबूरी का मजाक ना उड़ा कर उनकी मजबूरियों को समझ सके।

 शिक्षा के प्रति कभी भी लापरवाही ना बरतें आवश्यकता पड़ने पर अच्छी पुस्तके, ट्यूशन आदि का प्रबंध जरूर करें, क्योंकि माता-पिता  होने की यह जिम्मेदारी निभाएं।

 घर के लिए जरूरी बड़ी वस्तु एकदम बच्चों के कहने पर ना लाएं अच्छी तरह से सोच समझ कर ही दिलवाए , खरीदते समय बच्चों को एहसास कराएं कि इस चीज पर कितना पैसा खर्च करने से यह मेहनत करनी पड़ी तब जाकर यह चीज हमें मिली है।

 आपको व्यापार में कितना लाभ हुआ है इसकी जानकारी बच्चों को ना ही दे।

 इस प्रकार की कोई  जानकारी न दें कि मुझे यह प्रोजेक्ट मिल जाता तो मैं इतना मुनाफा कमा लेता, बच्चों के सामने अपनी पत्नी या मित्रों से कारोबार के लाभ हानि की चर्चा ना करें।

 यदि खुद किसी ताकत वाले पद हैं तो बच्चों के आगे ऐसी कोई शैकी वाली बातें न करें कि मैं यह कर सकता हूं, या करवा सकता हूं, क्योंकि इन सब बातों को बच्चों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और बच्चे कहीं बाहर अपने मां-बाप के पद का नाजायज फायदा भी उठाते हैं तो इसलिए इस प्रकार की कोई भी हरकत ना करें अगर आप अपने बच्चों को अच्छा नागरिक बनाना चाहते हैं। इन छोटी बातों को ध्यान में रखकर आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार और एक अच्छा नागरिक बना सकते हैं।

 शिक्षा के छात्रों की शिक्षा के साथ-साथ यह बातें मां-बाप के द्वारा ही दी जाती हैं। जिनकी वजह से बच्चा संस्कारवान बनता है स्कूल सिर्फ हम बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं असली संस्कार और शिक्षा तो मां-बाप देते हैं और मां और बाप पहले गुरु माने जाते हैं। बच्चों के लिए इसलिए जितना भी हो सके अपने बच्चों को समय दें और उनको हर हाल में  अच्छे और बुरे का ज्ञान जरूर दें ताकि वह आने वाले भविष्य में किसी भी परिस्थिति का सामना कर सके, क्योंकि समय बुरा कभी भी आ सकता है अपने बच्चों को इतने मजबूत बनाएं कि वह किसी भी परिस्थिति में अपने आप को संभाल सके।

निष्कर्ष-

 किसी भी इंसान की सबसे बड़ी पूंजी उस की औलाद मानी जाती है अगर किसी व्यक्ति के औलाद कामयाब और संस्कारवान हैं तो उससे बड़ा कोई धनवान नहीं होता। इसलिए अपने बच्चों के लिए जितना भी हो सके उनके लिए सबसे पहले तो समय निकालो उनके साथ समय बिताएं और उनको अच्छे और बुरे दोनों ही तरह की सांसारिक ज्ञान कराएं ताकि वह ऊपना और आपके खानदान का नाम रोशन कर सकें। बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं उनको जिस तरह ढाला जाता है, वह ढल जाते हैं।इसलिए इस मिट्टी को अच्छे गुणों के साथ पालन पोषण करे। कभी भी दिखावा ना करें हो सकता है आप बहुत धनवान हो पर धन होने का मतलब यह नहीं होता कि आप अपने बच्चों की हर जिद को पूरा करें।क्योंकि जीद तो आप बच्चे की धन से पूरा कर सकते हो पर उसको आप जिंदगी की रेस में कही जीत नहीं दिलवा सकते। अगर आप अपने बच्चों की जिंदगी में जीतता हुआ देखना चाहते हैं तो उनकी जिद ना पूरी करके उनको संघर्ष करके सिखने दे।

 धन्यवाद।  post by kiran

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