श्राद्ध पक्ष अमावस्या कब है | अमावस्या के दिन पितरो की पुजा कैसे करे || अमावस्या के दिन श्राद्ध कैसे करें। श्राद्ध पक्ष कि अमावस्या का महत्व |

अमावस्या पर पितरों के लिए धार्मिक कार्य और दान कैसें करें। 
हिंदू धर्म में हर महीने अमावस तिथि आती है। ऐसे में हर अमावस्य का अपना अलग ही महत्व है । इस दिन लोग अपने पितरों की शांंति और उनसे आशीर्वाद  पाने के लिए नदी के पास जाकर  सूर्य को जल देना और दान  का महत्व बताया गया है।  ताकि हमारे घर में   सु ख शांति और समृद्धि हो।  हम अपने परिवार की तरक्की कर सकें कयोंकि पितरों के नाराज होने पर हमारे घर में पितृदोष हो जाता है।  इसलिए परिवार की उन्नति और तरक्की केेे लिए आषाढ़ अमावस्या हमारे पितर देवता खुश हो सके कुछ दान पुण्य के काम अवश्य करे।

अमावस्या  का महत्व-
पूरे साल में कोई भी अमावस हो उसका अपना एक विशेष महत्व होता है पर आषाढ अमावस्या  पितरों के लिए विशेष मानी जाती है। इस दिन पितरो की पूजा करने से पित्र दोष शांत होता है। अमावस के दिन स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ के नीचे जल अर्पित करें और साथ में पितरों के नाम का दीपक जलाएं ताकि आपके देवता और पितर खुश होकर आपको आशीर्वाद दे।
अमावस्या कब है-
हिन्दू पंचांग क अनुसार
इस माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि की शुरुआत 13 oct को सुबह 9: बजकर 50 minute पर हो रही है।  अमावस्या के पितरो के कुछ खास धार्मिक और दान देने महत्व तरीके बताये  गये हैं।  

• श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को पितृ पक्ष भी कहा जाता है और यह हिन्दू धर्म में पितृदेवताओं की पूजा और श्राद्ध के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दिन अपने पितरों की स्मृति में धार्मिक कार्य और दान देने के कुछ महत्वपूर्ण तरीके बताये गये हैं।

अमावस्य तिथि पर परिवार की उन मृतक  सदस्यों के लिए श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु कि हम डेट और समय याद नहीं रहता या फिर अमावसय के  दिन जिन की मृत्यु हुई होती है। अमावस्या पर किया गया श्राद्ध परिवार के सभी पूर्वजों की आत्मा को शांति देता है और इस तिथि को सर्व पितर अमावस्या  के नाम से भी जाना जाता है।  इसलिए जिंनकी भी अगर मृत्यु के समय की डेट और दिन याद नहीं है तो उनके लिए अमावसय का श्राद्ध किया जाता है ।

पितृ तर्पण (Pitru Tarpan): -
पितृ तर्पण एक प्रमुख धार्मिक कार्य है जो पितृदेवताओं के आत्मा को आनंदित करने के लिए किया जाता है। इसमें अपने पूर्वजों की प्रतिमाओं के सामने अन्न, जल, और तिल आदि को देकर उन्हें प्रसन्न करने किया जाता है। यह तर्पण विशेष रूप से आषाढ़ मास की अमावस्या पर किया जाता है।

श्राद्ध पक्ष ---
 अमावस्या को श्राद्ध करना भी प्रमुख कार्य है। श्राद्ध में पितृदेवताओं के नाम पर दान दिया जाता है। यह दान अन्न, वस्त्र, धान्य, और अन्य पदार्थों का हो सकता है जो पितृदेवताओं को अर्पित किए जाते हैं। श्राद्ध में आमतौर पर पंडितों को बुलाया जाता है जो श्राद्ध के निर्वाह में सहायता करते हैं।

तुला दान (Tula Daan): -
आषाढ़ अमावस्या के दिन तुला दान करना भी धर्मिक मान्यताओं में प्रचलित है। इसमें लोग तुला (तराजू) पर अपने प्रतिष्ठान के अनुसार दान देते हैं। यह दान धार्मिक और नैतिक महत्व रखता है और इसे पितरों के उत्कृष्ट आत्मिक लाभ के लिए किया जाता है।

अमावस्य के दिन पंडित केे लिये और गाय के लिए रोटी
 जरूर बनाएं और जितना हो सके भोजन में किसी भी तरह का तामसिक भोजन  ना हो इस  दिन हो सके तो लहसुन प्याज के बिना ही भोजन बनाएं।

खीर का भोग-

अमावस के पितरों के निमित्त बनाए गए भोजन में खीर बनाना  बहुत जरूरी है क्योंकि पितरों के लिए सबसे अच्छा भोजन माना जाता है।  अगर आप भी अपने पितरों को तृप्त करना चाहते हैं तो उनके लिए भोजन में खीर जरूर बनाएं ।और उस खीर में से कुछ भाग गाय को और कोवै  को जरूर डालें। 

जो लोग अपने पितर देवताओं  से आशीर्वाद पाना चाहते हैं वह इस दिन मांस मदिरा का सेवन ना करें ,क्योंकि अमावस्या  का दिन पितरों के लिए समर्पित है।  इसलिए अगर आप भी अपने पितरो  से आशीर्वाद चाहते हैं तो अपने घर में किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन ग्रहण ना करें। 
यह छोटे छोटे उपाय  करके आप अपने पितर देवताओं को खुश कर सकते हैं। क्योंकि वह हमारे बड़े बुजुर्गों का प्रतीक हैं । अगर हमारे बड़े बुजुर्ग दुखी होंगे तो हम कभी सुखी नहीं रह सकते। इसलिए  अमावस को छोटे-छोटे उपाय करें और अपने और अपनों की शांति के लिए दान पुण्य कार्य अवश्य करें।
 
ये थे कुछ धार्मिक कार्य और दान देने के महत्वपूर्ण तरीके जो अमावस्या के पितरों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। यह सब विधी विधान  आपकी स्थानीय संस्कृति, परंपरा और परिवारिक आदतों पर भी निर्भर करेगी, इसलिए आपको अपने परिवारिक पुरोहित या गुरु के साथ  विचार करने की सलाह दी जाती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ