तीर्थ स्थानों का महत्व || गंगा आरती कैसे करें || हरिद्वार स्थान का महत्व || धार्मिक स्थानो की विशेषता ||

तीर्थ स्थान और सिद्ध स्थानो का महत्व-  विशिष्ट भूमि , विशिष्ट जल , देवी - देवताओं व साधु - महात्माओं का संसर्ग इन तीन कारणों से ही तीर्थ में ' तीर्थत्व ( तारक शक्ति ) आ जाती है । मनुष्यों के कायिक , मानसिक और आत्मिक इन त्रिविध तापों के उपशमन होता है के लिए तीर्थाटन की व्यवस्था शास्त्रों ने दी है । तीर्थों की भूमि का अदभुत प्रभाव मनुष्य के शारीरिक ताप उसके रोगों को दूर करने में सक्षम होता है । तीर्थों का आध्यात्मिक वायुमंडल सर्वथा सुद्ध , प्राकृतिक एवं निर्मल जिससे रोगों का नाश होकर मनुष्य के मन को शांति मिलती है । इन्सान की शारीरिक और मानसिक तापों की शांति के बाद तीर्थ में निवास देवताओं में दवत्व , साधु - महात्माओं व विद्वानों के सत्संग , धार्मिक वातावरण से हमारे आत्म - ताप को शांति मिलती है ।  हर वयक्ति को जीवन में कम से कम 1 बार सभी तीर्थ स्थानों का दर्शन अवश्य करना चाहिये । तीर्थस्थान , संतों के महात्माओं के आश्रम , सिद्ध स्थान , योगी - महात्मा , संत - साधू जहां वर्षो तक तपस्या करते हैं , या पहुंचे हुए । उच्चकोटी के व्यक्तियों के समाधीस्थल के श्रद्धा सहित दर्शन करने से शांति मिलती है , दुःखों से छुटकारा मिलता है , प्रभु प्रसन्न होते हैं ।इन सभी तीर्थ जगहों का वातावरण शुद्ध शान्त और एक विशेष शक्ति ( पोजीटिव शक्ति ) मय हो जाता है ।  यहां के वातावरण के दुःख और अशांति या दुसरी कोई  खराब निगेटिव शक्ति ठहर नहीं सकती । वहां का वातावरण सभी के लिए कल्याणमय होता है । 

 *कुम्भ मेले का महत्व-
समुद्रमंथन के समय अमृत कुम्म को लेकर धनवन्तरि रूप में श्री विष्णु भगवान् प्रकट हुए थे । कहते हैं , उस समय इन्द्र का पुत्र जयन्त अमृत कुम्भ को लेकर भागा । उसके भागते समय जहाँ जहाँ अमृत बिन्दु छलककर पृथ्वी पर गिरे उन स्थानो पर हरिद्वार ,  प्रयाग - उज्जैन और 4 नासिक ) की भूमि अमृतमयी ( अर्थात मुक्ति प्रदान करनेवाली ) बन गयी । चारों स्थानों पर क्रमशः प्रति बारहवे वर्ष पूर्ण कुम्भ का योग होता है ।
 स्कन्द पुराण के अनुसार जब भी बृहस्पति मेष राशि ( मतान्तर से वृष राशि ) में तथा सूर्य मकर राशि में अमावास्या को होंगे , उस दिन प्रयाग ( इलाहाबाद ) में पूर्ण कुम्भ होगा । महाकुंभ के लिए किया जाने वाला दान के पुण्य का किसी प्रकार भी क्षय नहीं होता है । सहस्राब्दी के पहले महाकुंभ में सैकड़ों वर्षों से अज्ञात रहकर तपस्या में विरत रहने वाले दीर्घजीवी , संत , महात्मा आदि और 33 करोड़ देवता भी पहुंचे है देवता किसी भी रूप में आ सकते हैं , इसलिए इस महाकुंभ का विशेष महात्म्य है । समुद्र मंथन के समय वहां से निकले अमृत को जिस कलश या घड़े, जिसे कुंभ भी कहा जाता है , के वितरण के बाद जब उस कुंभ भी परमात्मा से मिले वरदान के कारण जहां - जहां इस कुंभ का शुभारंभ किया गया तब उसे जो वरदान दिए गए उनमें से एक यह भी था कि महाकुंभ में दिए गए दान का पुण्य मानव जीवन में किए गए किसी भी पाप के क्षय नहीं होगा । इसलिए प्रयागराज के कुंभ का ऐसा महत्व तो है ही , साथ में यहां देश में बहनेवाली सभी नदियां भी किसी न किसी रूप में मौजूद रहती है । इसलिए महाकुंभ में स्नान से इस सभी का आर्शीवाद मिलना निश्चित होता है , अतः दान और स्नान के महत्व को समझते हुए महाकुंभ यात्रा करनी चाहिए ।
*कुम्भ मेले का इतिहास-
 वैसे तो कुंभ का इतिहास ' सागरमंथन ' के अमृतकुंभ से इसे जोड़ता है , परंतु कई ग्रन्थों में इस स्थान पर पांडवों के आगमन से लेकर , छठी शताब्दी की ' भगवान शंकर ' ( आचार्य शंकर ) तक की यात्रा का वृतांत है , जो इस स्थान के महत्व को उजागर करता है । चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य और सम्राट हर्षवर्धन का नियमित रूप से ' महाकुंभ के अवसर पर पहुंचना भी अपने आप में बड़ी अनोखी बात है ।पूर्ण कुंभ तो वस्तुतः हर 12 वर्ष बाद आता है , पर छह वर्ष के अंतराल में हरिद्वार , नासिक और उज्जैन में भी अर्धकुंभ का आयोजन होता है , क्योंकि अमृत बूंदें यहां भी गिरी थीं , परंतु तंत्र शास्त्र के विशेषज्ञ इस कुंभ के बाद ' आध्यात्मिक परिवर्तन की घोषण कर रहे हैं क्योंकि यह परिवर्तन आम भारतीय को भौतिकतावाद की चपेट से बचाकर आध्यात्मिकता की तरफ ले जाएगा । इस अद्वितीय महाकुंभ को धर्म के कुछ जानकार कल्कि अवतार के आगमन का पूर्वकाल कहकर भी वर्णित कर रहे हैं , परंतु सब कुछ भविष्य के गर्भ में है । 
 जहां तक ' सरस्वती नदी का प्रश्न है , उसके विषय में बहुत सी मान्यताएं हैं । सरस्वती संगम को त्रिवेणी का रूप प्रदान करती हैं । सन् 1920 में पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन के क्रम में हड़प्पा की सभ्यता और संस्कृति का पता चला और उसका अध्ययन किया गया ।  कालांतर में मोहनजोदड़ो का भी उत्पन्न हुआ और पूर्ण विकसित सभ्यता की जानकारी हमें मिली इसलिए इसका नया नामकरण हुआ सिंधु घाटी की सभ्यता भारत के आजाद होने के बाद एक अध्ययन से यह भी सामने आया कि यह सारे स्थान मूलत: सरस्वती नदी के किनारे बसे हुए थे जो काल के प्रभाव में मुरथल में लुप्त हो गई इसलिए पुरातत्व  विभाग ने फिर इसका नाम बदलकर सिंधु सरस्वती सभ्यता रखा।  *गंगा का महत्व-

हे गंगे ! तेरी महिमा अपरम्पार ।। गंगा के तटों पर स्थित हरिद्वार , कनखल , प्रयाग एवं काशी तीर्थ प्रसिद्ध ही है । वायुपुराण ने आकाश , अन्तरिक्ष एवं भूमि में पैंतीस कोटि तीर्थों की जो गणना की है , वे सभी तीर्थ गंगा में अवस्थित माने गये हैं । वास्तव में गंगा पुनीततम नदी है । यदि कोई सैकड़ों पापकर्म करके गंगाजल का आवसिच्चनन करता है तो गंगाजल उन दुष्कृत्यों को उसी प्रकार जला देता है , जिस प्रकार अग्नि , ईंधन को कृतयुग में सभी स्थल पवित्र होते हैं , त्रेता में पुष्कर सबसे अधिक पवित्र है , द्वापर में कुरुक्षेत्र एवं कलियुग में गंगा की विशेष महिमा है । केवल  नाम लेने पर गंगा पापी को पवित्र कर देती है , इन्हें देखने से सौभाग्य प्राप्त होता है , कल्याण मंगल प्राप्त होता है । जब इनमें सनान किया जाता है या इनका जल ग्रहण किया जाता है तो सात पीढ़ियों तक ' कुल ' पवित्र हो जाता है ।  जबतक किसी मनुष्य की अस्थि गंगाजल को स्पर्श करती रहती है , तब तक वह स्वर्गलोक में प्रसन्न रहता है । गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है ' न गंगासदृशं तीर्थम्  भारत  वही उत्तम देश है जहाँ गंगा बहती है और वह तपोवन जहाँ गंगा पायी जाती है , उसे सिद्धक्षेत्र कहना चाहिये क्योंकि वह गंगातीर को छूता रहता है । वे जनपद एवं देश , वे पर्वत एवं आश्रम जिनसे होकर गंगा बहती है , पुण्य का फल देने में महान् हैं । जब सहस्त्रों योजन दूर रहनेवाले लोग भी ' गंगा ' का उच्चारण करते हैं तो तीन जन्मों के एकत्र पाप नष्ट हो जाते हैं । जो व्यक्ति जो चाहे या अनचाहे गंगा के पास पहुँच जाता है और मर जाता है , वह स्वर्ग जाता है और नरक नहीं देखता ' मत्स्यपुराण  में तो गंगा की प्रशस्ति इस प्रकार से उल्लिखित है कि पाप करनेवाला व्यक्ति भी सहस्त्रो योजन दूर रहता हुआ गंगा स्मरण से परम पद प्राप्त कर लेता है ।  गंगा के नाम स्मरण एवं उसके दर्शन से व्यक्ति क्रम से पापमुक्त होता हुआ सुख पाता है । इनमें स्नान करने एवं जलके पान से वह सात पीढ़ियों तक अपने कुल को पवित्र कर देता है । ' 
काशीखण्ड ' में ऐसा लिखा गया  है कि गंगा के तटपर सभी काल शुभ हैं , सभी देश शुभ हैं और सभी लोग दानग्रहण के योग्य हैं । गंगा स्नान की एक सुदीर्घ परम्परा है । स्नान और आचमन कर लेने से समस्त आंधि - व्याधि - रोग मिट जाते ।
पर यह सब सकिंत मनसे नहीं अपितु गंगा के प्रति पूर्ण समर्पण विस्तार से चर्चा हुई है । स्कन्दपुराण भाव - भक्ति लिये हुए होना चाहिये । गंगा स्नान के संदर्भ में भी पुराणों में रूप से यह अकितं है कि विशिष्ट दिनों में गंगास्नान से विशिष्ट एवं अधिक पुण्य फल प्राप्त होते हैं । यथा - साधारण दिनों की अपेक्षा अमावास्या परस् करने से सौ गुना फल प्राप्त होता है ।
 संक्रान्ति पर स्नान करने से कई गुना सूर्य या चन्द्रग्रहण पर स्नान करने से सी लाख गुना और सोमवार को चन्द्रग्रहण पर या रविवार को सूर्यग्रहण पर स्नान करने से अख्य फल प्राप्त होता है । स्नान यदि शास्त्रसम्मत तथा विधि - विधान पूर्वक मन्त्रोचारण क साथ किया जाय तो उसका फल द्विगुणित हो जाता है ।
 धर्मशास्त्रों में यह स्पष्ट  निर्देश है कि गंगा का आह्वान ' नमो नारायणाय मन्त्र के साथ करना चाहिये ।
 पद्मपुराण में आया है कि गंगाजी नाम लेने मात्र से पापों को धो देती है । आप विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई है , विष्णु भगवान् भी आपकी पूजा करते है । दर्शन करने पर कल्याण प्रदान करती है तथा स्नान करने और गंगा जल पान करने पर सात पीढ़ियों तक को पवित्र कर देती हैं । तपस्या , बहुत से नाना प्रकार के व्रत तथा पुष्कल दान करने से जो गति प्राप्त होती है , गंगा जी का सेवन करने से मनुष्य उसी गति को सहज में ही पा लेता है । भगवान शंकर के मस्तिष्क से होकर निकली हुई गंगा सब पापों को हरने वाली और शुभकारिणी है । यह पवित्र को भी पवित्र करनेवाली और मंगल पदार्थों के लिए  भी मंगलकारिणी है । गंगा मैया की महिमा का बखान करते हुए आगे पद्मपुराण में लिखा है कि गंगा जी में स्नान , जल का पान पितरों का तर्पण करने से महापातकों का पाप प्रतिदिन क्षय होता रहता है ।  एक पश्चिमी वैज्ञानिक ने अनेक परीक्षणों के बाद अपना मत व्यक्त करते हुए लिखते है कि युगों से हिन्दुओं का विश्वास रहा है कि गंगाजल सर्वथा पवित्र है । उसमें किसी भी मलिन वस्तु के सम्पर्क से मलिनता नहीं आती बल्कि जिस वस्तु से उसका स्पर्श हो जाता है , वह निश्चित रूप से पवित्र और शुद्ध हो जाती है । और उनका उसकी पवित्रता पर अब भी विश्वास बना हुआ है और यही कारण है कि वे उसमें स्नान करते हैं तथा उसका पान करते हैं । श्री हैनवरी आगे कहते । 
आदि कवि वाल्मीकि और महाराज सागर के पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए महाराज भागीरथ ने तपस्या करके उन्हें धरती पर उतारा तो वह भागीरथी कहलाई । गंगा का एक नाम विष्णुपदी भी है क्योंकि इसका भगवान विष्णु के चरणों से निकलना भी माना जाता है । यह हिन्दू आदि सनातन धर्म की मान्यता है । महाराज भागीरथ जी उसे अपने घोर तप से गंगाजी लाए । सदियों से बिना किसी भेदभाव के सबको समान रूप से पाल पहुंच रही है वह हिंदू जय हिंद में कोई फर्क नहीं जानती मगर फिर केवल हिंदू ही इसकी पूजा क्यों करते हैं सभी को इसक पूजा करनी चाहिए।
* हरिद्वार  का महत्व-
हिंदू धर्म के अनुसार हरिद्वार का बहुत बड़ा महत्व है हरिद्वार दो शब्दों से मिलकर बना है हरि और द्वार इसका तात्पर्य है भगवान विष्णु से है क्योंकि यहीं से होकर बद्रीनाथ को रास्ता जाता है इसलिए इसे हरिद्वार कहते हैं। इसलिए  इसे हरिद्वार कहते हैं क्योंकि यही से भगवान केदारनाथ यानी शिवतीर्थ का रास्ता भी जाता है।  गंगा नदी के किनारे बसे इस पावन नगरी में दुनिया से कई हजार लोग मोक्ष की कामना के लिए हरिद्वार पहुंचते हैं और गंगा में स्नान करके गंगा के जल को ग्रहण भी करते हैं। हर व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार हरिद्वार जरूर जाना चाहिए ।धर्म के अनुसार हरिद्वार में गंगा स्नान करने से व्यक्ति को जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति मिल जाती हैं।इस स्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि हरि के इस पावन नगरी में कभी अमृत की कुछ बूंदे गिरी थी तभी से यह क्षेत्र और भी ज्यादा पवित्र हो गया का था । हर साल कुम्भ मेले का आयोजन हरिद्वार में ही होता है जहां पर लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं। हर की पौड़ी का प्रमुख स्थान माना जाता है जिसके बारे में ऐसी मानता कि भगवान विष्णु जब धरती पर आए थे तो इसी स्थान पर आए थे। यही कारण है इसे हर की पौड़ी कहा जाता है।
विदेशी लोगों ने दी हरिद्वार को हमारी संस्कृति को सविकार किया गया है। यहां पर कुंभ के अवसर पर हरिद्वार की विशाल रूप को देखकर चीनी यात्री ह्वेनसांग ने लिखा कि हरिद्वार में लाखों लोग गंगा जी में स्नान करके अपने पापों को धो लेते हैं।
भारत में हरिद्वार एक पवित्र स्थान माना जाता है। जिसका प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में विवरण है हरिद्वार एक ऐसा तीर्थ स्थान है जहां पर लोग अलग-अलग प्राप्त से आकर तीर्थ यात्रा करने आते हैं और हरिद्वार में गंगा स्नान और पौराणिक स्थलों में पूजा पाठ करने का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसे ही हरिद्वार में कई गंगा घाट हैं जो अपनी प आरतियों के लिए फेमस है इसमें सबसे ज्यादा हरिद्वार में हर की पौड़ी का ज्यादा महत्व है। हर की पौड़ी के आरती देखने के लिए लोग विदेशों  से भी लोग  आते हैं इसकी आरती का इतना बड़ा महत्व है और प्रतिदिन बहुत ज्यादा मात्रा में लोग हर की पौड़ी पर आरती के आरती के दर्शन करने आते हैं। 
निष्कर्ष-
 भारत में बहुत सारे पवित्र  और धार्मिक स्थान है सबका अलग-अलग महत्व और अलग-अलग कथाएं हैं। इसलिए जो लोग भी इन स्थानों की यात्रा करना चाहते हैं तो  एक बार जरूर जाएं क्योंकि इंसान के लिए मोक्ष की प्राप्ति के लिए ना जाने क्या-क्या करता रहता है। जीवन में संतोष सबसे बड़ा धन है इंसान के लिए, इसलिए अगर आप जब भी जिंदगी में शांति  चाहते हैं तो इन पवित्र स्थानो  के दर्शन करने जरूर जाएं 

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