केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है इसे अर्ध ज्योतिर्लिंग कहते हैं यह नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर पूर्ण होता है। यहां पर स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। यहां के मंदिर का निर्माण जन्मेजय ने कराया था और जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने किया था।
छह महीने तक नहीं बुझता दीपक-
इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं और 6 माह तक मंदिर के अंदर एक दीपक जलता रहता है। पुरोहित सब समान और पट बंद करके भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे उखीमठ में ले जाते हैं, फिर से छह महीने के बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं। तब उत्तराखंड की यात्रा शुरू होती है जबकी मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता ,लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि 6 माह तक दीपक भी जलता रहता है और पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि इस मंदिर की साफ सफाई की व्यवस्था वैसी ही मिलती है जैसी वह छोड़ कर गए थे।
तुफान मे भी सुरक्षित है ये धाम--तूफान और बाढ़ में भी रहता है यह मंदिर सुरक्षित जब 16 जून 2013 की रात को प्रकृति में ने बहुत ही भयंकर कहर बरसाया था कि सभी जल में बड़ी-बड़ी इमारतें समाधि हो गई थी और पत्तों की तरह बदौर तरीके पानी में बह गई थी। लेकिन केदारनाथ के मंदिर का कुछ भी नहीं बिगड़ा था। बाढ़ आने की बाद है जब पहाड़ी के मंदिर के पीछे पहाड़ी से बहकर लूढककर बहुत बड़ी चट्टान आई अचानक से आकर मंदिर के पीछे रूक गई और उसी स्थान के रुकने के बाद बाढ़ का पानी दो भागों में बट गया और मंदिर बिलकुल ही सुरक्षित खड़ रहा। इस बाढ में लगभग 10000 लोगों की मौत हो गई थी पर मंदिर वैसे ही खड़ा रहा जैसे पहले था।
*पकृति की रंगत का बदलना-
केदारनाथ धाम एक तरफ से 22000 फुट ऊंचा और दूसरी तरफ से 21 हजार 600 फुट खर्चकुंड और दुसरी तरफ 22 हजार 700 फ़ुट भरतकूंड का पहाड़। न सिर्फ तीन और बल्कि पांच नदियों का संगम भी है । यहां मंदाकिनी नदी ,मधू गंगा,क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्ण गोरी। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे केदारशवर धाम । यहां पर कब पकृति की आपदा आ जाये कोई नहीं जानता ।
अगर आप भी इस धाम के दर्शन करना चाहते हैं तो एक बार इस धाम के दर्शन करने जरूर जाये।
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