केदारनाथ धाम कहाँ है | केदारनाथ धाम कैसे पहुंचे |

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केदारनाथ नाथ धाम का महत्व-
मध्य हिमालय में आर्थिक भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री केदारनाथ धाम का नाम बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह समुद्र तल से करीब 11 हजार 750 फुट की ऊंचाई पर स्थित करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था व श्रद्धा के प्रतीक  केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। हमारे वेद, शास्त्रों के अनुसार सतयुग में उपमन्यु ने यही  भगवान शंकर की रचना की थी, और द्वापर में पांडवों ने तपस्या की थी । ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर का तंगूनाथ में वातू, रुद्रनाथ में मुख, मदमेहशवर में नाभि और कल्पेश्वर में जटा, तथा इस प्रथम भाग  केदारनाथ मे और पशुपतिनाथ में सिर  स्थित है। 
केदारनाथ में कोई मूर्ति न होकर , बल्कि विशाल - त्रिकोण पवर्त खंड है । इस प्राचीन मंदिर की इसी शिला को आज केदारनाथ भगवान के रूप में पूजा जाता है । शिव के अन्य अंग जहां - जहां प्रकट हुए ये भी केदार कहलाए । केदार मंडल में अनेक तीर्थ है । सैकड़ों शिवलिंग व सुंदर तथा मीठे पाने की पवित्र नदियां मौजूद है । केदारनाथ का मंदिर सम्पूर्ण उत्तराखंड का सबसे विशाल मंदिर है । ऐसी मान्यता है कि यहां ध्यान करने व मृत्यु को प्राप्त होने पर मनुष्य स्वर्ग जाता है।। केदारनाथ के ऊपर हस कुंड है , यह ब्रह्मा ने इस हंस  रूप में रेतपान किया था। इस रेत कुंड का जल पीने वाला धन्य माना जाता है । मंदिर से आधे किमी . की दूरी पर भैरव मंदिर है जहां केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने व बंद होने के दिन पूजा की जाती है। भगवान केदारनाथ के कपाट शीतकाल में बंद कर दिए जाते हैं। वैशाख मास के आने पर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ छह माह तक खुले रहते हैं । ऋषिकेश से गौरीकुंड तक 215 किमी . मोटर मार्ग है तथा गौरीकुंड से 14 किमी . पैदल मार्ग केदारनाथ तक है । बदरीनाथ , केदारनाथ , गंगोत्री और यमुनोत्री ये चारों तीर्थ एक यात्रा में किये जा सकते हैं ।
केदारनाथ धाम के रहस्य---
केदारनाथ के रहस्य पुराण कथा के अनुसार शिवलिंग की उत्पत्ति  के बारे में ऐसा कहा जाता है कि हिमालय के केदार सिरंग पर भगवान विष्णु के अवतार महत्वपूर्ण नर और नारायण तपस्या  करते हैं उनकी अराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए उनके प्रार्थनाअनुसार  ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान दिया और यह यह स्थल केदारनाथ नामक श्रृंग पर अवस्थित है। 

केदारनाथ और पशु पति नाथ मिलकर पूर्ण शिवलिंग बनाता है।

 केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है इसे अर्ध ज्योतिर्लिंग कहते हैं यह नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर पूर्ण होता है। यहां पर स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। यहां के मंदिर का निर्माण जन्मेजय ने कराया था और जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य ने किया था।

छह  महीने तक नहीं बुझता दीपक-

इस मंदिर के बारे में ऐसा बताया जाता है दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं और 6 माह तक मंदिर के अंदर एक दीपक जलता रहता है। पुरोहित सब समान और पट बंद करके भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे उखीमठ में ले जाते हैं, फिर से छह महीने के बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं। तब उत्तराखंड की यात्रा शुरू होती है जबकी मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता ,लेकिन हैरानी  की बात तो यह है कि 6 माह तक दीपक भी जलता रहता है और पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि इस मंदिर की साफ सफाई की व्यवस्था वैसी ही मिलती है जैसी वह छोड़ कर गए थे।

तुफान मे भी सुरक्षित है ये धाम-- 

तूफान और बाढ़ में भी रहता है यह मंदिर सुरक्षित जब  16 जून 2013 की रात को प्रकृति में ने बहुत ही भयंकर कहर बरसाया था कि सभी जल में बड़ी-बड़ी इमारतें समाधि हो गई थी और पत्तों की तरह बदौर तरीके  पानी में बह गई थी।  लेकिन केदारनाथ के मंदिर का कुछ भी नहीं बिगड़ा था। बाढ़ आने की बाद है जब पहाड़ी के मंदिर के पीछे पहाड़ी से बहकर लूढककर बहुत बड़ी चट्टान आई अचानक से आकर मंदिर के पीछे रूक गई और उसी स्थान के रुकने के बाद बाढ़ का पानी दो भागों में बट गया और मंदिर  बिलकुल ही सुरक्षित खड़  रहा।  इस बाढ में लगभग 10000 लोगों की मौत हो गई थी पर मंदिर वैसे ही  खड़ा रहा जैसे पहले था।

 *पकृति की  रंगत का बदलना-

 केदारनाथ धाम एक तरफ से  22000 फुट ऊंचा और दूसरी तरफ से 21 हजार 600 फुट  खर्चकुंड और दुसरी  तरफ 22 हजार 700 फ़ुट  भरतकूंड का पहाड़। न सिर्फ तीन और बल्कि पांच नदियों का संगम भी है । यहां मंदाकिनी नदी ,मधू गंगा,क्षीरगंगा,  सरस्वती और स्वर्ण गोरी। इन नदियों में  अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है।  इसी के किनारे केदारशवर धाम । यहां पर कब पकृति की आपदा आ जाये कोई नहीं जानता ।


अगर आप भी इस धाम के दर्शन करना चाहते हैं तो एक बार इस धाम के दर्शन करने जरूर जाये।







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