Tittle- सुर्य और चन्द्रमा की पुजा कैसे करें-
सूर्य और चंद्रमा दोनों ही प्रत्यक्ष देवता माने जाते हैं। मन के स्वामी चंद्र है और बुद्धि का स्वामी सूर्य देव माने गए हैं। दोनों ही इस धरती के प्रत्यक्ष देव हैं और सभी धर्म संप्रदायों एवं जातियों को लाभ पहुंचाने वाले देवता माने गए हैं। यह किसी भी इंसान के साथ भेदभाव नहीं करते।
सूर्य और चंद्रमा को ना केवल धरती पर जन जीवन के लिए जरूरी माना जाता है बल्कि यह ज्योतिष के अनुसार इन दोनों ग्रहों को मनुष्य के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। सूर्य को ग्रह राजा और चंद्रमा को ग्रहों की रानी कहा जाता है। सूर्य यानी पिता राजनीति ,नेतृत्व, क्षमता, आत्मा सरकारी नौकरी आदि का कारक माना जाता है।
खाटू शयाम की ऐतिहासिक कहानी और चालिसा
चंद्रमा को माता यानी मन आदि का कारक माना जाता है। इन दोनों ग्रहों की स्थिति कुंडली में अच्छा होना किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी परेशानियों को दूर कर देता है। क्योंकि एक आत्मा का कारक ग्रह है और दूसरा मन का है। अपनी जिंदगी में सफलता पाने के लिए आत्मा और मन का संतुलन होना बेहद जरूरी माना जाता है।
अगर आप भी अपनी जिंदगी में सफल होना चाहते हैं तो इन दोनों की पूजा उपासना करना बहुत ही अच्छा है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा दोनों ही हम सबको साक्षात दर्शन देने वाले देवता माने जाते हैं ।यह दोनों ही साक्षात दर्शन देने वाले देवता है ।आप अपने नजदीकी किसी भी एस्ट्रोलॉजर को दिखाकर अपनी कुंडली में जो ग्रह कमजोर है उसके अनुसार जप तप दान आदि करते रहेंगे तो आप अपने काम में अवश्य सफल होंगे। सबसे पहले अपनी कुंडली दिखाएं और जो ग्रह कमजोर है उसके बारे में जाने और तभी उसकी पूजा शुरू करें।
यदि इस धरती पर कोई भी व्यक्ति आशत , असंतुष्ट है और बुद्धि से कमजोर है तो उसे सूर्य और चंद्र भगवान की पूजा आराधना अवश्य करनी चाहिए क्योंकि दोनों ही शक्तियों ने भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण को अपने-अपने वंशो में अवतरित किया है। भगवान श्री कृष्ण जहां चंद्रवंशी से संबंध रखते हैं वही श्रीराम सूर्यवंशी हैं। भगवान विष्णु ने इन दोनों को "संपूर्ण जगत में अपनी अन्य लीलाओं के माध्यम से भले बुरे का ज्ञान कराने के लिए अवतरित किया था।
* सूर्यग्रहण और चंद्रमा ग्रहण का देखना निषेध कयू माना जाता है -
- सूर्य और चंद्र इस पृथ्वी पर सभी का जीवन इन दोनों पर निर्भर है।
इसलिए वेदों में दोनो सूर्यआत्माजगत सतस्तूषशच अर्थात सूर्य को पूरे संसार की आत्मा कहा गया है। वास्तव में ग्रहण के समय सूर्य की किरणें पृथ्वी पर नहीं पहुंचती हैं इसलिए पृथ्वी के जनजीवन पर इसका प्रभाव पड़ना निश्चित है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार ग्रहण के समय को प्रभाव कारी गामा किरणों का विकरण अधिक होता है तथा वायुमंडल में जीवनीय गैस की मात्रा 10% कम हो जाती है जो घातक इनफारेड किरणों से रक्षा करती है। जो इंसान के स्वास्थ्य व मन पर को प्रभावकारी सिद्ध होती है इसी का हमारे बड़े बुजुर्गों ने इसे धर्म से जोड़कर इस समय सात्विक व संयमित जीवन जीने की व्यवस्था की है। आस्था और विश्वास पर ग्रहण के समय करने पर जोर दिया जाता है।
सूर्य ग्रहण के समय धर्म के अनुसार इस सूतक काल में बालक, वृद्ध ,रोगी को छोड़कर अन्य सभी लोगों के लिए खाना पीना, सोना, मल मूत्र त्याग करना वर्जित माना जाता है। ग्रहण में स्पर्श काल में स्नान ग्रहण के मध्य में धार्मिक काम, दान ,जप आदि जरूर करना चाहिए। ग्रहण का मोक्ष होने पर स्नान करना चाहिए।
* ग्रहण के समय मन्तर जप कैसे करें -
ग्रहण काल में जपा गया मंत्र सिद्धि पत्र होता है, इसलिए इस समय अगर किसी भी मंत्र को आप मानते हो तो उसको आप 108 बार माला जाप करके सिद्ध कर सकते हो।
ग्रहण के समय देव मूर्ति को स्पर्श को नहीं करना चाहिए । ग्रहण के समय पवित्रता के लिए तेल, घी, जल आदि में कुश या तुलसी पत्र रख लेना चाहिए । ग्रहण के समय गर्भवती स्त्रियों को ग्रहण काल में विशेष सावधानी पूर्वक नारियल लेकर घर के अंदर ही रहना चाहिए जिससे बालक पर ग्रहण का विपरीत असर ना पड़े क्योंकि ग्रहण को देखना तो बिल्कुल भी नहीं चाहिए ।गर्भवती स्त्रियों के लिए इसे निषेध माना गया है। अरिष्ट निवारण हेतु ग्रहण के समय दक्षिणा, वस्त्र, काला तिल युक्त कास्य पात्र, सतनाजा यानी सात प्रकार का अनाज दान करना चाहिए।
*चतुर्थी तिथी को चंद्रमा दर्शन को निषेध क्यों माना जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ तिथियों को इसमें किसी देवी शक्ति का विशेष समबन्ध प्राकृतिक रूप से हैं। इसी प्रकार चतुर्थी तिथि का संबंध गणेश जी से हैं और गणेश जी इस तिथि के अधिष्ठाता देव हैं।इस तिथि को आकाश में सूर्य और चंद्रमा का अंतर उस कक्षा पर होता है जिस दिन इनके अंतर के प्रभाव से मनुष्य कुछ ऐसे कार्य कर सकते हैं जो कि उसके भावी जीवन में बाधक हो सकते हैं अथवा उसके दुष्परिणाम उसको भुगतने पड़ सकते हैं।
इस प्रभाव को रोकने के लिए ही शास्त्र कारों ने चतुर्थी के दिन को मानव के लिए व्रत पूजन इत्यादि धर्म कार्यों का विधान किया गया है ताकि उसमें सलंगन रहते हुए उन कामों से बचा जा सके। जिस प्रकार स्थूल जगत पर इनका प्रभाव पड़ता है भादो मास की शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा की चौथी कक्षा का विकास सूर्य की मृत्यु किरण वाले भाग से प्रकाशित होता है क्योंकि वैज्ञानिक भी सूर्य के बारे में इस बात को मानते हैं कि सूर्य से ऑक्सीजन एंव उर्जा ही नहीं निकलती बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड गैस भी निकलती है।
वैज्ञानिकों द्वारा सूर्य की मृत्यु के अनुसंधान भी किए जा रहे हैं क्योंकि चंद्रमा सूर्य के प्रभाव से ही प्रकाशित होता है।
इसलिए चतुर्थी को मृत्यु किरण प्रकाशित निषेध माना गया है, क्योंकि मन का संबंध सीधा चंद्रमा से माना जाता है। इसलिए चंद्र दर्शन हो जाएगा और उसकी वजह से प्रभावित व्यक्ति ऐसी बात कह बैठेगा जो कि दूसरों के लिए अन्यथा अर्थ लगाकर भ्रम पैदा करने का आधार बन जाएगा ।हमारे ऋषियों ने इस विज्ञानिक रहस्य को सार्वजनिक बनाने के लिए रोचक कथाएं चंद्र दर्शन के बारे में लिखी हैं। गणेश जी ने यह भी कहा है कि भाद्र शुक्ल चतुर्थी को कोई मानव तुम्हरा दर्शन नहीं करेगा और यदि भूल से तुम उसे देख भी लेगा तो तुम्हारी भांति वह भी तुम्हरी भांति कलंक का पात्र बन जाएगा। इसलिए हम चतुर्थी के दिन सूर्य अस्त होने के बाद गणेश जी की मूर्ति का पूजन अथवा उनके नाम जप ध्यान लगभग 3 घंटे तक करने चाहिए। परिवार के सदस्य एकत्रित होकर सामूहिक रूप से गणेश जी की वंदना करें । यह काम घर के अंदर ही किया जाना चाहिए ताकि चंद्रमा दर्शन से बचा जा सके। भादवा सुदी को चंद्रमा को देखना नहीं चाहिए देखने मात्र से कोई ना कोई दोष लग जाएगा। अगर यह भी भूल से दिख भी जाए तो किसी पत्थर को इस तरह की फेंके कि किसी को चोट नहीं लगे पर आपको गालियाँ जरूर मिले तो ऐसा करने से आपको कलंक नहीं लगेगा।
* चन्द्रमा के दर्शन होने पर निवारण हेतु मन्तर-
अगर आपको गलती से भादों का चन्द्रमा दिख जाये तो इस मन्त्र का जाप करे।
सोमराजा , सोमराणी , कहूं चौथ चन्द्रमा री कांणी , महारे माथे देवे उण्टताल , उग पर पराजो झूठा जाल । "
इसका मन में सात बार उच्चारण करे ।
धन्यवाद।
Posted by-kiran
0 टिप्पणियाँ