खाटू शयाम की कहानी || खाटू शयाम की चालीसा || खाटू शयाम की आरती कैसे करें || खाटू शयाम धाम कहाँ है ||

श्री प्रभु खाटू श्यामजी की कहानी और महिमा का वर्णन-
धर्म शास्त्र के अनुसार खाटू श्याम की अपार शक्ति और बल से प्रभावित होकर भगवान श्री कृष्ण ने इन्हें कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। खाटू श्याम जी भगवान श्री कृष्ण ने कलयुग में भगवान् श्री कृष्ण के अवतार के रूप में पूजे जायेगे । यह राजस्थान के सीकर जिले में स्थित बाबा श्याम के भव्य मंदिर में दर्शन के लिए हर दिन लाखों भक्तों पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्याम बाबा सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं और फर्श से अर्श तक पहुंचा सकते हैं। बाबा खाटू श्याम का रिश्ता महाभारत काल से माना जाता है।

 आइए जानते हैं विस्तार से भगवान खाटू श्याम की पूरी कहानी-
पाडू पुत्र महाबली भीम को हिडिम्बा से एक बाल रहित बलशाली पुत्र की प्राप्ति  हुई , जिसका नाम घटोत्कच रखा गया और भगवान श्री कृष्ण ने घटोत्कच की शादी  मौरवी से करवा दी । घटोत्कच को मौरवी से एक सिंह समान बालों वाले पुत्र की प्राप्ति हुई सिंह ( बब्बर शेर ) समान बाल होने के कारण इसका नाम बर्बरीक रखा गया। जब बर्बरीक छह साल का था तो घटोत्कच आकाश मार्ग से बर्बरीक को द्वारका ले गया और उसके लिए कल्याणकारी मार्ग पूछा । भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि क्षत्रिय का कर्म शक्ति होता है इसलिए बर्बरीक को शक्ति की प्राप्ति के लिए आज्ञात स्थान पर जाकर मां जगदम्बे की पूजा करनी होगी । काफी वर्षों तक तपस्या करने के पश्चात जगत जननी माताओं ने उसे ( जो बल और शक्ति दुनिया में किसी के पास नहीं ऐसी ) अतुलनीय शक्ति का वरदान दिया ।
 देवियों ने बर्बरीक को एक धनुष और तीन बाण दिए तथा कहा कि वह इन तीन बाणों से त्रिलोक को भी नष्ट कर सकता है , लेकिन साथ ही साथ एक वरदान मांगा कि यह हमेशा दीन - हीन की रक्षा करेगा तथा युद्ध में निर्बल का साथ देगा ।
 जब कौरव और पांडवों में युद्ध लगभग तय हो गया , दोनों पक्षों की सेनाएं कुरुक्षेत्र में जमा होने लगीं तो मात्र 13 वर्ष की उम्र में बर्बरीक की महाभारत युद्ध देखने के लिए कुरुक्षेत्र की ओर चल पड़ा ।
 रास्ते में भगवान भी कृष्ण ने जब बर्बरीक को देखा तो उन्हें बर्बरीक के बारे में पता चल गया कि देवियों ने बर्बरीक को एक धनुष और तीन बाण दे रखे है। जिससे वह त्रिलोकी को भी समाप्त कर सकता है । 
भगवान श्री कृष्ण को यह भी पता था कि बर्बरीक को जगत जननी देवियों ने यह वचन भी दे रखा है कि वह हमेशा हारने 
का साथ देगा । भगवान श्री कृष्ण ने सोचा यदि बर्बरीक ने युद्ध में भाग लिया तो महाभारत युद्ध का कभी फैसला नहीं होगा , क्योंकि महाबली बर्बरीक अपने वचनानुसार जो भी युद्ध में हारता नजर आया उसी के पक्ष में युद्ध करेगा । इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तीन बाणों से युद्ध जीत लोगे इसका क्या प्रमाण है ? '
 बर्बरीक ने कहा कि इसकी परीक्षा की जा सकती है । ' तब भगवान श्रीकृष्ण ने पीपल के वृक्ष से सभी पत्तों को बींधने के लिए कहा बर्बरीक ने शर संधान किया । बाण समी पत्तों को बीघते हुए उस पत्ते की ओर बढ़ने लगा जो श्रीकृष्ण ने पांव के नीचे छिपा रखा था । भगवान ने अपना पांव हटा लिया । तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि वत्स तुम वीर हो पर दानी नहीं ।
 तब बर्बरीक ने कहा कि भगवान इसकी भी परीक्षा ली जा सकती है । इस पर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से शीश दान मांग लिया । बर्बरीक ने कहा भगवान में तो महाभारत युद्ध देखने आया था इसीलिए ऐसी व्यवस्था कर दी जाए कि मैं महाभारत युद्ध देख सकूं । भगवान श्री कृष्ण ने उसके महाभारत युद्ध देखने की व्यवस्था कर दी और कहा कि बर्बरीक तुम इस युद्ध के निर्णायक होगे । तब बर्बरीक ने शीश काटकर भगवान श्री कृष्ण के चरणों में चढ़ा दिया । 
भगवान श्री कृष्ण ने उसका सिर पीपल के उसी पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर रखवा दिया ।
 18 दिन के युद्ध के बाद पांडव महाभारत युद्ध जीते । सभी को गर्व हो गया कि युद्ध उसी के कारण जीता है । तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि युद्ध का फैसला तो बर्बरीक करेगा । भगवान श्रीकृष्ण सभी को बर्बरीक के पास ले गए तथा अपना निर्णय सुनाने के लिए कहा । महाभारत युद्ध में उसने भगवान श्रीकृष्ण की नीति और चक्र चलते देखा है , जिन्होंने मेरा शीश लेकर यहां बैठा दिया और मेरे पिता घटोत्कच कर्ण द्वारा उस शक्ति से मारे गए जो उसने अर्जुन के लिए संभाल कर रखी थी । असल जीत तो भगवान श्री कृष्ण की हुई है । इससे पांडव लज्जित हो गए । भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में वह मेरे नाम से पूजा जाएगा । 
तब से बर्बरीक बाबा श्याम जी के नाम से पूजे जाने लगे । महाभारत का महान युद्ध खत्म हुआ और पांडव को विजय प्राप्त हुए विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है। श्री कृष्ण ने कहा क्योंकि बार्बरिक युद्ध के साक्षी रहे हैं और इसलिए इस प्रश्न का उत्तर भी उन्हीं से जानना चाहिए। तब परम वीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध  की विजय का एकमात्र श्रय श्री   कृष्ण जी को जाता है क्योंकि यह सब कुछ श्रीकृष्ण की उत्कृष्ट युद्ध नीति के कारण ही संभव हो पाया है।  विजय के पीछे सब कुछ श्रीकृष्ण की ही माया है। बारर्बीक  के सत्य वचन से देवताओं ने बार्बरीक पर फूलों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे तब श्री कृष्ण  ने वीर बर्बरीक की माहनता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा हे वीर बर्बरीक आप महान है मेरे आशीर्वाद से आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होगे और कलयुग में आप कृष्ण अवतार के रूप में पूजे जाएंगे और आप मेरे भक्तों पर सभी तरह के मनोकामनाएं पूर्ण करोगे, और यही कारण है कि भगवान श्री कृष्ण का भजन यह बहुत प्रसिद्ध हुआ हारा हुआ का साहारा आज हम सब देखते हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर लगातार कृपा बनाए रखते हैं।
 बाबा श्याम अपने वचनो के अनुसार हारे का सहारा बनते हैं इसलिए सारी दुनिया हारा  हुआ वयक्ति जब सताया गया होता है वह सच्चे मन से बाबा के नाम  और पूजा पाठ करता है तो उसका कल्याण अवश्य होता है ।खाटू श्याम बाबा बहुत ही अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं। जो भी तन मन धन से बाबा श्याम के पूजा पाठ करता है वह उनको आशीर्वाद अवश्य देते हैं। जिसको भी यह लेख अच्छा लगा तो कृपया इसे शेयर जरूर करें ताकि और भी लोग इसकी ऐसी जानकारी पढ़ सकें।


खाटू शयाम चालीसा:----
दोहा।।

श्री गुरु चरण ध्यान धर, सुमिरि सच्चिदानन्द । श्याम चालीसा भणत हूं, रच चौपाई छंद ।।

 ।।चौपाई।।

श्याम श्याम भजि बारम्बारा । सहज ही हो भवसागर पारा ।।

इन सम देव ना दूजा कोई । दीन दयालु न दाता होई ।।

भीमसुपुत्र अहिलवती जाया । कहीं भीम का पौत्र कहाया ।।

यह सब कथा सही कल्पनान्तर । तनिक ना मानों इसमें अन्तर ।।

बर्बरीक विष्णु अवतारा । भक्तन हेतु मनुज तनु धारा ।

वसुदेव देवकी प्यारे । यशुमति मैया नन्द दुलारे ।।

मधुसूदन गोपाल मुरारी । बृजकिशोर गोवर्धन धारी ।।

सियाराम श्री हरि गोविन्दा । दीनपाल श्री बाल मुकन्द ।।

दामोदर रणछोड़ बिहारी । नाथ द्वारिकाधीश खरारी ।।

नरहरि रूप प्रह्लाद प्यारा । खम्भ फारि हिरनाकुश मारा ।।

राधा वल्लभ रुक्मिणी कंता । गोपी वल्लभ कंस हनंता ।।

मनमोहन चित्तचोर कहाए । माखन चोरि चोरि कर खाए ।।

मुरलीधर यदुपति घनश्यामा । कृष्ण पतितपावन अभिरामा ।।

मायापति लक्ष्मीपति ईसा । पुरुषोत्तम केशव जगदीशा ।।

विश्वपति त्रिभुवन उजियारा । दीन बन्धु भक्तन रखवारा ।।

प्रभु का भेद कोई ना पाया । शेष महेश थके मुनिराया ।।

नारद शारद ऋषि योगिन्दर । श्याम श्याम सब रटत निरन्तर ।।

करि कोविद करि सके न गिनन्ता । नाम अपार अथाह अनन्ता ।।

हर सृष्टि हर युग में भाई । ले अवतार भक्त सुखदाई ।।

हृदय मांहि करि देखु विचारा । श्याम भजे तो हो निस्तारा ।।

कीर पढ़ावत गणिका तारी । भीलनी की भक्ति बलिहारी ।।

सती अहिल्या गौतम नारी । भई श्राप वश शिला दुखारी ।।

श्याम चरण रज नित लाई । पहुंची पतिलोक में जाई ।।

अजामिल अरू सदन कसाई । नाम प्रताप परम गति पाई ।।

जाके श्याम नाम अधारा । सुख लहहि दु:ख दूर हो सारा ।।

श्याम सुलोचन है अति सुन्दर । मोर मुकुट सिर तन पीताम्बर ।।

गल वैजयन्ति माल सुहाई । छवि अनूप भक्तन मन भाई ।।

श्याम श्याम सुमिरहु दिनराती । शाम दुपहरि अरू परभाती ।।

श्याम सारथी जिसके रथ के । रोड़े दूर होय उस पथ के ।।

श्याम भक्त न कहीं पर हारा । भीर परि तब श्याम पुकारा ।।

रसना श्याम नाम रस पी ले । जी ले श्याम नाम के हाले ।।

संसारी सुख भोग मिलेगा । अन्त श्याम सुख योग मिलेगा ।।

श्याम प्रभु हैं तन के काले । मन के गोरे भोले भाले ।।

श्याम संत भक्तन हितकारी । रोग दोष अघ नाशै भारी ।।

प्रेम सहित जे नाम पुकारा । भक्त लगत श्याम को प्यारा ।।

खाटू में है मथुरा वासी । पार ब्रह्म पूरण अविनासी ।।

सुधा तान भरि मुरली बजाई । चहुं दिशि नाना जहां सुनि पाई ।।

वृद्ध बाल जेते नारी नर । मुग्ध भये सुनि वंशी के स्वर ।।

दौड़ दौड़ पहुंचे सब जाई । खाटू में जहां श्याम कन्हाई ।।

जिसने श्याम स्वरूप निहारा । भव भय से पाया छुटकारा ।।

 ।।दोहा।।

श्याम सलोने सांवरे, बर्बरीक तनु धार ।

इच्छा पूर्ण भक्त की, करो न लाओ बार ।।


खाटू श्याम जी की आरती -

ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे।
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे।
खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे।
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे।
भक्त आरती गावे, जय – जयकार करे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे।
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम – श्याम उचरे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत भक्त – जन, मनवांछित फल पावे॥
॥ॐ जय श्री श्याम हरे…॥

धन्यवाद: 
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