आत्मा कया है || आत्मा और शरीर का समबन्ध || आत्मा और परमात्मा में अन्तर || आत्मा कहाँ रहती है |

आत्मा और शरीर मे कया फर्क है -जब एक इंसान धरती पर जन्म लेता है और फिर जन्म लेने के बाद जैसे-जैसे बड़ा होता है तो वह अपनी संसारिंक दुनिया में ऐसे उलझ कर रह जाता है जैसे उसको कभी वापस जाना ही ना हो। इस बात में कोई शंका नहीं है कि जिसने भी धरती पर जन्म लिया उसे वापस जाना ही है क्योंकि आपका शरीर जल जाएगा और केवल आत्मा है जो अजर अमर रहेगी। बहुत कम लोग इस बात को समझ पाते हैं कि सिर्फ  शरीर मरता है आत्मा नहीं।  आज हम आपको इस लेख के माध्यम से इस बारे में  जितना हो  सके आपको इस रहस्य को समझने की कोशिश करेंगे कि आत्मा और शरीर में क्या फर्क है।


आत्मा और शरीर मे क्या फर्क है ? 

आत्मा अजर ' ' अमर ' है- आत्मा का  न कभी जन्म होता और नहीं कभी  मृत्यु  होती ।' आत्मा ' सत्य स्वरूप है । ' आत्मा ' आनन्द का  आत्मा को पहचानना , आत्मा को समझना एक कठिन आत्मा को पहचान लिया तो समझो कि उसने नारायण प्रभु को पा लिया । 'आत्मा ' न तो शरीर है , न ही मन है , न ही इन्द्रियां है ।आत्मा आयु एवम् जन्म मृत्यु से भी परे है । ' आत्मा ' कालातीत है ' आत्मा ' सासारिकता एवम समस्त दिशाओं से परे है। आत्मा परमात्मा है- आत्मा परम शुद्ध और चतैन्य है । 

 भगवान श्रीकृष्ण जी ने " गीता " में आत्मा के विषय को अच्छी तरह से समझाया है गीता नित्य प्रति जरूर पढ़नी चाहिये । मनुष्य जन्म अत्यन्त दुर्लभ है । केवल मनुष्य जीवन में ही यह योग्यता है कि वह कर्मों से मुक्त हो और बहुत कम लोग हैं जो कमों से मुक्त होना चाहते हैं । केवल काम करते रहने से मुक्ति नहीं मिलती । सिर्फ आशीर्वाद और कृपा से ही कर्मों का बँधन समाप्त हो सकता है । पता लगाओ तुम यहाँ धरती पर  किस लिए नहीं हो । तुम यहाँ आरापों के लिए नहीं हो तुम यहाँ रोने के लिए नहीं हो । तुम यहाँ सोने के लिए नहीं हो । स्वयं सत् है , स्वयं चित् है , स्वयं आनंद है , इस प्रकार स्वयं को संशय रहित सुदृद रूप से जानना ही परमात्मा को पाना है , कयोंकि  महान से मिलना भी महत्वशाली है, किंतु पूर्ण महत्व तो महान होने में है। जैसे धनी की मैत्री भी महत्व शाली है, किंतु पूर्ण महत्व धनी होने में है वैसे ही भगवान को पाना भगवान से मिलना भी महत्व की बात है, किंतु पूर्णता तो भगवान होने में है।

आत्मा हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है क्योंकि आत्मा के बिना शरीर का कोई महत्व नहीं है आत्मा एक सूक्ष्म और चैतन्य  सत्ता है जिसे हम खुली आंखों से नहीं देख सकते पर इसे अनुभव कर सकते हैं। जबकि शरीर हड्डी और मास से बना हुआ एक ढांचा है। जिसमें आत्मा निवास करती है इस बात को समझने की जरूरत है कि किसी भी व्यक्ति के जब जन्म होता है तो उसके साथ आत्मा भी साथ साथ जन्म लेती हैं ।अगर एक व्यक्ति की मृत्यु होती है तब शरीर से आत्मा निकल जाती हैं और आत्मा कर निकलना ही मृत्यु कहलाता है। लेकिन फिर भी लोग कभी भी आत्मा की चिंता नहीं करते केवल शरीर की रखरखाव और उसकी जररूतो को पूरी करने में अपना जीवन दाव पर लगा देते हैं अगर आप सही मायने में आत्मा को समझाना चाहते हैं तो इसके लिए गीता के अध्ययन करना बहुत जरूरी है।

गीता में बताया गया है कि आत्मा एक ऐसी चैतन्य शक्ति  है जिसे काटना, जलाना, मारना मुमकिन नहीं है क्योंकि आत्मा को ना तो शस्त्र काट सकते ना ही आग जला सकती।  आत्मा तो अजर अमर है। हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं कि आत्मा एक शरीर को त्याग कर दूसरे को ग्रहण कर लेती है यही जन्म और मृत्यु का चक्कर चलता रहता है ।


अगर आप भी अपने जिंदगी से मौक्ष पाना चाहते हैं तो इसके लिए आत्मा के लिए भी ध्यान है ऐसी खुराक है, जिसको अपना कर हम अपनी आत्मा को मजबूत कर सकते हैं। क्योंकि हर प्रकार सुख दुःख अनूभव करता पर आत्मा नहीं।

  आत्मा का मजबूत होना बहुत जरूरी है जो लोग बहुत कमजोर और हीन भावना से ग्रस्त हो जाते और कठिन  परिस्थितियाँ  होने पर बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं।

 जो मनुष्य  ध्यान, मेडिटेशन करके अपनी आत्मा को मजबूत कर लेते हैं तो उनको किसी भी प्रकार की पस्थितियों से कोई फर्क नहीं पड़ता यही फर्क है कि संत लोगों को किसी के सुख-दुख को कोई ज्यादा असर नहीं होता ।

धन्यवाद ।

Posted by-kiran


 

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