श्राद्ध कैसे मनाये || श्राद्ध पक्ष में कया करें और कया न करें || श्राद्ध पक्ष कब है 2023|| श्राद्ध पक्ष में भोजन कैसे बनायें।

 Tittle-श्राद्ध क्यू मनाये जाते हैं ।

29 सितंबर 2023 से हमारे हिंदू धर्म के अनुसार श्राद्ध शुरू होने वाले हैं. आज हम इस लेख के माध्यम से आपको श्राद्ध कैसे और कब और उनका तर्पण किस प्रकार किया जाना चाहिए यह बताने की पुरी  कोशिश करेंगे। 


पितृ श्राद्ध किस प्रकार मनाएं-

प्राचीन काल से मनुष्यों  में श्राद्ध के प्रति बहुत ही अटूट श्रद्धा भक्ति थी, वैसे इस समय मनुष्य में देखने को नहीं मिलती इसलिए आजकल के लोग श्राद्ध को व्यर्थ समझकर उसे नहीं करते। जो लोग श्राद्ध करते हैं उनमें कुछ तो विधि अनुसार और कुछ श्रद्धा के साथ श्राद्ध करते हैं और बाकी 80% लोग तो केवल रसम रिवाज की दृष्टि से श्राद्ध करते हैं । जबकि श्राद्ध भक्ति द्वारा और विधि से किया हुआ श्राद्ध अति उत्तम और कल्याण देने वाला माना जाता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धापूर्वक शास्त्रों के अनुसार सभी को श्राद्ध यथा संभव करते रहना चाहिए।

जो लोग सभी श्राद्ध नहीं कर सकते  तो वह कम से कम साल में एक बार जब पितृ पक्ष के जो श्राद्ध आते हैं  उनको अवश्य ही पितृगण की मृत्यु  तिथि के दिन श्राद्ध करना चाहिए।  पितृ पक्ष के साथ पितरों का विशेष संबंध रहता है इसलिए शास्त्रों में पितृ पक्ष में श्राद्ध करने की विशेष महिमा बताई गई है। मनुष्य को पितरगण की संतुष्टि के लिए अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। इस संसार में श्राद्ध  करने वाले के लिए श्राद्ध से बढ़कर और कोई वस्तु कल्याण कारक नहीं है। यह हमारे कर्म पुराण में बताया गया है। जो व्यक्ति अपने पितरों को एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है वह सभी प्रकार के पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुण्य संसार चक्कर में नहीं आता, ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा गया है।

पितृ पूजन से पितर संतुष्ट होकर अपने परिवार  के लिए आयु, पुत्र, यश, कीर्ति, पुष्टि, बल ,वैभव, धन ,सुख और सुख शांति समृद्धि देते हैं।  श्राद्ध करता को लंबी आयु धन, विद्या ,सुख राज्य और मोक्ष की प्रदान करते हैं।  पितरों की भक्ति करने से पुष्टि, आयु और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। जो मनुष्य श्रद्धा भक्ति से श्राद्ध करता है उसके कुल में कोई भी दुखी नहीं होता। श्राद्ध में भोजन करने के बाद जो आचमन  किया जाता है तथा पैर धोए जाते हैं उसी से बहुत से पितृ गंण संतुष्ट हो जाते हैं। परिवार के सभी व्यक्तियों के साथ मिलकर किया गया श्राद्ध अति उत्तम माना जाता है।

जो व्यक्ति अपने वैभव के अनुसार विधिपूर्वक श्राद्ध करता है वह साक्षात ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त प्राणियों को तृप्त करता है।  श्रद्धा पूर्वक विधि विधान से श्राद्ध करने वाला मनुष्य ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, सूर्य अग्नि, वायु, विश्व देव, पितरगण, मनुष्य गण पशुगण, समस्त भूत गण तथा सर्पगण को भी संतुष्ट करता हुआ संपूर्ण जगत को संतुष्ट करता है। इतना ही नहीं हमारे पितृगण पाप रहित होकर ब्रह्म तत्व को प्राप्त करते हैं।

 यजमान अथवा आचार्य किसी भी द्विज के पितरगण  यदि पीशाच हो गए हो, या कीड़े मकोड़े हो गए तो उन सबके निमित्त तर्पण का जल भले ही उचिछष्ट हो,   परंतु वह तदद्द योनियों में पड़े हुए पितरों को संतोष के लिए प्राप्त हो जाता है। इसलिए श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए जो मनुष्य एक दिन भी श्राद्ध करता है उसके पितृगण वर्ष भर के लिए तृप्त हो जाते हैं यह निश्चित है।



श्राद्ध के समय अमावस्य का महत्व 

श्राद्ध  में अमावस्या का विशेष महत्व इसलिए बताया गया है क्योंकि इस दिन हमारे पितृगण वायु रूप में हमारे घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने परिवार से श्रद्धा की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता तब तक वह वही भूख प्यास से व्याकुल होकर खड़े रहते हैं और सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वह निराश होकर अगर आप श्रद्धा नहीं करते दुखी मन से अपने वंश की निंदा करते हुए और लंबी-लंबी सांस खींचते अपने लोक को चले जाते हैं । इसलिए ध्यान रहे अमावस्य के दिन श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पीतर जनों के पुत्र तथा बंधु बांधव उनका श्राद्ध करते हैं और अगर किसी तीर्थ में जाकर जैसे कुरुक्षेत्र या गया आदि में कार्य में प्रवृत्त  होकर श्राद्ध करते हैं उनके पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं।  उन्हें भूख प्यास कभी नहीं लगती इसलिए विद्वानों को प्रयत्नपूर्वक यथाविधी अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई भी दुखी नहीं रहता ।पितरों की पूजा करके मनुष्य हर तरह का सुख शांति और समृद्धि धन दौलत  को प्राप्त करता है।  देव कार्य से भी पितृ कार्य का विशेष महत्व बताया गया है ।देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी माना गया है,हमारे  हिंदू धर्म के अनुसार और शास्त्रों के अनुसार।


•‍अपने पितरों को निमंत्रण कैसे दें-

हर साल अश्विवनी  महीने में श्राद्ध शुरू होते हैं और अब सितंबर में श्राद्ध का समय आ गया है ऐसा जानकर हमारे पितरों को अधिक प्रसन्नता होती है। वह ऐसा विचार करके उस श्राद्ध में मनके समान तीव्र गति से हमारे धरती पर पहुंचते हैं और अंतरिक्षग्रामी व पितरगण  उस श्राद्ध  में ब्राह्मणों के साथ भी भोजन करते हैं। वह वायु रूप में हमारे घर पर आते हैं और भोजन करके परम गति को प्राप्त हो जाते हैं। श्राद्ध के पूर्व जिन ब्राह्मणों को निमंत्रण किया जाता है पितृगन उन्हीं के शरीर में प्रवेश होकर वहां भोजन करते हैं। उसके बाद वह पुने वहां से फिर अपने लोक को चले जाते हैं। जैसे ही जिस भी तिथि को किसी व्यक्ति का श्राद्ध पड़ता है एक दिन शाम को अपने में दरवाजे पर एक लोटा जल का छिड़काव अवश्य करें, क्योंकि ऐसा माना जाता है हमारे पितृ देवता श्याम से ही हमारे दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते हैं। इसलिए भूल कर भी कोई भी किसी प्रकार का अनर्थ कार्य न करें जिससे उनको चोट पहुंचे। ध्यान रखना चाहिए जब श्राद्ध का समय आता है अपने कुल पुरोहित को ही भोजन के लिए निमंत्रण करना चाहिए।


* श्राद्ध के समय किन चीजों का प्रयोग करना चाहिए-

भगवान विष्णु कहते हैं हे तिल मेरे पसीने से उत्पन्न हुए हैं ,इसलिए तिल बहुत ही पवित्र माने जाते हैं।  तिल का प्रयोग करने पर असुर दानव और दैत्य भाग जाते हैं। तील श्वेत कृष्ण और गोमूत्र वर्ण के समान होते हैं। वह मेरे शरीर के द्वारा किए गए समस्त पापों का नष्ट करें ऐसी भावना करनी चाहिए । एक ही तिल का दान स्वर्ण के 32 सेर तिल के दान के समान है। तर्पण दान एवं हाथ में दिया गया तिल का दान अच्छा होता है। कुश मेरे शरीर के रोगों से उत्पन्न हुए और तिल की उत्पत्ति मेरे पसीने से इसलिए देवताओं की तृप्ति के लिए मुख्य रूप से कुश की और पितरों की तृप्ति के लिए तिल की आवश्यकता होती है।इसलिए श्राद्ध के दिनों में तिल का प्रयोग करना अति उत्तम बताया जाता है क्योंकि जल में तिल का प्रयोग करने से हमारे पितरगण संतुष्ट होते हैं।


*कुश का प्रयोग कैसे करें-

श्राद्ध के समय कुश के कई प्रयोग किये जाते है, क्योंकि कुशा के मूल भाग में ब्रह्मा मध्य भाग में विष्णु तथा अगर भाग में शिव को माना जाता है।  यह तीनों देव उसमें प्रतिष्ठित माने गए हैं । ब्राह्मण मंत्र कुश अग्नि और तुलसी यह बार-बार समर्पित होने पर भी प्रदूषित नहीं माने जाते। कभी भी निर्मलिया अर्थात बासी नहीं होते। इसका पूजा में बारंबार प्रयोग किया जा सकता है। तुलसी ब्राह्मण को विष्णु तथा एकादशी व्रत यह पांचो संसार सागर में डूबते हुए लोगों को नौका के समान पार करवाते हैं । श्राद्ध के समय विशेष कर पितरों के लिए जब तर्पण किया जाता है उसे समय कुश का हाथ में लेना सबसे ज्यादा जरूरी माना जाता है। आप जब भी खुद या किसी ब्राह्मण से अपने पितरों के लिए तर्पण करवाते हैं तो हाथ में कुशा होना बहुत जरूरी है। कुश के बिना पितरो के लिए तर्पण नही लगता। 


* श्राद्ध का खाना हमारे पितृगणों  तक कैसे पहुंचता है?

कुछ लोगों का यह सवाल  होता है कि जो हम अपने पितरों के संतुष्टि के लिए भोजन बनाते हैं या फिर  तर्पण करते हैं वह परलोक में गए हुए प्रेत या देवता बने हुए हमारे पूर्वजों को कैसे प्राप्त हो सकता है। 

उत्तर ----

वह भोजन वैसे ही मिलता है जैसे विदेश में रहने वाले हमारे किसी मित्र को हमारे द्वारा भेजे हुए मनीआर्डर के पैसे मिल सकते हैं। श्राद्ध में श्रद्धा प्रधान है, इस सारे ब्रह्मांड के स्वामी परमात्मा है। यह सब कुछ उनके नियंत्रण में होता है उनको पता है कौन जीव कहां किस लोक में है उनको बताने की कोई भी जरूरत नहीं है। साथ में हम श्रद्धापूर्व किसी के नियमित जब तर्पण आदि करेंगे तो उसका फल उसको उसे परमात्मा के द्वारा अवश्य ही मिल जाएगा। परंतु सर्वदृष्टा सर्व काम में सर्वोत्तम को कुछ बतलाने की जरूरत नहीं पड़ती वह हमारे संकल्प से ही समझ लेते हैं कि हम किस व्यक्ति के लिए श्राद्ध अर्पण कर रहे हैं और फिर उसको वह वायु,  रुद्र और आदित्य इन देव शक्तियों के द्वारा पहुंचा देते हैं जहां पर हमारे पितरगण  रहते हैं उनको उनका भोजन वहां तक पहुंच जाता है।

कुछ लोगों का प्रश्न होता है कि यदि जीव मृत्यु के बाद देवलोक से लौटकर मनुष्य पशु, पक्षियों, या किसी योनी  को प्राप्त हो गए तो उसको श्राद्ध का फल कैसे मिलेगा।

उत्तर---- 

 उन सभी शरीरों को हमारे द्वारा दिया गया पदार्थ उनको वहां पदार्थों के रूप में प्राप्त हो जाएंगे।  मान लीजिए हमारा कोई संबंधी अमेरिका में रहते हैं उसे रूपये की जरूरत है और वहां पर रुपए नहीं चलते, डॉलर चलते हैं तब हम यहां के रुपए ही बैंक में जमा करवा सकते हैं। परंतु वहां का बैंक अपनी दर से मुद्रा को परिवर्तन करके उसे वहां दे देगा। यहां की दी हुई सुंदर मिठाई यदि हमारा कोई जीव घोड़ा आदि कुछ बन गया है तो परमात्मा उसके लिए सुंदर घास बनाकर उस तक पहुंच ही देगा। ऐसी ही बात सबको समझनी चाहिए क्योंकि परमपिता परमात्मा पूरे संसार को चला रहे हैं तो क्या वह हमारे द्वारा दिया गया भोजन हमारे पितरों को नहीं पहुंचा सकते हैं वह कुछ भी कर सकते हैं।

* मोश्र किसे कहते हैं? 

आप बहुत लोगों का यह सवाल होता है कि अगर हमने अपने पितरों की मुक्ति करवा दि हैं तो फिर मुक्ति क्यों नहीं होती , क्या मुक्त होने पर भी जीव श्राद्ध आदि में दिए गए पदार्थ मिलते हैं, यदि नहीं मिलते तो फिर उनके लिए श्राद्ध क्यों किया जाए ।

उत्तर------मुक्ति कहते हैं--- संसार के अज्ञानजनित कर्म बंधन का नाश होकर भगवत स्वरूप की प्राप्ति को।

 जिनके प्राण उत्क्ररमण नहीं करते और सूक्ष्म शरीर बिखर जाता हैै तथा आत्मा का परमात्मा में मिलन हो जाताा है।  वे भी मुक्त हैं और जो भगवान के दिव्य परमधाम में पहुंचकर भगवान के पार्षद बन जाते हैं ,वह भी मुक्त हैं। एक सर्वथा अशरीर  होकर अपने पृथक अस्तित्व को बिल्कुल लुप्त कर देते हैं।  दूसरे दिव्य शरीर में पाकर भगवान के सामने ही सदा मुक्त होकर भगवान की लीला में शामिल रहते हैं। यह लोग कभी भगवान की इच्छा से भगवान की भांति आधिकारिक पुरुष के रूप में जगत के लोगों का कल्याण करने के लिए जगत में भी आज जा सकते हैं। इन मुक्त पुरुषों के लिए यहां के श्राद्ध तर्पण की कोई आवश्यकता नहीं है। वह सर्वत सत्य है। परंतु हमें यह पता कैसे लगा की अमुक पितल की मुक्ति हो गई है। हम मुक्ति मानकर श्राद  तर्पण नही  करेंगे और उसकी  मुक्ति ना हुई होगी तो उसे अतृप्त  रहना पड़ेगा और हम कर्तव्य से अलग होकर अपराधी माने जाएंगे।  ऐसी स्थिति में श्राद्ध  आदि आवश्यक करने चाहिए।  इससे हानि तो है ही नहीं।  

मान लीजिए उसकी मुक्ति हो गई तो हमारे श्राद्ध रूप सत्कर्म का शुभ फल लौटकर हमें ही प्राप्त हो जाएगा। जैसे किसी के नाम भेजे हुए मनीआर्डर के रुपए। उसे व्यक्ति की वहां न मिलने पर वापस मिल जाते हैं। श्रद्धा और विधिपूर्वक किए हुए श्राद्ध तर्पण, दान, कीर्तन तथा जप आदि से पितरों को अवश्य शांति मिलती हैं और उनकी सद्गगति तक हो जाती हैं। इसलिए पितरों के लिए यह सब अवश्य करना चाहिए। अपने श्राद्धयुक्त सदअनुष्ठानों से संतान अपने पूर्वजों को नर्क से बचाकर परम सुभगती को प्राप्त कर सकते हैं।

*श्राद्ध किस प्रकार करें-

 आइए जानते हैं हम श्राद्ध किस दिन और कैसे करें?

 श्राद्ध के दिन स्नान करके प्रश्न मन से शुद्ध वस्त्र पहन कर भूमि को गोबर या जल से शुद्ध करें और फिर रसोई घर में खाना खुद बनाना चाहिए। उसे भोजन को पाकर पित्रेश्वर आदि प्रसन्न होते हैं। हमारे पितर सिर्फ पवित्र अन्न  और जल ग्रहण करते हैं वह नौकर के हाथ से बना भोजन नहीं खाना चाहते।  इसलिए जितना भी हो सके अपने पितरों के लिए खुद खाना बनाना चाहिए। पितरों के लिए जो भोजन बनाया जाता है,उनको तुलसी बहुत पसंद है। इसलिए तुलसी पत्र धोकर भोजन में अवश्य रखनी चाहिए ।तीर्थ में श्राद्ध करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है श्राद्ध के लिए तीर्थ स्थानो में कुरुक्षेत्र, गया, गंगा, सरस्वती पुषकर अधिक पवित्र माने जाते हैं। 


*श्राद्ध के समय क्या नहीं करना चाहिए---

 जब हम श्राद्ध करते हैं ऐसे में बेलपत्र, चंपा , कचनार लोहे के पात्र श्राद्ध में निषेध माने जाते हैं। 

*क्या करें---

जिस तिथि को आपके परिवार में आपके पितर का श्राद्ध आ जाये तब श्राद्ध  से एक दिन  पहले ब्राह्मण को निमंत्रण करें। और फिर  ब्राह्मणों के आने पर पर हाथ पैर धुलवाकर प्रेम से भोजन करवाये। भोजन के बाद हाथ धुलवाकर उनको अपनी श्रद्धा के अनुसार दान दक्षिणा अवश्य दें फिर सबके साथ खुद भोजन करें।  श्राद्ध करते समय जिस भी व्यक्ति का श्राद्ध करते हैं सबसे पहले अच्छे से भोजन बनाएं और फिर ब्राह्मण के साथ विधि पूर्वक सूर्य को जल दे , अग्नि को खाना दे और उसके बाद ब्राह्मण को खाना खिलाए।  अगर आप घर पर ब्राह्मण को बुलाकर खाना नहीं मिला सकते तो आप मंदिर में भी किसी ब्राह्मण को खाना ले जाकर दे सकते हो। श्राद्ध वाले दिन सबसे पहले गाय की रोटी निकालना चाहिए उसके बाद दो रोटी कुत्ते की और एक रोटी कोवै और चींटियों  के लिए  निकालना अति उत्तम मानी जाती हैं।

श्राद्ध वाले दिन क्या ना करें -

हमारे धर्म के अनुसार ऐसा माना जाता है श्रद्धा वाले दिन खाना बना कर आप गैस चूल्हे को साफ करने के लिए जल्दबाजी न करें और ना ही इस दिन किसी को भी भला बुरा कहें ।

 *श्राद्ध वाले दिन जितना हो सके भजन कीर्तन करे और पितृ स्तोत्र का पाठ करें।

श्राद्ध करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि उनके खाने में खीर अवश्य बनाएं।श्राद्ध करते समय खाने में लहसुन प्याज का परहेज  रखें और जितना हो सके खाने में इस प्रकार का भजन शामिल हो जिसमें किसी भी प्रकार के कीड़ा ना लगा हो ।

श्राद्ध की पूरी विधि करने के बाद आप पितृ स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हो, क्योंकि ऐसा करने से आपके पितृगण आपसे खुश होकर आपके परिवार को और आपके बच्चों को आशीर्वाद अवश्य देंगे। श्राद्ध  साल में एक बार आते हैं इनको श्रद्धा भक्ति के साथ ही करना चाहिए क्योंकि हमारे पितृ देवता और भगवान हमारे भाव के भूखे हैं ना की दिखावा के इसलिए जो भी पूजा पाठ करें उसकी विधि विधान के अनुसार करें किसी दिखाए या डर से ना करें।

पितृस्तोत्र का पाठ कैसे करें —

अर्चितानाममूर्ताना पितॄणा दीप्ततेजसाम् | नमस्यामि सदा तेषा ध्यानिना दिया इन्द्रादीनां च नेतारों दषमारीचयोस्तथा । सप्तपणा तथान्येषा तान् नमस्यामि कामान मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा । तान् नमस्याम्यह सर्वान् पितॄनप्सूदधावप नक्षत्राणां ग्रहह्मणां च वा वग्न्योर्नमसस्तथा । द्यावापृथिव्याश्च नमो नमस्यामि कृताञ्जलि देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् । अश्यस्य सदा नमस्यामि कृताञ्जलि नमो गणेभ्यः सप्तम्यस्तथा लोकेषु सप्तसु स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगशुभेचे । सोमाघारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥ अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितॄनहम् । अग्नीसोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ।। ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः । जगतस्वरूपितॄंश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः ॥ | तेम्योऽखिलेम्यो योगिम्यः पितृभ्यो यतमानसः । नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु सवधाभुजः ।।

•श्राद्ध तिथि सितम्बर  2023  


निष्कर्ष----पंडित को भोजन करवाने के बाद अगर आप इस पाठ करते हैं या  करवाते हैं कि यह अति उत्तम माना जाता है। तर्पण करते समय सोना चांदी तांबा या पितल का पात्र होना चाहिए, मिट्टी का नहीं। तर्पण करते समय मनुष्य को दो और पितरों को तीन-तीन अंजलि जल देना चाहिए। तर्पण करते समय तिल और कुश के साथ किया जाना चाहिए तिल और कुषा के साथ श्रद्धा के साथ जो भी पंडित को दिया जाता है अमृत रूप होकर पितरों को प्राप्त होता है और हमारे पितरगण  हमें आशीर्वाद देकर खुद भी तृप्तत होते है और  अपनी वंशजो वृृद्धि की कामना करते है। 
 

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