Tittle -गणपति की सथापना कैसे करें - हिंदू धर्म में भादो माह की गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व बताया गया है धार्मिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान गणपति जी का जन्म हुआ था और इस मौके पर लोग अपने घर में गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करते हैं और अपनी श्रद्धा अनुसार 7 दिन 9 दिन या फिर 11 दिन धूमधाम से उनकी पूजा अर्चना करते हैं और पूजा करने के बाद फिर उनको जल प्रवाह यानी विसर्जन करने के लिए विधि विधान बनाया हुआ है आईए जानते हैं आज हम इस लेख के माध्यम से किस प्रकार घर में हम खुद घर पर गणपति जी की स्थापना कर सकते हैं।
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*गणपति स्थापना का शुभ मुहूर्त—
चतुर्थी तिथि की शुरुआत 18 सितंबर 2013 को दोपहर 2 बजकर पर शुरू होगी और इसका समापन 19 सितंबर 2023 को 3:13 पर तक रहेगा।
* गणपति की स्थापना घर में कैसे करें-
गणपति जी की पूजा आरम्भ नित्य कर्म का सम्पादन कर शुद्ध हो , सुखद आसन से पूर्वाभिमुख ( पूर्व की ओर मुख करके ) बैठे । पूजन के लिए समस्त सामग्री एकत्रित करके अपने पास रख लें । सामने चौकी पर वस्त्र बिछाकर , गणपति की मूर्ति चित्र या यन्त्र स्थापित कर ले । प्रतिमा के अभाव में एक पात्र में चावल भरकर उसके मध्य में एक सुपारी को मौली ( कलावा ) लपेटकर रख ले और उसमें गणपति की भावना करे ।
पूजन प्रारम्भ करने से पूर्व घी का दीपक जलाकर देव - प्रतिमा की दाहिनी ओर , अगरबत्ती , सुभाषित धूप बायें प्रज्वलित करके स्थापित करें । दीपक की गन्ध - पुष्प और अक्षतादि से ॐ दीप ज्योतिषे नमः ' मन्त्र से पूजा करके निम्न प्रार्थना मन्त्र बोलकर प्रार्थना करें।
भो दीप ! देवरूपस्तवि कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत यावत् कर्म समाप्तिः स्यात्तावत्त्वं सुसिथरो भव ।।
अब नीचे लिखे मन्त्रों में तीन बार आचमन करें और चौथे मन्त्र से हाथ धो लें ।
( 1 ) ॐ केशवाय नमः स्वाहा
( 2 ) ॐ नारायणाय नमः स्वाहा
( 3 ) ॐ माधवाय नमः स्वाहा
( 4 ) ॐ गोविन्दाय नमः ' बोलकर हाथ धो लें और जल को अपनी बायीं ओर पीछे फेक दें । दाहिने हाथ की अंगूली में कुशा की बनी पवित्री धारण करें और अगर कुश के अभाव में स्वर्ण या चांदी की अंगूठी भी धारण की जा सकती है।
पवित्री धारण करके बाएं हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लेता था नीचे लेकर मंत्र बोले और दाहिने हाथ के माध्यम और अनामिका को मिलाकर जल को मस्तक पर छिड़के।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्था गतोऽपि वा । यः स्मरत् पुण्डरीकाक्ष स बायाभ्यन्तरः शुचिः । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो | गजकर्णकी लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥ धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो मालपन्द्री | गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि विद्यारम्भ विवाहे च प्रवेश | निर्गमे तथा संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥ शुक्लाम्बरधर देव शशिवर्ण यहः सुरासुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः । सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।। सर्वदा सर्व कार्येषु नास्ति | तेषाममगलम् । येषां हृदिस्थी भगवान् मंगलायतनो हरिः । तदेव लग्न सुदिन तदेव लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः । येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ।। - यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम् ।। अन्न्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेम वहाम्यहम् ॥ स्मृते सकल कल्याणं भाजनं यत्र जायते । पुरुष समज नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् । सर्वेष्वारम्भकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा विशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनः ।
इस मंगल पाठ को करके हाथ में जल , अक्षत , पुष्प आदि लेकर संकल्प करें शुद्ध और पवित्र होकर तीन बार आचमन और तीन बार प्राणायाम करके प्रभु का ध्यान करें ।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः । उमामहेश्वराभ्यां नमः । वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः । शचीपुरन्दराभ्यां नमः । मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः वास्तुदेवताभ्यो नमः स्थानदेवताभ्यो नमः । श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः ।
ॐ सिद्धबुद्धिसहिताय विष्णुः सुमुखश्च एकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । लम्बोदरच विकटो विघ्ननाशो विनायकः । धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।। विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा सङ्ग्रामे सकंटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ।। शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्ण चतुर्भुजम् प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।
संकल्प कैसे करें—-
ॐ विष्णुः विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया । प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽहिन द्वितीय परार्द्ध श्री श्वेत वराह कल्पे ववस्वतमन्वन्तरे अष्टविंशतित में युगे कलियुगे कलि प्रथम चरणे भूलों के जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तान्तर्गतक देश अमुक नगरे , ग्रामे , स्थाने आदि अमुक नाम संवत्सरे , श्री सूर्ये अमुकायने , अमुक ऋतो , अमुक मासे , अमुक पक्षे ,
अमुक तिथी , अमुक वासरे , अमुक नक्षत्रे , अमुक योगे , अमुक करणे , अमुक गोत्रोत्पन्न अमुक शमोऽह , वर्माऽहं आदि ममात्मनः श्री महागणपतिप्रीत्यर्थ , मम अमुक कामना सिद्धयर्थ अमुक संख्यायां जपं पूजनं करिष्ये।।
( अमुक शब्द की जगह आप अपना नाम बोले )
इस प्रकार संकल्प करके हाथ के जल को किसी पात्र में रखें या पृथ्वी पर गिरा दें सर्वप्रथम गणेश के स्वरूप का चिन्तन करते हुए उनका आवाहन करें याद रहे , प्रतिष्ठित मूर्ति होने से आवाहन नहीं किया जाता न ही प्रतिष्ठापन किया जाता है ।
*आवाहन कैसे करें–
हे हेरम्ब त्वमेहि हयम्बिका त्रयम्बकात्मज सिद्धि - बुद्धिपते त्रयक्ष | लक्षलाभ पितुः पितः । नागस्य नागहारं त्वां गणराज चतुर्भुजम् । भूषितं स्वायुधैर्दिव्यैः पाशांकुशपरश्वधैः । आवाहयामि पूजार्थ रक्ष सवं च मम क्रतोः इहागत्य ग्रहाण त्वं पूजां यागं च रक्ष मे । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः आवाहयामि , स्थापयामि आवाहन के पश्चात् देवता का प्रतिष्ठापन करें- अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च । अस्य देवत्वमर्याये मामहेति च कश्चन ।। ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , सुप्रतिष्ठो वरदो भव ।
( 2 ) आसन समर्पण-
निम्न मन्त्र से दिव्यासन की भावना करके फूल अर्पण करें ॐ विचित्ररत्नखचितं दिव्यास्तरणसंयुतम् सवर्ण सिंहासन चारू गृहाण गणनायक ।। ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , आसन समर्पयामि । इसके पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से गणेश जी के पाद प्रक्षालन के लिए पाद्य समर्पित करें -
( 3 ) पाद्यं-
ॐ सर्वतीर्थसमुद्भूतं पाद्य गन्धादिभिर्युतम् । गजानन गृहाणेदं भगवान् भक्तवत्सलः ।। ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
(4)अर्ध्य समर्पण-
ॐ गणाध्यक्ष संयुक्तं गन्धमाल्याक्षतैर्युतम् । ॐ सिद्धी - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , हस्तयोरयं समर्पयामि उपर्युक्त मन्त्र बोलकर गन्धमिश्रित अर्ध्य जल अर्पित करें । इसके पश्चात् गंगा जल से आचमन करायें
( 5 ) आचमनीय अर्पण-
विघ्नराज नमस्तुभ्यं त्रिदशैरभिवन्दितः । गंगोदकेन देवेश कुरुष्याचमनं प्रभो । ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः मुख आचमनीयं समर्पयामि ।
( 6 ) स्नान-
नर्मदा चन्द्रभागादि गंगासंगमर्जर्जलैः । स्नानितोऽसि मया देव विघ्नसंघ निवारय ।। ॐ सिद्धी - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , सर्वांग स्नानं समर्पयामि जल से स्नान कराने के पश्चात् क्रमशः पंचामृत ( दूध , दही , मधु , घी और शक्कर ) से , दूध से , दही से , घृत से , मधु से , शक्कर से , सुगन्धित तेल से स्नान कराके निर्मल जल से स्नान कराना चाहिए ।
( 7 ) पयः स्नानम्-
कामधेनुसमुद्रभूत सर्वेषां जीवनं परम् । तेजः पुष्टिकर दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
(8 ) दधि स्नान-
पयस्तु समुदभूत मधुराम्ल शशिप्रमम् दध्यानीतं गया देव स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।
( 9 ) घृत स्नान-
नवनीत समुत्पन्न सर्वसन्तोषकारकम् घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ॥
( 10 ) मुघ स्नान-
पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मुधर मधु तेजः तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
( 11 ) पंचामृत स्नानम्
पंचामृत मयाऽऽनीतं पयोदधि घृतं मधु शर्करा च समायुक्त स्नानार्थ प्रतिगृहयताम् ।
( 12 ) शर्करा स्नान-
इक्षुसारसमुद्भूत शर्करा पुष्टिदा शुभा । महापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
( 13 ) सुवासित स्नान-
चम्पाकाशेबकुल मालती मोगरादिभिः । वासितं स्निग्धताहेतु तैलं चारू प्रतिगृह्यताम् ॥
( 14 ) शुद्धोदक स्नान गंगे च यमुने चौव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे
सिन्धुकावेरि स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।। शुद्धोदक स्नान गंगा जल से कराना
चाहिए ।
15 ) वस्त्र समर्पण-
शीतवातोष्ण सन्त्राण लज्जाया रक्षणं परम् देहालंकरणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , वस्त्रं समर्पयामि । (
( 16 ) उत्तरीय समर्पण-
उत्तरीयं तथा देव नाना चित्रितमुत्तमम् गृहाणेदं मया दत्त भक्त्या तत् सफली कुरू । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , उत्तरीयं समर्पयामि ।।
( 17 ) यज्ञोपवीत समर्पण-
नवभिस्तन्तु निर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् । उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , यज्ञापवीतं समर्पयामि ।
( 18 ) गन्ध- श्री खण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् विलेपनं सरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , गन्धं समर्पयामि ।
( 19 ) अक्षत-
अक्षाताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ।। ॐ सिद्धि - बुद्धि साहिताय श्री महागणाधिपतये नमः
( 20 ) पुष्प माला-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनी के प्रभो गया हतानि नमः , पुष्प एवं पुष्पमाला समर्पयामि । पुष्पाणि पूजार्थ प्रतिगृह्यताम् । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये।।
( 21 ) शमी पत्र -
पत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि । शमीदलानि शमीपत्राणि समर्पयामि हेरम्ब गृहाण गणनायक । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः ,
( 22 ) दूर्वाकुर दूर्वाकुरान् सुहरितानमृतान् मंगलप्रदान् । आनीतास्वत पूजार्थ समर्पयामि । गृहाण गणनायक || ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , दूर्वांकुरान् ।।
( 23 ) सिन्दूर-
सिन्दूर शोभनं रक्त सौभाग्य सुखवर्धनम् शुभदं कामदं चैव समर्पयामि । | सिन्दूर प्रतिगृह्यताम् । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , सिन्दूर समर्पयामी।।
( 24 ) धूप वनस्पतिरसोद्भूतं गन्धाढडयं गन्धमुत्तमम् । आधेयः सर्व देवाना धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , धूपमाघापयामि ।
( 25 ) दीप दर्शन साज्यं च वर्तिसंयुक्त वहिनना योजित मया दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्य तिमिरापहम् भक्त्या दीप प्रयच्छामि देवाय परमात्मने त्राहि मा निरयाद्घोराद्दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ॥ ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , दीपं दर्शयामि
26 ) नैवेद्य -निवेदन -
नवेद्यं गृह्यता देव भक्ति में हाचलां कुरु । ईप्सित में वर देहि परत्र च परां
गतिम् । शर्करा खण्ड खाद्यानि दधि क्षीर घृतानि च । आहार मक्ष्य भोजयं च
नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्
॥ ॐ सिद्धि - बुद्धिसहिताय श्री महा नमः , नैवेद्य मोदकमय तुलसमर्पयाका शुभ जल
से प्रोक्षण करें , फिर धेनु मुद्रा दिखाए , तब नैवेद्य ( भांति - भांति के क
गुड़ , नाना प्रकार के ऋतु फल ) देवता के सम्मुख स्थापित करे ।
( 27 ) करोदर्तन के लिए चन्दन चन्दनं-
मोदभूल कस्तूयदि समन्वितम् । नमः , चन्दनेन करोबर्तनं समर्पयामि । करोनिक देव गृहाण परमेश्वर ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः चन्दनेन करोद्वर्तनं समर्पयामि ।
(28 ) पूगीफलादि सहित ताम्बूल अर्पण-
ॐ पूंगीफल महादिव्य नागवल्लीदलैर्युतम् । एला चूर्णादिसंयुक्त ताम्बूल प्रतिगृह्यताम् । ॐ सिद्धि - बुद्धि समर्पयामि ।
( 29 ) नारिकेल अर्पण- इदं फल मया देव स्थापित फरतस्तव तेन में सफलावातिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , नारिकेल फलं समर्पयामि ।
( 30 ) दक्षिणा - समर्पण- हिरण्यगर्भगर्भस्थ हेम बीजं विभावसोः अनन्त पुण्य फलदगतः शान्ति प्रयच्छ मे । ॐ सिद्धि बुद्धि सहितं श्री महागणाधिपतये नमः द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि ।
( 31 ) नीराजन ( आरती ) -
कदली गर्भ सम्भूत कर्पूर तु प्रदीपितम् । आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य में बरदो भव ।। ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः मंत्र पुष्पांजलि समर्पयामि ।
( 32 ) प्रदक्षिणा यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञात कृतानि च तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणा पदे पदे ।। ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
( 33 ) विशेषार्ध्य समर्पण- प्रदक्षिणा के पश्चात् जल , गन्ध , अक्षत , फूल , दूर्वा एक सुपारी और दक्षिणा एक तांबे के पात्र में रखकर दोनों घुटनों को पृथ्वी पर टेककर दोनों हाथों में पात्र लेकर अर्घ्य दें । रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात् । द्वैमातुर कृपा सिन्धो षाण्मातुराग्रज प्रमो वरदस्त्वं वरं देहि वांछित वांछितार्थद । अनेन सफलायेर्ण नमोः सफलोऽस्तु सदा मम । ॐ सिद्धि - बुद्धि सहिताय श्री महागणाधिपतये नमः , विशषाध्र्य समर्पयामि प्रसीद देवदेवेश देहमाविश्यमामकम् विमोच येन विश्वेश घृणया च कृपानिधे ।
अन्त में नीचे लिखी प्रार्थना बोलकर पूजन - क्रम समाप्त करना चाहिए ।
अन्त में प्रार्थना कैसे करें —
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगजिताय नागाननाय श्रुति यज्ञ विभूषिताय गौरी सुताय गणनाथ नमो नमस्ते ।। भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय । सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय विद्याधराम विकटाय च वामनाय भक्त प्रसन्न वरदाय नमो नमस्ते ॥ नमस्तेबहारूपाय विष्णुरूपाय ते नमः । विष्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे भक्तिप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक लम्बोदर नमस्तुभ्यं सतत मोदकप्रिय कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा त्वां दिन शत्रुदलनेति सुन्द विद्याप्रदेत्यवहरेति च स्तुवन्ति गणेशपूजने कर्म बन्नयूनमध भक्त प्रियेति सुखदेति फलप्रदेति तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव कृतम् ॥ तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम ।। अनया पूजया सिद्धि बुद्धि सहितो श्री महागणपति प्रीयन्तां न मम ।
* विसर्जन कैसे करें-
आवाहन न जानामि न जानामि तवार्चनम् पूजां चैव न जानामि क्षमस्य गणेश्वर अन्यथा शरणं नारित त्वमेश शरण मम तसमात्कारुण्य मावेन खाय विघ्नेश्वर गतं पापं दुःख गत दारिद्रडमेव च आगताः सुख सम्पतिः पुण्याश्च तव दर्शनात् ।। मन्त्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीन सुरेश्वर यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु यदक्षर पद भ्रष्ट मात्रहीन च यद्भवेत् । तत्सर्व क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ।
Lastalfaz-
इस प्रकार आप पूरे विधि विधान के साथ अपने घर में गणपति जी को स्थापित कर सकते हो और अगर आप से कोई भूल चुक हो गई है तो यह प्रार्थना करके उनसे माफी मांग सकते हैं, क्योंकि भगवान हमारे भाव के भूखे हैं ना कि दिखावे के । अगर कोई भी मंत्र हैं कम या ज्यादा कुछ भी हमसे हो जाता है तो वह हमें कोई भी सजा नहीं देते बल्कि हमारी श्रद्धा भाव से की सेवा से ही खुश होते हैं।।
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