गणपति स्त्रोरतम का पाठ कैसे करें |गणपतिस्तोत्र का पाठ करने का महत्व |


19 सितम्बर 2023 दिन गणपति की स्थापना शुरू होगी ऐसे में हम अगर  ज्यादा पूजा पाठ नहीं कर सकते तो आप एक समय गणपति स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं आईए जानते हैं गणपति स्तोत्र की पूरी विधि विस्तार से ।।


गणपतिस्तोत्रम्- का पाठ कैसे करें-
 
 सुवर्णवर्णसुन्दरं सितैकदन्तवन्धुरं गृहीतपाशकाकुश वरप्रदाभयप्रदम् । चतुर्भुज त्रिलोचनं मुजंगमोपवीतिनं प्रफुल्लवारिजासनं भजामि सिन्दुराननम् ।। किरीटहारकुण्डलं प्रदीप्तवाहुभूषणं प्रचण्डरत्नकंकणं प्रशोभितांघ्रियष्टिकम् प्रभातसूर्यसुन्दराम्बरद्वयप्रधारिणं सरत्नहेमनूपुरप्रशोभितांचिंपकजम् ॥ सुवर्णदण्डमण्डितप्रचण्डचारूचामरं गृहपदेन्दुसुन्दरं युगक्षणप्रमोदितम् । कवीन्द्रचित्तरंजकं महाविपत्तिमंजकं षडक्षरस्वरूपिण भजे गजेन्द्ररूपिणम् ॥ विरिचिविष्णुवन्दितं विरूपलोचनस्तुतं गिरीशदर्शनेच्छया समर्पित पराम्बया निरन्तरं सुरासुरः सपुत्रयामलोचनैः महामसेष्टकर्मसु समृतं मजामि तुन्दिलम् ॥ मदौघलुब्धचंचलालिमंजुगुंजितारवं प्रबुद्धचित्तरंजक पमोदकर्णचालकम् अनन्यमक्तिमानवं प्रचण्डमुक्तिदायकं नमामि नित्यमादरेण चक्रतुण्डनायकम् । दाद्रिडविद्रावणमाशु स्तोत्रं पठेदेतदजस्त्रमादरात् कलत्रस्वजनेषु मैत्री पुमान् भवेदेकवरप्रसादात् ॥ कामदं ॥ 

इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं गणपतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥ 

गणपति स्तोत्र का हिंदी में अनुवाद-

  जो सुवर्ग के समान गौर वर्ण से सुन्दर प्रतीत होते हैं . एक ही श्वेत दन्त के द्वारा मनोहर जान पहते हैं, जिन्होंने हाथों में पाश और अंकुश ले रखे है .  जो वर तथा अभ्य प्रदान करने वाले हैं। जिनके चार भुजाएँ और तीन नेत्र है । सर्पमय यज्ञोपवीत करते हैं और प्रफुल्ल कमल के आसन पर बैठते हैं . उन गजानन का में भजन करता हूँ । जो किरीट , हार और कुण्डल के साथ उद्दीप्त बाहुभूषण धारण करते हैं ; चमकीले रत्नों का कंगन पहनते है जिनके दण्डोपम चरण अत्यन्त शोभा शाली है, जो प्रभातकाल के सूर्य के समान सुन्दर और लाल दो वस्त्र धारण करते हैं तथा जिनके युगल चरणारविन्द स्लजटित सुवर्ण निर्मित नुपूरों से सुशोभित है , उन गणेशजी का में भजन करता हूँ । जिनका विशाल एवं मनोहर चंवर सुवर्णमय दण्ड से मण्डित है जो सकाम भक्तों को गृह - सुख प्रदान करने वाले एवं चन्द्रमा के समान सुन्दर है : युगों में क्षण का आनन्द लेने वाले हैं , जिनसे कवीश्वरों के चित्तका रजन होता है, जो  बड़ी - बड़ी विपतियों का भंजन करने वाले और षडक्षर मन्त्रस्वरूप है उन  गजराजरूपधारी गणेश का में भजन करता है । ब्रह्मा और विष्णु जिनकी वन्दना  तथा विरूपलोचन शिव जिनकी स्तुति करते हैं , जो गिरीश ( शिव के दर्शन की से परा अम्बा पार्वती द्वारा समर्पित है । देवता और असुर अपने पुत्रों और बामलोचना पलियों के साथ बड़े - बड़े यज्ञों तथा अभीष्ट कर्मों में निरन्तर जिनका स्मरण करते हैं । उन तुन्दिल देवता गणेश का में भजन करता हूँ । जिनकी मदराशिपर लुभाये हुए चंचल भ्रमर मंजु गुंजारव करते रहते हैं , जो ज्ञानीजनों के चित्त को आनन्द प्रदान करने वाले हैं ; अपने कानों को सानन्द हिलाया करते हैं । और अनन्य भक्ति रखने वाले मनुष्यों को उत्कृष्ट मुक्ति देने वाले हैं , उन वक्रतुण्ड गणनायक का में प्रतिदिन आदरपूर्वक भजन करता हूँ ।
 ( यह स्तोत्र दरिद्रता को शीघ्र भगाने वाला और अभिष्ट वस्तु को देने वाला है । जो निरन्तर आदरपूर्वक इसका पाठ करेगा , वह मनुष्य एकेश्वर गणेश की कृपा से पुत्रवान् तथा स्त्री एवं स्वजनों के प्रति मित्रमाव से युक्त होगा  ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

Disclaimer- इस पाठ का अनुवाद हमने धर्मशास्त्र के अनुसार किया इसमें हमारा खुद को कोई योगदान नहीं है।



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