शिव पुजन कैसे करें | शिव पुजन की विधि | शिव सतुति कैसे करें | शिवरात्रि पुजा 2024 |

शिव पूजन की कुछ विशेष जानकारी- कल यानी 8 मार्च 2024 को पूरे देश में शिवरात्रि का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा। इससे पहले आपको शिव पूजन की कुछ जानकारियां होना बहुत जरूरी है। हम आपको इस लेख के माध्यम से जितना हो सके संभव बताने की कोशिश करें कि शिव पूजन के लिए क्या-क्या जरूरी है।


भगवान शिव समस्त देवों में एकमात्र ऐसे देवता है जो देवो के देव महादेव कहलाते हैं। उन्हें आभूषण राज मुकट  राज सिंहासन नहीं चाहिए ना ही कोई कीमती मंदिर चाहिए वह तो भोले भंडारी हैं ।हम सभी जानते हैं कि मानसिक पूजा करने से वह बहुत जल्दी खुश हो जाया करते हैं। वह तो वरदायक हैं, संपूर्ण विश्व के स्वामी हैं ।विश्व स्वरूप सनातन ब्रह्मा सभी देवताओं के पालक और ईश्वर हैं। भगवान शिव सर्वश्रेष्ठ हैं ।भगवान शंकर विभिन्न प्रकृति के जीवन में एक के स्थापित करने वाले आदर्श परिवार के प्रमुख उन्हें भाईचारा, प्रेम और सहचार्य के पवित्र सूत्र में बांधकर रखने वाले सदा शांत शीतल मस्तिष्क वाले माने जाते है किंतु क्षण में सौमय होने वाले कालजयी, सर्वहारा एवं सबके प्रति सच भाव रखने वाले भगवान शिव सर्वश्रेष्ठ हैं। पूरे विश्व में ऐसा कोई नहीं है जो पारिवारिक सुखों के धार्मिक आधार भगवान शिव की बराबरी कर सके, इसलिए उनकी प्रतिदिन जय हो। भगवान शिव अविनाशी सर्वज्ञ, सर्वज्ञ,  मंगलमय भगवान शिव अनादि, अनंत, निर्विकार नित्य अज, अमर सनातन सर्वोपरि  देवता हैं।  सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा, विष्णु भी आराधना करते हैं। सभी प्रकार के सुख समृद्धि संपदा उन्हीं की देन है। भगवान राम ने भी लंका पर विजय पाने के लिए शिव की पूजा सबसे पहले की थी।


शिवपूजन की जानकारी-

 शिव का वाहन नंदी वृषभरूप  में नंदी शिव का वहान है ।उसका शिव परिवार में महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। शिव के दर्शन करने से पहले नदी के दर्शन करने चाहिए। 

शालुंका का( लिंगवेदी) घेरा जिसके अंदर लिंग स्थापित है उसे शालुका  कहा जाता है शालुंका का चौकोर 6, 8, 12 या 16 कोध ही होते हैं ,परंतु बहुदा गोल ही होती है।

लिंग- 

लिंग शिव का प्रतीक है । लिंग के तीन भाग होते हैं ब्रह्मा भाग सबसे नीचे का जो चकोर होता है, विष्णु बाग बिच का भाग जो अष्ट कोनी होता है, रुद्रा भाग गोली लिए हुए सीधा खड़ा हुआ जिसकी पूजा की जाती है, पिंडी रूप लिंग विधि एवं लिंग के संयोजन से पिंडी रूप कहलाता है। चल पिंडी केवल विशेष पूजा के लिए बनाकर पूजन के पश्चात उसे विसर्जित जल में कर देते हैं। प्रचल पिंडी जमीन के स्तर से उपस्थित भक्तों के द्वारा स्थापित की जाती है इसमें सिद्धांत शक्ति मानी जाती हैं। जमीन के स्थिर पर स्थित राजा या ऋषियों द्वारा स्थापित यह मंदिरों में स्थापित इसमें ऊपर में  लिखित ज्यादा मानी जाती है। जमीन के स्तर से नीचे स्वयंभू या शिवेचछा  से तैयार होकर किसी को भगत को साक्षात्कार होकर उनकी पूजा आरंभ होती हैं। इसमें शक्ति शिव तत्व इतनी ज्यादा होती है यदि ऊपर होती तो उसमें से बाहर निकलने वाली शक्ति हम सहन नहीं कर पाएंगे, इसलिए पूजक  जमीन पर लेटकर या चादर डालकर उनकी पूजा करते हैं।

 भारत में 12 ज्योतिर्लिंग है इनकी शक्ति के बारे में बताने की किसी प्राणी एवं मनुष्य की बस की बात नहीं है, जो इस शक्ति का विवरण कर सके।

 ज्योतिर्लिंग दक्षिण मुखी होते हैं दक्षिण मुखी अधिक शक्तिमान होता है। काठमांडू का पशुपतिनाथ इन 12 ज्योतिर्लिंगों का मुकुट माना जाता है। 

●भगवान शिव को प्रसन्न कैसे करें -

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक प्रकार के उपाय और स्तुति हैं जिसमें से एक शिव स्तुति रुद्राष्टक भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए उनके दर्शन पाने के लिए एकदम सच होती है। भगवान शिव को यह आठ वस्तुएं अधिक प्रिय हैं जिनको हम अपने संग रख सकते हैं जैसे- भस्म , भुजंग, गर्ल? हलाहल जहर ,गंगा अर्धचंद्र , त्रिशूल ,राम नाम का जाप आदि।  


प्रत्येक सोमवार का व्रत उपासक परिजन  सहित शिव पार्वती जी का पूजन करने से स्त्री की सौभाग्य की रक्षा और सुख अवश्य मिलता है ।

सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है इसलिए अगर आप भी अपनी मनोकामना को लेकर चिंतित हैं तो सोमवार के व्रत आप बहुत सरल विधि से कर सकते हैं।


●शिवपूजन कैसे करें- 

 भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन पवित्र धारण कर शरीर की  शुद्धि और आसन शुद्धि कर लेनी चाहिए उसके पश्चात पूजन सामग्री को एक स्थान पर रखकर रक्षदीप पर विचलित कर लें फिर स्वास्तिक पाठ करें। इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं मां भगवती गौरी का सामान पूर्वक भजन करना चाहिए। उसके बाद रुद्राभिषेक लघु रुद्र और सहचर शासन आदि विशेष अनुष्ठानों में नवग्रह कलश का पूजन करना चाहिए।

 यदि ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक संपन्न हो रहा हो तो पहले उनका चंदन, तिलक और पुष्माला आदि से अर्चन करें फिर वरणीय सामग्री हाथ में ग्रहण कर संकल्प लेकर उनका वर्णन करें। संकल्प लेते समय अपना नाम गोत्र और जिस स्थान पर आप रहते हैं उसका ध्यान करें। भगवान शंकर की पूजा करते समय उनके पूरे परिवार का भी पूजन किया जाता है अगर कोई भी पूजा या उपचार छूट जाए और कोई सामग्री  संभव न हो तुम उन वस्तुओं का मन से तैयार करके चढ़ा देना चाहिए । जिसको हम मानस पूजा भी कहते हैं।


निष्कर्ष-

 इस प्रकार हम भगवान शिव की पूजा मन से कर सकते हैं भगवान शिव की पूजा करने के लिए धन की आवश्यकता नहीं है। मन का भाव का होना बहुत जरूरी है।  भगवान शिव देवों के देव महादेव है जो केवल हमारे भाव से ही खुश हो जाते हैं।

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