Tittle- शहद का प्रयोग कैसे करें -
शहद प्रकृति का दिया हुआ एक अनुपम उपहार है । आज हम इसलिए के माध्यम से आपके शहद का प्रयोग किस प्रकार करें विस्तार से बताएंगे। शहद का प्राचीन काल से प्रयोग किया जाता है ।
बच्चे के जन्म पर सब से पहले शहद ही पिलाया जाता है । यह एक पवित्र वस्तु मानी जाती है तभी पाठ पूजा , हवन आदि के समय मधु का प्रयोग किया जाता है। शहद प्रकृति का ऐसा वरदान है जिसे चिकित्सा क्षेत्र मे इस्तेमाल -किया जाता है ।
● शहद बनने की प्रक्रिया-
मधुमक्खियाँ फूलों से रस चूसकर अपने छते में मधु का निर्माण करती हैं । भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार यह निम्न प्रकार की होती है । माक्षिक , भ्रामर , क्षोद्र , पौत्तिक , छात्र , आर्ध्य , औद्दालक और दाल ।
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इन सब से माक्षिक शहद श्रेष्ठ होता है । यह पिङ्गल वर्ण वाली बड़ी मधुमक्खियों द्वारा उत्पन किया जाता है । यह तेल के जैसा होता है ।
यह नेत्र सम्बन्धी रोगों को दूर करने वाला , लघु तथा पीलिया , अर्श , क्षत , श्वास , कास , और क्षय को नष्ट करने वाला होता है ।
भ्रामरजातीय शहद- यह छः पैरों वाले भौरों से कुछ छोटे भौरों से संगृहित , स्फटिक के समान निर्मल होता है । यह रक्तपित नाशक , मूत्र में जड़ता उत्पन्न करने वाला , गुरू , विपाक में मधुर रस युक्त , अभिष्यन्दी विशेष रूप से पिच्छिल और शीतवीर्य होता है ।
●क्षौद्र जातीय मधु :-
यह कपिल वर्ण की सुक्ष्म मधुमक्खियों के द्वारा बनाए गए कपिल वर्ण के शहद को क्षौद्र कहते हैं । यह माक्षिक मधु के समान होता है और विशेष रूप से प्रमेह नाशक होता है।
● क्षौद्र जातीय मधु : -
प्रायः मच्छरों के समान छोटी -2 काले रंग की , काटने से अत्यन्त पीड़ा पहुँचाने वाली , वृक्षों के कोटरों में रहने वाली मधुमक्खियों के द्वारा संगृहीत घी के समान मधु को पौतिक जातीय मधु कहते हैं । यह रुक्ष , उष्ण , पित्त- दाह , रक्त विकार तथा वात कारक , विदाही , प्रमेह तथा मूत्रकृच्छ को नष्ट करने वाला , गांठ आदि तथा घाव को सूखने वाला माना जाता है -
● छात्र जातीय मधु- यह प्राय हिमालय पर्वत के जंगलों में कपिल एवं पीत वर्ण की मधुमक्यिाँ छते के आकार का घर बनाती हैं , उस छत्र से उत्पन्न हुए मधु को छात्र कहते हैं । यह कपिल तथा पीत वर्ण युक्त , पिच्छिल , शीतल , गुरु , विपाक में मधुर रस युक्त , तृप्तिदायक , अधिक गुणकारी एवं कृमि , श्वेत कुष्ठ , रक्तपित , प्रमेह , भ्रम , तृषा , मोह तथा विष को दूर करने वाला होता है ।
आर्ध्यजातीय :- भौरों के समान आकार वाली , पीले रंग की तथा तीक्ष्ण मुखवाली मधुमक्खियों द्वारा संगृहीत मधु को आर्ध्य कहते है । यह नेत्रों के लिए अत्यन्त हितकर , विशेष रूप से कफ तथा पित को दूर करने वाला कषाय तथा तिक्क्त रस युक्त , विपाक में कटु रस युक्त एवं बल तथा पुष्टिकारक होता है ।
औद्दालक जातीय मधु प्रायः-
यह बाल्मीक के अन्दर रहने वाले , कपिल वर्ण के छोटे - छोटे कीड़े , जो कपिल वर्ण का थोड़ी मात्रा में मधु बनाते हैं उसी को औद्दालक कहते हैं ।
यह रूचिकारक , स्वर को उत्तम बनाने वाला , कषाय तथा अम्ल रस युक्त , उष्ण , विपाक में कटुरस युक्त एवं पितकारक होता है ।
दाल जातीय मधु : -
फूलों से टपक कर के जो मधु पतों पर गिरता है और मधुर , अम्ल तथा कषाय रस युक्त होता हैदाल कहते हैं ।
यह अग्निदीपक , कफनाशक , अधिक मधुर रस युक्त , रुक्ष , रुचिकारक , स्निग्ध , बृहण , वमन तथा प्रमेह को दूर करने वाला होता है ।
नया शहद पौष्टिक , थोड़ा कफ नाशक तथा सारक होता है ।
पुराना शहद ( एक वर्ष बाद ) चर्बी कम करने वाला , ग्राही , रूक्ष , अत्यन्त लेखन गुण वाला होता है । आधुनिक मत के अनुसार इसमें Dextrose , Glucose तथा Fructose पाया जाता है ।
शहद में बड़ी मात्रा में हाईड्रोजन का पता चला है । शहद का Tumor के उपचार में प्रयोग किया जा रहा है । यह कैंसर रोकने में उपयोगी है । शहद हीमोग्लोबिन के निर्माण में सहायक है । हृदय की मासपेशियों को मजबूत करता है । इसका प्रयोग यकृत ( Liver ) की कई बिमारियों में किया जाता है ।
शहद आमाशय से ही शोषित हो जाता है अत : इसे आन्त्र में जाने की आवश्यकता नहीं होती इसीलिए मधुमेह ( Diabetis ) के रोगी भी शहद ले सकते हैं । लेकिन शहद बिलकुल शुद्ध मक्खियों द्वारा निर्मित ही होना चाहिए । मिलावट वाला मधु अहितकर होगा ।
शुद्ध शहद शहद पीलापन लिए , चिकना , अर्द्ध पारदर्शी होता है ।
पुराना शहद जमने पर मिश्री जैसा हो जाता है ।
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शहद की एक बूंद पानी को एक चम्मच पानी में मिलाए । फिर इस में आयोडीन की दो बूंदें डाल दें । अगर इसका रंग नीला या हरा हो जाता है तो शहद नकली है , इसमें मीठा मिलाया गया है ।
रुई की बत्ती बनाकर शहद में डूबा कर अगर जलाई जो बिना आवाज के जलनी चाहिए तभी शुद्ध है अन्यथा अशुद्ध है ।
● शहद के लिए सावधानियाँ -
विषैले भौरे आदि विष के फूलों से भी रस लेकर मधु बनाते हैं अतः एवं इसलिए शीतल मधु ही गुणकारी होता है । विष के फूलों का सम्बन्ध होने से शहद यदि उष्ण या उष्ण द्रव्यों के साथ या उष्ण काल में या गर्मी से दुःखी रोगियों के लिए प्रयोग किया जाता तो यह विष के समान होता है ।
इसीलिए शहद को गर्म कर के नहीं खाना चाहिए ।
घी और शहद को बराबर मात्रा में मिला कर नहीं खाना चाहिए ।
गर्मी से ग्रस्त रोगी को नहीं खाना चाहिए ।
4 . ग्रीष्म ऋतु में नहीं खाना चाहिए ।
5 . शहद और वर्षा का जल समान मात्रा में मिला कर नहीं खाना चाहिए ।
6 . शहद और कमल गट्टा समान मात्रा में नहीं खाना चाहिए ।
7 . शहद खा कर गर्म पानी , दूध या काफी आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
8 . सन्निपातज ज्वर में इस का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
चरक के अनुसार शहद को योगवाही कहा गया है । इसका अर्थ है कि मधु जब जिस प्रकार के द्रव्यों से संयुक्त होता है । उस द्रव्य के गुणों की वृद्धि करने वाला हो जाता है ।
संक्षेप में शहद शीतवीर्य , हल्का , स्वादिष्ट , रुक्ष , ग्राही , नेत्रय , अग्निदीपक , स्वर को उत्पन्न बनाने वाला , व्रण का शोधन तथा रोपण करने वाला , सुकुमारता करने वाला , सूक्ष्म स्रोतोमार्ग का अत्यन्त शोधन करने वाला , आरम्भ में मधुर अन्त में कषाय रस युक्त , शरीर के रंग को उत्तम करने वाला , मेधा शक्ति को उत्पन्न करने वाला , वीर्यवर्धक , रोचक , योगवाही , कुष्ठ , अर्श , कास , पित , रक्तविकार , कफ , प्रमेह , कलान्ति , क्रिमि , मेद , तृषा , वमन , श्वास , हिचकी , अतीसार , मलबन्ध , दाह , क्षत और क्षय को नष्ट करने वाला होता है।
निष्कर्ष-Disclaimer- यह सभी उपाय और शहद से सम्बन्धित राय आयुर्वेदिक संबंधित पुस्तकों से ली गई है। इसमें हमारा कोई योगदान नहीं है।
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