motivationl story | प्रेरणादायक कहानी , अक्ल बड़ी या शकल | inspirational story in hindi |

Motivationl story in hindi अकल बड़ी या शक्ल- 

 संसार में पता नहीं कितने लोग होंगे जिनके पास शक्ल सूरत कुछ खास नहीं है। पर कुछ लोगों को भगवान ने बुद्धि इतनी दी हुई है कि वह अपने बुद्धि के बलबूते पर नाम रोशन कर गए हैं।

 आज हम आपके सामने एक ऐसे ही article लेकर आ रहे हैं जिसे पढ़कर आप भी कुछ करने के लिए जरूर अपने अंदर एक नया जोश भर पाओगे, क्योंकि इंसान की शक्ल इतनी मायने नहीं रखती जितनी अकल रखती है। 

जैसे एक कहावत बनी हुई है की अकल बड़ी या शक्ल कहने का भाव है कि अगर इंसान के पास अकल है तो फिर शक्ल कोई मायने नहीं रखती।



ज्यादातर लोग  सुबह आँख खुलने से लेकर से रात तक हम अपनी शकल  , पहनावे और रगं रूप  के बारे में हो तो सोचते रहते हैं , जैसे- आज क्या पहने ? यह टाई अच्छी लगेगी या वो ? चोटी बनाऊँ , जुड़ा या बाल खुले छोड़ मुझ पर यह रंग ज्यादा फबता है न ? मेरी त्वचा और बाल आजकल रूखे - सूखे क्यों दिखते हैं ? ... इत्यादि ।

 इस तरह से समय , ऊर्जा और धन खर्च होता ही रहता है । दिखावटी वेश - भूषा के विषय में सोचने , फैसले लेने में हमारा लेकिन समाज में कुछ अनूठे सफल लोग हुए , जिन्होंने अपनी इस बाहरी पैकेजिंग को इतना जरूरत से ज्यादा महत्त्व नहीं दिया । जितना हो सका , उतना सहज - सरल ढंग अपनाया ।

 सन्  2012 की वैनिटी फेयर पत्रिका में अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा बताते हैं- आप देखेंगे कि मैं अक्सर स्लेटी या निले रंग के सूट ही पहनता हूँ । ऐसा इसलिए ताकि मैं इस विषय में रोज - रोज निर्णय लेने की सिर - दर्दी कम कर सकूँ और जिंदगी के ऊँचे फैसलों के लिए अपनी ऊर्जा और समय बचाकर रख सकूँ । क्या खाना है या क्या पहनना है- जैसे छोटे - छोटे-फैसलों पर मैं अपना समय नहीं गवाना  चाहता । आपको भी  अपनी निर्णयात्मक ऊर्जा को महत्त्वपूर्ण निर्णयों के लिए बचाकर रखना चाहिए  ।

 फेसबुक के सी.ई.ओ. और संस्थापक मार्क जकरबर्ग का भी कुछ ऐसा ही मानना है ' 

टुडे ' को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा- ' मेरे पास एक जैसी 20 स्लेटी टी - शर्ट्स हैं । मतलब मैं हर दिन एक ही जैसे कपड़े पहन लेता हूँ । ऐसा क्यों ? क्योंकि सफल लोग अपने कपड़ों , बालों या शक्ल से लोगों का ध्यान आकर्षित करने की परवाह नहीं करते । वे तो अपना सर्वश्रेष्ठ देकर हर पल कुछ बेहतर करने में लगे रहते हैं । उनके लिए श्रेष्ठता की परिभाषा कुछ ऐसी होती है- ' Don't focus on being the best in the world . Focus on being the best for the world .

 भारत में भी कुछ  एक ऐसे ही श्रेष्ठ व्यक्तित्व हुए हैं , जिनके जीवन का भी यही आदर्श था । दरअसल , यह उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेजों का शासन था । खचाखच भरी एक रेलगाड़ी पटरी पर दौड़ी जा रही थी । यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज़ थे । उन्हीं के बीच एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था । साँवले रंग और मंझले कद का वह यात्री

साधारण वेशभूषा में था। इसलिए वहाँ बैठे उसे और अनपढ़ समझ रहे थे । उसका मजाक भी उड़ा रहे थे । पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था । तभी अचानक यह क्या हुआ ? उस व्यक्ति ने खड़े होकर ट्रेन की जंजीर खींच दी । तेज रफ्तार से दौड़ती ट्रेन तत्काल रुक गई । सभी यात्री उसे भला - बुरा कहने लगे । थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और उसने पूछा- ' जंजीर किसने खाँची है ? ' 

उस व्यक्ति ने बेझिझक उत्तर दिया , ' मैंने खींची है । कारण पूछने पर उसने बताया- ' मेरा अनुमान है कि यहाँ से लगभग एक फलांग ( 220 गज ) की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है । ' सभी हैरान ! गार्ड ने पूछा- ' आप ऐसा कैसे कह सकते हैं ? ' वह बोला- ' श्रीमान् में स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है । 

पटरी और पहियों की रगड़ से जो आवाज उठती है , वह सहसा बदल गई है और खतरे का आभास दे रही है । ' गार्ड और आसपास बैठे यात्रियों को एक बार  तो विश्वास नहीं हुआ ' कहीं यह कोई सनकी तो नहीं ' पर इतनी बड़ी बात को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता था । गार्ड उस भारतीय को साथ लेकर नीचे उतरा और आगे बढ़ते हुए पटरी का जायजा लेने लगा । सच में जब एक फर्लांग दूरी पर पहुँचा , तो दंग रह गया । वास्तव में , वहाँ पर पटरी जोड़ खुले हुए थे ।

 नट - बोल्ट अलग बिखरे पड़े थे । तब तक दूसरे यात्री भी वहाँ आ पहुँचे । आँखों देखी पर कैसे विश्वास न करते।

लोगों की वही दृष्टि जो उस भारतीय के लिए पहले व्यंग्य से भरी थी , अब प्रशंसा से अभिभूत हो गई । होनी स्वाभाविक थी ' महाशय आपकी सूझबूझ के कारण हम सबकी जान बच गई । 

पर यह बताइए , आपको यह अंदेशा कैसे हुआ ? '

 मेरा नाम डॉ . एम . विश्वेश्वरैया है । ' यह नाम सुनते ही सारे अंग्रेज यात्री स्तब्ध रह गए । दरअसल उस समय तक देश में डॉ . विश्वेश्वरैया की ख्याति फैल चुकी थी । कुछ यात्रियों ने तो आगे बढ़कर उनसे माफी भी माँगी । तब डॉ . विश्वेश्वरैया का उत्तर था ' आपने मुझे जो कुछ' भी कहा होगा , मुझे कुछ खास याद नहीं क्योंकि मेरे लिए यह सब बहुत छोटी बातें है।

अब निर्णय स्वयं कीजिए अक्ल बड़ी या शक्ल ?

अगर  एक सजा - सँवरा सुंदर व्यक्ति आपके सामने बैठा है । पर व्यवहार से बदसूरत है या समाज के लिए किसी उपयोग का नहीं । दूसरी तरफ एक सादा व्यक्तित्व है ; बेशक दिखने में बदसूरत , पर समाज के लिए उपयोगी है ।

अब आप इस कहानी से समझ सकते हो कि इंसान की शक्ल सूरत भगवान के हाथ में है, पर अगर आप मेहनत और बुद्धि के बल पर कुछ भी हासिल कर सकते हो क्योंकि शक्ल का चेंज होना  नामुमकिन है।  एक इंसान अपनी बुद्धि के बलबूते पर कुछ भी कर सकता है। अगर भगवान ने आपको ठीक-ठाक बुद्धि दी है तो उसका उपयोग करना जरुर सिखो। बाहरी दिखावे के बजाय अंदर की सुंदर होना और बुद्धिमान होना ज्यादा महत्वपूर्ण है।  कई बार देखा है  की अनपढ़ व्यक्ति भी बुद्धिमान हो सकता है जरूरी नहीं है कि पढ़ा लिखा व्यक्ति ही बुद्धिमान हो।

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Posted by kiran





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