जोड़ों के दर्द को कैसे ठीक करें || जोड़ो के दर्द घेरेलू उपाय ||

जोड़ों के दर्द के कारण और इलाज कैसे करें-  आज की व्यस्त जिन्दगी और अव्यवस्थित खानपान के चलते अनेक लोग जोड़ों के दर्द से परेशान हैं । केवल बुढ़े लोग  ही नहीं कई बच्चें और जवान भी जोड़ों के दर्द के कारण अपनी सामान्य दिनचर्या करने में असमर्थ हैं । आयुर्वेद में जोड़ो के दर्द को सन्धिगत रोगों के अन्तर्गत लिया गया है । आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर के वात, पित्त और कफ तीन दोषो से बना हुआ है। जिसकी मात्रा अधिक या कम होने से हमारा शरीर बीमारियों के चपेट में आ जाता है। आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको जोड़ों के दर्द के बारे में कुछ ऐसे कारण और चिकित्सा के बारे में बताएंगे जिनको अपनाकर  दर्द को ठीक कर सकते हो। अगर आपकी समस्या बहुत ज्यादा गंभीर है फिर अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह अवश्य करें।

इन्हें मुख्य रूप से  निम्न प्रकार का माना जाता है- । 

 1 आमवात  . 

2 वातरक्त  .

3 . सन्धिवात 

वातरक्त रोग क्या है -

आयुर्वेद के अनुसार वातप्रकोपक कारणों के सेवन तथा विदाही अन्न का अधिक सेवन करने वाले व्यक्ति के भोजन का विदग्ध परिपाक सम्पूर्ण रक्त को दूषित कर देता है । वह दुष्ट रक्त नीचे पैरों में इकट्ठा हो जाता है और प्रकुपित वायु से मिलकर वातरक्त उत्पन्न करता है । आधुनिक चिकित्सा में इसे gout कहा जाता है । अधिक प्रोटीन युक्त आहार खाने या मदिरा आदि ज्यादा लेने से या वंशानुगत होने से शरीर से यूरिक एसिड का निष्काष्न अच्छे से नहीं हो पाता , जिससे यह यूरिक एसिड जोड़ों में इक्ट्ठा हो जाता है । जिससे वहां सजून आ जाती है और यही दर्द का कारण होता है । इस में मुख्यतः पैर का अंगूठा प्रभावित होता है । रात्रि में यह दर्द अधिक होता है । व्याधि के प्रारम्भ में जोड़ों में दर्द और सूजन होती है । कई रोगियों में पहले दुर्बलता , थकावट , विवर्णता , स्पर्श अहिष्णुता , अत्याधिक स्वेद , हृदयगति में वृद्धि एवं रक्ताल्पता के लक्ष्ण प्रकट होते हैं । कुछ रोगियों में ये लक्ष्ण बाद में उत्पन्न होते हैं । यह रोग यदि बच्चों को होता है तो कष्ट साध्य होता है । 


* वातरक्त की चिकित्सा आयुर्वेद में इस प्रकार की जाती है -

* पंचकर्म द्वारा शरीर की शुद्धि की जाती है एक गिलास दूध में 1 चम्मच तिल तेल व मीठा मिला कर दिन में दो बार सेवन करें । 

* गोमूत्र मिला कर धरोष्ण दूध को पीने से रोग में आराम मिलता है । 

* दूध के साथ चम्मच निशोथ लेने से भी राहत मिलती है । 

* त्रिफला क्वाथ में मधु मिला कर पिलाया जाता है । दिन में दो बार शुद्ध शिलाजीत ½ ग्राम गुडुची क्वाथ के साथ ले सकते है। 

वातरक्त में पीपल का प्रयोग बहुत लाभप्रद है । पहले दिन 1 गिलास दूध में 5 ग्राम पीपल डालकर पिलाया जाता है । प्रतिदिन 5 ग्राम पीपल की मात्रा बढ़ाते जाते है , ऐसा 10 दिन तक किया जाता है । इस के बाद 5 ग्राम पीपल की मात्रा प्रतिदिन कम करते जाते हैं ।

 सिद्ध योग महामञ्जिष्ठादि क्वाथ , पटोलादि क्वाथ , कैशोर गुग्गुल , अमृतागुग्गुल , खदिराष्टि , वात रक्तान्तक रस , पितान्तक लौह आदि ऐसे शास्त्रीय योग हैं जिन का प्रयोग वातरक्त रोग में किया जाता है ।


आमवात रोग क्या-

रसाग्नि के मंद होने पर रस का पाक जब पूरी तरह से नही होता तो मल रूप में आम रस बनता है । यह दुष्ट आम रस संचित हो कर सन्धि प्रदेश एवं कण्डाराओं में संकुचन उत्पन्न करता है । चिकित्सा के द्वारा सूजन आदि उपद्रव्यों का इलाज होने पर भी सन्धियों के संकोच के कारण रोगी अपने शरीर या अंगो का पर्याप्त प्रयोग नही कर सकता , जिससे दर्द होता है । 

* विरुद्ध आहार के नुकसान-

जैसे मधु व घी सामान मात्रा में सेवन , मच्छली और दूध का सेवन आदि ।

 विरुद्ध चेष्टा , मन्दाग्नि , कम श्रम , रिनग्ध भोजन इत्यादि से आम रस होता है । 

आम रस प्रकुपित वायु से कफ के मुख्य स्थान सन्धि , आमाशय , उर , सिर एवं कण्ठ की ओर जाता है , वहां वायु द्वारा और अधिक विकृत या अर्धपक्व होकर यह आम रस धमनियों में पहुंच जाता है । धमनियों में स्थित तीनों दोषों से और अधिक दूषित हुआ यह विभिन्न वर्गों वाला कफ गुण युक्त आम रस शरीर के स्रोतों में भर जाता है । इससे दुर्बलता और हृदय में भारीपन होता है । यह आम रस शरीर में अनेक रोगको उत्पन्न करता है । वात और कफ होनो एक साथ प्रकुपित होकर सारे शरीर को जकड़ लेते हैं ।

 आधुनिक चिकित्सा में इसे Rheumatiod Arthritis कहते हैं । इस रोग में पहले छोटे जोड़ प्रभावित होते हैं । फिर धीरे - धीरे सभी जोड़ प्रभावित होते हैं।  

 इस प्रकार के रोग में दर्द सुबह उठने पर अधिक होता है और धीरे - धीरे कम होने लगता है । रोगी थका - थका सा रहता है , भूख और भार में कमी आती है और हल्का बुखार हो सकता है । 

इस रोग का मस्तिष्क के साथ भी गहरा सम्बन्ध है । अधिक चिन्ता करने वाले व्यक्ति को यह रोग जल्दी होता है । स्त्रियों में यह रोग अधिक पाया जाता है । 


* दर्द चिकित्सा कैसे करें :- 

अधिक चिन्ता रोग का कारण है , इसे छोड़ने का प्रयत्न करें ।

 2. हमेशा ताजा भोजन खाएं ।

 3. अत्याधिक ठण्डा पेय न लें ।

 4. लहसुन की कलियों का सेवन लाभदायक है । 

5. पंचकर्म द्वारा संशोधन करवाए । 


शास्त्रीययोग : रास्नासप्तादि क्वाथ , अजमोदादि चूर्ण , शुण्ठी चूर्ण , योगराज गुग्गुल , सिंहनाद गुग्गुल , आमवातारि रस , पुर्ननवासव आदि का प्रयोग किया जाता है ।

 सन्धिवात : संसार मे जीर्ण रोगों में सामान्यतः पाया जाने वाला रोग सन्धिवात है । यह वात रोगों का भेद है ।

 आयुर्वेद के अनुसार वायु अपने कारणों जैसे बुढ़ापा , सूखा , ठण्डा , बासा खाना खाने और अनियमित जीवनचर्चा , अधारणीय वेगों को धारण करना , अधिक ठण्डा मौसम से न प्रकुपित होकर सन्धियों को प्रभावित करती है । कभी - कभी चोट आदि लगने से या अधिक जोर आदि पड़ जाने से पह रोग उत्पन्न होता है ।

 आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में इसे degenerative or oesteoarthritis कहते हैं । इस रोग में जोड़ की हड्डियां बिल्कुल पास आ जाती है। जिस से Movement करने पर आपस में रगड़ती है तभी दर्द होता है । जोड़ों में छोटी - छोटी osteophytes बन जाती है । 

दिन बढ़ने के साथ - साथ इस का दर्द भी बढ़ता है । सामान्यतः पहले बड़े जोड़ जैसे घुटना आदि प्रभावित होते हैं । एक्सरे से इस रोग को पहचाना जा सकता है । 


* चिकित्सा कैसे करें  -

1 . पाचक शक्ति को सही रखने का प्रयास करना चाहिए ।


 2. कब्ज होने पर औषधियों का प्रयोग करना चाहिए । 

3. बासी खाना  नहीं खाना चाहिए ।


4. रोगी को एरण्ड तेल 30 ml प्रतिदिन देने से आराम मिलता है ।

 5 . दशमूल क्वाथ 30ml का सेवन प्रतिदिन करना चाहिए ।

दर्द के लिए आयुर्वेदिक विशेष  तेल-

 अश्वागन्धा , गुग्गुल व शिलाजीत आदि का प्रयोग रोगियों में करवाया जाता है । महानरायण तेल , संजीवनी पेन ऑयल आदि दर्द नाशक द्वारा जोड़ों पर हल्की मालिश करने से काफी आराम मिलता है।

अगर आपकी समस्या बहुत ज्यादा गंभीर है शरीर के किसी भी हिस्से के दर्द को लेकर उसको हल्के में ना लें बल्कि अपने नजदीकी डॉक्टर की सलाह अवश्य करें।




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