जिंदगी कैसे और किसे प्रकार जियें-
आजकल इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग कुछ पाने के लिए अपनी जिंदगी जीने का मकसद ही भूल गए हैं क्योंकि लोगों के इच्छायें ज्यादा और और इन इच्छाओं के कारण तनाव बढ़ रहा है आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको कुछ ऐसे टिप्स शेयर करेंगे जिनको बनाकर आप भी अपने जीवन जीने की कला अपना सकते हैं।
* सुखी जीवन जीने की कला-
जीने की कला , जीने का मकसद इन दोनों बातो में बहुत फर्क है । मकसद के साथ जीना और यूं ही जीना । जिसने इस अंतर को जान लिया , उसका जन्म लेना सफल हो गया । सुखपूर्वक जीने का तरीका क्या हो सकता है ? इस पर एक राय नहीं हो सकती । ऋग्वेद में सुखपूर्वक जीने के बहुत दिलचस्प तरीके बताये गये हैं । सुख का कोई मापदण्ड है ही नहीं । इसलिए कौन कितना सुखी है यह कह पाना मुश्किल है । ऐशोआराम का सुख , स्त्री सुख , ज्ञान सुख , सम्मान सुख , इन सब में कौन सा सुख बड़ा है , यह बता पाना मुश्किल है ।
जब तक जीयो , सुख से जीयो और ऋण लेकर भी घी पीयो को सुखपूर्वक जीनां मानते हैं । जर्मन दार्शनिक नीत्शे के अनुसार , वही कार्य ज्यादा उपयोगी है , जिससे अधिक से अधिक लोगों को ज्यादा सुख मिले । इसलिए कहा जा सकता है कि सुख हासिल करना भी एक हुनर है । जिन्दगी जीने की कला में जो जितना माहिर होगा , वो उतना ही सुखी होगा । दरअसल , जिन्दगी क्या , क्यों और किसलिए हैं ?
जब तक इसको पूरी तरह नहीं समझ लेते , सुखपूर्वक नहीं जी सकते ।
यह शाश्वत सत्य है कि सुख हर प्राणी चाहता है ।और सुखी होना जिन्दगी का एक बड़ा मकसद सकता है । लेकिन , अपने सुख के लिए किसी और के सुख को बाधित न करें ।
इस पर जरूर गौर करना चाहिए । शास्त्रों में सुख व आनन्द शाश्वत होता है । सुख भौतिक भोग से हासिल होता है , आनन्द परम चेतना में घुल जाने के बाद मिलता है । इसलिए तपस्वी क्षणिक सुख की अपेक्षा आनंद को हासिल करने को प्राथमिकता देते हैं । शाश्वत सुख के लिए भोग की बजाय योग का सहारा लेना पड़ेगा । भोग के साथ योग का कैसे संतुलन बने , इस पर गौर करके शाश्वत सुख का प्रवाह बनाया जा सकता है ।
रोजमर्रा की जिन्दगी में यदि आप 23 घंटे सामाजिक , आर्थिक और शारीरिक तंदुरूस्ती के लिए कार्य करते हैं तो एक घंटा प्रभु की भक्ति में लगाकर परम आनन्द का अनुभव कर सकते ।यही जिन्दगी जीने का एक उम्दा तरीका है ।
इसे जिन्दगी जीने की कला कहा जा सकता है । संस्कृत में एक श्लोक में कहा गया है कि जो इंसान कला से विहीन है , वह पशु के समान होता है । '
निष्कर्ष-
इसलिए संसार के सभी तरह के भौतिक सुख और दुखों को भूलकर अपने लिए समय जरूर निकले क्योंकि सुख और दुख अनुभव सिर्फ इंसान कर सकता है पशु नहीं। जितनी भी जिंदगी जिए उसकी भरपूर जीने की कोशिश करें दुनिया में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसके पास कोई समस्या नहीं है। इसलिए जब भी जीवन में कोई कठिन परिस्थिति आए तो अपने से उन नीचे लोगों को देखें जिनके पास रहने के लिए छत नहीं है और खाने के लिए खाना नहीं है ,फिर देखना जिंदगी कितनी आसान हो जाएगी।
posted by-kiran
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