विचारों से चिकित्सा कैसे करें-
हमारे विचार हमारे शरीर पर अच्छा और बुरा दोनों ही तरह का प्रभाव डालते हैं। एक इंसान दिन में लगभग लाखों विचार प्रकट करता है, और जो लगातार में निरंतर चलते रहते हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको समझाने की कोशिश करेंगे कि खुद की चिकित्सा कैसे करें।
● विचारों से चिकित्सा करने के लाभ-
हमारा व्यक्तित्व हमारे विचारों की अभिव्यक्ति है । हम जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं । क्या आपने कभी सोचा कि विचारों से हम स्वयं को स्वस्थ रख सकते हैं ? स्वास्थ्य के नाम पर दवाइयाँ , परहेज , खानपान , रहन - सहन , योगासन , ब्रह्मचर्य , निद्रा , संगीत से हम भलीभांति परिचित हैं , पर हमारे विचार भी हमें स्वस्थ रख सकते हैं । आइये इस बारे में जानें विस्तार से । विचार जैसे खुश होना , दुखी होना , क्रोधित होना आदि का हमारी मानसिक स्थिति से सीधा संबंध है । अनेक बार हमने अनुभव किया है कि किसी संवेगात्मक चरम स्थिति में दिल की धड़कन तेज हो जाती है । भय , क्रोध , चिंता , ईर्ष्या आदि विभिन्न स्थितियों में ऐसा अवसाद होता है । इनसे हमारे शरीर के लगभग सभी संस्थान प्रभावित होते हैं । इसका मूल आधार है हमारा Endocrine System तथा काफी हद तक सिंपेथेटिक / पैरा सिंपेथेटिक सिस्टम ।
विचारों में खुद एक ऐसी शक्ति होती है । विचारों के द्वारा ऐसे तत्वों का निर्माण होता है जो हमारे स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करते हैं । हमारा व्यवहार , प्रतिक्रिया , शारीरिक दशा हमारी क्रियाओं के द्वारा प्रकट होते हैं । हम जो हैं या बनेंगे , इस बात पर काफी हद तक निर्भर करता है कि हम क्या सोचते हैं ?
विचार के द्वारा हम अपनी क्रियात्मक शक्ति का उपयोग करते हैं । हम अपने जीवन में , अपने शब्दों में , विचारों और क्रियाओं के द्वारा तैयार किए गए वातावरण में हैं । विचारों के माध्यम से हम अपने भविष्य को भी निर्मित करते हैं । विचार हमारे शरीर के भीतर की लहरें हैं । जिस प्रकार समुद्र में भूचाल , सुनामी को जन्म दे सकता है , उसी प्रकार विचारों की अस्थिरता भी हमारे जीवन में रोग , अपमान , अवनति की सुनामी ला सकती है । मानसिक भावों के अनुसार कुछ रोगों के सम्बन्ध इसी कारण से है।
●विचारों के हमारे शरीर पर नैगटीव प्रभाव-
1 - डर के विचार से घबराहट होती है , चेहरा पीला पड़ जाता है , मूत्र निकलने लगता है , बेहोशी आने लगती है और दौरा भी पड़ सकता है ।
2- क्रोध से ब्लड प्रैशर बढ़ता है । सिर दर्द होता है ।
3- परेशानी , तनाव से फेफड़े के रोग ( जैसे दमा ) होते हैं । हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं ।
4- दबाव एवं तनाव से हमारे जोड़ों के समीप एक रासायनिक तत्व निकलकर जमता है जिससे जोड़ों के दर्द होते हैं ।
5- हीन भाव से रक्त की कमी तथा cervical spondylitis ( गर्दन में दर्द ) हो सकता है ।
6- मानसिक दबाव में शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति अक्सर कमर में दर्द महसूस करते हैं । -अधिकतर चिड़चिड़े और अपनी बात को बाहर न बता ने वाले व्यक्ति गले के रोगी होते हैं । स्त्रियों के स्वास्थ्य का बेरोमीटर कहे जाने वाला मासिक धर्म सीधे विचारों से प्रभावित है । मानसिक विचारों के साथ-साथ मासिक चक्र में भी बदलाव दिखाई देता है ।
9- निराशा से व्यक्ति को डिप्रेशन रोग होता है
10- गर्भावस्था में माँ के विचारों का बच्चे के स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव दिखता है । स्वस्थ विचारों वाली माँ का बच्चा तंदुरुस्त होता है । प्रसव क्रिया पर भी माँ के विचारों का प्रभाव होता है । हम अपनी चिकित्सा स्वयं अपने विचारों से कर सकते हैं । जो हमारे विचारों के द्वारा बनाया गया है , उसे विचारों के द्वारा नष्ट भी किया जा सकता है । जीवन भर गलत विचारधारा को नष्ट करके , उसके स्थान पर पूर्णत : नवीन विचारों को मस्तिष्क में प्रतिस्थापित किया जा सकता है ।
● विचारों से स्वयं की चिकित्सा कैसे करें-
1- अपना हर निर्णय स्वयं ही लें ।
2- आशावादी बनें । कार्य शुरू करने से पहले असफलता की चिंता न करें ।
3- सदैव हर व्यक्ति एवं हर दशा में भलाई व सुंदरता के दर्शन करें । ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जिसमें भलाई व बुराई दोनों विद्यमान न हों ।
4- सदैव स्वास्थ्य , सुख एवं सफलता के ही चर्चा करें ।
5- घर के लोगों के प्रति उदारता , प्रशंसा एवं उत्साहवर्धक दृष्टिकोण रखें ।
6- स्वयं में सभ्यता , सहिष्णुता एवं कर्तव्य पर चलने के गुण पैदा करें ।
7- भूत की चिंता छोड़े ।
8- स्वयं पर पूर्ण विश्वास रखें , आत्मविश्वास न छोड़ें । जीवन में प्रत्येक दिन , प्रत्येक क्षण हमें भले बुरे का विवेक करना चाहिए । हमारे विचार हमें ही प्रभावित नहीं करते बल्कि दूसरों पर भी प्रभाव डालते हैं । यदि विचार शुद्ध बौद्धिक एवं निस्वार्थ प्यार से भरपूर होते हैं तो उन का प्रभाव बुद्धिलोक पर जाता है । यदि विचार स्वार्थ से भरपूर हो तो इन का प्रभाव वासना जगत में होता है । समाज की एकता एवं सुन्दरता केवल विचारों पर टिकी है । हमारे विचार ही हमें समाज में एक स्थान दिलाते हैं । सादा एवं उच्च विचारों व्यक्ति ही समाज में सम्मानित स्थान पाता है और स्वाभिमान से भरपूर होता है और ऐसा व्यक्ति ही स्वस्थ रहता है ।
* निष्कर्ष-
विचार अच्छे और बुरे दोनों तरह के होते हैं इसलिए जितना हो सके अपने अंदर नेगेटिव विचार आ रहे हैं तो उन्हें तुरंत खत्म करने की कोशिश करें और आप जैसा जिंदगी में बनना चाहते हैं उसी तरह के ही विचार अपने अंदर आने दे। कहने का भाव अपने अंदर पोजटीव विचार रखें। विचारों में बहुत ताकत है यह एक अनुभव किया हुआ प्रयोग है, इसलिए जितना हो सके अपने लिए और अपनों के लिए अच्छा ही सोचे कभी भी बुरा न सोचें ,क्योंकि जो हम सोचते हैं वह अपने जीवन में मिल ही जाता है।
Disclaimer- यह एक सामान्य जानकारी है । इसको अगर आप अच्छा लगे अपना सकते हैं। अगर आपकी बीमारी बहुत ज्यादा गंभीर है तो फिर अपने नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें।
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