गुर्दे की पथरी के लिए उपचार कैसे करें | How to treat kidney stones |

गुर्द  में पथरी के कारण और घरेलू चिकित्सा कैसे करें- आजकल हमारा खानपान और दिनचर्या की वजह से  किडनी की स्टोन की समस्या बहुत ज्यादा बढ़ रही है।  जिसे हम पथरी और आयुर्वेद में  अशमरी के नाम से भी जानते हैं। आज इस लेख के माध्यम से इसके बारे में कुछ ऐसे घरेलू उपाय और कारण बताने की कोशिश करेंगे ताकि आप समय से पहले इसकी पहचान कर सके।

•  आइये  जानते हैं गुर्दे की पथरी के कारण लक्षण और निदान क्या हो सकते हैं। 

शरीर में पत्थरी गुर्दे ( Kidney ) मूत्राशय ( Urinary Bladder ) , मूत्र नलिका ( Ureter ) , पिताशय ( Gall Bladder ) में पाई जाती हैं । 

आचार्य चरक के अनुसार जब वायु बस्ति के मुख को रोक कर पित्त , कफ अथवा शुक्र से युक्त मूत्र को सुखाता है तब पत्थरी रोग की उत्पत्ति होती है ।


 

गुर्दे की पथरी  के लक्षण- 

 पूर्व लक्षण पत्थरी रोग होने से पूर्व निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं ।

 • मूत्राशय का फूला होना ( Distention of Bladder ) 

• मूत्राशय के पास दर्द होना ( Pain in lower abdomen ) 

मूत्र में बकरे के मूत्र के समान गंध आना । ( Passage of urine with goats urine smell )

•ज्वर ( Fever )

 • अरुचि ( Anorexia ) 

• मूत्राशय , वृषण , शिश्न व शिर में शूल ( Pain in Bladder , testis , penis with headache )

 इन सब पूर्वरूप को देखते हुए कुशल चिकित्सक पथरी रोग को पहचान लेते हैं । 

 लक्षण -रोग हो जाने के बाद निम्न लक्षण मिलते हैं । 

नाभि सेवनी , बस्ति व शिश्न में ( Pain in lower abd & penis ) पीड़ा होती है ।

 • मूत्र मार्ग में पत्थरी अड़ने के कारण मूत्र का धारा वक्र और रुक - रुक कर आती है । ( Fainted & rounded urine stream) 


• मूत्र में सिकता निकलना ( Crystalluria ) 

• गंदला मूत्र ( Turbid Urine )

 मूत्रमार्ग से पत्थरी हटने पर आराम ( Refief after passage of calculus ) अश्मरी के मूत्र मार्ग से हट जाने पर मूत्र साफ अथवा गोमेद के समान किंचित रक्त वर्ण का आता है ।

 परिश्रम करने पर तथा मूत्र त्याग करते समय जोर लगाने पर मूत्र मार्ग में तेज दर्द होता है और आंखों से आंसू तक आ जाते हैं । बार - बार मूत्र त्याग करने की इच्छा होती है ।



•गुर्दे की पथरी का कारण :-

 आधुनिक मतानुसार मूत्र संस्थान की अश्मरियों का निर्माण कैल्शियम , फॉस्फेट या आक्सलेट से होता है । अनुचित आहार विहार के कारण ही यह रोग उत्पन्न होता है । 

•आयुर्वेद के अनुसार अपान वायु , मल , मूत्र , छींक , प्यास , नींद , खांसी , श्रम से उत्पन्न श्वास , जम्भाई , उल्टी तथा शुक्र के आते हुए वेगों को रोकने से पत्थरी हो सकती है। 


•मूत्राशय के भर जाने पर भी मूत्र न त्यागने पर और मूत्र की तलछट मुत्राशय में  जमती है और समय के साथ अशमरी  का रूप ले लेती है। 


•कुछ लोग पानी कम पीते हैं । पानी कम पीने से शरीर की आन्तरिक सफाई नहीं हो पाती है , यूरिक एसिड ठीक से बाहर नहीं निकल पाते हैं और ये यहीं सूख कर अश्मरी का रूप धारण कर लेते हैं । 

• कभी - कभी विटामिन ए और सी की कमी के कारण भी पत्थरी उत्पन्न होती है । कुछ रोगियों में यह वंशानुगत रूप से भी पाया जाता है ।

 • जो लोग क्षार या कैल्शियम युक्त औषधि का बहुत अधिक मात्रा में सेवन करते हैं , पान में चूना बहुत अधिक खाते हैं । उन्हें पत्थरी की शिकायत ज्यादा होती है । 


अत्याधिक शारीरिक , मानसिक परिश्रम के कारण भी मूत्र में कैल्शियम फास्फोरस का उत्सर्ग बढ़कर पत्थरी उत्पन्न करता है । पेराथाईराइड ग्रन्थि जो गले में होती है , जब उस का स्राव अधिक होता है तब कैल्शिम फास्फोरस का वजन विषम होकर रक्त रस में चूने की अधिकता हो जाती है और मूत्र में इस का उत्सर्जन बढ़ जाता है ।


•बीमारी के कारण जिन लोगों को अधिक समय तक बिस्तर पर लेटना पड़ता है । शारीरिक कार्य कम हो जाता है । ऐसे निष्क्रिय रोगियों में अस्थि का कैल्शियम मूत्र में मिल कर मूत्राश्मरी पैदा करता है ।

 • जिन व्यक्तियों को ज्यादा देर बैठ कर काम करना पड़ता है , सिगरेट या तम्बाकू का अधिक सेवन करते हैं उन्हें पत्थरी हो सकती है । जिन लोगों की आतों में क्षार या कैल्शियम के शोषण करने की क्षमता कम हो जाती है । उन के मूत्र में क्षार की मात्रा अधिक बढ़ जाती है और परिणाम मूत्राश्मरी की उत्पति होती है । 


• यकृत विकार , गठिया रोग , ल्यूकेमिया आदि रोगों के कारण भी कभी -कभी मूत्राश्मरी की उत्पत्ति हो जाती है ।

•यकृत विकार , गठिया रोग , ल्यूकेमिया आदि रोगों के कारण भी कभी - कभी मूत्राश्मरी हो जाती है ।


पथरी के लिए उपचार कैसे करें-

 रोग के निदान के लिए मूत्र जांच , एक्स रे , चिकित्सा- रोगी को दिन में 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए । लेकिन एक बार में अधिक पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि थोड़ी - थोड़ी देर में पानी पीना चाहिए । 

• कुलथी दाल का सूप या दाल का उपयोग करना चाहिए । रोगी को भोजन हल्का , सादा एवं सुपाच्य लेना चाहिए । शाकाहार भोजन हमेशा हितकारी होता है । 

• मलमूत्रादि के वेगों को नहीं रोकना चाहिए । 

•व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक श्रम की अति से बचना चाहिए । रोगी के लिए पुराना चावल , जौ , गेहूँ का आटा , कुलथी , मूंग , चौलाई , लौकी , कुष्मांड , पेठा , खीरा , ककड़ी , खरबूज , पपीता , संहजना आदि हितकारी आहार है ।

• अगर कब्ज रहता है तो उसे ठीक  करना परमावश्यक है । कब्ज के लिए त्रिफला चूर्ण , पंचसकार चूर्ण  आदि औषधियां उपयोगी हैं ।


  • अगर पत्थरी बहुत  बड़ी हो तो शल्य क्रिया की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए जब समस्या बहुत ज्यादा गंभीर और आपको मूत्र त्यागते समय अगर दर्द की तकलीफ बहुत ज्यादा होती है तो ऐसे में अपने नजदीकी डॉक्टर के सलाह अवश्य करने चाहिए।

Disclaimer-

यह लेख हमने सिर्फ सामान्य जानकारी के आधार पर लिखा है, इसमें हमारा खुद का कोई योगदान नहीं है.





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