प्रभू का ध्यान कैसे और क्यू करें | ध्यान लगाने के लाभ और सही समय कया है | How to Meditate ?

प्रभु का ध्यान कैसे करें और क्यों करें?

प्रभु का धयान कैसे लगे और क्यों करें । इस बात को लेकर बहुत से भ्रमीत रहते हैं कि  क्या भगवान है ? क्या वह हम सबको देख रहे हैं ।हाँ वह है तो हम सब है, अगर वह नहीं होता ना हम होते ना होते दुनिया होती।

 अगर इतने रंग-बिरंगे फूल खिले हैं अगर जमीन में कुछ फल मीठे कुछ कड़वे होते हैं तो यह सब एक भगवान ही कर सकते है ।

क्या आपने कभी सोचा है कि आप चाह कर भी किसी भी फल को मीठा नहीं कर सकते, चाहे  आप उसको मीठा पानी देते रहो ,वह आपके मीठा पानी देने के बाद भी मीठा नहीं होगा यह केवल भगवान ही कर सकता है।  उस अदृश्य शक्ति के कारण ही सारी दुनिया चल रही है।

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 ध्यान कैसे लगायें -

 ध्यान तीन स्थानों में होता है नाभी, हृदय और मस्तक में। नाभी में क्रिया शक्ति रहती है, वहाँ बहा का ध्यान होता है। हृदय में

इच्छा शक्ति, प्रेमशक्ति अथवा भावना शक्ति रहती है, वहाँ विष्णु का ध्यान होता है। मस्तक में ज्ञान के देवता भगवान् शिव का ध्यान होता है। प्राणायाम के द्वारा क्रिया-शक्ति, इच्छा-शक्ति और ज्ञान-शक्ति, तीनों का ही पूर्ण विकास होता है।

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 *ध्यान लगाने के लाभ-

 ध्यान करने से सच्ची शान्ति, सच्चा सुख, संतोष, तृप्ती, और सफलता मिलती है।  सासारिक विचारों पर, तर्क वितर्क, तनाव, टेन्सन पर काबू पाने के लिए मन को शान्त, एकाग्र करने के लिए प्रारम्भ में "ॐ" का उच्चारण ऊंचे स्वर में करने से दूसरे दूसरे विचारों से मुक्त हो सकते है।

शुरु शुरु में अनेक प्रकार की मानसिक कमजोरियां, निरर्थक विचार, ध्यान में बाधा डालेंगे ही मगर उनसे घबराना नहीं उन विचारों को बलपूर्वक रोकने की कोशिश न करें, ज्यों ज्यों ध्यान का अभ्यास बढता जाएगा वे विचार धीरे धीरे स्वयं स्वतः ही बन्द हो जाऐगे।


ध्यान के लिए  उचित स्थान-

 शुद्ध हवादार, कमरा जो मकान के उत्तर या पूर्व में हो उस कमरे के उत्तर पूर्व के कोने में ध्यान लगाने का आरान श्रेष्ठ माना जाता है।  शुद्ध आसन पर बैठकर, शुद्ध होकर, अपने ईष्ट देव की मूर्ति, या फोटो, या मनपसंद के किसी फुल को या दीपक की ली को ध्यान का केन्द्र मान कर, बिना पलक झपकाए निनिमेष दृष्टि से सामने रखे हुए ध्यान के केन्द्र को ईष्ट मानकर उसे 3 या 4 मिनट तक देखते रहे।

 फिर आखों को बन्द करके उसी ईष्ट को मानसिक अवलोकन मृकुटि के मध्य में (दोनों आखों के बीच में तीसरे नेत्र की जगह) देखें या हृदय में देखने की कोशिश करें,।

थोडे  टाइम से अभ्यास के करने पर यह संम्भव हो जाएगा, अच्छी तरह से वह ध्यान केन्द्र आंखों के बन्द करने पर आपको दिखने लग जाऐगा यह ध्यान लगाने की पहली सीढ़ी है, और इस व्यवस्था में पहुँच कर अपने ईष्ट का मानसिक जाप कुछ देर तक करते रहने से मन स्वतः ही एक गहन ध्यान की अवस्था में प्रवेश करेगा और अनेक प्रकार की नई नई अनुभव होगा और  दिव्यज्योतिदिन और की तृप्ती, मानसिक शांती महसूस होगी।

ध्यान लगाते समय मेरूदंड को सीधा रखें धयान  के लिए सबसे पहले आवश्यक है उचित आसन और मेरुदंड को सीधा रखना।  जब भक्त अपने मन और प्राण शक्ति को मेरुदंड में चक्र से होते हुए सांसो को चेतना की ओर भेजने के लिए तैयार होता है तो उसे समय अनुचित आसन के कारण मेरुदंड की नाडीयों में होने वाली सिकुड़न व्यवस्था कौन-कौन से बचना चाहिए। इसलिए आपका ध्यान बहुत जल्दी लगेगा और आपको कुछ अनुभूतियां होने लगेंगे।



घ्यान करने का सही समय-

  ध्यान करने का 4 से 6 बजे का शांत समय श्रेष्ठ माना जाता है या रात को जब सभी सदस्य सो जाते हैं। कमरा ईशान के हवादार, शुद्ध पवित्र और जूता-चप्पल यहां न जाने पाएँ। पद्‌मासन या सिद्धासन में बेठकर गर्दन, सिर सीधा एक लाईन में रखें, शरीर में मन में भी किसी प्रकार तनाव न रखें। 

आरम्भ में 8-10 मिनट का ध्यान का अभ्यास शुरू कर एक घण्टा या ज्यादा ध्यान करना चाहिए। धुप या अगरबती की मीठी सुगन्ध जलती रहे। जल पात्र एवं आचमणी से (छोटी सी चम्मच) आचमन करने के लिये पास में रखें। 

 ध्यान शुरू करने से पहले स्वच्छ शुद्ध जल का आचमन 3 बार करके, प्राणायम करने से मन शान्त होता है। प्राणायम करने के बाद तीन बार गहरा श्वास लेवें, श्वास लेते समय पेट पूरा फुल जाए और श्वास छोडते समय पेट अंदर को चिपक जाए।

उसके बाद स्वाभाविक सास धीरे-धीरे लेना शुरु करके मन को शांत रखते हुए प्रत्येक सासं लेते समय, छोड़ते समय शान्त मन से सांस की चाल को महसूस करे। दोनों नाकों के छिद्रों के नीचे तिकोने भाग पर  अंदर जाते हुए सांस की शीतलता और बाहर निकलते हुए सांस की गरमी एवं गीलेपन को महसूस करें। अंदर जाने वाले और बाहर निकलते हुए प्रत्येक सांस के लगातार निरीक्षण करने से मन एवं चित्त स्वयं शांत और स्वस्थ होकर ध्यान लग जाता है।

  ध्यान का आरम्भ हो जाने पर शरीर की प्रत्येक कोशिका आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण हो जाती है। मन की शरीर की अनेक प्रकार की बिमारियां भी बिना दवाई के अपने आप ठीक हो जाती है। और यह व्यक्ति किसी भी कार्य को कम समय में और कम परिश्रम से पूरा कर सकता है। 



 ध्यान और शांति का अनूभव-

 शांती और प्रसन्नता हमे ध्यान के द्वारा ही मिल सकती है। ध्यान के द्वारा हम अपनी मानसिक एक शारीरिक शक्ति को भी बढ़ा सकते हैं, ध्यान के द्वारा हम हृदय रोगों से. मानसिक रोगों से श्वास जैसे रोगों से भी छुटकारा पा सकते हैं। ध्यान से दुखो से छुटकारा, अनेक प्रकार की समस्याओं को आसानी से सुलझा सकते हैं। 

स्थायी आत्मिक शांति ध्यान के द्वारा ही मिल सकती है। यदि तुम पूर्ण विश्वास से, निष्ठा से, प्राणायाम करते हो, तो तुम्हें 'प्राण' शक्ति का ज्ञान  होता है, यदि तुम विश्वास के साथ 'ध्यान' करो, तो चेतना का ज्ञान मिलता है। निष्ठा से अभ्यास करने से अनपढ़ को भी गहन ज्ञान की प्राप्ति होती है।


 अघर्षण-

 इसके अनेको प्रकार हैं। तन्त्रों में इसे भूत शुद्धि कहा गया है। इसकी क्रिया इस प्रकार बतलाई गई है कि साधक भावना की आँखों से देखें कि मेरी बाये कोख में भयंकर पाप पुरुष है।बीज मन्तरो का उच्चारण  करता हुआ. प्राणों के साथ जल खींचकर उस पाप पुरुष को भसम करके पुण्य पुरुष की दृष्टि करे। इस प्रकार की भावना करते रहने पाप-प्रवृत्ति नष्ट हो जाती है।


 न्यास कैसे करें-

 न्यास का अर्थ है स्थापना। अपने शरीर के अवयवों में सम् और देवताओं का स्थापना ही न्यास है। बायें हाथ की हथेली पर जल लेकार दाहिने हाथ की पाचों उगलियों को जल में डुबोकर (मन्त्रोच्यार से) पहले दाहिनी और फिर बायीं ओर स्पर्श करे। और भावना करें कि इन्द्रियों-अगों से मंत्र शक्ति के प्रभाव में दिव्य प्रवृत्तियों की स्थापना हो रही है। ॐ बाड़मे आस्येऽस्तु) (मुख को) ॐ नसोर्मप्राणोऽस्तु । (नासिका के छिद्रों को) ॐ अक्षणोंमें चसुरस्तु। (दोनों नेत्रों को) ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (दोनो कानों को) ॐ बाह्वोमें बलमस्तु। (दोनों बाहों को) ॐ उर्वांचे ओजोऽस्तु। (दोनों जधाओं को) ॐ अरिष्टानियेऽगानि तनूस्तन्या में सह सन्तु। (समस्त शरीर को)

 विनियोग कैसे करें:

 भगवान, देवी-देवता पूजा में, जप के समय, प्रभु की प्रसन्नता के लिये "विनियोग"  (पंचपात्र में में आचमनी द्वारा जल लेकर चुंभी पर गिराया जाता है) किया जाता है।



संध्या पुजा कैसे करें- 

अगर आपको ध्यान लगाना बहुत ज्यादा मुश्किल लगता है और आपका मन धयान  वाली मुद्रा में नहीं टिकता तो ऐसे में अगर कुछ नहीं कर सकते तो आप फिर संध्या की पूजा कर सकते हैं। यह भी ध्यान लगाने का समान है क्योंकि संध्या की पूजा करते समय हम अपने इष्ट  देव की मूर्तियों के सामने दिया लगाकर उनसे प्रार्थना करते हैं। जो भी मंत्र जाप या बीज मंत्र आप करना चाहते हैं संसारिक मोह माया को त्यागकर अपने इष्ट देव को देखना और उसेमंत्र का जाप करना भी ध्यान लगाना है

 संध्या की सम्पूर्ण क्रियाओं का मकसद है  अन्तःकरण की शुद्धि और परमात्मा की प्राप्ति करना। उपासना की सिद्धि अर्थात् अन्तःकरण की शुद्धि. निष्काम भाव की पूर्णता अर्थात् अन्तःकरण की शुद्धि। अन्तःकरण जितना अधिक शुद्ध होगा उतना ही गाहरा ध्यान लगेगाऔर  इष्टदेव हमारे मन कि बात जरूर सुनेंगे।

निष्कर्ष-

प्रभु का ध्यान या पूजा करने के लिए बहुत ज्यादा धन दौलत की जरूरत नहीं होती इसके लिए केवल अंतर मन से भगवान को देखना और उसकी देखने की इच्छा होना केवल एक मात्र साधन है। ध्यान लगाने से हमारे मन को शांति मिलती है और हमारे अंदर आने वाले नकारात्मक विचार वह खत्म होने लगते हैं और शरीर की शुद्ध होने लग जाती है। इसलिए प्रत्येक इंसान के लिए दिन में कम से कम आधा घंटा अपने लिए प्रभु की भक्ति के लिए आवश्य निकले क्योंकि प्रभु के बिना हमारा कोई औचित्य  नहीं है।  इसलिए अपने लिए समय निकालकर कुछ समय के लिए प्रभु के लिए ध्यान भक्ति जो भी आप कर सकते हैं उसमें जरूर समय बिताएं।



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