भोजन करने के नियम | सवस्थ रहने के लिए भोजन कैसे सेवन करें | disipline for food |

भोजन करने के नियम आयुर्वेद के अनुसार हमें भोजन किस प्रकार करना चाहिए और हम भोजन करते समय किन बातों का धयान रखे कि आप स्वस्थ रह सको.

आईए जानते हैं इस लेख के माध्यम से भोजन करने के नियम-

भोजन करने का सही समय-

भोजन का समय हो तो मांगलिक पदार्थों का दर्शन करें। संसार में ब्राह्मण, गौ, अग्नि, पुष्पों की माला, घृत, सूर्य, जल और राजा-ये आठ मांगलिक हैं।

 इनका दर्शन करने से  आयु और धर्म की वृद्धि होती है। भोजन से पहले अथवा बाद में खड़ाऊ धारण करें क्योंकि इनसे पाँवों के रोग दूर होते हैं, शक्ति प्राप्त होती है, नेत्रों के लिए हितकारी हैं और आयु को बढाने वाले हैं।

 जो मनुष्य भूख लगने पर नहीं खाते उनके शरीर की जठराग्नि मन्द हो जाती है। शरीर की अग्नि खाये हुए आहार को पचाती है। आहार न मिलने से वात, पित्त, कफ को पकाती है। दोषों का क्षय होने पर धातु को पचाती है, और धातुओं का करने क्षय होने पर प्राणों को पचाती है अर्थात् प्राणों का नाश करती है।


* सौ वर्ष तक स्वस्थ  कैसे रहें-

आहार से तत्काल देह का पोषण होता है। जल की वृद्धि तथा स्मृति, आयु, शक्ति, वर्ण, उत्साह, धैर्य तथा शोभा की वृद्धि होती है। 

संध्या और प्रातःकाल इन दोनों समय भोजन करने की शास्त्र में आज्ञा है। भूख लगे तभी भोजन का समय है. ऐसा जानना चाहिए।

भोजन करने से पहले नमक और अदरक खाना हितकर है। यह अग्नि को दीप्त कर रुचिकारक और जीभ व कण्ठ को शुद्ध करने वाला है। सेंधा नमक स्वादिष्ट, पाचक, हलका, स्निग्ध, रुचिकारक, शीतल वीर्यवर्द्धक, सूक्ष्म, नेत्रों के लिए हितकारी और त्रिदोष नाशक है।


एकाग्रचित होकर पहले मंधुर रस, बीच में ख‌ट्टा तथा खारी रस अन्त में तीक्ष्ण कडुवा तथा कसैला रख खाना चाहिए। 

व्यक्ति पहले अनार खाये परन्तु उसमें केला और ककड़ी का त्याग करें।

 कंबल की नाल, भसीड़ा, शालुक, कन्द और ईख इत्यादि को पहले ही खाये, भोजन के बाद पिष्टमय पदार्थ, चावल, चिल्ले आदि न खायें, आवश्यकता से अधिक भी न खाये। पहले घी से पूर्ण कठिन पदार्थ खायें। फिर कोमल पदार्थ खाये और अन्त में द्रव्य रूप पतले पदार्थ खाये।


* भोजन में जल कितना पियें -

पेट के दो भागों को अन्न से भरें, तीसरा भाग जल से और चौथा भाग वायु के चलने-फिरने के लिए खाली रहने देवें। अन्न के रस से प्रथम जीभ तृप्त होने पर दूसरे पदार्थ के स्वाद को नहीं जानती। इसलिए बीच-बीच में थोड़ा सा जल पीकर जीभ को साफ कर लें। स्मरण रक्खें, अधिक जल पीने से अन्न जल्दी नहीं पचता और बिल्कुल जल पीने से भी यहीं दोष

होता है। अतः बारम्वार थोडा थोडा जल पीना चाहिए।

 भोजन करने से पहले जल पिये तो अग्नि मन्द हो जाती है, मध्य में जल पीने से अग्नि दीप्त होती है और अन्त में पानी पीने से शरीर। मोटा होता है।


* भोजन के पश्चात् दूध क्यों पियें-

शिष्ट पुरुष भोजन के अन्त में दूध पीते हैं। दूध स्वाद रसात्चित स्निग्ध, सामर्थ्यवान धातुबर्द्धक वायु तथा वित्तहारी, वीर्थबर्द्धक, कफकारी भारी और शीतल है। हम नित्य प्रति दाह कारक जो जो अन्न खाते हैं, उनकी वाह शान्त करने के लिए दूध पीना जरूरी है। शिव पुराण में कहा गया है-'जिसके अन्त में दूध पीने को मिले, ऐसा भोजन करें और जिसके अन्त में दही खाया जाय, ऐसा भोजन न करे। 

दूध आदि मधुर भोजन, खट्टे, खारी और चरपरे भोजन से उत्पन्न कफ पित्त की वृद्धि को दूर करता है। भोजन के बाद नमकीन पदार्थ खाकर कुल्ला करें।

 दातों से भोजन के टुकड़े निकाल डालें। आचमन के पश्चात् दोनों भीगे हाथों से आँखों का स्पर्श करे। भोजन के पश्चात् नित्य सुख प्राप्त करने के लिए अगस्त्य आदि का स्मरण करे। भोजन के बाद सोना न चाहिए।


भोजन के पश्चात् का कौन से  काम करें -

भोजन के बाद धीरे-धीरे सौ कदम चलना चाहिए, इससे भोजन किया हुआ अन्न उदर में शिथिल होता है और गर्दन घुटने तथा कण्ठ को सुख होता है। भोजन करके बैठ जाने से शरीर में आलस्य और तन्द्रा उत्पन्न होती है। 

थोड़ी देर पश्चात् विश्राम करने से शरीर पुष्ट होता है. आयु बढ़ती है। खाट विदोष नाशक है, पृथ्वी पर सोना पुष्टि कारक है। भोजन के पश्चात् भी मन को प्रिय लगे ऐसे शब्द गाना बजाना, सुन्दर वस्त्र को छूना, रूप, रस, गन्ध का सेवन करें क्योंकि इनके सेवन करने से अन्न भली भाँति ठहर जाता है।


*पगड़ी और जूता  पहनने से लाभ-

पगड़ी धारण करने से कान्ति बढ़ती है, केशों को हितकारी तथा पित्त, वात तथा कफ की दूर करने वाली है। पगड़ी हलकी उत्तम हैं। पाँचों में जूतियाँ पहिनना नेत्रों को सुखदायक, आयु बढ़ाने वाली पाँचों के रोगों की नाशक, उत्साह और शक्ति देने वाली है।

* धूप सेवन से लाभ-

सूर्य की किरणों का सेवन करने से पसीना, स्फूर्ति, रक्त, पित्त, तृषा, परिश्रम तथा उत्साह और विवर्णता की उत्पत्ति होती है।

* दिन कैसे व्यतीत करें -

यह विषय अत्यन्त महत्वपूर्ण है। दिन में श्रेष्ठ मनुष्यों के साथ मित्रता करनी चाहिए, नीच का संग छोड़ देना चाहिए। देव, ब्राह्मण, वृद्ध, वैद्य, राजा तथा अतिथि की सेवा करनी चाहिए। याचक को निराश खाली न जाने दें। गुरु लोगों के पास सदा नम्रतापूर्वक बैठें। उपकार करने वाले के साथ भी उपकार करने में तत्पर रहें। मनुष्यों के अभिप्राय को जानकर जो मनुष्य जिस प्रकार से प्रसन्न हो, उसी प्रकार बर्ताव करे क्योंकि अन्य मनुष्य को प्रसन्न रखना ही चतुरता है।


स्वस्थ रहने की उपयोगी दिनचर्या -

जिस प्रकार सहायता बिना मनुष्य सुखी नहीं होता उसी प्रकार सब के ऊपर विश्वास करने वाला अथवा सबके ऊपर सन्देह करने वाला मी मनुष्य सुखी नहीं हो सकता। कभी उद्यम से खाली नहीं बैठना चाहिए। किसी के सफलीभूत उद्यम घर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। जो पुरुष ऐश्वर्यवान के ऐश्य को देखकर दुःख मानते हैं, वे सदैव दुःखी रहते हैं। विद्वानों को विचारना चाहिए कि अमुक पुरुष को किस प्रकार धन मिला, उसी विद्या से उसी उपाय में हम भी धन उपार्जन करके संसार में अपने यश का प्रकाश करें।

किसी समय भी किसी के जामिन न बनें, किसी के वृथा साक्षी न हो, किसी की धरोहर न रक्खें और जहाँ जुआ होता हो, उसको दूर से ही त्याग दें। 

इस प्रकार सदा सदाचार में तत्पर रहकर दिन व्यतीत करें और रात्रि के समयानुकूल कार्य करें। उक्त नियमों के अनुसार कार्य करने वाले की आयु आरोग्य, प्रीति, धर्म और यश की प्राप्ति होती है।


संध्या में यह कार्य न करें-

विद्वान लोगों को संन्ध्याकाल में आहार, मैथुन, निद्रा, अध्ययन और मार्ग चलना-ये पाँच कार्य नहीं करने चाहिए। सायंकाल भोजन करने से व्याधि उत्पन्न होती है, मैथुन करने से गर्भ में विकार आता है, पढ़ने से आयु का नाश होता है और मार्ग चलने से भय उत्पन्न होता है।


रात्रि में समय पर सोना-

रात्रि में समय पर सोने से धातुओं में समता आती है, आलस्य दूर होता है और पुष्टि की प्राप्ति होती है, रंग निखर आता है. उत्साह बढ़त्ता है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है।

 जो मनुष्य शयन के समय बिनौरे के पत्तों का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटे तो वह तन्द्रा उत्पन्न करने वाला वायु के निरोध से सुखपूर्वक शयन कर सकता है।


रात्रि के अन्त में पानी का नियम-

जो मनुष्य सूर्योदय के समय आठ अंगुलि वासी पानी पीने का नियम करता है । वह रोग और जरा से छूट कर सौ वर्ष जीवित रहता है। जब रात्रि का चौथा प्रहर आरम्भ हो तो इस जल को पीने का समय जागना चाहिए। इस अभ्यास से बवासीर, सूजन, संग्रहणी, ज्वर, जठर, जरा, कोढ़, पेट के विकार, मूत्रघात, रक्त-पित्त, कर्ण रोग, कमर का दर्द, नेत्र रोग नष्ट हो जाते हैं। 

प्रातःकाल उठकर  पानी पीने से बुद्धि पूर्ण होती है, नेत्रों की दृष्टि गरुड़ के समान होती है। सम्पूर्ण रोग नष्ट होते हैं।

निष्कर्ष- 

इस प्रकार अपने दिनचर्या को शुरू करें और अपने स्वास्थ्य की खुद देखभाल करें हमारा स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी दौलत है अगर आपकी समस्या बहुत ज्यादा गंभीर है तो अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह करें यह छोटे-छोटे अभ्यास करके आप अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हो इसमें कोई ज्यादा समय  नहीं लगता। 

Post by-  kiran





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