हँसने के शारीरिक और मानसिक लाभ | हँसते रहिये और सवस्थ रहिये | Laughing Therapy Benefits |

 हंसिये और सवस्थ रहिये-

हंसना एक मनुष्य की एक ऐसी कला है जो सिर्फ इंसान के पास है पशुओं के पास नहीं अपने जीवन में हंसना कितना जरूरी है। आईए जानते हैं इस लेख  के माध्यम से हम आज विस्तार से की हंसने से कौन-कौन सी बीमारियां ठीक हो सकती है और हम खुद कैसे स्वस्थ रह सकते हैं। 

हंसने से शारिरीक लाभ-

 हास्य तथा प्रसन्नता शरीर तथा मन पर आश्चर्यजनक प्रभाव डालते है और शोक, भय, चिन्ता, क्लेश जैसी प्राधातक वृतियों का उन्मूलन क्षण भर में कर डालते है। आनन्द ईश्वरी गुण है। चिन्ता, क्लेश इत्यादि आसुरी तत्व है। 

ईश्वरीय गुण का प्रतीक आनन्द शरीर में मधुर रस उत्पन्न करम है और किसी अव्यक्त मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया से शरीर और मन पर तत्काल शान्ति का अलौकिक प्रभाव डालता है। जिस समय आनन्द तथा प्रसन्नता अपना प्रभाव प्रकट करते हैं तो रामस्त प्रतिकूल प्रसन विलोम हो जाते हैं। शरीर के अणु -अणु में नवसचार  हो उठता है।

हंसने से तात्पर्य है कि आपके सुख की कली फूल की पंखुरी की भाति खिल उठे रोम-रोम में नक-स्फूर्ति दौड़ जाय, जीवन रस नई शक्ति से ओत-प्रोत हो उठे. मन की दुर्बलता, क्लेश, चिन्ता, दुःख की मलिनता या विकार घुल जाय। 

मुस्कुराहट, ज्ञान तन्तुओं में जो कुछ दुर्बलता अथवा चिन्ता होती है, उसे तत्काल दूर करती है। आनन्द का प्रभाव शरीर तथा मन के कण-कण से होता है। जिस जगह औषधि लाभ नहीं पहुंचाती, जहाँ इन्जेक्शन, कुनैन या अन्न कृत्रिम साधना कार्य नहीं करते. वहीं हास्य-भाव अपना काम करता है।


विपत्ति, चिन्ता तथा व्याधि की हास्य के साथ शत्रुता है. इसलिए प्रसन्नता की जितनी अधिकता होगी, उतनी ही व्याधि की न्यूनता होगी। जो हसते हुए जीवन बितायेगा, उसका जीवन उतना ही स्वस्थ होगा। यदि आप रोग तथा व्याधि से मुक्ति चाहते हैं, जीवन का बीमा चाहते हैं, सौ वर्ष तक जीना चाहते हैं तो एक ही मार्ग आपके समक्ष है अन्तर से वास्तविक अन्तकरण से हसी। 


खूब खिलखिला कर हास्य फैलाओ। इस-हंस हसं कर रोग व्याथियों को मार भगाओ। हसी से सारा ससार तुम्हारे साथ-साथ आनन्द से विभोर हो खिलखिला उठेगा।

 रोओं किन्तु तुम्हारे साथ रोने वाला और कोई न मिलेगा। यदि तुम सुख से जीवन व्यतीत करना चाहते हो. तो हास्य की महिमा को अविलंब समझो और आज से अभी से उसका अध्ययन आरम्भ कर दो। आपने जीवन को हास्य से मधुर बनाओ। स्वयं भी हंसी तथा दूसरों को भी हंसाओ।


जब हम हसते हुए जीवन व्यतीत करते हैं तो हमारे लिए सारा संसार परिवर्तित हो जाता है और हम उसे एक नवीन दृष्टिकोण से निरीक्षण करने लगते हैं। मनुष्य को यह गाँठ बाँध लेना चाहिए कि जिस प्रकार भोजन, जल वायु इत्यादि जीवन शक्ति के पोषण तत्व हैं, उसी प्रकार और सच पूछा जाय तो उससे अधिक हास्य तत्व-आनन्द में मग्न रहना आवश्यक है।

हंसने का अभ्यास करें -

बिना किसी प्रतिबन्ध के हसे। जब समस्त संसार आपको रुलाने को, जीवन के युद्ध में अब आधी और तूफान, वेग से आता दिखाई देता हो, जब वह प्रतीत हो कि जीवन नौका उलटकर समुद्र की लहरों में विलीन हो जायगी, तब खिलखिला कर हरा दें। आधी तूफान शान्त हो जायगा, जीवन नौका पुनः आनन्द से चलने लगेगी हृदय खुशी से उछलने लगेगा।

हंसने से शारिरीक लाभ-

खुलकर हंसने से फेफड़ें, पेट आदि के 

अवयवों को व्यायाम प्राप्त होता है। हृदय अधिक तीव्र गति से कार्य करने लगता है। रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है,।

हास्य नेत्रों की शक्ति को तेजबान करता है, छाती फैलती है और शरीर के प्रत्येक अंग को स्वास्थ्यप्रद गर्मी पहुंचती है।

 कठिन परिश्रम के मध्य में खुल कर हंस लेने से मष्तिष्क को बहुत कुछ विश्राम प्राप्त हो जाता है, थकावट दूर हो जाती है और पुनः नवीन जोश से काम में जी लग जाता है।

हास्य उपचार के लिए सहनशीलता की आवश्यकता है। जो जरा सी बात पर उद्विग्न हो उठता है, वह कैसे हंसकर रोग दूर कर सकते हैं, हंस वही सकता है जिसमें दूसरों के अपराध क्षमा कर टाल देने की शक्ति हो, प्रतिक्रिया की ज्वाला हृदय में न सुलगती हो। यदि आपके विरुद्ध कोई आपको रुलाने के लिये तैयार बैठा हो, हानि का हिमालय टूट पड़ने को हो तो भी हंसें। आप हँसना-सीखिये।


 दूध पीने वाला बालक जैसे निर्दोष

हँसी हँसता है, वैसी ही हँसी, मस्ती बिखने वाली हँसी सर्वोत्तम दवा है। हास्य सेवन का आनन्द लें। हँसने वालों का संग करें, आनन्द ही देखें, बरतें, सुनें और सुनायें। हास्य ही आपके दुःख दर्द की एक मात्रा दवा है।


हँसना और प्रसन्न रहना आप अपने स्वभाव का एक अंग बना लीजिए। खुशी में, सफलता में, प्राप्ति में, सम्पन्नता में तो हर किसी को आती है, असंस्कृत मनुष्य भी प्रसन्न होते हैं, इनमें कोई विशेष बात नहीं आपको जिस कलापूर्ण हंसी का अभ्यास करना है वह है हर स्थिति की प्रसन्नता, 

जब परिस्थितिया आपके विपरीत हो, असफलता का अन्धकार छाया हुआ हो, दिन काटना कठिन हो रहा हो, उस स्थिति में खिल-खिला कर हंस पड़ना चाहिए।


नमकीनें और मीठा दोनों ही स्वाद अपने-अपने ढंग का प्रसन्नता दायक स्वाद देते हैं, विपत्ति और सम्पत्ति दोनों ही स्थितियों में आपको आशान्वित, प्रसन्नचित, उत्साहित और प्रयत्नशील रहना चाहिए। प्रसन्नचित द्वारा अनेक शारीरिक और मानसिक रोगों का प्रभाव और उपचार हो जाता है। प्रसन्न रहना, नीरोग जीवन का ऐसा राज-मार्ग है, जिस पर चलकर आप आसानी से स्वस्थ, बलवान और दीर्घजीवी बन सकते हैं।

निष्कर्ष-

इसलिए हंसते रहिए क्योंकि हंसने के लिए कोई पैसे खर्च नहीं होते और अगर अपने स्वास्थ्य के लिए हंसना भी पड़े तो इसमें कोई हर्ज नहीं है। इसलिए जितना हो सके दिन में हंसने का प्रयास  करें और टीवी में इस प्रकार की फिल्मे  देखें जिससे आपकी हंसी आ जाए। हंसना एक तरह से ऐसी औषधि है जिसमें कोई भी धन खर्च नहीं होता। 



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