त्रिफला खाने के लाभ | त्रिफला बिमारियों के लिए रामबाण औषधि | Trifala benefits for health |

त्रिफला के स्वास्थय लाभ - 

आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला एक मनुष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और उत्तम औषधि माना जाता है। आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको बताने की कोशिश करेंगे त्रिफला खाने के क्या-क्या स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं।

कब्ज के लिए लाभदायक-

सुखा भोजन खाने , बासी खाने , समय - कुसमय खाने , भोजन के तुरन्त बाद सो जाने आदि कारणों से कब्ज हो जाता है।  मल साफ होकर नहीं आता है और फिर य। समस्या कब्ज बन जाती है जिसके कारण हमें बहुत सारी बीमारियां घेर लेती हैं ।


( 1 ) रात्रि को सोने से पहले त्रिफला का चूर्ण घी या शहद के साथ लेना चाहिए- मात्रा दस ग्राम । इससे पेट की सफाई हो जायेगी और कब्ज भाग जायेगा ।


 ( 2 ) रात्रि को त्रिफला का चूर्ण दूध या गरम पानी से लेना चाहिए । इससे पेट की ऐंठन और मरोड़े भी समाप्त हो जायेगी ।   आँतों को बल मिलेगा । यदि पन्द्रह दिन तक लगातार त्रिफला चूर्ण लिया जाये तो पेट के हर तरह के विकार दुर हो जायेंगे। 

यह भी पढ़े- त्रिफला कया है और कैसे सेवन करें

 ( 3 ) पचास ग्राम त्रिफला का मोटा चूर्ण लेकर आधा लीय पानी में उबलने के लिए रख देना चाहिए । जब पानी आधा जाये तो दस ग्राम अरण्डी का खाने वाला तैल मिला लें । आँतों में चिकनाई आयेगी और व्यक्ति को काफी आराम मिलेगा ।


( 4 ) रात को त्रिफला का मोटा चूर्ण ( जौकुट ) एक लीटर पानी में भिगो दें । सुबह को पानी में त्रिफला मसल लें । फिर उसे छानकर भोजन के साथ पीयें । सारा मल निकल जायेगा और पेट ठीक हो जायेगा । भोजन में हरी सब्जियाँ और रोटी खायें । दूध पतला करके पीयें । 

खोए की चीजें , चावल , दाल , आलू आदि कुछ दिनों के लिए बन्द कर दें । 


पेट में कीड़े के लिए-

 उल्टा - सीधा खाना , मीठे पदार्थों का ज्यादा मात्रा में सेवन करना , पुरानी कब्ज , शारीरिक परिश्रम न करना , ज्यादा भोग - विलास , हाजत लगने पर भी पाखाने को न जाना , नशा करना , रात को देर से सोना आदि कारणों से पेट में कीड़े पड़ जाते हैं । 

इलाज कैसे करें - 

इसके लिए त्रिफला , बायविडंग , सेंधा नमक और जवाखार या खाने वाला सोडा- इन चारों का चूर्ण पाँच ग्राम लेकर मट्ठे के साथ सेवन करें । पेट के कीड़े एक सप्ताह में नष्ट हो जायेंगे । सादा भोजन करें । पपीता खूब खायें क्योंकि पपीते का गूदा कीड़ों को लपेटकर बाहर निकालता है । 


पेट में दर्द के लिए-

 पेट में दर्द बासी भोजन ग्रहण करने , अधिक मात्रा में खाने , वायु रुकने , गरिष्ठ भोजन लेने , पेट में कीड़े होने , पुरानी कब्ज आदि के कारण हो जाता है ।

 इलाज - 

( 1 ) त्रिफला , त्रिकुटा , शुद्ध कुचला , शुद्ध गन्धक , सेंधा नमक- सबकी मात्रा पाँच - पाँच ग्राम लेकर पीस लें । इसमें दो ग्राम हीरा हींग मिला लें । इसकी पानी के साथ चने के बराबर गोलियाँ बना लें । एक गोली प्रातः भोजन से पूर्व गरम जल के साथ सेवन करें । इससे पेट का दर्द , संग्रहणी , अतिसार , अजीर्ण , मन्दाग्नि आदि रोग जाते रहते हैं । 


( 2 ) त्रिफला , त्रिकुटा , सेंधा नमक , जीरा , अजवायन , चित्रकमूल- सभी दस - दस ग्राम लें । इनको कूट - पीसकर नीबू के रस में मिला लें । इससे उदरशूल तथा पेट सम्बन्धी विकार दूर हो जाते हैं

मन्दाग्नि'-

 इस बीमारी में व्यक्ति को भोजन की पाचन क्रियाशिल हो जाती है । मल के साथ कच्चा पक्का  भोजन निकलता है ।

इलाज कैसे करें-

 ( 1 ) त्रिफला का चूर्ण  पाँच ग्राम- और सोंठ का  चूर्ण  दोनों का गुड़ के साथ सेवन करें ।

 ( 2 ) त्रिफला असगन्ध का पूर्ण पाँच ग्राम और सोंठ का चूर्ण  की मात्रा में लेकर पीस ले और चूर्ण बना ।  भोजन से पूर्व दो चुटकी चूर्ण शहद के साथ चाट ले इससे मंदागिन भाग जाती है और भोजन हजम होने लगता है ।

 ( 3 ) महीन पिसा हुआ पिसा हुआ  सेंधा नमक दोनों को पाँच ग्राम लेकर गरम पानी के साथ सेवन करें । 


पेट की वायु को कैसे ठीक करें-

 इस रोग में पेट में वायु रुक जाती है और अफारा सा बनता है । इससे रोगी को बहुत पीड़ा होती है । पुरानी , उल्टा सीधा खान - पान , गलत दिनचर्या , पौरिक भोजन का अभाव , गरिष्ठ पदार्थों का अधिक सेवन आदि से यह रोग होता है । 

इलाज-

 ( 1 ) हरड़ , जवाखार , काला नमक , अजवायन और भुनी होंग - इन सबको कूट - पीसकर चूर्ण बना लें । इसमें से 6 ग्राम चूर्ण लेकर शहद के साथ चाटने से वायुगुल्म मिटता है । 

( 2 ) अरेंडी का तेल 30 ग्राम लेकर उसमें 6 ग्राम हरड़ का चूर्ण मिलाकर दूध के साथ पी लें इस प्रयोग से भी वायुगुल्म मिटता है ।


यकृत का विकार को कैसे ठीक करें-

 इलाज- 

( 1 ) त्रिफला का चूर्ण दो से दस ग्राम , नौसादर दो ग्राम , खाने वाला सोडा दो ग्राम , मण्डूर भस्म दो ग्राम- इन सबको मिलाकर प्रातः सायं गुनगुने पानी से लें । यह एक मात्रा है । इसी अनुपात में अधिक चूर्ण बनाया जा सकता है ।


 ( 2 ) त्रिफला चूर्ण ढाई सौ ग्राम तथा घृतकुमारी का गूदा साढ़े तीन किलो - इन दोनों को पाँच किलो दूध के साथ घोंटकर खोया बना लें । इसमें थोड़ी सी शक्कर डाल लें । सबके पेड़े बना लें । एक पैड़ा भोजन के बाद प्रतिदिन खायें । कुछ ही दिनों में यकृत का विकार नष्ट हो जायेगा ।

 पीलिया रोग के लिए- 

( कामला ) इस रोग में व्यक्ति का पूरा शरीर पीला पड़ जाता है और वह कमजोर हो जाता है । वास्तव में , जब यकृत क्रिया में व्यतिक्रम उत्पन्न हो जाता है तो पित्त रक्त में मिश्रित होने लगता है जिसके कारण रक्त का रंग परिवर्तित होने लगता है । इसमें कब्ज , दुर्बलता , उधर , मुँह में कड़वापन आदि लक्षण प्रकटते हैं।

इलाज कैसे करें-

 ( 1 ) यदि त्रिफला का चूर्ण पाँच ग्राम को चार साल पुराने गुड़ के साथ लिया जाये तो पाण्डु - कामला का रोग समाप्त हो जाता है । 

( 2 ) त्रिफला , कुटकी , गिलोय , चिरायता तथा नीम की छाल- सबको दस - दस ग्राम लेकर दो कप पानी में औटाएँ । पानी जलकर जब एक कप रह जाये तो काढ़े को उतार लें इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें । पाण्डु - कामला में शीघ्र ही लाभ होगा ।


 ( 3 ) त्रिफला , चिरायता , अडूसे की जड़ प्रत्येक को दस - दस ग्राम लेकर पानी में पकायें । दो गिलास पानी जब एक गिलास रह जाये तो इस काढ़े को छानकर मिश्री मिलाकर पी जायें ।


 बवासीर और अर्श के लिए- 

इस बीमारी में गुदा में मस्से निकल आते हैं जो दर्द करते हैं उनमें खुजली भी पड़ती है । इसके सन्दर्भ में यह भी देखा गया है कि कुछ लोगों को खूनी बवासीर हो जाती है । इसमें मल के साथ भी जाता है । व्यक्ति को कठिनाई  का सामना करना पड़ता है । डॉक्टर लोग बादी तथा खूनी बवासीर के लिए ऑपरेशन का परामर्श देते है,  परन्तु यदि आयुर्वेद चिकित्सा की जाये तो इस कष्ट से छुटकारा पाया जा सकता है ।

 इलाज-

 ( 1 ) दस ग्राम त्रिफला , दस ग्राम मिलावा , दस ग्राम दन्ती तथा दस ग्राम चित्रक से । इसमें बीस ग्राम सेंधा नमक मिलायें । इन सब चीजों को नारियल के भीतर भरकर आग में फेंक लें । ठंडा होने पर सबको कूटपीसकर चूर्ण बना लें । इसके बाद एक चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी के साथ प्रातः- सायं खायें । दोनों प्रकार की बवासीर में लाभ होगा ।

 ( 2 ) त्रिफला का चूर्ण दो सौ ग्राम , त्रिकुटा का चूर्ण सौ ग्राम , शिलाजीत बीस ग्राम , बायविडंग पचास ग्राम सब चीजों को कूट पीसकर एक शीशी में भर लें । इसमें से एक से दो चम्मच तक चूर्ण प्रातः सायं गरम पानी से लें । पुरानी से पुरानी बवासीर नष्ट हो जायेगी । इस दवा से पेट के अन्य रोगों में भी लाभ होता है । 


( 3 ) बाजार में अभयारिष्ट मिलता है । इसमें से दो चम्मच प्रतिदिन सुबह - शाम गरम पानी से लें । बवासीर जड़ से उखड़ जायेगी । इसे घर पर भी बनाया जा सकता है । दो किलो हरड़ , एक किलो मुनक्का , आधा किलो वायविडंग , आधा किलो महुआ के फूल- प्रत्येक को जौकुट कर लें । इसे बीस किलो पानी में पकायें । चार किलो जल रह जाने पर नीचे उतार लें । इसमें दो किलो गुड़ और आधा किलो पिसी हुई सौंफ मिलायें । इसे पुनः आग पर पॅकायें । बाद में छानकर बोतलों में भर लें । इसमें से दो चम्मच रस लेकर भोजन के बाद सुबह - शाम सेवन करें । हर प्रकार की लाभकारी है । बवासीर नष्ट हो जायेगी । यह पेट के अन्य रोगों के लिए भी लाभकारी है। 


( 4 ) त्रिफला बीस ग्राम , नीम की निबौली पचास ग्राम , गुलाब के फूल दस ग्राम , बकायन के फूल पाँच ग्राम- इन सबको सुखाकर चूर्ण बना लें । एक चम्मच चूर्ण सुबह - शाम भोजन के बाद लें । 


भगन्दर के लिए-

 इस रोग में गुदा के भीतर पहले छोटी फुंसी निकलती है । धीरे - धीरे फुंसी बड़ी होकर घाव में बदल जाती है । इसी को भगन्दर कहते हैं। अगर  इसका इलाज नहीं किया जाता है तो वह नासूर का रूप धारण यह एक कष्टसाध्य रोग है । रोगी के प्राण हर समय उसी में पड़े रहते हैं । इलाज -

( 1 ) त्रिफला सौ ग्राम खैरसार पचास ग्राम , खदिरादि पचास ग्राम इन सबको जौकुट करके बीस कप पानी में औटने को रख दें । पानी जब दो कप रह जाये तो उसे उतार लें । इसमें वायविडंग और भैंस का घी क्रमशः पाँच ग्राम और बीस ग्राम मिलायें इस काढ़े में से दो चम्मच सुबह को नाश्ते के बाद पी लें । भगन्दर का रोग दूर हो जायेगा । 

( 2 ) पचास ग्राम त्रिफला , पाँच ग्राम गुग्गुल , पाँच ग्राम दालचीनी , दो लाल इलायची , दस ग्राम चित्रकमूल , दस ग्राम अजवायन , दस ग्राम सोंठ , पाँच ग्राम नागरमोथा , दस ग्राम कायफल - सबको जौकुट करके पाँच किलो पानी में औटायें । जब पानी एक किलो रह जाये तो इसे ठण्डा करके छान लें । इसमें थोड़ी मिश्री या शहद मिला लें । इस काढ़े को नित्य प्रातः सायं दो चम्मच की मात्रा में लें । भगन्दर के रोग के साथ - साथ पेट के अन्य रोग भी भाग जायेंगे । 

( 3 ) त्रिफला के रस में वैसलीन मिलाकर उँगली से गुदा के भीतर दूर तक लगायें । नासूर सूखने लगेगा ! ( 4 ) त्रिफला का चूर्ण दस ग्राम , बायबिडंग दस ग्राम , खैरसार पाँच ग्राम , पीपल बीस ग्राम- सबको कूट - पीसकर चूर्ण बना लें ।

इसमें से एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ चाट ले इस दवा से पेट के कीड़े और भगंदर रोग नष्ट हो जाता है।

नाभि हट जाना-

 नाभि हट जाना को आम भाषा में ' नाप सरकना ' कहते हैं । भारी बोझ उठाने , कब्ज , चोट , अजीर्ण आदि कारणों से नाभि अपने बेचैनी आदि लक्षण प्रकट होते हैं । स्थान से हट जाती है जिसके फलस्वरूप पेट में दर्द , दस्त लगना , इलाज- दो चम्मच सूखे आँवले का चूर्ण लेकर उसे तक्र ( छाछ ) के साथ महीन कर लें । फिर इस चूर्ण को नाभि के चारों ओर धीरे - धीरे मलें । नाभि में अदरक का रस भर दें । यह क्रिया लगभग दो घण्टे तक करें । सुबह - शाम यह क्रिया करने से टली हुई नाभि पर रखने से काफी लाभ मिलता है । अपनी जगह पुनः आ जायेगी । अदरक के रस में कपड़ा भिगोकर नाभि पर रखने से बहुत जल्दी आराम मिलता है


कफ रोग के लिए - 

 जुकाम पानी में भीगने , शरीर के गर्म होने की स्थिति में ही ठण्डे पेय लेने . ठण्ड लगने , ऋतु बदलते समय खान - पान में परिवर्तन न करने , पुरानी कब्ज आदि कारणों से जुकाम हो जाता है । इसमें छींक आना , आँख - नाक से पानी आना , गले में भारीपन , सिर - दर्द आदि लक्षण प्रकटते हैं।

इलाज-

 ( 1 ) त्रिफला पन्द्रह ग्राम , सोंठ दस ग्राम दोनों को कूट के बराबर गोलियाँ बना लें । इनमें से दो गोली प्रातः सायं ताजे पानी पीसकर कपड़छन कर लें । फिर इसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर बड़े चने या हल्की चाय के साथ लें । हर प्रकार का जुकाम भाग जायेगा । 

( 2 ) राव जुवा पाँच ग्राम , हरड़ देशी पाँच ग्राम , आँवला द ग्राम , मुनक्का पाँच ग्राम , सूखा धनिया पाँच ग्राम , गुलाब के सूखे हुए फूल पाँच ग्राम , खसखस पाँच ग्राम- सबको कूट - पीसकर छलनी से छान लें । फिर इसे शक्कर की चाशनी में मिलाकर धपड़ी या बर्फी बना लें । बर्फी का एक टुकड़ा नित्य गरम पानी के साथ व्याधियाँ दूर होती हैं । प्रातःकाल लें । इससे नजला , जुकाम तथा मस्तिष्क सम्बन्धी अन्य बीमारी दुर हो जाती है 

काली खाँसी ( Hooping Cough )-

 बहेड़े का छिलका बीस ग्राम लेकर गाय के मूत्र में लगभग एक सप्ताह तक भीगने दें । इसके बाद इसे कढ़ाई में भून लें । छिलकों को अधिक लाल करके न भूनें । ठंडा होने पर कूट - पीसकर कपड़छन कर लें । इसमें से आधा चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन . में चार बार लें । काली खाँसी में तुरन्त लाभ होता है । कुकर खाँसी प्रायः छोटे बच्चों को हो जाती है ।


सिर एवं केशों के रोग के लिए-

 सिर - दर्द सिर में दर्द निम्नलिखित में से किसी भी कारण से हो सकता . है , जैसे- सर्दी- गर्मी का प्रभाव , पेट की खराबी , मानसिक तनाव या अचानक मन को चोट पहुँचना ।


 इलाज-

 ( 1 ) हरड़ , बहेड़ा , आँवला , चिरायता , हल्दी , नीम के पेड़ के भीतर की छाल- सबकी मात्रा पाँच - पाँच ग्राम लें । सबको जौकुट करके आधा किलो पानी में पकायें । पानी जब पचास ग्राम रह जाये तो इसे उतारकर इसकी नस्य लें । शीघ्र ही सिर की पीड़ा ठीक हो जायेगी । यह क्वाथ पीने से भी लाभ होता है । 


( 2 ) हरड़ , बहेड़ा , आँवला , छोटी हरड़ , काबुली हरड़ , खसखस , खरबूजा , तरबूज , ककड़ी तथा पेठा के बीज - इन सबकी मात्रा दस - दस ग्राम । इसके बाद धनिया , किशमिश और लौंग- तीनों की मात्रा पाँच - पाँच ग्राम । इन सबको महीन पीसकर इकट्ठा कर लें ।

इसमें थोड़ी - सी मिश्री मिला लें । इस दवा को पाँच ग्राम की मात्रा में रोज प्रातः के समय ताजे दूध या गुनगुने पानी से लें । हर प्रकार का सिर - दर्द ठीक हो जाता है । पथ्य में सूर्योदय से पहले गरम दूध लेना चाहिए । इस दवा से नजला और जुकाम भी दूर हो जाता है ।


बाल सफेद पड़ जाना-

 पौष्टिक भोजन का अभाव , शरीर के गर्म अवस्था में ही होने पर ठण्डे पानी से नियमित नहाना , सिर की सफाई न करना  , बहुत ज्यादा मानसिक परिश्रम , वंशानुगत आदि कारणों से सिर के बाल पक जाते हैं यानि छोटी उम्र में सफेद हो जाते हैं ।

 इलाज-

 ( 1 ) त्रिफला के पानी से सिर धोते रहने से बाल सफेद नहीं होते हैं । ( 2 ) हरड़ दो , आँवले तीन , बहेड़ा एक आम की गुठली की मींगी पाँच सबको बारीक पीसकर चूर्ण बना लें । इस चूर्ण को लोहे के बरतन में भिगो दें । जब लेप बन जाये तो सिर पर लगायें । दो घण्टे बाद सिर धो लें । कुछ दिनों के प्रयोग से सफेद बाल काले  हो जाते है। आवाले का रस शहद के साथ चाटने से और अवल से सिर धोने बालों में लेप लगाने से बालों का सफेद पडना और झड़ना  रुक जाता है। 


मोटापा कम करने  के लिए -

 मोटापा एक बहुत बुरी बीमारी है । चिकने पदार्थों के सेवन शारीरिक परिश्रम न करने , दिन भर बैठे , लेटे रहने से शरीर चर्बी की मात्रा बढ़ जाती है । स्त्रियों में अधिक चर्बी बढ़ने से गर्भाशय का मुख बन्द हो जाता है जिससे उनके सन्तान नहीं होती पुरुषों में चर्बी बढ़ने से शरीर भारी हो जाता है चलना - फिरना मुश्किल हो जाता है । शरीर में कोई न कोई व्याधि है लगी रहती है ।

 

इलाज- 

( 1 ) त्रिफला का चूर्ण दस ग्राम लेकर काढ़ा बनायें और शहद के साथ चाटें ।

 

( 2 ) त्रिफला , त्रिकुटा , चित्रक , चव्य , काला नमक , वाकुची , सेंधानमक- प्रत्येक की मात्रा दस - दस ग्राम लेकर कपड़छन कर लें इसके बाद लौह भस्म पाँच ग्राम लेकर खरल कर लें । इसमें से दो ग्राम चूर्ण प्रातः सायं शब्द के साथ सेवन करें । इससे मोटापा कुष्ठरोग आदि शीघ्र ही दूर हो जाते हैं । इसके साथ चिकने तथा देर से पचने वाले पदार्थों को नहीं खाना चाहिए । यह दवा चालीस दिन तक बराबर ली जाये तो मोटापा सदैव के लिए नट हो जाता है ।


मस्तिष्क की दुर्बलता को कैसे ठीक करें -

  बड़ी हरड़ की छाल 25 ग्राम और धनिया 60 ग्राम- इनको पीसकर चूर्ण बना लें और इसमें इतनी ही शक्कर मिलाकर रख लें । इस चूर्ण में से 6-6 ग्राम लेकर सुबह - शाम जल के साथ खायें । इससे मस्तिष्क की दुर्बलता दूर होती है और याददाश्त बढ़ती है । कब्ज दूर होता है और चुस्ती आती है । मेघा की वृद्धि के लिए यदि एक चम्मच त्रिफला का चूर्ण घी के साथ रोज सेवन किया जाये तो मेधा की वृद्धि होती है । आलस दूर होता है और काम में मन लगता है । 


* लम्बी आयु के लिए-

 खाना खाने से पहले दो बहेड़े , खाना खाने के पश्चात् दो आँवले और जब भोजन पच जाये तो एक हरड़ घी के साथ नित्य सेवन करने से पुरुष की आयु लम्बी होती है । उसके शरीर को लगने वाली व्याधियाँ दूर होती रहती हैं । त्रिफला को मानव के  लिये आयुर्वेद में अमृत बताया गया है । 

Disclaimer-

इस आर्टिकल में जो कुछ भी लिखा गया है  यह सब आयुर्वेद के अनुसार लिखा गया है। अगर आप की समस्या है कोई भी बीमारी बहुत ज्यादा गंभीर है तो इसके लिए अपने नजदीकी डॉक्टर से सलाह करें ।

यहां जो कुछ भी लिखा गया है वह सिर्फ छोटी समस्या के लिए लिखा गया है.।

Posted by-kiran




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