सावन में शिव की पुजा विधि: सही तरीके और मन्त्र विधि: शिव का विशेष पूजन कैसे करें .

शिवपूजन कैसे करें

शिवपूजन, भगवान शिव की विशेष पूजा विधि है जो शुद्धता, भक्तिभाव और विविध अनुष्ठानों पर आधारित होती है। इसे सही तरीके से करने के लिए कुछ मुख्य चरणों का पालन किया जाता है। यहाँ एक संक्षिप्त और व्यवस्थित मार्गदर्शिका प्रस्तुत की जा रही है


प्रारंभिक तैयारी-

शिव-पूजन- 

भगवान् शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले

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आचमन, 

पवित्री-धारण, शरीर-शुद्धि और आसन-शुद्धि कर लेनी चाहिये। तत्पश्चात् पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्वलित कर ले, तदनन्तर स्वस्ति-पाठ करे। इसके बाद पूजन का संकल्प कर तदंगमूत भगवान् गणेश एवं भगवती गौरी का स्मरणपूर्वक पूजन करना चाहिये। रूद्राभिषेक, लघुरुद्र तथा सहस्रार्चन आदि विशेष अनुष्ठानों में नवग्रह, कलश षोडशमातृका आदि का भी पूजन करना चाहिये। यदि ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक-कर्म सम्पन्न हो रहा हो तो पहले उनका पादप्रक्षालपूर्वक अर्घ्य, चन्दन, पुष्पमाला आदि से अर्चन करे,


 फिर वरणीय सामग्री हाथ में ग्रहणकर संकल्पपूर्वक उनका वरण करें। संकल्प ॐ अद्य... मम... रुद्राभिषेकारव्ये कर्मणि एभिर्व रणद्रव्यै : अमुकामुकगोत्रोत्पन्नन् अमुकामुकनाग्नो ब्राह्मणान् युष्मानहं वृणे। तदन्तर ब्राह्मण बोलें 'वृताः स्मः। (स्वस्तिवाचन एवं गणपत्यादि-पूजन) भगवान् शंकरजी की पूजा में उनके विशिष्ट अनुग्रह की प्राप्ति के लिये उनके परिकर-परिच्छद एवं पार्षदों का भी पूजन किया जाता है। 


संक्षेप में उसे भी यहाँ दिया जा रहा है। यदि कोई भी पूजा का उपचार न जुट पाये या जुटाना आवश्यक हो तो उसे मन से तैयार कर चढ़ा देना चाहिये।


 जैसे दिव्यमासनं मनसा परिकल्प्य समर्पयामि, पुष्पितां पुष्पमालां मनसा परिकल्प्य समर्पयामि' आदि। नन्दीश्वर-पूजा ॐ आयं गौः पृश्रिरक्रमीदसदन् मातरं पुरः। पितरं च प्रयन्त्सवः।। पूजन करके नीचे लिखी प्रार्थना करें


ॐ प्रैतु वाजी कनिक्रदन्नानदद्रासभः पत्वा। भरन्नग्निं पुरीष्यं मा पाद्यायुषः पुरा ।। वीरमद्र-पूजन ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरंगैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ।। पूजन करके नीचे लिखी प्रार्थना करें-


ॐ भद्रो नो अग्निराहुतो भद्रा रातिः सुभग भद्रो अध्वरः। भद्रा उत प्रशस्तयः।। कार्तिकेय पूजन ॐ यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा


 पुरीषात्। श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्य महि जात ते अर्वन् ।।

 पूजन करके नीचे लिखी प्रार्थना करें -

ॐ यत्र बाणाः सम्पतन्ति कुमारा विशिखा इव। तन्न इन्द्रो बृहस्पतिरवित्तिः शर्म यच्छतु विश्वाहा शर्म यच्छतु ।। कुबेर पूजन ॐ कुचिदंग यवमन्तो यवं विद्यथा दान्त्यनूर्व वियूय। इहेहेषा कृणुहि भोजनानि ये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति।।


 पूजन करके नीचे लिखी प्रार्थना करे-


ॐ वयंध्सोम व्रते तव मपनस्तनुषु बिभ्रतः। प्रजावन्तः सचेमहि ।। कीर्तिमुख- पूजन ॐ असवे स्वाहा वसवे स्वाहा विभुवे स्वाहा विवस्वते स्वाहा गणश्रिये स्वाहा गणपतये स्वाहाऽधिपतये स्वाहा शूषाय स्वाहा सं सर्पाय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा ज्योतिषे स्वाहा मलिम्लुचाय स्वाहा दिवा पतयते स्वाहा ।। पूजन करके नीचे लिखी प्रार्थना करें-


ॐ ओजश्च मे सहश्च म आत्मा च में तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मऽगांनिच मेऽस्थीनि च मे परूं पि च मे शरीराणि च म आयुश्च मे जरा च में यज्ञेन कल्पन्ताम्।


सर्प-पूजन- 

जलहरी में सर्प का आकार हो तो सर्प का पूजन करने के पश्चात् शिव-पूजन करे।


शिव-पूजन के लिए सर्वप्रथम हाथ में फूल बिल्वपत्र और अक्षत लेकर भगवान् शिव का ध्यान करें।


ध्यान -

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिमं चारुचन्द्रावतंस, रत्नापकल्पोज्जवनलांग परशुमृगवरामीतिहस्तं प्रसन्नम्। पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैव्र्व्याघ्रकृति वसान, विश्वाद्यं विश्ववनद्य। निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।। ॐ नमस्ते रूद्र मन्यव उतो त इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः।।


ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीनर्मदेश्वरसाम्बसदाशिवाय नमः, ध्यानार्थे बिल्वपत्र समर्पयामि। (ध्यान करके शिव पर बिल्वपत्र चढ़ा दें।)


आवाहन-

आगच्छ भगवन् ! देव् स्थाने चात्र स्थिरो भव। यावत् पूजा करिष्येऽहं तावत् त्वं संनिधै भव ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। आवाहनार्थे पुष्पं समर्पयामि। (पुष्प चढ़ायें।)


आसन-

अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्। इदं हेममय दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। आसनार्थे बिल्वपत्रं समर्पयामि। (बिल्वपत्र दे।)


पाद्य-

 गंगोदकं निर्मलं च सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्। पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं में प्रतिगृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। पादयोः पाद्यं समर्पयामि।

जल चढाये -

श्वरदो भय।। श्री भगवते सावशिवाय नमः। हस्तयोः असल्याम (चन्दन, पुष्ण, अक्षतयुक्त समर्पण करें।


आचमन कर्पूरेण गुरुचेन वासित स्वादु शीतलम्। तवामाचमनीयार्थ गृहाण परमेश्वरा। श्री भगवते गावशिवाय नमः आचमनीय जल समर्पयामि। (कर्पूर से सुवासित शीतल जल चढ़ायें।)


स्नान -मन्दाकिन्यास्तु य‌द्वारि सर्वपाहर शुभम्। तदिदं करियत देव स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बंशिवाय नमः। स्नानीय जल समर्पयामि। (गगाजल चढ़ायें।)


स्नानाग-आयमन स्नानान्ते आचमनीय जलं समर्पयामि। (जल चढ़ायें।)


दुग्धस्नान-

कामधुनेसमुन्दत सर्वेषा जीवन परम्। पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानाय गृह्यताम्।। श्री भगवते साम्यशिवाय नमः। पयत्नानं समर्पयामि। (गोदुग्ध से स्नान कराये।) शुद्ध जल से स्नान और आचमन भी करायें


दधिसनान

पयरास्तु समुन्द्रत मुधराम्ल शशिप्रभम्। दध्यानीत मया देव स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। दधिस्नान समर्पयामि। (गोदधि से स्नान कराये।) शुद्ध जल से स्नान और आचमन भी करायें।


घृतस्नान-नवनीतसमुत्पन्न सर्वसंतोषकारकम्। घृत तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। घृतरनानं समर्पयामि। (गोघृत से स्नान कराये।) शुद्ध जल से स्नान और आचमन मी करायें।


मधुसनान-

पुष्परेणुसमुत्पन्नं सुस्वादु मधुर मधु। तेजःपुष्टिकर दिव्य स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। मधुरनानं समर्पयामि। (मधु से स्नान करायें।) शुद्ध जल से स्नान और आचमन मी करायें।


शर्करास्नान- 

इक्षुसाररामुभ्दूतां शर्करां पुष्टिदा शुभाम्। मलापहारिका दिव्यां स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। शर्करास्नानं समर्पयामि। (शक्कर से स्नान कराये।) शुद्ध जल से स्नान और आचमन भी करायें।


पञ्चामृतस्नान पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करान्वितम्। पञ्चामृतं मयाऽऽनीत स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। पञ्चामृतस्नान समर्पयामि। (अन्य पात्र में पृथक् निर्मित पञ्चामृत से स्नान कराये


शुद्ध जल से स्नान और आचमन कराये।


गन्धोदकस्नान -

(केसर को चन्दन से घिसकर पीला द्रव्य बना ले और उस गन्धोदक से स्नान कराये।) मलयाचलसम्भूतंचन्दनेन विमिश्रितम्। इद गन्धोदकस्नानं कुकुमाक्तं नु गृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। गन्धोदकस्नान समर्पयामि।


शुद्धोदकस्नान-

 शुद्ध यत् सलिलं दिव्यं गंगाजलसमं स्मृतम्। समर्पित मया भक्त्या शुद्धस्नानाय गृह्यताम् ।। श्री भगवते साम्बशिवाय नमः। शुद्धोदकरनानं समर्पयामि। (शुद्ध जल से स्नान कराये।)


स्नानान्ते आचमन शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीय जल समर्पयामि (आचमन के लिये जल चढ़ायें।)


निष्कर्ष-

शिवपूजन में शुद्धता और भक्तिभाव महत्वपूर्ण हैं। इसे विधिपूर्वक करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। पूजा के अंत में भगवान का ध्यान और आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान और विभिन्न देवताओं का पूजन किया जाता है। अंत में, शिवपूजन के समापन के लिए भगवान शिव का आभार व्यक्त करें और प्रसाद वितरण करें।

शिवपूजन के सभी अनुष्ठान सही तरीके से करने पर भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।





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