मन की शांति और संतोष प्राप्त करने के उपाय

 संतोष: एक अमूल्य आनंद है-

संतोष से ही सच्चा सुख मिलता है क्योंकि यह मनुष्य को आंतरिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। जब हम अपनी वर्तमान परिस्थितियों और उपलब्ध संसाधनों से संतुष्ट होते हैं, तो हमारी इच्छाएँ और लालच कम हो जाते हैं, जिससे मन में शांति और खुशी का जन्म होता है। असंतोष हमें हमेशा अधिक पाने की लालसा में उलझाए रखता है, जिससे हम तनाव और चिंता से घिर जाते हैं। संतोष व्यक्ति को यह सिखाता है कि जीवन की सच्ची संपत्ति बाहरी सुख-सुविधाओं में नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन और प्रभु पर विश्वास में निहित है। संतोष से मन में स्थायी आनंद और मानसिक शांति का वास होता है। आइए जानते हैं इसलिए के माध्यम से अपने जीवन में सुख शांति का अनुभव कर रही हो इसके लिए हम ख़ुद क्या कर सकते हैं ताकि जीवन में हमें सच्चा सुख मिल सके क्योंकि बाहरी वस्तुओं से हम सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए ख़ुश हो सकते हैं आतंरिक ख़ुशी  के लिए हमें क्या करना चाहिए ?


  1. संतोष एक महान शक्ति है। इसमें अनगिनत गुण भरे हुए हैं। काम, क्रोध, और लोभ जैसी तीन प्रमुख बुराइयाँ, जिन्होंने संसार को अस्त-व्यस्त कर रखा है, संतोष से पूरी तरह समाप्त हो जाती हैं।

  2. नारायण भगवान कहते हैं कि प्रत्येक खाने के कण पर खाने वाले का नाम लिखा होता है। अगर हम संतोष रखें और प्रभु पर विश्वास करें, तो जो हमारे लिए है, वह हमें अवश्य मिलेगा।

  3. इस संसार में हमें प्रभु ने ही भेजा है, और हमारी सभी चिंताओं का समाधान भी वही करेगा। हमें केवल कर्म करते रहना है। गीता में भी प्रभु ने यही बताया है कि कर्म करते रहो, फल की चिंता प्रभु पर छोड़ दो। कर्म का फल अवश्य मिलेगा।

  4. भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य और समय को पहले से ही लिख दिया है। इससे अधिक या कम कुछ नहीं मिलेगा, फिर क्यों न संतोषपूर्वक उस प्रभु पर भरोसा रखें?

  5. "सुखी ही रहूं" की लालसा का कोई अंत नहीं है। मनुष्य अधिक सुख पाने की चाह में भटकता रहता है, परंतु इसमें मानसिक शांति नहीं मिलती। तकदीर से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता, तो क्यों झूठ, पापकर्म और बेईमानी करें?

  6. संतोष प्रभु की अमूल्य देन है। यह मनुष्य को सुखी, निरोगी और स्वस्थ जीवन देता है। यदि सुख चाहते हो, तो संतोष को पकड़ लो और कभी मत छोड़ो।

  7. संतोष में स्थायी शांति है। जहां संतोष होता है, वहां सच्चा सुख होता है। संतोष स्थायी सुख है, इसे करके देखो।

  8. जब मन शांत हो जाता है, तो हृदय का सागर आनंद से भर जाता है। सभी बुराइयाँ धुल जाती हैं, और मन शीतल हो जाता है। ऐसे व्यक्ति का मन बाहरी दुनिया में नहीं लगता, वह आंतरिक आनंद की ओर चला जाता है।

  9. जब तक परमेश्वर का साक्षात्कार नहीं होता, तब तक जीवन अशांत रहता है। जिस प्रकार नदी तब तक शांत नहीं होती जब तक वह सागर में विलीन नहीं हो जाती, वैसे ही संतोष से ही सच्ची शांति प्राप्त होती है।

सद्बुद्धि और कुबुद्धि के कारण:

  1. सद्बुद्धि से मान-सम्मान, धन, और उच्च पद प्राप्त होते हैं।

  2. सद्बुद्धि प्रभु की कृपा, भक्ति, पिछले जन्म के संस्कार, और अच्छे मित्रों के संपर्क से मिलती है।

  3. जब प्रभु किसी को उसके कर्मों के अनुसार दंडित करना चाहता है, तो उसकी सद्बुद्धि हर लेता है, जिससे कुबुद्धि आ जाती है और मनुष्य कष्ट और दुःखों का सामना करता है।

  4. केवल मनुष्य को ही सद्बुद्धि और ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति दी गई है। इस अमूल्य मानव योनि में, मनुष्य को अपना उद्धार करना चाहिए।

  5. सद्बुद्धि को स्थिर और शांतिपूर्ण बनाए रखना आवश्यक है।

  6. नारायण के सच्चे सेवक वही होते हैं, जो बिना किसी प्रश्न के प्रभु की आज्ञा का पालन करते हैं।

  7. ज्ञान 'सद्बुद्धि' है और अज्ञान 'कुबुद्धि'। ज्ञान जीवन है, जबकि अज्ञान मृत्यु है।

  8. धन, जवानी, और सत्ता के साथ विवेक (सद्बुद्धि) का होना आवश्यक है, वरना अनर्थ हो सकता है।

  9. सुख में प्रमाद और दुःख में हताशा से बचें। जीवन में सदा सत्य और असत्य का संघर्ष होता रहता है, लेकिन अंत में विजय सत्य की ही होती है।

मन की शांति कैसे प्राप्त करें?

आजकल, अधिकतर लोग यह सवाल करते हैं कि उन्हें हर समय तनाव बना रहता है और मन को शांति कैसे मिले? कई उपाय आजमाने के बाद भी शांति नहीं मिलती। तो क्या करें?

(2) श्रद्धेय स्वामी रामसुखदासजी ने मन की शांति के लिए एक सरल मंत्र बताया है: मन से चीजों को निकाल दो।

"(3) ध्यान दें, यह एक 100% कारगर उपाय है। जब तक मन में यह विचार रहेगा कि 'यह मेरा है,' 'वह मेरी चीज है,' 'मुझे यह प्राप्त करना है,' और 'यह चीज खराब न हो जाए,' तब तक शांति प्राप्त नहीं हो सकती, चाहे कितने भी उपाय कर लें।

(4) जब मन से सारी चीजें, कामनाएँ और इच्छाएँ निकल जाएंगी, तो अशांति का कारण भी चला जाएगा और शांति स्वतः मिल जाएगी। "ॐ" का पहले ऊँचे स्वर में उच्चारण करें, फिर मानसिक जाप शुरू करें— मानसिक शांति अवश्य मिलेगी।

(6) राम नाम का जाप शुरू करें और सारा ध्यान राम में लगाएँ। अभ्यास करते-करते मन को शांति अवश्य प्राप्त होगी।

(7) इंसान लगातार इच्छाएँ करता रहता है, और इच्छाएँ कभी पूरी नहीं होतीं। जब इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं, तो दुख होना स्वाभाविक है। तो फिर सवाल यह है कि हम इच्छाएँ क्यों करें? इच्छा करना मतलब दुखों को बुलावा देना। इच्छाओं को त्यागें। जो प्रभु ने दिया है, उसी में संतुष्ट रहें, और शांति प्राप्त होगी।

(8) हम अक्सर सोचते हैं कि जो करोड़पति हैं, जिनके पास गाड़ी, बंगला और नौकर-चाकर हैं, वे सुखी और शांतिपूर्ण हैं। मगर यह सच नहीं है। जितना अधिक धन है, उतनी ही अधिक अशांति है।

(9) सभी जानते हैं कि एक दिन हमें जाना है, लेकिन कब, यह कोई नहीं जानता। फिर भी हम धन इकट्ठा करने और उसे बेटों-पोतों के लिए जोड़ने में लगे रहते हैं, जो हमारे लिए अंतहीन चाहतों का कारण बनती है। 15 मिनट के लिए आँखें बंद करके सोचें, आपको खुद ही जवाब मिल जाएगा कि हम भ्रमवश ही अपनी शांति खो रहे हैं।

इसलिए, मन की शांति का साधारण उपाय हमारे ही हाथ में है— इच्छाओं और चीजों का त्याग।

 सुख-शांति की प्राप्ति के लिए क्या करें -:

  1. वर्ष में एक बार आने वाली "गुरु पूर्णिमा" के दिन गुरु के घर भोजन करने से।

  2. साल में एक बार आने वाली "मातृ नवमी" पर मां के हाथ से भोजन ग्रहण करने से।

  3. वर्ष में एक बार आने वाली "माई दूज" के दिन अपनी बहन के हाथ से भोजन करने से।

  4. साल में एक बार आने वाली "वसंत पंचमी" के दिन अपनी पत्नी के हाथ से भोजन करने से।

  5. रोज़ाना हवन करने और उसका धुआं नाक में जाने से।

  6. खीर का भोजन करने से।

  7. प्रतिदिन सूर्योदय के समय सूर्य भगवान के दर्शन करने और उन्हें अर्घ्य देने से।

  8. प्रतिदिन पवित्र झरने का जल पीने से (जूठा जल पीने से दोष लगता है)।

  9. हर दिन अपने घर की महिलाओं द्वारा प्रेमपूर्वक बनाया गया शुद्ध भोजन करने से।

  10. चिड़ियों, कबूतरों को दाना, कुत्तों और गाय-सांड को रोटी खिलाने से।

  11. अपने धर्म के अनुसार अपने इष्ट का नाम जपने से। किसी अन्य धर्म की निंदा या आलोचना न करें और किसी का धर्म परिवर्तन न करें। परमात्मा ने सभी को जीने का अधिकार दिया है, इसलिए हर किसी को सुख और शांति से जीवन जीने दें।

परमपिता परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखें, वह जो कुछ भी करेंगे आपके हित में ही करेंगे। स्वयं को उनसे पूर्ण रूप से जोड़कर आप भी शांति पाएंगे और आयु में वृद्धि होगी।




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