आपका मकान, ऑफिस, फैक्ट्री और के लिये "वास्तु-शास्त्र के उपाय-
वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो भवन निर्माण और आंतरिक व्यवस्था से संबंधित है। यह एक ऐसा शास्त्र है जो यह निर्धारित करता है कि किसी भवन, घर या अन्य संरचना को किस प्रकार बनाना चाहिए ताकि वह सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि को आकर्षित करे। वास्तु शास्त्र में प्राकृतिक तत्वों (जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश) के संतुलन पर जोर दिया जाता है और यह ध्यान में रखता है कि भवन का डिज़ाइन और उसकी दिशा किस प्रकार मानव जीवन को प्रभावित कर सकती है।
(1) भवन निर्माण से पहले भूमि को जाग्रत कर शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन और नींव पूजन कराना चाहिए। जब भवन पूरी तरह बन जाए, तब विधिपूर्वक उसकी प्रतिष्ठा, वास्तु पूजा, गायत्री जप, गणपति पूजन, रुद्र जप, विष्णु पूजन, नवग्रह पूजन और ग्रह-शांति हवन के साथ ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा का आयोजन करना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि भवन की लागत का दशांश प्रतिष्ठा में खर्च करना चाहिए।
(2) फैक्ट्री, कारखानों, मिल या विद्यालय का मुख्य द्वार कोण में नहीं होना चाहिए। (3) चाहे फैक्ट्री हो, दुकान हो, या निजी भवन, ध्यान रखना चाहिए कि द्वारवेध न हो। (4) अनुपयोगी और वर्जनीय वृक्षों को कभी भी घर या फैक्ट्री के द्वार पर नहीं लगाना चाहिए।
(5) चाहे जानवर, रथ, बैलगाड़ी, टैक्सी या कार हो, पार्किंग के लिए हमेशा घर का उत्तर-पश्चिम कोण चुनना चाहिए। (6) चाहे प्राकृतिक जल हो या कृत्रिम जल, उसका प्रवाह सदैव उत्तर-पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
(7) प्रशासकीय कमरे, बैठक, कंसल्टिंग रूम या महत्वपूर्ण निर्णय लेने के कक्ष मकान के उत्तर या पूर्व दिशा में होने चाहिए। (8) शौचालय, मूत्रालय, गटर, मैनहोल या गंदी नाली घर के उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व कोण में होनी चाहिए।
(9) वरिष्ठ प्रबंधक, संचालक और निर्देशक का कमरा नैऋत्य, पश्चिम या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। (10) मध्यम स्तर के अधिकारियों का कमरा उत्तर और पूर्व दिशा में होना चाहिए। (11) क्षेत्रों में काम करने वाले कारीगर और मजदूरों का कमरा वायव्य दिशा में होना चाहिए।
(12) गणना कार्य, एकाउंट, कलाकार, नक्शे बनाने वाले, और इंजीनियरों का स्टाफ रूम आग्नेय कोण में होना चाहिए। (13) स्वागत कक्ष, अतिथिशाला, पूजा कक्ष, और पीने के पानी का स्थान हमेशा ईशान्य में होना चाहिए।
(14) भंडार गृह आग्नेय दिशा में होना चाहिए। (15) स्टाफ रूम का मुख हमेशा उत्तर और पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। (16) फैक्ट्री के मुख्य प्लांट (उत्पादन) की मशीनें नैऋत्य, दक्षिण, और पश्चिम क्षेत्र में लगानी चाहिए।
(17) उपयोगी और सहायक मशीनें उत्तर या पूर्व दिशाओं में लगानी चाहिए। (18) मशीनों के ऑन-ऑफ स्विच वायव्य कोण में लगाने उचित होते हैं। (19) कोई भी बड़ी मशीन ईशान्य और मध्य भाग में नहीं होनी चाहिए।
(20) बायलर, हीटर, एसी कंट्रोल, मीटर, ओवन, गैस चूल्हा, और ड्रायर जैसी ज्वलनशील वस्तुएं अग्नि कोण में स्थापित होनी चाहिए। (21) मकान में उपयोगी वस्तुओं का संग्रह और फैक्ट्री या कारखाने में गोदाम वायव्य कोण में होना चाहिए। नैऋत्य, ईशान्य, या घर के मध्य भाग में गोदाम नहीं होना चाहिए।
व्यवसाय में वास्तु शास्त्र और शुभ आचार
(21) व्यवसायिक लाभ और दिशा: व्यावसायिक दृष्टि से पश्चिमाभिमुखी दुकानों में लाभ और हानि का क्रम चलता रहता है, जबकि उत्तराभिमुखी दुकानें धन-धान्य की वृद्धि करती हैं और प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा बढ़ाती हैं। व्यवसायी को अपने प्रतिष्ठान (चाहे दुकान हो या ऑफिस) में उत्तराभिमुख या पूर्वाभिमुख बैठना चाहिए, अन्यथा धन हानि की आशंका रहती है। अपवाद यह है कि यदि किसी जातक के जन्म के समय राहु या शुक्र बलवान हो, तो वह दक्षिण दिशा में सफल होता है और दक्षिणाभिमुख आसन भी शुभ होता है।
(22) दुकान की आकृति: दुकान या कार्यालय की आकृति भी महत्वपूर्ण है। छाजमुखी दुकान (जिसका अग्र भाग चौड़ा और पीछे का भाग संकरा हो) शुभ नहीं मानी जाती, जबकि सिंहमुखी दुकान (अग्र भाग संकरा और पीछे का भाग चौड़ा हो) लाभप्रद मानी जाती है। यदि दुकान का आयतन लंबा हो, तो वह शुभ होती है, और चौकोर आयतन वाली दुकानों को भी शुभ माना गया है।
(23) वक्रता (टेढ़ापन): दुकान के भीतर वक्रता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह अशांति का कारण बनती है। (26) दुकान या कार्यालय के द्वार पर देहली या ठोकर नहीं होनी चाहिए, अन्यथा लक्ष्मी स्थिर नहीं रहती।
(24) गणपति पूजन: दुकान या कार्यालय की स्थापना से पहले गणपति का पूजन करना चाहिए। गणपति की प्रतिमा दुकान, कार्यालय, या गद्दी के दाहिनी ओर स्थापित करनी चाहिए और लक्ष्मी के साथ उन्हें स्थान देना चाहिए।
(25) शुभ मुहूर्त और वस्त्र: शुभ मुहूर्त के अवसर पर नया फर्नीचर, काउंटर, और गद्दी लानी चाहिए। श्वेत और पीले वस्त्र का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि लक्ष्मी शुक्र ग्रह की रश्मियों से आकर्षित होती हैं, और शुभ्रता में आकर्षण होता है।
(26) पूजन विधि: समुचित दिशा में बैठकर दुकान या कार्यालय का विधि-विधान से पूजन करना चाहिए। गंध, पुष्प, और अक्षत से स्वस्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए, जो समृद्धि और सफलता का प्रतीक है। स्वस्तिक के रूप में "कुकुमादिक" से सुंदर अल्पना करनी चाहिए, जो व्यापार में स्थायित्व और विकास की ओर अग्रसर करती है। ध्यान रहे कि प्रतिलोम भुजाओं वाला स्वस्तिक न बने, अन्यथा फल विपरीत होंगे।
(27) लक्ष्मी स्वरूपा प्रतिष्ठान: व्यापारी को अपनी दुकान या प्रतिष्ठान को 'लक्ष्मी स्वरूपा' मानकर श्रद्धा के साथ पूजन करना चाहिए। यह मानते हुए कि प्रतिष्ठान सबसे बड़ी धात्री है, व्यापारी को यह प्रार्थना करनी चाहिए: "हे देवी! मेरे प्रतिष्ठान और व्यापार को यशस्वी बनाओ और मेरे घर में सदा कीर्ति और समृद्धि का वास होता है ।
व्यवसाय में समृद्धि के लिए वास्तु और पूजन विधि
कुबेर का महत्व: कुबेर स्थायी संपत्ति के स्वामी और उत्तर दिशा के अधिपति माने जाते हैं। इसलिए मांगलिक और व्यावसायिक कार्यों के लिए उत्तर दिशा श्रेष्ठ मानी गई है। उत्तराभिमुख होकर कुबेर मंत्र के सामने कुबेर देव से धन प्राप्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।
धन रखने के स्थान का महत्त्व: धन रखने वाली वस्तुएं जैसे थैली, पर्स, तिजोरी, अलमारी, पासबुक, और चेक आदि पर स्वास्तिक चिन्ह अंकित करना चाहिए। साथ ही, पांच कंवलगट्टे और हल्दी की पांच गांठें (साबुत हल्दी) स्थापित करनी चाहिए, जिससे धन का स्थान खाली नहीं रहता। दूब, अक्षत, गंध, और पुष्प रखकर व्यापार के देवता से लक्ष्मी के स्थायी निवास की प्रार्थना करनी चाहिए।
श्रीयंत्र की स्थापना: जहां तक संभव हो, दुकान या व्यावसायिक कार्यालय में जाग्रत श्रीयंत्र स्थापित करें और प्रतिदिन श्रीसूक्त और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। इससे लक्ष्मी स्थायी रूप से वहां निवास करती हैं।
पूजा का स्थान: पूजा का स्थान घर या कार्यालय के ईशान्य कोण में होना चाहिए। पूजा करते समय व्यक्ति का मुख पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होना चाहिए।
तिजोरी की दिशा: तिजोरी, गल्ला, या कैशबॉक्स हमेशा उत्तर दिशा में स्थापित करना चाहिए, क्योंकि यह कुबेर की दिशा मानी जाती है, जिससे धन की बरकत बनी रहती है। साथ ही, तिजोरी में कुबेर यंत्र रखने से तिजोरी कभी खाली नहीं रहती।
मूर्तियों की दिशा: गणेश, कुबेर, दुर्गा, भैरव, और षोडश मातृका की मूर्तियों का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।
हनुमानजी की दिशा: हनुमानजी की मूर्ति का मुख नैऋत्य दिशा की ओर होना चाहिए।
व्यापारिक मुहूर्त: दिन के पूर्वार्द्ध में व्यापारिक कार्य शुरू करना मंगलकारी होता है, जबकि ढलते सूर्य के बाद या रात्रि में व्यापारिक मुहूर्त करना उचित नहीं होता।
दृष्टि दोष से बचाव: दृष्टि दोष से व्यापार में रुकावट आ सकती है, जिसे नजर लगना भी कहते हैं। इससे बचने के लिए प्रत्येक शनिवार को दुकान, कार्यालय, या प्रतिष्ठान के बाहरी स्तंभों पर नींबू और सात हरी मिर्च बांधनी चाहिए। यह ऐसी जगह पर होनी चाहिए, जहां सभी की नजर पड़े।
दुकान में बरकत के लिए: यदि दुकान में मन नहीं लग रहा हो, या गल्ले में बरकत न हो, तो गणपति की मूर्ति लगानी चाहिए। गणपति का मुख आगे और पीठ पीछे होनी चाहिए, इससे दरिद्रता दूर होती है।
श्वेत गणपति और श्रीयंत्र: यदि श्वेत गणपति के साथ चांदी का श्रीयंत्र (सिक्के के आकार वाला) भी चौखट पर स्थापित कर दिया जाए, तो यह अत्यंत शुभ होता है।
दुकान और कार्यालय में देवता और गुरु की स्थापना
अपनी दुकान, गद्दी, या कार्यालय में कुलदेवता और इष्टदेवता की स्थापना अवश्य करनी चाहिए। साथ ही, प्रेरणा देने वाले अपने गुरु का चित्र लगाना आवश्यक है। प्रतिदिन प्रातःकाल दुकान खोलते समय श्रद्धापूर्वक इष्टदेवता और कुलदेवता को प्रणाम करें और प्रतिष्ठित देवी-देवताओं की पुष्पमाला, धूप, और दीप से अर्चना करें।
धर्मार्थ में योगदान
यह जीवन केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समस्त जगत और चराचर के लिए अर्पित है। व्यापारी को चाहिए कि अपने व्यापार से अर्जित शुद्ध लाभ का कुछ हिस्सा धर्मार्थ कार्यों में लगाएं। सार्वजनिक कार्यों या मानव सेवा के लिए अपने लाभ का एक अंश अर्पित करते रहें। ऐसा करने से आत्मसुख, जनकल्याण, यशवृद्धि, और व्यापार में समृद्धि बनी रहती है।
वास्तु शास्त्र में दिशाओं का प्रभाव
वास्तुशास्त्र का सूक्ष्म और प्रायोगिक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि जहां नैऋत्य दिशा हल्की या खुली होती है, वहां स्थिरता नहीं रहती। जिस दुकान या मकान में नैऋत्य दिशा दोषपूर्ण होती है, वहां व्यापार या जीवन में अस्थिरता बनी रहती है। जिन कल-कारखानों में नैऋत्य दिशा हल्की होती है, वहां रुकावटें बनी रहती हैं, जैसे कभी माल की पूर्ति नहीं होती, कभी मशीनें बंद हो जाती हैं, या कभी मजदूर समय पर नहीं आते और हड़ताल कर देते हैं।
अगर नैऋत्य दिशा हल्की रहती है, तो मकान या कारखाने अंततः बंद हो जाते हैं या उन्हें बेचना पड़ता है। हालांकि, कुछ अपवाद स्वरूप, नैऋत्य दिशा हल्की होने के बावजूद कुछ लोगों के जीवन में स्थिरता देखी गई है, क्योंकि उनके गृह नक्षत्र बहुत शक्तिशाली होते हैं। ऐसे लोगों के जीवन में स्थिरता उनके गृह नक्षत्रों के प्रभाव के कारण बनी रहती है।
नैऋत्य दिशा के दोष और समाधान
वास्तु के अनुसार, यदि नैऋत्य दिशा को दोषमुक्त कर लिया जाए, तो जीवन में सुधार आ सकता है। यदि किसी की जन्मपत्रिका में ग्रह खराब हों और नैऋत्य दिशा दोषपूर्ण हो, तो यह उनके लिए अशुभ समय साबित हो सकता है। नैऋत्य दिशा में दोष होने पर अशांति, दीर्घकालीन रोग, कर्ज, और दुर्घटनाएं हो सकती हैं। इस दिशा को सुधारने के लिए गड्ढों को भरना, अधिकतम निर्माण करना, और इसे ऊंचा रखना चाहिए। नैऋत्य दिशा की दीवार चौड़ी होनी चाहिए और इस दिशा में भारी वस्तुएं रखनी चाहिए। बाहर खुली जगह हो तो बड़े पेड़ लगाएं।
कारखानों और देव स्थान के वास्तु सुझाव
कारखानों में भारी मशीनें और कच्चा माल नैऋत्य दिशा में रखना चाहिए। घर में ईशान दिशा में देव स्थान होना चाहिए, क्योंकि यह परमात्मा की दिशा मानी जाती है। भगवान की मूर्ति का मुख पूर्व की ओर होना शुभ फलदायी होता है।
भोजनशाला और भोजनकक्ष का महत्व
भोजनशाला (किचन) के लिए आग्नेय दिशा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है, क्योंकि यह अशुभ घटनाओं का निवारण करती है। रसोई बनाते समय स्त्री का मुख पूर्व की ओर होना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार, भोजनकक्ष पश्चिम दिशा में होना शुभ माना गया है, जिससे भोजन करने में शांति, सुख, और संतोष प्राप्त होता है।
कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के दुष्प्रभाव से बचाव
जहां अधिक संख्या में लोग कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर काम करते हैं, वहां सिर दर्द और चिड़चिड़ापन सामान्य है। इससे बचने के लिए कार्यालय में टार्च कैक्टस का पौधा लगाना चाहिए। यह पौधा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के दुष्प्रभाव को कम करता है और आयनिक संतुलन बनाए रखता है। घर में भी इसका उपयोग फायदेमंद है।
ड्राइंग रूम और बैठक कक्ष का वास्तु
महत्वपूर्ण वार्तालाप और बैठकों के लिए ड्राइंग रूम उत्तर दिशा में बनाना चाहिए। उत्तर दिशा में होने से चर्चाएं सार्थक और शांतिपूर्ण रहती हैं।
शयन कक्ष, स्टोर रूम और अन्य दिशाओं का महत्व
शयन कक्ष के लिए दिशा
शयनकक्ष गृहस्वामी के लिए नैऋत्य दिशा में होना चाहिए। शैया दक्षिण या नैऋत्य दिशा में रखनी चाहिए, जबकि पूर्व का भाग रिक्त रहना चाहिए।
सोने की स्थिति
दक्षिण दिशा की ओर पांव करके नहीं सोना चाहिए, क्योंकि यह यम दिशा मानी जाती है और इससे मानसिक तनाव, दुःस्वप्न, और नींद न आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। पूर्व दिशा का स्वामी इंद्र है, अतः इस ओर पांव करके सोने से ऊर्जा मिलती है और मन प्रसन्न रहता है। पश्चिम दिशा का स्वामी वरुण है, इसलिए इस दिशा की ओर पांव करके सोने से अच्छी नींद आती है।
स्टोर रूम की दिशा
स्टोर रूम (मण्डारगृह) को वायव्य दिशा में बनाना चाहिए, जो धन, धान्य की वृद्धि, सुख, और शांति प्रदान करता है।
चौक (आंगन) का महत्व
घर के मध्य में स्थित चौक पारिवारिक वातावरण को बेहतर बनाता है। इसे ऊपर से पूरी तरह खुला नहीं छोड़ना चाहिए, ताकि परिवार में प्रेम बढ़ता रहे।
शौचालय और सेप्टीकूप
शौचालय को पश्चिम वायव्य या दक्षिणी आग्नेय दिशा में बनाना चाहिए। इसे नैऋत्य में नहीं बनाना चाहिए। शौचालय का दरवाजा पूर्व या आग्नेय दिशा की ओर खुलना चाहिए, और बैठते समय मुख उत्तर की ओर होना चाहिए।
स्नानगृह का निर्माण
स्नानगृह के लिए पूर्व दिशा सर्वोत्तम होती है। जल का प्रवाह उत्तर, ईशान, या पूर्व की ओर होना चाहिए, जिससे शरीर ऊर्जावान रहता है।
निर्माण में पुरानी सामग्री
मकान निर्माण में पुरानी सामग्री, जैसे कि किसी भवन की निकली ईंट, का उपयोग नहीं करना चाहिए।
दक्षिण दिशा का दरवाजा
दक्षिण दिशा की ओर दरवाजा नहीं रखना चाहिए; यदि ऐसा हो तो वहां बैठा हुआ बंदर लगाना चाहिए।
फैक्ट्री का ईशान्य कोण
यदि फैक्ट्री का ईशान्य कोण सही नहीं है, तो करोड़ों की आमदनी के बावजूद बैलेंस शीट जीरो रह सकती है।
दिशाओं में त्रुटियाँ
ईशान दिशा में त्रुटियों, दरारों, या गड्ढों का होना गृहस्वामी के लिए नुकसानदायक होता है। ईशान दिशा में पाखाना होने पर गृह कलह और फैक्ट्री में मजदूरों के बीच झगड़े हो सकते हैं।
रसोई की दिशा
ईशान दिशा में रसोई होना गृह कलह और धन का क्षय का कारण बन सकता है। कूड़े-कचरे या कबाड़ को भी इस दिशा में नहीं रखना चाहिए, अन्यथा गृहस्वामी को शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है।
Note- इस प्रकार हैं छोटी छोटी दिशाओं और टोटकों को ध्यान रखकर आप अपने घर, ऑफ़िस और जीवन में सुख शांति और समृद्धि पा सकते हो क्योंकि और हर व्यक्ति की दृष्टि और दिशाओं का जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अगर आप धर्म को मानते हैं तो यह वास्तु उपाय भी मानने उतने ही ज़रूरी है जिस प्रकार हम साँस लेने के लिए हवा का होना ज़रूरी है।
Disclaimer-
यह जानकारी केवल सामान्य सूचना के उद्देश्यों के लिए है और इसे पेशेवर सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। जबकि सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए गए हैं, वास्तु शास्त्र के सिद्धांत और उनकी व्याख्याएँ व्यापक रूप से भिन्न हो सकती हैं। किसी भी व्यक्तिगत सलाह के लिए हमेशा एक योग्य पंडित से परामर्श करें।
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