काशी में मृत्यु होने पर जीव सहज ही मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। अनगिनत योनियों में भटकने और विविध प्रकार के कष्ट सहने के बाद भगवान ने अपनी कृपा से हमें मनुष्य जन्म दिया, जो अत्यंत दुर्लभ है।
कलियुग में मुक्ति का उपाय
सत्ययुग में भगवान विष्णु के ध्यान, त्रेतायुग में यज्ञ, द्वापरयुग में पूजा और सेवा से जो फल मिलता था, वही फल कलियुग में मात्र श्रीहरि के नाम-संकीर्तन से प्राप्त हो जाता है।
जो फल कठिन तपस्या, योग और समाधि से भी दुर्लभ होता है, वह कलियुग में केवल श्रीहरि के नाम कीर्तन से सहज ही मिल जाता है।
जो व्यक्ति प्रतिदिन "हे हरे! हे केशव! हे गोविंद! हे वासुदेव! हे जगन्मय!" जैसे पावन नामों का उच्चारण करता है, कीर्तन करता है या स्तोत्रों द्वारा भगवान की वंदना करता है, उसे कलियुग के संकट, दुख और बाधाएँ छू भी नहीं सकतीं।
कलियुग में विषय-वासना में आसक्त व्यक्ति भी यदि श्रीहरि के नाम का स्मरण और चिंतन करता है, तो वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
इस कलियुग में केवल भगवान श्रीहरि का नाम ही मोक्ष का एकमात्र साधन है। भवसागर से पार होने का अन्य कोई उपाय नहीं है।
कलियुग में असंख्य दोष हैं, किंतु सबसे बड़ा गुण यह है कि मात्र भगवान का स्मरण करने से ही जीव का कल्याण संभव है। जहाँ सतयुग में मोक्ष के लिए कठोर तप, त्रेता में यज्ञ और द्वापर में पूजा-अर्चना आवश्यक थी, वहीं कलियुग में भगवान का स्मरण ही मोक्षदायी है।
शुकदेव मुनि ने भागवत कथा में राजा परीक्षित से कहा कि माता-पिता की सेवा ही भागवत धर्म का सार है।
मोक्ष कैसे प्राप्त हो?
निष्काम सेवा और प्रेम करो। बदले में कुछ पाने की इच्छा मत रखो।
त्याग का भाव अपनाओ। जो कुछ तुम्हारे पास है, उसे ईश्वर का मानकर उनके कार्यों में लगाओ।
मृत्यु के समय मन में जो विचार उत्पन्न होते हैं, उन्हीं के अनुसार अगला जन्म मिलता है।
जो व्यक्ति सात्त्विक जीवन जीता है, प्रभु की सेवा करता है, उनका स्मरण करता है, सत्कर्म करता है और परिवार के सदस्यों के नाम भी भगवान के नाम पर रखता है, वह मृत्यु के समय भी प्रभु का चिंतन कर सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
श्रीकृष्ण ने उद्धव से कहा कि जीव अपने गुणों और कर्मों के अनुसार योनियाँ प्राप्त करता है। इसलिए जो व्यक्ति चित्त को वश में कर लेता है और भक्ति-योग द्वारा परमात्मा में अनुरक्त हो जाता है, वही मोक्ष का अधिकारी बनता है।
श्रीकृष्ण ने यह भी कहा कि मनुष्य शरीर प्रभु को प्राप्त करने का मुख्य साधन है। जो सच्चे मन से भक्ति करता है, वह परमात्मा को पा लेता है। विषय-भोग में लिप्त रहने वालों का संग नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका अनुसरण करने से वैसी ही दुर्दशा होती है जैसे अंधे के सहारे चलने वाले दूसरे अंधे की।
जिसने भगवान की भक्ति प्राप्त कर ली, वह स्वतः ही ईश्वर का हो जाता है और उसके मन का समस्त मैल दूर हो जाता है।
सच्चा भक्त वह है जो केवल परमात्मा के प्रेम का भूखा होता है। इसी प्रेम की प्यास उसे उसके लक्ष्य तक पहुँचाती है।
ईश्वर को पाना कठिन नहीं है। भगवान के पास जाने की आवश्यकता नहीं, बल्कि अपने विचारों को संसार से हटाकर आत्मा की ओर केंद्रित करना आवश्यक है। ईश्वर हमसे कभी दूर नहीं होते।
मुक्ति का सार
सुख और दुख, जन्म और मृत्यु, पाप और पुण्य—इन सबसे ऊपर उठकर यदि व्यक्ति स्वयं को परमात्मा का अंश मान ले, तो संसार में रहते हुए भी वह मुक्त हो सकता है।
काशी धाम में मोक्ष कैसे मिलता है-
(1) हिन्दू धर्म में वाराणसी के समान पवित्र धाम अन्य कोई नहीं। एक मान्यता के अनुसार यह नगर शिवजी के त्रिशूल की नोक पर बसा है। गंगा नदी इसके पास से बहती है।
ऐसा भी मना जाता है कि इस नगर के 10 मील के क्षेत्र यानी 'पंच कोसी' में मरने वाले व्यक्ति को स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है।
गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर बसे इस शहर में अनेक मंदिर है और जय जय काशीनाथ का उद्घोष प्रायः गूंजता रहता है।
गंगा नदी के किनारों पर बड़ी संख्या में घाट बने हैं जहां पुजारियों और अर्चकों की भीड़ लगी रहती है। असंख्य मंदिरों वाले इस शहर के सभी मंदिर देख पाना तो लगभग कठिन है
पर कुछ विश्व प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वाराणसी का धार्मिक महत्व कितना है।
(2) यहां के मंदिरों में विश्वनाथ मंदिर सबसे प्रसिद्ध है। मंदिर के निकट ही ज्ञान वापी (ज्ञान का कुआ) है। इस कुएं में भगवान शिव का वास माना जाता है। विश्वनाथ मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूरी पर स्थित है भैरोनाथ मंदिर।
इस मंदिर में मंगलवार और रविवार को ही पूजा की जाती है।
नगर के दक्षिणी छोर पर स्थित है दुर्गा मंदिर। यह मंदिर भी हिन्दुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इस मंदिर को यूरोप के पर्यटक 'मंकी टेम्पल' कहते हैं क्योंकि यहां भारी संख्या में बंदर रहते हैं।
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वाराणसी-काशी कुरूक्षेत्र और पुष्कर और तीर्थराज प्रयाग से भी ज्यादा पुण्यशाली, भगवान् शंकर का नित्य निवासस्थान, देवताओं का भी अति प्रिय, देवपूजन स्थान और सर्वोपरि तीर्थ कांशीधाम (वाराणसी) ही है।
काशी घाम (वाराणसी) में देह-त्याग (मृत्यु) हो जाने से प्राणी, हमेशा के लिये संसार में आवागमन चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
अनन्त काल से लेकर आजतक इस रहस्य को जाननेवाले प्राणी "काशीधाम" आ जाते हैं और काशी-धाम में ही "शरीर त्याग" की कामना करते हैं, शरीर त्याग करते हैं और मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं।
निष्कर्ष-
काशी (वाराणसी) को मोक्ष की नगरी कहा जाता है, जहाँ मृत्यु को प्राप्त होने पर जीव पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है। हिंदू धर्म में इसे भगवान शिव का प्रिय धाम माना गया है, जहाँ वे स्वयं तारक मंत्र प्रदान कर जीव को मोक्ष देते हैं।
कलियुग में मोक्ष प्राप्ति के उपाय:
भगवान श्रीहरि का नाम-संकीर्तन ही कलियुग में मोक्ष का सर्वोत्तम साधन है।
निष्काम सेवा, त्याग, और सात्त्विक जीवन अपनाने से जीव का उद्धार संभव है।
मृत्यु के समय मन में जो विचार होता है, उसी के अनुसार जीव को अगला जन्म प्राप्त होता है। अतः जीवनभर प्रभु का स्मरण और भक्ति करनी चाहिए।
काशी में मोक्ष की विशेषता:
यह नगर शिवजी के त्रिशूल पर बसा माना जाता है, और यहां गंगा स्नान व देह-त्याग मोक्षदायी माना गया है।
पंच-कोसी क्षेत्र में मृत्यु होने से स्वर्ग प्राप्ति की मान्यता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर, ज्ञानवापी, भैरोनाथ मंदिर, और दुर्गा मंदिर जैसे धार्मिक स्थल इस नगरी के महत्व को और बढ़ाते हैं।
मोक्ष का अंतिम सार:
संसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर, आत्मा को परमात्मा का अंश मानकर जीवन व्यतीत करने से भी व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
जो व्यक्ति सच्चे प्रेम और भक्ति से ईश्वर को समर्पित होता है, वही मोक्ष का अधिकारी बनता है।
अंततः, काशी केवल एक नगर नहीं, बल्कि मोक्ष का द्वार है, जहाँ शिव कृपा से जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल सकती है।
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