नवरात्रों में मां दुर्गा जी की विशेष शक्ति
यदि वेद-पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत और भगवद्गीता की तुलना नवरात्रों से की जाए, तो नवदुर्गा पूजन से अधिक प्रभावशाली कोई ग्रंथ शक्ति नहीं है जो आपकी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सके। दुर्गा सप्तशती जहां महामाया भगवती दुर्गा की आराधना और अर्चना का सर्वोत्तम साधन है, वहीं नवदुर्गा पूजन मंत्र और तंत्र, दोनों दृष्टिकोणों से अत्यंत प्रभावशाली और अचूक उपाय है।
नवरात्र पूजन की विशेषता
नवरात्रों में श्री दुर्गा पूजन करने से न केवल सभी मंत्र सिद्ध होते हैं, बल्कि पूर्व की गई भूल-चूक भी माँ भगवती क्षमा कर देती हैं। पूजन के सही क्रम का पालन करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है। भगवान शिव स्वयं कहते हैं—
"अर्गलं कीलकंम् चादौ, पितत्वा कवचं पठेत्। पजेत् सप्तशती क्रम एष शिवोदितः।।"
अर्थात, वास्तविक क्रम से माँ दुर्गा का पाठ करने से पूर्ण फल प्राप्त होता है। भगवान शिव आगे कहते हैं—
"अर्गलं दुरितं हन्ति, कीलक फलदं भवेत्। कवचं रक्षयेनित्यं चंडिका त्रितयं तथा।।"
इसका तात्पर्य यह है कि अर्गला स्तोत्र के पाठ से सभी बाधाएँ समाप्त होती हैं, कीलक स्तोत्र से फल प्राप्त होता है, और दुर्गा कवच से जीवन में सुरक्षा एवं समृद्धि आती है। अतः इन स्तोत्रों के पाठ के बाद ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।
नवरात्र पूजन की विधि
अर्गला स्तोत्र, कीलक स्तोत्र, और दुर्गा कवच का पाठ करें।
दुर्गा सप्तशती का विधिपूर्वक पाठ करें और पाठ समाप्त होने पर जल को पूरे घर में छिड़कें।
नौ दिनों तक सात्त्विक भोजन ग्रहण करें।
घर में एक छोटे से पात्र में "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे" मंत्र का जाप करते हुए 108 आहुति दें।
नवरात्रों के समापन पर नौ कन्याओं को भोजन कराएँ और पूजा सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।
मां भगवती के स्वरूप एवं शक्ति
मां भगवती अनेक अद्भुत और आलौकिक रूपों में विद्यमान हैं—
पार्वती – शिव की शक्ति
महालक्ष्मी – धन-धान्य की अधिष्ठात्री
सरस्वती – विद्या एवं बुद्धि की देवी
चंडी / दुर्गा – दानवों के संहार हेतु
भारतीय दर्शन में शक्ति का स्वरूप बहुत व्यापक एवं दिव्य है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री— इन नौ देवियों की आराधना नवरात्रों में विशेष फलदायी मानी जाती है।
नवरात्रों का आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि का आगमन वर्ष में दो बार होता है—
चैत्र शुक्ल पक्ष (वसंत नवरात्रि)
आश्विन शुक्ल पक्ष (शारदीय नवरात्रि)
इन दिनों देवी पूजन, व्रत, स्नान, धूप-दीप आदि से आत्मा और घर में आध्यात्मिक ऊर्जा की वृद्धि होती है। कुछ लोग पूरे नौ दिनों का व्रत रखते हैं, जबकि कुछ लोग पहले और अंतिम दिन का उपवास अवश्य रखते हैं।
नवरात्रि पूजन विधि
पूजा स्थल की शुद्धि – कच्चे फर्श को गोबर से लीपें, पक्के फर्श को जल से धोकर शुद्ध करें।
कलश स्थापना –लकड़ी के पटरे पर गणेश जी की मूर्ति रखें।
तांबे, मिट्टी या चांदी के कलश में गंगाजल भरें और आम के पत्ते रखें।
कलश के ढक्कन में अक्षत (चावल) डालें और उसके ऊपर नारियल रखें।
मौली (कलावा) से कलश को सजाएं और स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।
माँ की मूर्ति/तस्वीर – मूर्ति को लाल वस्त्र या चुन्नी अर्पित करें।
माँ को प्रिय फल – अनार एवं चार अन्य फलों का भोग लगाएं।
अखंड ज्योति प्रज्जवलित करें – घी का दीपक जलाएं।
कन्या पूजन का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रों में कन्या पूजन विशेष महत्व रखता है।
नौ दिनों तक एक ही कन्या का पूजन किया जा सकता है।
अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना श्रेष्ठ होता है।
कन्या की उम्र 2 से 8 वर्ष होनी चाहिए।
पूजन विधि –
कन्याओं के चरण धोकर उन्हें रोली और अक्षत का टीका लगाएं।
उनके हाथ में मौली (कलावा) बांधें।
हलवा, पूड़ी और चने का प्रसाद खिलाएं।
खिलौने, वस्त्र और दक्षिणा भेंट करें।
नवरात्रि में मंत्र जाप
माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बीज मंत्र का जाप करें—
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे।।"
निष्कर्ष
नवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और शक्ति प्राप्ति का एक दिव्य पर्व है। मां दुर्गा की कृपा से हर भक्त को बल, बुद्धि, सत्कर्म और परोपकार की भावना प्राप्त होती है। नवरात्रों में भक्तिपूर्वक पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
जय माता दी!
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