संपुटित श्री सूक्तम मंत्र सहित अर्थ सहित-
बीज मंत्र (संपुट मंत्र)
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
भावार्थ: हे कमल पर विराजमान महालक्ष्मी देवी! आप कृपा करें, प्रसन्न हों।
1. प्रथम मंत्र
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
भावार्थ: हे अग्निदेव! हमें सोने के समान कांतिवाली, हिरण के समान कोमल, स्वर्ण और रजत के आभूषणों से सुसज्जित, चंद्रमा के समान शांत लक्ष्मी देवी को प्रदान करें।
2. द्वितीय मंत्र
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।।
भावार्थ: हे अग्निदेव! उस लक्ष्मी देवी को हमारे पास लाएं, जो कभी भी हमारा साथ न छोड़ें। जिनकी कृपा से हमें स्वर्ण, गौधन, घोड़े और श्रेष्ठ सेवक प्राप्त हों।
3. तृतीय मंत्र
ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
भावार्थ: मैं उस देवी लक्ष्मी का आह्वान करता हूँ, जो घोड़ों से खींचे जाने वाले रथ में विराजमान हैं, हाथियों के गजराव से प्रसन्न होती हैं, और सभी प्रकार की समृद्धि प्रदान करती हैं।
4. चतुर्थ मंत्र
ॐ कांस्यस्मितां हिरण्यप्रकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।
भावार्थ: मैं उस देवी लक्ष्मी को आमंत्रित करता हूँ, जिनकी कांति कांस्य और स्वर्ण जैसी है, जो प्रसन्न मुद्रा में तृप्त होकर दूसरों को भी तृप्त करती हैं और कमल के समान सुंदर स्वरूप वाली हैं।
5. पंचम मंत्र
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणेमि।।
भावार्थ: मैं उस पद्मिनी देवी लक्ष्मी की शरण में जाता हूँ, जो चंद्रमा के समान सुंदर, यशस्वी, और समृद्धि प्रदान करने वाली हैं। मेरी दरिद्रता और दुर्भाग्य का नाश करें।
6. षष्ठ मंत्र
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।
भावार्थ: हे आदित्य के समान तेजस्वी देवी! जैसे बिल्व वृक्ष पवित्र और शुभ होता है, वैसे ही आपकी कृपा से हमारे पाप और दरिद्रता समाप्त हों।
7. सप्तम मंत्र
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिं ददातु मे।।
भावार्थ: हे देवी लक्ष्मी! देवताओं के मित्र (कुबेर) और कीर्ति मेरी सहायता करें। इस राष्ट्र में मैं समृद्धि और यश प्राप्त करूं।
8. अष्टम मंत्र
ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वान्निर्नुद मे गृहत्।।
भावार्थ: मैं भूख, प्यास, दरिद्रता और अलक्ष्मी का नाश करता हूँ। हे माता! कृपया मेरे घर से दुर्भाग्य और असमृद्धि को दूर करें।
9. नवम मंत्र
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।
भावार्थ: मैं उस देवी लक्ष्मी को बुलाता हूँ, जो सुगंधित द्वार के समान मंगलकारी हैं, अजेय हैं, सदा समृद्धि प्रदान करती हैं और समस्त प्राणियों की स्वामिनी हैं।
10. दशम मंत्र
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।
भावार्थ: हे देवी! हमारे मन में सत्य संकल्प और वाणी में सत्यता हो। आप हमें पशुधन, अन्न, समृद्धि और यश प्रदान करें।
11. एकादश मंत्र
ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।
भावार्थ: हे कर्दम ऋषि! जैसे आपकी संतान समृद्धि से युक्त हुई, वैसे ही देवी लक्ष्मी मेरी कुल में निवास करें और समृद्धि प्रदान करें।
12. द्वादश मंत्र
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देविं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।
भावार्थ: हे जलदेवी! अपने स्निग्ध और शांत स्वरूप से मेरे घर को पवित्र करें और माता लक्ष्मी को मेरे घर में स्थायी रूप से निवास करने दें।
13. त्रयोदश मंत्र
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
भावार्थ: हे अग्निदेव! मुझे पिंगला वर्ण, कमलमालिनी, पुष्टिकर और चंद्रमा के समान सुंदर लक्ष्मी देवी को प्रदान करें।
14. चतुर्दश मंत्र
ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह।।
भावार्थ: हे अग्निदेव! सूर्य के समान तेजस्वी, स्वर्णमालाधारी और आर्द्र स्वरूप वाली लक्ष्मी देवी को हमारे पास लाएं।
15. पञ्चदश मंत्र
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दस्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्।।
भावार्थ: हे अग्निदेव! उस लक्ष्मी देवी को मेरे पास लाएं, जिनकी कृपा से हमें धन, गौधन, घोड़े और श्रेष्ठ सेवक प्राप्त हों।
समापन बीज मंत्र (संपुट)
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
श्री सूक्तम का निष्कर्ष-
श्री सूक्तम वैदिक ग्रंथों में माँ लक्ष्मी की स्तुति के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें धन, ऐश्वर्य, समृद्धि, और सुख-शांति के लिए देवी लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। इस सूक्त का पाठ करने से जीवन में सौभाग्य, आर्थिक स्थिरता, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
श्री सूक्तम पाठ के मुख्य लाभ:
धन और समृद्धि: लक्ष्मी कृपा से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश: दरिद्रता, अशुभता और नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
सुख-शांति का वास: मानसिक शांति और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
आध्यात्मिक उन्नति: पाठ से व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना जाग्रत होती है।
सफलता और यश: सभी कार्यों में सफलता और समाज में यश की प्राप्ति होती है।
पाठ करने की विधि:
श्री सूक्तम का पाठ शुक्रवार और पूर्णिमा को विशेष फलदायी माना जाता है।
कमल के फूल और सफेद वस्त्र लक्ष्मी पूजन में अर्पित करें।
कुबेर देव और गणेश जी का स्मरण अवश्य करें।
पाठ के पश्चात श्री लक्ष्मी आरती करें और भक्तिभाव से माँ लक्ष्मी को नमन करें।
संक्षिप्त सार:
श्री सूक्तम केवल भौतिक सुख-समृद्धि का ही नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति का भी स्रोत है। इसका नित्य पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य और सकारात्मकता का संचार होता है।
॥ श्री महालक्ष्म्यै नमः ॥
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