गर्भपात: एक गंभीर पाप और मानव हत्या के समान अपराध
स्वामी रामसुखदासजी के अनुसार, गर्भपात एक जघन्य पाप है, जो ब्रह्महत्या के समान ही गंभीर अपराध माना जाता है। यह केवल एक सामाजिक या नैतिक मुद्दा नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी घोर अधर्म है। आजकल लोग भ्रांतियों के शिकार होकर यह सोचते हैं कि गर्भधारण के शुरुआती तीन-चार महीनों तक भ्रूण में जीवन नहीं होता और वह केवल मांस का एक टुकड़ा मात्र होता है। लेकिन यह एक भ्रामक धारणा और गलत प्रचार है।
गर्भधारण के साथ ही जीवन का आरंभ
विज्ञान और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गर्भाधान के क्षण से ही जीवन आरंभ हो जाता है। जैसे ही पुरुष के शुक्राणु और स्त्री के डिंब का संयोग होता है, उसी क्षण एक नया जीव अस्तित्व में आ जाता है। इस संयोग के साथ ही उस जीव का व्यक्तित्व, उसकी बौद्धिक क्षमता, ब्लड ग्रुप, ऊँचाई आदि तय हो जाते हैं। माँ की कोख में बिताए गए नौ महीने केवल भ्रूण के विकास और वृद्धि की यात्रा हैं, न कि उसके जीवन के आरंभ का समय।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भ्रूण का विकास
विज्ञान के अनुसार, गर्भ में भ्रूण का विकास निम्नलिखित चरणों में होता है—
पहला सप्ताह – कोशिकाओं का विभाजन होता है, और एक नया जीवन माँ के गर्भ में अपनी जगह बना लेता है।
दूसरा सप्ताह – भ्रूण को माता के भोजन से पोषण मिलना शुरू हो जाता है। इस दौरान उंगलियों पर नाखून बनने लगते हैं।
तीसरा सप्ताह – इस छोटे जीव के मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, फेफड़े, जिगर, आँतें, और गुर्दे जैसी संरचनाओं का निर्माण प्रारंभ हो जाता है।
अठारहवें दिन – भ्रूण का हृदय धड़कना शुरू कर देता है।
चौथा सप्ताह – सिर और रीढ़ की हड्डी पूरी तरह विकसित होने लगती है।
पाँचवां सप्ताह – शरीर के विभिन्न अंग स्पष्ट रूप से बनने लगते हैं। आँखें, कान, हाथ-पैर आकार लेने लगते हैं।
छठा-सातवाँ सप्ताह – भ्रूण के मस्तिष्क की तरंगों को मापा जा सकता है, और वह हलचल करने लगता है।
आठवाँ सप्ताह – बच्चा स्पर्श और दर्द महसूस करने लगता है, अंगूठा चूस सकता है और हिलने-डुलने की क्रियाएँ करने लगता है।
इसके बाद – दिल की धड़कन अल्ट्रासोनिक स्टेथोस्कोप से सुनी जा सकती है, और उसके अंगूठे की छाप तक बन जाती है, जो जीवन भर वैसी ही बनी रहती है।
गर्भ में शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता
महाभारत के अभिमन्यु की कथा और विभिन्न वैज्ञानिक परीक्षणों से यह सिद्ध हो चुका है कि गर्भस्थ शिशु माता से शिक्षा ग्रहण कर सकता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए उड़ीसा सरकार ने गर्भवती महिलाओं को गर्भ में ही शिशु को शिक्षित करने का कार्यक्रम प्रारंभ किया है। चौथे और पाँचवे माह में भ्रूण का मस्तिष्क इतना विकसित हो जाता है कि वह माता द्वारा दिए गए संकेतों को ग्रहण कर सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, माँ के विचारों का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है, जिससे वह जन्म से पहले ही बहुत सी चीजें सीख सकता है। उदाहरण के लिए, जो महिला गर्भावस्था के दौरान वाहन चलाती है, वह अनजाने में ही अपने शिशु को भी वाहन संचालन की समझ दे देती है।
गर्भपात: एक अमानवीय कृत्य
गर्भपात एक जीवित मनुष्य की हत्या के समान है। यह सोचना भी कठिन है कि कोई व्यक्ति अपने एक महीने के या उससे भी छोटे नवजात शिशु को स्वयं मार सकता है या किसी और से मरवा सकता है। जब ऐसा करना असंभव और अमानवीय लगता है, तो फिर गर्भ में पल रहे मासूम शिशु को नष्ट करने का निर्णय कोई कैसे ले सकता है?
धार्मिक ग्रंथों में गर्भपात का निषेध
मनुस्मृति और पाराशरस्मृति में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि गर्भपात ब्रह्महत्या से भी अधिक घोर पाप है। यहाँ तक कि यदि किसी व्यक्ति की दृष्टि भी अन्न पर पड़ जाए, जिसने गर्भपात करवाया है, तो वह अन्न अभक्ष्य (अत्यंत अपवित्र) हो जाता है। यह बात दर्शाती है कि गर्भपात कितना बड़ा अधार्मिक और अनैतिक कार्य है।
गर्भपात: अन्याय और कलियुग की चतुराई
आज के युग में लोग गर्भपात को एक सामान्य चिकित्सा प्रक्रिया समझने लगे हैं। परंतु गर्भपात वास्तव में एक हत्या है, जिसे केवल "सफाई" का नाम देकर छिपाने की कोशिश की जाती है। अगर कोई बाहर किसी व्यक्ति की हत्या करता है, तो उसे अपराध माना जाता है। लेकिन जब एक नन्हे से, निर्दोष शिशु की हत्या गर्भ के अंदर की जाती है, तो उसे कानूनी मान्यता देने की कोशिश की जाती है। यह कैसा न्याय है?
निष्कर्ष
स्वामी रामसुखदासजी के अनुसार, गर्भपात मानवता के विरुद्ध एक घिनौना अपराध और महापाप है। यह एक नन्हे जीव की हत्या है, जिसे परमात्मा ने इस संसार में आने का अवसर दिया है। इसीलिए, गर्भपात से बचें और दूसरों को भी बचाने का प्रयास करें। जीवन ईश्वर का दिया हुआ वरदान है, और हमें इसे संजोकर रखना चाहिए, न कि इसे नष्ट करने का घोर अपराध करना चाहिए।
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