प्रभु से नित्य प्रार्थना कैसे करें | सकारात्मक ऊर्जा के लिए नित्य प्रार्थना कैसे करें"


"प्रभु से मेरी नित्य प्रार्थना कैसे करें-" 

हे मेरे मालिक!आप ही सृष्टि के आदि कारण हो। समस्त सृजन के विधाता "ब्रह्माजी" भी आप ही हैं, संपूर्ण जगत का पालन करने वाले "विष्णुजी" भी आप ही हैं और समस्त सृष्टि का संहार करने वाले "महेश्वरजी" भी आप ही हैं। त्रिलोक के अधिपति, अनादि, अनंत, और अविनाशी स्वरूप में आप ही व्याप्त हैं। मैं आपको बार-बार नमन करता हूँ, साष्टांग प्रणाम करता हूँ।


हे परमपिता!
मेरी आत्मा से निकली यह विनम्र प्रार्थना सुनें। मेरे जीवन में, मेरे विचारों में, और मेरे कर्मों में आपका ही वास बना रहे। हे प्रभु! मेरी वाणी में मधुरता, मेरे हृदय में करुणा और मेरी दृष्टि में समता का भाव सदैव बना रहे। कृपा कर मुझे वह शक्ति दें कि मैं हर परिस्थिति में आपके नाम का स्मरण कर सकूं।

हे दयालु प्रभु!
जाग्रत अवस्था में ही नहीं, बल्कि जब मैं निद्रा में भी रहूं, तब भी मेरे मन-मस्तिष्क में आपका ही नाम गूंजता रहे। मेरे हृदय में आपकी भक्ति और विश्वास की अखंड ज्योति जलती रहे।


दुश्मनों के लिए प्रार्थना

हे प्रभु!
जिन्हें मैं अपना शत्रु मानता हूं, उन्हें भी सद्बुद्धि प्रदान करें। उनके हृदय में भी प्रेम और शांति का संचार करें ताकि वे किसी का अहित न करें। उनके भीतर भी करुणा और दया का संचार हो। मैं उनसे किसी भी प्रकार की घृणा नहीं करता, केवल उनके कल्याण की कामना करता हूं। आप उनकी दुर्बुद्धि को दूर करें और उन्हें सत्कर्मों की ओर प्रेरित करें।

परिवार और मित्रों के लिए प्रार्थना

हे सर्वशक्तिमान प्रभु!
मेरे माता-पिता, भाई-बहन, जीवनसाथी, संतान, मित्र और समस्त रिश्तेदारों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें। उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे। उनके सभी दुखों को हर लें और उन्हें उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें। हर घर में प्रेम और सौहार्द बना रहे।

प्रभु की कृपा के लिए कृतज्ञता

हे परमदयालु!
मुझे जो कुछ भी प्राप्त है, वह सब आपकी कृपा का ही प्रसाद है। इस मानव शरीर को पाकर, जो अति दुर्लभ है, मैं अपने को सौभाग्यशाली मानता हूं। आपकी कृपा से ही मुझे भोजन, जल, वस्त्र, निवास, संतान, परिवार और मित्रों का सुख प्राप्त हुआ है। मेरे पास जो भी धन-वैभव, ज्ञान और सद्गुण हैं, वे सब आपके आशीर्वाद स्वरूप हैं।

आपने मुझे कार्य करने की शक्ति, विचार करने की बुद्धि और प्रेम करने वाला हृदय प्रदान किया है। इसके लिए मैं आपको कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूं। आपकी कृपा के बिना यह सब असंभव था।

प्रभु से मंगल कामना

हे प्रभु!
आप मेरी हर राह में मेरा मार्गदर्शन करें। मेरे विचारों को पवित्र रखें, मेरे कर्मों को शुभ बनाएं और मेरी आत्मा को दिव्यता की ओर ले चलें। मेरे जीवन में सदैव आनंद, संतोष और शांति बनी रहे।

हे प्रभु!
आपकी भक्ति में मेरा मन दिन-प्रतिदिन दोगुनी गति से बढ़ता रहे। मेरी आत्मा में आपके प्रति श्रद्धा और प्रेम का भाव चौगुनी तीव्रता से विकसित हो। मेरे मन के हर कोने में आपकी उपस्थिति का अनुभव हो।

प्रभु दर्शन की आकांक्षा

हे परमात्मा!
मुझे आपके दर्शन की अभिलाषा है। मैं आपकी मधुर मुस्कान और करुणामयी दृष्टि के दर्शन करना चाहता हूं। आपके श्रीचरणों में स्थान पाना ही मेरा अंतिम लक्ष्य है। मेरी आत्मा आपकी शरण में आकर शांत हो जाए।

समापन प्रार्थना

हे प्रभु!
आपकी महिमा अपरंपार है। आपके चरणों में मेरा कोटि-कोटि प्रणाम। आप सदा मेरा मार्गदर्शन करें और मुझे अपनी भक्ति में लीन रखें।

गृहस्थ जीवन में साधना के मार्ग

गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी आध्यात्मिक साधना संभव है। इसके लिए कुछ सरल लेकिन प्रभावशाली नियमों का पालन किया जा सकता है:

  1. भगवान की सेवा में अर्पण:अपनी कमाई का एक अंश भगवान की सेवा के लिए अलग रखें और उसे श्रद्धापूर्वक भगवान के निमित्त खर्च करें।प्रतिदिन कुत्तों और गायों को रोटी खिलाना शुभ होता है, विशेषकर रोटी और गुड़ देना उत्तम माना जाता है।दीन-दुखियों की सहायता करने से भगवान प्रसन्न होते हैं, क्योंकि वे सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी हैं।

  2. नियमित जप और प्रार्थना:प्रतिदिन कम से कम 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र की एक माला का जप अवश्य करें।रात को सोने से पहले 'राम-नाम षोडश महामंत्र' की एक माला का जप करें। यह मंत्र है:
    हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
    हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।

  3. इससे नकारात्मक स्वप्न नहीं आएंगे, मन को शांति और आत्मिक बल मिलेगा।

  4. ब्रह्म मुहूर्त में जागरण:ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से लगभग ढाई घंटे पूर्व) में जागना अत्यंत शुभ माना गया है।इस समय सोना शास्त्रों के अनुसार पुण्य का नाश करने वाला होता है। इसलिए इस पावन समय में ध्यान, जप या प्रार्थना करें।

  5. कर्म और उसका फल:कोई भी पाप या गलत कर्म करने से बचें, क्योंकि भगवान हर समय देख रहे हैं।दुख या कष्ट यदि जीवन में है, तो वह पिछले पाप कर्मों का परिणाम है। आगे और कष्ट न हो, इसके लिए सत्कर्म और साधना का मार्ग अपनाएं।स्वधर्म का पालन करें, क्योंकि गीता में स्वधर्म को ही सर्वोत्तम धर्म बताया गया है।

  6. धार्मिक कार्यों में समर्पण:तीर्थ यात्रा, श्राद्ध, दान, हवन, यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों में पत्नी को साथ रखें।यदि पत्नी को छोड़कर धार्मिक कार्य किए जाएं, तो वे निष्फल माने जाते हैं।

  7. श्रद्धा का महत्व:श्रद्धा का अर्थ है, भगवान में अटूट विश्वास रखना, जिसमें संदेह के लिए कोई स्थान न हो।सच्ची श्रद्धा से भगवान तुरंत अपने भक्त की सहायता के लिए आते हैं।

  8. घर की शांति और व्यवस्था:समझौता और व्यवस्था सुखी गृहस्थ जीवन के दो प्रमुख स्तंभ हैं।आवश्यकता से अधिक खर्च कर कर्ज में न डूबें और ऐसा कोई कार्य न करें, जिससे अपमान या पश्चाताप हो।

  9. मन की अपेक्षाएं त्यागें:जब तक यह इच्छा रहेगी कि "जो मैं चाहूं, वैसा ही हो", तब तक शांति नहीं मिलेगी।यदि हम यह संकल्प कर लें कि हमारी इच्छाएं पूरी न होने पर भी हम नाराज़ नहीं होंगे, तो मन में अशांति, संघर्ष और चिंता उत्पन्न नहीं होगी।

  10. निश्चिंतता का भाव:जो होना है, वह होकर ही रहेगा और जो नहीं होना है, वह कभी नहीं होगा।इस सत्य को स्वीकार कर चिंता छोड़ दें और भगवान पर विश्वास रखें।

गृहस्थ जीवन में भी इन नियमों का पालन करके शांति, सुख और आध्यात्मिक समृद्धि प्राप्त की जा सकती है।

गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करें-

हमारे पूर्वजों ने जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया था — ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य पालन कर शिक्षा प्राप्त करना, फिर पच्चीस वर्ष गृहस्थ आश्रम में पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाना, और उसके बाद वानप्रस्थ में संसार के बीच रहते हुए भी साक्षी भाव में जीना उचित माना गया। इसका अर्थ है कि व्यक्ति बाहरी जीवन में सक्रिय रहते हुए भी भीतर से शांत और निर्लिप्त बना रहे।

ब्रह्मचर्य का महत्व

  • ब्रह्मचर्य को शरीर और मन का सम्राट कहा जाता है। यह संपूर्ण जीवन के विकास में सहायक होता है और व्यक्ति को आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।

  • ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला व्यक्ति आत्मबल, तेज, ओज और प्रखर बुद्धि का धनी बनता है।

  • इसके विपरीत, वर्तमान समय में चारों ओर ब्रह्मचर्य को भंग करने वाले साधन उपलब्ध हैं। अश्लील साहित्य, भड़काऊ गीत-संगीत, अनैतिक चलचित्र और नशे की आदतें व्यक्ति के मन और शरीर को कमजोर कर देती हैं।

ब्रह्मचर्य नष्ट होने के दुष्प्रभाव

  • नशा, अश्लीलता और व्यसन व्यक्ति के आत्मबल को नष्ट कर देते हैं। इससे उसकी आयु, बल, बुद्धि और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

  • उदाहरणस्वरूप, कुछ वर्षों पूर्व 'एक दूजे के लिए' नामक चलचित्र देखकर कई युवाओं ने आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि वे फिल्म की काल्पनिक प्रेम कहानी को वास्तविकता मान बैठे।

  • ऐसे मनोरंजन साधन मन को मलिन करते हैं, जिससे तन भी दुर्बल हो जाता है। कमजोर मन और शरीर के साथ महान कार्य कर पाना असंभव हो जाता है।

ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे करें?

  1. सकारात्मक वातावरण:सदैव अच्छे विचारों, प्रेरणादायक साहित्य और सत्संग का सेवन करें।अश्लीलता और नकारात्मकता से दूर रहें।

  2. शुद्ध आहार:सात्त्विक और पौष्टिक भोजन करें। ऋतु के अनुसार फलों और हरी सब्जियों का सेवन करें।चाय, कॉफी, शराब, तंबाकू और अन्य व्यसनों से बचें, क्योंकि ये शरीर और मन को कमजोर करते हैं।

  3. नियमित दिनचर्या:सूर्योदय से पूर्व उठें और प्राणायाम तथा योगासन करें।सूर्य नमस्कार करने से शरीर और मन दोनों को शक्ति मिलती है।

  4. स्वास्थ्य का ध्यान:प्रातः काल की ताजी हवा में घूमना और व्यायाम करना स्वास्थ्यवर्धक होता है।

  5. आत्मिक साधना:नियमित रूप से ध्यान और आत्मचिंतन करें। इससे मनोबल और आत्मसंयम बढ़ता है।

निष्कर्ष-

गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी आध्यात्मिक साधना और ब्रह्मचर्य का पालन संभव है। प्रभु की भक्ति, सद्कर्म, संयमित जीवनशैली और सकारात्मक विचारों से व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है।

प्रभु से प्रार्थना हमें विनम्रता, करुणा और संतोष का मार्ग दिखाती है। शत्रुओं के प्रति प्रेम, परिवार के लिए मंगलकामना और प्रभु के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने से जीवन में शांति बनी रहती है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए नियमबद्ध दिनचर्या, ब्रह्म मुहूर्त में जागरण, सात्त्विक आहार, नियमित जप-प्रार्थना और ब्रह्मचर्य के पालन से हम न केवल अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त कर सकते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपने जीवन को प्रभु की भक्ति में समर्पित करें और उनके मार्गदर्शन में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें। प्रभु का स्मरण, उनकी शरणागति और उनके प्रति श्रद्धा ही सच्ची साधना का आधार है। जब हम अपने विचारों, वाणी और कर्मों को शुद्ध रखेंगे, तो न केवल हमें आंतरिक शांति मिलेगी, बल्कि हमारा जीवन भी परम उद्देश्य की ओर बढ़ेगा।

"हे प्रभु! हमारी आत्मा को आपकी शरण में शांति मिले, हमारा जीवन आपकी कृपा से प्रकाशित हो, और हमारी यात्रा आपके श्रीचरणों तक पहुंचे।"




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