सनातन धर्म और स्वास्थ्य का गहरा संबंध
सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण जीवन शैली है, जो मानव के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का मार्गदर्शन करती है। हमारे ऋषि-मुनियों और पूर्वजों ने इस धर्म में ऐसे नियम और सिद्धांत स्थापित किए, जो न केवल आत्मिक उन्नति के लिए बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी सुदृढ़ बनाने के लिए आवश्यक हैं।
1. कठिन समय में धर्म का सहारा
जब व्यक्ति जीवन के कठिन दौर से गुजरता है, तब मित्र, रिश्तेदार और समाज अक्सर साथ छोड़ देते हैं। उस समय केवल धर्म और अपने अच्छे कर्म ही व्यक्ति के साथ रहते हैं। सनातन धर्म सिखाता है कि कष्ट और विपरीत परिस्थितियाँ भी आत्म-विकास का एक अवसर होती हैं। धर्म के सिद्धांत व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करते हैं और उसे विपरीत परिस्थितियों में धैर्यपूर्वक खड़ा रहने की शक्ति देते हैं।
"धर्मो रक्षति रक्षितः" — जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
2. धर्म को छोड़ना क्यों पाप है?
सनातन धर्म का मूल उद्देश्य सभी प्राणियों का कल्याण करना है। यह धर्म कभी भी अन्य मतों का अनादर नहीं करता, बल्कि सबके प्रति प्रेम और करुणा की भावना रखता है। इसलिए अपने मूल धर्म को त्यागकर अन्य मतों को अपनाना शास्त्रों में महापाप माना गया है।
"परो धर्मो भयावहः" — दूसरे का धर्म अपनाना भयावह होता है।
धर्म केवल पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को निर्देशित करता है। सनातन धर्म में बताया गया है कि सच्ची धार्मिकता वही है, जो परोपकार और दया के रूप में प्रकट होती है।
"परहित सरिस धर्म नहिं भाई" — परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।
3. सनातन धर्म का स्वास्थ्य से संबंध
सनातन धर्म में ऐसे अनेक नियम और आदर्श दिए गए हैं, जिनका पालन करने से व्यक्ति का शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता है। इन नियमों का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक उन्नति ही नहीं, बल्कि दैहिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बनाए रखना है।
(क) आहार और स्वास्थ्य
सात्त्विक भोजन: सनातन धर्म में सात्त्विक आहार को सर्वोत्तम माना गया है। फल, सब्जियां, दूध, घी, शहद आदि को सात्त्विक भोजन कहा जाता है, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और मन को शांत रखता है।
मध्यम मात्रा में भोजन: धर्म में कहा गया है कि भोजन उतना ही ग्रहण करें, जितना शरीर को आवश्यकता हो। अधिक भोजन से रोग उत्पन्न होते हैं।
उपवास का महत्व: उपवास को आत्मसंयम और शरीर की शुद्धि का माध्यम माना गया है। यह पाचन तंत्र को विश्राम देता है और शरीर को पुनर्जीवित करता है।
"युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु" — संतुलित आहार और नियमित दिनचर्या ही स्वस्थ जीवन का आधार है।
(ख) योग और प्राणायाम
सनातन धर्म ने योग और प्राणायाम को स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण अंग बताया है। योगासन शरीर को लचीला और मजबूत बनाते हैं, जबकि प्राणायाम फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाकर शरीर में ऑक्सीजन का संचार करता है। इससे मानसिक शांति मिलती है और तनाव कम होता है।
"योगश्चित्तवृत्ति निरोधः" — योग चित्त की वृत्तियों को रोकने का साधन है।
(ग) स्नान और शारीरिक स्वच्छता
धार्मिक दृष्टि से स्नान को अत्यंत पवित्र माना गया है, लेकिन इसका वैज्ञानिक पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण है। स्नान शरीर को शुद्ध करता है, रक्त संचार को बेहतर बनाता है और त्वचा को स्वस्थ रखता है। विशेषकर प्रातःकाल में स्नान करने से शरीर ऊर्जावान बना रहता है।
4. मानसिक स्वास्थ्य और धर्म
सनातन धर्म में ध्यान, जप और भजन-कीर्तन को मानसिक शांति प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन माना गया है। नियमित ध्यान करने से व्यक्ति के मनोविकार शांत होते हैं और आत्मिक बल बढ़ता है। इसके अतिरिक्त भगवान के नाम का स्मरण तनाव, चिंता और अवसाद को दूर करता है।
"मनः प्रशान्तमसम्प्रदायं" — शांत मन ही वास्तविक सुख का स्रोत है।
5. परिवार और सामाजिक स्वास्थ्य
सनातन धर्म केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देता है। इसमें माता-पिता और गुरु की सेवा को परम कर्तव्य माना गया है। परिवार में प्रेम, करुणा और सामंजस्य बनाए रखने के लिए धर्म में अनेक शिक्षाएँ दी गई हैं।
"मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः" — माता और पिता को देवता के समान मानो।
धर्म में दान, परोपकार और सेवा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इससे समाज में परस्पर प्रेम और सहयोग की भावना विकसित होती है, जिससे सामाजिक स्वास्थ्य सुदृढ़ होता है।
6. धर्म और दीर्घायु जीवन
सनातन धर्म में बताया गया है कि सादा जीवन, उच्च विचार और संयमित आचरण करने वाले व्यक्ति दीर्घायु होते हैं। नियमित व्यायाम, समय पर भोजन, ब्रह्म मुहूर्त में जागना और सात्त्विक जीवन जीना आयु को बढ़ाता है।
"जीवेम शरदः शतम्" — सौ वर्षों तक स्वस्थ और सुखी जीवन जीने की कामना की गई है।
7. निष्कर्ष
सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ या कर्मकांड का मार्ग नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण जीवन दर्शन है, जो व्यक्ति के हर पहलू को छूता है। इसका पालन करने से न केवल आत्मिक शांति मिलती है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी सुदृढ़ होता है।
हमारे पूर्वजों ने धर्म और स्वास्थ्य को एक दूसरे से इस प्रकार जोड़ा है कि यदि व्यक्ति धर्म के सिद्धांतों का पालन करता है, तो वह दीर्घायु, सुखी और स्वस्थ जीवन जी सकता है। अतः धर्म को अपने जीवन में आत्मसात कर, न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक कल्याण भी संभव है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः" — सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों।
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