मां कामाख्या शक्तिपीठ : रहस्य और श्रद्धा का संगम
परिचय
भारत की भूमि देवी उपासना की परंपरा से ओत-प्रोत है। इक्यावन शक्तिपीठों में असम राज्य के गुवाहाटी की सीमा पर स्थित कामरूप-
कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोच्च और अत्यंत रहस्यमयी शक्तिपीठ माना जाता है। यह स्थान केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और तांत्रिक साधना के लिए भी विश्वभर में प्रसिद्ध है।
पौराणिक कथा और स्थापना
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया तो सती ने बिना बुलाए यज्ञ स्थल पर जाकर अपने पति का अपमान सहा और दुखी होकर यज्ञकुण्ड में कूदकर प्राण त्याग दिए।
यह समाचार सुनकर भगवान शिव क्रोधित हुए और सती के दग्ध शरीर को अपने कंधे पर उठाकर तांडव करने लगे। तब सृष्टि की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 अंगों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां ये अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। इन्हीं में से कामाख्या वह स्थल है जहां माता का योनि भाग गिरा था। इसी कारण यहां देवी की मूर्ति नहीं है, बल्कि योनि पीठ की ही पूजा होती है, जिसे सदैव एक प्राकृतिक झरना गीला रखता है।
बलि प्रथा और उसका परिवर्तन
प्राचीन समय में कामाख्या मंदिर तांत्रिक अनुष्ठानों का प्रमुख केंद्र था। यहां नरबलि की परंपरा प्रचलित थी, जिसे बाद में पशुबलि में बदल दिया गया। 19वीं शताब्दी में भी बलि की यह प्रथा जीवित रही, लेकिन धीरे-धीरे इसमें परिवर्तन आया। अब मंदिर में जीवित प्राणी के स्थान पर आटे और चने से बने पुतलों की बलि दी जाती है। मान्यता है कि बलि को देखने वाले व्यक्ति पर माता का कोप पड़ता है।
मंदिर का ऐतिहासिक निर्माण
16वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा विश्वसिंह ने मां कामाख्या का भव्य सोने का मंदिर बनवाया। बाद में यह मंदिर ध्वस्त हुआ, लेकिन उनके पुत्र नरनारायण और सेनापति शुक्लध्वज ने 1565 ईस्वी में वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। इसके बाद अहोम राजाओं ने मंदिर पर अधिकार स्थापित किया और आज भी उनकी स्थापित पूजा-पद्धति का पालन किया जाता है।
प्रमुख उत्सव और तांत्रिक साधना
कामाख्या शक्तिपीठ केवल एक मंदिर ही नहीं बल्कि तांत्रिक साधना का भी मुख्य केंद्र है। यहां विशेषकर अम्बुवाची मेला प्रसिद्ध है, जो माता के वार्षिक ऋतु चक्र (मासिक धर्म) के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा नवान्न, माननी पूजा, मदन चतुराली तथा वासंती पूजा भी बड़ी श्रद्धा और परंपरा के साथ संपन्न होती हैं। दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं और देवी के दर्शन हेतु पूरी रात कतारों में खड़े रहते हैं।
घर में मां कामाख्या की आराधना का महत्व
अगर घर में मां कामाख्या की आराधना की जाए तो यह सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति करती है। माना जाता है कि सच्चे मन से मां का ध्यान करने से संतान सुख, दांपत्य जीवन में सुख-शांति, और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है। कामाख्या माता की उपासना से तांत्रिक बाधाएं, बुरी शक्तियां और नकारात्मक ऊर्जा भी दूर होती हैं। घर में उनकी तस्वीर या प्रतीक रूप में योनिपीठ का पूजन करने से परिवार में सौभाग्य, उन्नति और रक्षा बनी रहती है।
प्रमुख रहस्य व विशेषताएँ:
देवी सती की योनि का पतन
पौराणिक मान्यता है कि जब भगवान शिव दुख में सती का शरीर लेकर ब्रह्मांड में भ्रमण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर के टुकड़े किए। उसी समय माता सती की योनि (गर्भाशय) इस स्थान पर गिरी, इसलिए इसे कामाख्या कहा गया।
मंदिर में मूर्ति नहीं है
यहाँ किसी देवी की मूर्ति या प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक स्वयंभू योनि-आकार की चट्टान पर जल निरंतर बहता रहता है। इसी चट्टान की पूजा की जाती है।
अम्बुवाची मेला (देवी का रजस्वला होना)
साल में एक बार जून महीने में माता रजस्वला (मासिक धर्म) होती हैं। इस दौरान मंदिर के द्वार तीन दिन तक बंद रहते हैं। चौथे दिन मंदिर खुलता है और भक्तों को लाल रंग का वस्त्र प्रसाद के रूप में दिया जाता है। यह वस्त्र देवी के मासिक धर्म के समय जमीन से निकले लाल रंग के जल में भिगोया जाता है।
तांत्रिक साधना का केंद्र
कामाख्या मंदिर को तंत्र साधना का सबसे बड़ा पीठ माना जाता है।
यहाँ अघोरी और तांत्रिक साधक विशेष अनुष्ठान करते हैं। यह स्थान तंत्र-मंत्र की दृष्टि से अत्यंत शक्तिशाली है।
कामदेव का श्रापमुक्ति स्थल
मान्यता है कि जब भगवान शिव के तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव भस्म हो गए थे, तो उनकी पत्नी रति ने उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए तपस्या की। तब उन्हें यह वरदान मिला कि कामदेव का शरीर कामाख्या में पुनः स्थापित होगा। इसलिए इसे कामरूप भी कहा जाता है।
इस प्रकार, कामाख्या का मुख्य रहस्य देवी का नारी-शक्ति रूप और उनकी प्रजनन शक्ति का पूजन है, जो सृष्टि और जीवन की निरंतरता का प्रतीक है।
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