धनतेरस और दीपावली पूजन विधि |महालक्ष्मी और गणेश पूजन संपूर्ण विधि

धनतेरस एवं श्री महालक्ष्मी पूजन-विधान 

भूमिका-

भारतीय संस्कृति में दीपावली का पर्व केवल दीपों का उत्सव नहीं है, बल्कि यह समृद्धि, धर्म, कर्तव्य और आत्मिक प्रकाश का प्रतीक भी है। यह पर्व पाँच दिनों तक मनाया जाता है—धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज। प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व और धार्मिक आस्था है

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को धनतेरस कहा जाता है। यह दिन स्वास्थ्य, आयु और धन-संपदा से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। तभी से इस दिन का नाम “धन त्रयोदशी” या संक्षेप में “धनतेरस” पड़ा।

धनतेरस के दिन नया बर्तन, सोना, चाँदी खरीदना शुभ माना जाता है। साथ ही, इस दिन घर के बाहर यमदीप जलाने की परंपरा है। मान्यता है कि इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु से रक्षा प्रदान करते हैं।


धनतेरस की कथा और यमदीप की परंपरा

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार राजा हिम नामक राजा के पुत्र की कुंडली में अकाल मृत्यु का योग था। ज्योतिषियों ने कहा कि उसकी शादी के चौथे दिन ही यमराज उसे लेने आएंगे। उसकी पत्नी चतुर और धर्मपरायण थी।

जब वह दिन आया, तो उसने अपने आँगन के बाहर ढेर सारे दीपक जलाकर रख दिए। सोने-चाँदी के गहनों और बर्तनों को सजाकर रखा, ताकि घर के द्वार पर अद्भुत प्रकाश फैले। उसने अपने पति को अंदर कमरे में बैठाकर कहानियाँ सुनानी शुरू कीं और स्वयं भी सोई नहीं।

जब यमराज वहाँ पधारे, तो दीपों की रोशनी और आभूषणों की चमक से उनकी आँखें चौंधिया गईं। वे अंदर प्रवेश नहीं कर सके। बाहर बैठकर उन्होंने पत्नी के मधुर गीत सुने और चुपचाप सुबह होते ही लौट गए। उस दिन से पति की अकाल मृत्यु टल गई।

तभी से परंपरा चली कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की रात्रि को घर के बाहर यमदीप जलाया जाए, ताकि यमराज प्रसन्न हों और परिवार को दीर्घायु का आशीर्वाद दें।

धनतेरस पर खरीददारी का महत्व

  • सोना-चाँदी: स्थायी लक्ष्मी का प्रतीक माने जाते हैं।

  • नए बर्तन: घर में शुद्धता, पवित्रता और समृद्धि का वास होता है।

  • झाड़ू: मान्यता है कि इस दिन झाड़ू खरीदना दरिद्रता को दूर करता है।

  • धन्वंतरि पूजन: स्वास्थ्य और निरोगी काया की प्राप्ति के लिए लोग औषधियाँ भी खरीदते हैं।

लक्ष्मीजी के तीन उपासक

शास्त्रों में लक्ष्मीजी के तीन प्रकार के उपासक बताए गए हैं—

  1. हीन उपासक – जो केवल भोग-विलास हेतु लक्ष्मी का उपयोग करते हैं। उनके यहाँ लक्ष्मी स्थिर नहीं रहती।

  2. मध्यम उपासक – जो लक्ष्मी को माता मानते हैं, लेकिन धन का प्रयोग केवल अपने और परिवार के पालन-पोषण तक ही सीमित रखते हैं। दान, सेवा या पुण्य कार्य में खर्च नहीं करते।

  3. उत्तम उपासक – जो लक्ष्मी को माता या पुत्री मानते हैं और दान, सेवा तथा धर्म कार्यों में धन का सदुपयोग करते हैं। ऐसे घरों को लक्ष्मीजी कभी नहीं छोड़तीं।


दीपावली की पौराणिक कथाएँ

  1. समुद्र मंथन: इसी दिन समुद्र मंथन से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं और उन्होंने भगवान विष्णु को पति रूप में वरण किया।

  2. श्रीराम का आगमन: त्रेतायुग में श्रीरामचन्द्रजी के 14 वर्ष का वनवास समाप्त होने पर अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया।

  3. राजा बलि की कथा: भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर बलि महाराज से तीन पग भूमि मांगी और सम्पूर्ण पृथ्वी को पुनः देवताओं को दिलाई। इस दिन बलि पूजा की परंपरा भी है।

श्री महालक्ष्मी पूजन-विधान

तैयारी

  1. घर को साफ़-सुथरा करके दरवाजे पर रंगोली और दीपक सजाएँ।

  2. पूजा स्थल पर लाल या पीले कपड़े से ढका हुआ पवित्र आसन रखें।

  3. चौकी पर श्रीगणेश और महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।

  4. कलश स्थापित करें और उसमें गंगाजल, आम्रपल्लव, नारियल रखें।

  5. धूप, दीप, पुष्प, चंदन, रोली, अक्षत, मिठाई, फल आदि सामग्री पास रखें।

पूजन विधि

  1. आसन ग्रहण करें – उत्तराभिमुख या पूर्वाभिमुख बैठें।

  2. आचमन एवं प्राणायाम – शरीर और मन को शुद्ध करें।

  3. संकल्प मंत्र –
    "मैं अमुक नाम, अमुक स्थान पर, अपने परिवार के साथ, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति के लिए श्रीगणेश-लक्ष्मी पूजन का संकल्प करता/करती हूँ।"

  4. गणेश पूजन – सबसे पहले श्रीगणेश को आवाहन, स्नान, वस्त्र, पुष्प और भोग अर्पित करें।

  5. लक्ष्मी पूजन –

    • कमल पुष्प और सिन्दूर चढ़ाएँ।

    • खीर, मिठाई और नैवेद्य अर्पित करें।

    • लक्ष्मीजी को विष्णुजी के साथ पूजा जाए।

    • लक्ष्मीजी के पास सिक्के या धनराशि रखें।

  6. मंत्रोच्चार –

    • गणेश मंत्र: “ॐ गं गणपतये नमः”

    • लक्ष्मी मंत्र: “ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥”

  7. आरती – गणेश और लक्ष्मी दोनों की आरती करें।

  8. दीपदान – घर के हर कोने में दीप जलाएँ, विशेषकर तुलसी के पास और दरवाजे पर यमदीप अवश्य रखें।

पूजन सामग्री का महत्व

  • दीपक: अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करता है।

  • धूप: वातावरण शुद्ध करता है।

  • पुष्प: श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक।

  • सिन्दूर: मंगल और शक्ति का प्रतीक।

  • खीर/मिठाई: लक्ष्मीजी को प्रिय भोग।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • दीपावली पर दीप जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और नमी व कीटाणु नष्ट होते हैं।

  • घर की सफाई से रोगाणु दूर होते हैं और मन प्रसन्न रहता है।

  • परिवार के साथ सामूहिक पूजा से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।

सामाजिक महत्व

दीपावली केवल अपने घर की समृद्धि के लिए नहीं, बल्कि गरीबों और वंचितों की सहायता का पर्व भी है। लक्ष्मी पूजन तभी सफल है जब उसका अंश दान और सेवा में लगे।

निष्कर्ष

धनतेरस और दीपावली का पर्व केवल धन-संपदा का उत्सव नहीं, बल्कि यह धर्म, दान और प्रकाश का संदेश देता है।
सच्चा महालक्ष्मी पूजन तब पूर्ण होता है जब हम—

  • अपने घर को स्वच्छ और पवित्र रखें,

  • यमदीप जलाकर यमराज से दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करें,

  • गणेश और लक्ष्मीजी की पूजा कर धन-संपत्ति का सही उपयोग करें,

  • और समाज के जरूरतमंद लोगों की सहायता करें।

🌸 दीपावली पर यही संदेश है कि धन का सदुपयोग धर्म, सेवा और परोपकार में हो, तभी लक्ष्मीजी स्थायी रूप से घर में निवास करती हैं। 


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