परिवार में बुज़ुर्गों का महत्व | बच्चों के जीवन में दादा-दादी की भूमिका

दादा-दादी और पोते-पोतियों का रिश्ता

एक अनमोल रिश्ता

हमेशा की तरह, 14 सितम्बर को "आदर सम्मान दिवस" के रूप में दादा-दादी दिवस बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया गया। विभिन्न विद्यालयों में कार्यक्रम आयोजित किए गए जिनमें दादा-दादी विशेष आमंत्रित थे। ऐसे कार्यक्रमों का उद्देश्य बच्चों के जीवन को सँवारने में दादा-दादी की अनमोल भूमिका को उजागर करना और बच्चों में नैतिक, मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों को स्थापित करना है। यह वास्तव में एक सराहनीय पहल है!

लेकिन साल में केवल एक दिन मनाना पश्चिमी परंपरा है। हमारे लिए तो हर दिन मदर्स डे, फादर्स डे, ग्रैंडपेरेंट्स डे या एल्डर्स डे होना चाहिए। बड़ों का सम्मान करना हमारी संस्कृति और परंपरा में है। राम और श्रवण की भूमि पर हम गर्व से कहते हैं कि हमारे संस्कारों में बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना शामिल है, लेकिन दुर्भाग्यवश हम हैलो/हाय संस्कृति की ओर आकर्षित  हो गए हैं।

पश्चिमी प्रभाव के चलते हमने बड़ों की उपेक्षा भी शुरू कर दी है। कई बार देखने को मिलता है कि बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता या दादा-दादी को उनके जीवन के अंतिम पड़ाव पर अकेला छोड़ देते हैं। यह बहुत ही दुखद है! इस नकारात्मक प्रवृत्ति को जल्द से जल्द सुधारने की आवश्यकता है ताकि हमारी गौरवशाली संस्कृति फिर से जीवित हो सके। शिक्षा जगत, सामाजिक संगठन और मीडिया को आगे आकर युवा पीढ़ी को नैतिक, मानवीय और आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति जागरूक करना चाहिए और उन्हें बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाना चाहिए। साथ ही बुजुर्गों को भी अपने आचरण और व्यवहार से खुद को उस सम्मान के योग्य बनाना होगा जिसकी वे अपेक्षा करते हैं।

बहूत ही किस्मत वाले हैं वो लोग जिन्हें अपने पोते पोतीयो और नाते नाती नातिन  के साथ जीवन बिताने को मिलता है क्योंकि अब इ केमिकल युक्त भोजन खाने से बहुत ही कम लोग इतनी लंबी उम्र भोग पाते हैं और छोटी उम्र  होने केसे यह सब सूख देखने  ए वंचित ही रह जाते हैं। 60 की उम्र में लोग अपने जीवन लीला समाप्त कर परमधाम की ओर चले जाते हैं।


दादा-दादी और पोते-पोतियों का रिश्ता!
हमारी पंजाबी संस्कृति में एक कहावत है – “मूल से ब्याज प्यारा होता है।” इसी प्रकार दादा-दादी को अपने पोते-पोतियों से अपने बच्चों से भी ज्यादा लगाव होता है। आज के दादा-दादी पहले की पीढ़ियों की तुलना में ज्यादा सक्रिय और समझदार हैं। वे परिवार और समाज के लिए उपयोगी योगदान दे सकते हैं।

आजकल माता-पिता दोनों कामकाजी होने के कारण बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते। ऐसे में दादा-दादी इस खालीपन को भर सकते हैं। उनके पास धैर्य भी है और समय भी, इसलिए वे बच्चों के बेहतरीन मार्गदर्शक बन सकते हैं। पोते-पोतियों और दादा-दादी के बीच का भावनात्मक रिश्ता इतना प्यारा और आत्मीय होता है कि उसकी गर्माहट को महसूस किया जा सकता है, शब्दों में बयान करना कठिन है।

(a) पोते-पोतियों के लिए लाभ:

  • पोते-पोती अपने दादा-दादी की बात ज्यादा सुनते हैं क्योंकि उनका आपसी संवाद बहुत ही दोस्ताना और मधुर होता है।

  • दादा-दादी बच्चों में अच्छे संस्कार, अनुशासन और चरित्र निर्माण कर सकते हैं।

  • उन्हें बच्चों के साथ अच्छा समय बिताना चाहिए और प्रेम, दुलार तथा उपहार देना चाहिए, बिना किसी अपेक्षा के।

  • बच्चे अपने दादा-दादी से परिवार की परंपराएँ, रीति-रिवाज़ और अपनी जड़ों के बारे में सीख सकते हैं।

  • कई बार बच्चे अपने माता-पिता से अपनी समस्या साझा नहीं कर पाते, लेकिन दादा-दादी से खुलकर बात कर सकते हैं और समाधान पा सकते हैं।

(b) दादा-दादी के लिए लाभ:

  • अमेरिका के शोधकर्ताओं ने पाया है कि पोते-पोतियों से भावनात्मक रूप से जुड़ाव बुजुर्गों में अकेलेपन और अवसाद को कम करता है।

  • दादा-दादी अपने पोते-पोतियों से कंप्यूटर, इंटरनेट, फेसबुक और स्मार्टफोन जैसी आधुनिक चीज़ें सीख सकते हैं।

  • बच्चे अपने माता-पिता को भी समझा सकते हैं कि यदि वे अपने बुजुर्गों के साथ गलत व्यवहार करेंगे तो बुढ़ापे में उन्हें भी वैसा ही सामना करना पड़ेगा।

  • सबसे महत्वपूर्ण यह है कि दादा-दादी को अपने पोते-पोतियों के साथ बिताए पलों का आनंद लेना चाहिए, भविष्य की चिंता किए बिना।

(c) सावधानियाँ:

  • पोते-पोतियों की पीठ थपथपाना प्रोत्साहन के लिए ठीक है, लेकिन जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार उन्हें बिगाड़ सकता है।

  • दादा-दादी को माता-पिता के निर्णय का समर्थन बच्चों के सामने करना चाहिए ताकि माता-पिता की बात की अहमियत बनी रहे।

  • दादा-दादी को बच्चों से अधिक अपेक्षाएँ नहीं रखनी चाहिए, ताकि आगे चलकर उन्हें निराशा न हो।

निष्कर्ष:

दादा-दादी और पोते-पोतियों का रिश्ता इतना आत्मीय और विश्वासभरा होता है कि यह दोनों के लिए भिन्न भिन्न स्थिति है। हम चाहेंगे कि हर घर में हर दिन मदर्स डे, फादर्स डे, ग्रैंडपेरेंट्स डे और एल्डर्स डे जैसा हो, और सभी परिवारजन मिलजुलकर सुखमय व सामंजस्यपूर्ण जीवन व्यतीत करें। जिन लोगों के जीवन में यह प्रभाव आता है उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे दादा-दादी का बचपन वापस लौट आया हो क्योंकि बच्चे और बूढ़े दोनों एक समान हो जाते हैं। भाग्यशाली हैं वह लोग जो इस पलों  को व्यतीत करते हैं। 

उम्मीद करती हूं जो भी इस लेख को पढ़ रहा हो वह इस पल को जिए और अपने परिवार और पोते पोतियो के साथ खुशहाल जीवन जिए। 

भगवान सबके घरों में ऐसे बच्चे दे जो अपने दादा-दादी और नाना नानी की फीलिंग को समझ पाए।

अपने पोते-पोतियों के साथ खुशहाल समय बिताइए! 🌸


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